Chapter 75

Chapter 75

सुन मेरे हमसफ़र 68

Chapter

68



    "मैं बस यही चाहती थी कि मेरे पापा की लोगों के सामने मजाक ना बने और वह भी मेरी वजह से! पापा हमेशा कहते थे, मैं उनकी आन हूं। उनकी उसी आन को बचाने के लिए मुझे जो सही लगा मैंने वह किया। अव्यांश! मुझे नहीं पता हमारी शादी क्यों हुई। इस सब से तुम्हारा क्या फायदा था, क्या नुकसान था। मैं सिर्फ इतना जानती थी कि मेरे पापा के बॉस एक बहुत बड़ी फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं। और उस परिवार की बहू बनकर मैं अपने पापा की नाक ऊंची कर सकती हूं। यह समाज को आज मुझे अपने तानों का शिकार बनाने के लिए तैयार खड़ा था, उन सब से मैं अपने पापा को बचा सकती हूं। अंशु! थैंक यू, थैंक यू सो मच। तुमने जो किया उसके लिए मैं जिंदगी भर तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी।"
    अव्यांश ने निशी का सर सहलाए और फिर उसकी पीठ धीरे-धीरे सहलाने लगा। निशी अभी भी कुछ ना कुछ बोले जा रही थी और अव्यांश भी उसे सुन रहा था। शादी के बाद कितना कुछ उसके मन में दबकर रह गया था। ना वह खुलकर कुछ बोल पाई थी और ना ही रो कर मन हल्का कर पाई थी। इस वक्त निशी को वह दोनों ही मौके आसानी से मिल गए थे।
     रोते-रोते वह कब अव्यांश की बाहों में सो गई उसे पता ही नहीं चला। अव्यांश कुछ देर तो उसे अपनी बाहों में लेकर उसके चेहरे को देखता रहा फिर उठकर ड्राइविंग सीट पर आया और घर के लिए निकल पड़ा।
     जब तक वह घर पहुंचा, सुबह के चार बज रहे थे और घर में सारे लोग सो रहे थे। बाहर पहुंचकर वो सोचने लगा कि निशी को इस हालत में लेकर वह घर के अंदर कैसे जाए! अगर किसी ने सवाल कर दिया तो वह अकेले कैसे और क्या जवाब देगा। इस वक्त तो निशी भी बेहोश थी जो उसके झूठ में साथ दे सकती थी। ऐसे में उसे खयाल आया अपने पार्टनर इन क्राईम का।
     अव्यांश ने अपना फोन निकाला और एक नंबर डायल कर दिया। काफी रिंग जाने के बाद भी दूसरी तरफ से किसी ने फोन नहीं उठाया। अव्यांश पूरी तरह झल्ला गया। "मोटी भैंस! घोड़े बेच कर सो रही होगी। इसको भी ना, सोने से फुर्सत नहीं है।"
     अव्यांश ने एक बार फिर फोन नंबर डायल किया। इस बार भी पूरी रिंग गई लेकिन इससे पहले कि कॉल कट जाती दूसरी तरफ से कॉल रिसीव हो गया और एक उचटती हुई आवाज सुनाई दी, "बोल गधे! इतनी रात को तु मुझे फोन क्यों कर रहा है?"
     अव्यांश जल्दी से बोला "सोनू! घर के बाहर खड़ा हूं, अंदर कैसे आऊं?"
     सुहानी बोली "बेल बजा, कोई ना कोई दरवाजा खोल देगा।"
    अव्यांश बोला "हां! उसके बाद मेरी घंटी बज जाएगी।"
    सुहानी अभी भी नींद में ही बोल रही थी। "ऐसा क्या हो गया जो तेरी घंटी बज जाएगी? सबको पता है कि तु निशी के साथ बाहर है। किसी ने तेरे लिए सवाल नहीं किया। अब तू शादीशुदा है कुत्ते, और तू अपनी बीवी के साथ बाहर गया था। अंदर आ जा, ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।"
     अव्यांश ने निशी की तरफ देखा और बेबस होकर बोला "अबे समझने की कोशिश कर यार! निशी जिस हालत में है मैं उसे लेकर घर आया तो सब मेरी घंटी बजा देंगे।"
      सुहानी की आंख एकदम से खुल गई। वो जल्दी से अपने बिस्तर से उठ बैठी और बोली "ऐसा भी क्या कर दिया तूने जो निशी की हालत खराब हो गई?"
      अव्यांश झल्लाकर बोला "ज्यादा दिमाग के होड़ दौड़ाने की जरूरत नहीं है। वह निशी ने थोड़ी ज्यादा पी ली है। ऐसी हालत में मैं उसे घर वालों के सामने नहीं ला सकता। तू चुपचाप दरवाजा खोल, मुझे अंदर आना है।"
     सुहानी का सारा एक्साइटमेंट धरा का धरा रह गया। "मतलब कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है?"
   अव्यांश अपने गाड़ी से सर पीटते हुए बोला "कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है यार! तू दरवाजा तो खोल!! देख किसी को भनक नहीं लगनी चाहिए। मैंने मॉम से बहुत मार खाई है। मुझे कुछ नहीं होगा लेकिन निशी को डांट पड़ेगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।"
     अव्यांश की आवाज में जो मासूमियत थी उसे महसूस करके सुहानी मुस्कुरा उठी और बोली "अपनी बीवी से बहुत प्यार करता है ना तू?" अव्यांश कुछ बोल नहीं पाया। उसकी नजरें निशी पर जाकर ठहर गई। सुहानी आगे बोली "तू रुक, मैं अभी दरवाजा खोलती हूं। लेकिन पहले प्लीज बोल।"
    अव्यांश ने डांट पीसकर कहा, "प्लीज सोनू, दरवाजा खोल दे।"
    "अब ठीक है।" कहती हुई सुहानी जल्दी से अपने कमरे से निकलकर दरवाजे की तरह भागी और यह देख लेने के बाद कि घर में सभी सो रहे हैं, उसने धीरे से दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते देख अव्यांश ने निशी को गोद में उठाया और दबे पांव अंदर आकर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। सुहानी ने पीछे से दरवाजा बंद कर दिया और अपने कमरे में भाग गई।
      अव्यांश भी जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा लेकिन निशी नींद में ही हाथ पैर चलाने लगी। अव्यांश उसे चुप कराने के लिए धीरे से कहा "शांत! शांत हो जाओ!!"

