Chapter 41
humsafar 41
Chapter
41
चित्रा ने सारांश की सारी पोल पट्टी अवनि के सामने खोलकर रख दी थी। अवनि को जानकर हैरानी हुई की जिस सारांश को मिले एक महिना भी नही हुआ है उसने दो साल पहले ये प्रोपर्टी उसके नाम पर कैसे खरीदी? अवनि को नानु की बात याद आई 'एक बार अपने पति से पूछना की वो तुम्हे कब से जानता है'।
"तुम्हारे कॉलेज से इसने तुम्हारा आधार कार्ड निकलवाया और उसी से सारे काम को अंजाम दिया। पिछले तीन सालों से लगा है ये तुम्हारे पीछे।" चित्रा ने कहा तो अवनि को यकीन नही आया। उसने सारांश की ओर देखा तो उसने मासूमियत से ना मे सिर हिला दिया।
कार्तिक बहुत तेज कार चला रहा था। दो जगह उसका एक्सीडेंट होते होते बचा। लाख कोशिश करने के बावजूद उसकी आँखों के सामने चित्रा की आँसुओ से भरी आँखे आ जाती। वह अपना दिमाग चाह कर भी कही और नही उलझा पा रहा था और ड्राईविंग पर तो बिलकुल भी नही। कुछ तो था उन आँखों मे जो उसे बेचैन किए जा रहा था। कार्तिक ने गाड़ी रोड किनारे लगाई और वही स्टियरिंग व्हील पर अपना सिर टिका कर बैठ गया।
अवनि सारांश से कई सारे सवाल पूछना चाहती थी लेकिन यहाँ ऐसे सब के सामने कुछ कहना उसे सही नही लगा इसीलिए वह चुप हो गयी। उसके दिमाग मे कभी नानु की तो कभी श्रेया की बातें घूम रही थी। सारांश समझ गया की आज उसे उसकी बीवी के बहुत से सवालों का सामना करना होगा। इसीलिए बात बदलते हुए उसने अवनि और चित्रा को शॉपिंग के बारे मे याद दिलाया और अपना कार्ड पकड़ा दिया।
सारांश वहाँ से ऑफिस के लिए निकल गया। चित्रा ने जब अवनि को शॉपिंग के लिए कहा तो कही और जाने की बजाय उसने काव्या की बुटीक ही जाना बेहतर समझा। काव्या भी उसके साथ ही थी और वह उसके पसन्द नापसंद को अच्छे से जानती थी। लेकिन चित्रा भी सारांश की पसन्द को अच्छे से जानती थी। उन दोनो ने पहले काव्या के बुटीक से कुछ कपड़े लिए और काव्या को वही छोड़ मॉल के लिए निकल गयी। रास्ते मे चित्रा ने श्रेया को भी बुला लिया।
तीनो ने शॉपिंग की और एक ब्यूटी सलॉन् मे घुस गए। अवनि को सारांश के हिसाब से तैयार जो कराना था। अवनि ने कभी खुद पर इतना ध्यान नही दिया था लेकिन इस वक़्त आईने मे देखते हुए उसे खुद से प्यार हो गया। चित्रा जब बिल काउंटर पर पेमेंट करने गयी तो बिल का अमाउंट देखा तो उसके होश उड़ गए। लगभग पचास हजार का बिल बना था जिसमे करीब पैतीस हजार तो खुद उसके ही थे। "अरे यार...! जब तुम्हारा पति खुद तुम्हारे ऊपर सब लुटाना चाहता है तो तुम क्यों परेशान हो रही हो? घबराओ मत तुम्हारा पति बहुत अमीर है। इतने से उसे कोई फर्क नही पड़ने वाला।" चित्रा ने आराम से कहा। करीब ढाई घंटे के बाद सब सलॉन् से निकले।
घर पहुँचते पहुँचते अंधेरा घिर आया। घर आकर अवनि ने देखा सारांश पहले से मौजूद था और सब को अपने साथ डिनर के लिए ले जाने आया था। कंचन और अखिल पहले से ही तैयार बैठे थे बस उन तीनों का ही इंतज़ार हो रहा था।
सारांश सब को लेकर मित्तल मेंशन पहुँचा तो कार्तिक काव्या और धानी भी वहाँ पहले से मौजूद थे। अवनि का बदला रूप देख सब हैरान रह गए लेकिन सबसे ज्यादा शॉकिंग था चित्रा का मेकओवर। शर्ट जींस की जगह वन पीस फ्रॉक ने ले ली थी और जो बाल बेतरतिब बंधे रहते थे वो खुले और सेट किये हुए थे। वह पहले की तरह झल्ली बिलकुल भी नही लग रही थी। ये तो कोई और ही थी, एक खूबसूरत लड़की जिसपर किसी का भी दिल आ जाये। सबने उसकी तारीफ की लेकिन कार्तिक को देख चित्रा थोड़ी असहज हो गयी और आँखे दूसरी ओर कर ली। वहीं कार्तिक भी उसका सामना करने मे थोड़ा हिचक रहा था।
सिया सबको घर दिखा रही थी। कंचन और काव्या तो घर देखने मे ही लगे थे। अवनि ने खुद भी घर ठीक से नही देखा था तो वह भी सबके साथ ही पीछे पीछे चल रही थी तभी पीछे से किसी ने उसका मुह दबा कर अंदर खीच लिया। अवनि की चीख गले मे ही घुट कर रह गयी जब उसने सामने सारांश को पाया जो उसे प्यार से देख मुस्कुरा रहा था। "क्या है ये? इस तरह से कोई करता है क्या?" अवनि बहुत ज्यादा डरी हुई थी।
"इसे रोमांस करना कहते है मेरी प्यारी वाइफि। तुम्हे आज ठीक से देख भी नही पाया था। कुछ देर तुम्हे देख लू.... बस थोड़ी देर!!" सारांश ने अवनि को बाहों मे भर कर कहाॅं।
अवनि कसमसाइ लेकिन सारांश हिला तक नही तो अवनि ने मुस्कुरा कर कहा, "देखना तो मुझे है.... वो भी आपको...... वो भी फुर्सत से....!" सारांश ने देखा अवनि के चेहरे पर शैतानी मुस्कान खिल रही थी। वह समझ गया की अवनि का कहना चाह रही है। उसने तुरंत ही उसे छोड़ दिया और हकलाते हुए कहा, "तुम...... तुम..... यहाँ क्या कर रही हो, जाओ सब ढूँढ रहे होंगे। जाओ जाओ।"
सारांश की हकलाहट देख अवनि को हँसी आ गयी। बड़े से बड़ा आदमी भी बीवी के सामने घबरा जाता है, ये सोचकर अवनि को हँसी आ गयी और हँसते हुए बाहर निकल गयी। सारांश भी अवनि को हँसते हुए देख मुस्कुरा उठा।
कुछ देर यूँ ही इधर उधर की बातें करने के बाद सब ने खाना शुरू किया। इस बार चित्रा ऐसी जगह पर बैठी जहाँ से वह कार्तिक को देख न पाए। सारांश को अब पूरा यकीन हो चला था की श्रेया ने नशे की हालत मे जो कुछ भी कहा था वो सब सच था बस एक बार वह खुद चित्रा से बात करना चाहता था।
जानकी और धानी सब को खाना परोस रही थी जिसे देख अवनि ने भी उनका साथ देना चाहा तो जानकी और सिया ने मना कर दिया। पूरे परिवार