     सारांश पूरी रात सो नहीं पाया था। बड़ी मुश्किल से उसकी आंख लगी थी और कमरे के बाहर हो रही खुसफुसाहट को सुनकर उसकी नींद खुल गई। सारांश ने उठकर घड़ी में टाइम देखा तो सुबह के 4:00 बज रहे थे। इस वक्त कौन हो सकता है? ये सोचकर सारांश जल्दी से अपने बिस्तर से उठा और दरवाजा खोलकर बाहर निकला। लेकिन वहां उसे कोई नजर नहीं आया।
     "कौन है? कौन है यहां?" सारांश सब तरफ नजर दौड़ाई लेकिन वहां सिवाए सन्नाटे के और कुछ नहीं था। कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद जब सारांश को तसल्ली हो गई कि वहां कोई नहीं था तो उसे लगा शायद नींद में उसे धोखा हुआ हो। वह वापस अपने कमरे में चला आया।
     सारांश के रूम का दरवाजा बंद होते ही अव्यांश बगल वाले गेस्ट रूम से बाहर निकला और चैन की सांस लेते हुए बोला "आज तो बच गए वरना इसने तो मरवा ही दिया था।"



    सारांश अपने कमरे में वापस आया और जाकर सीधे बिस्तर पर लेट गया। नींद तो वैसे ही उड़ चुकी थी। उसने करवट ली और अवनी की तरफ देखा। अवनी सबसे बेखबर आराम से सो रही थी। उसके चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी।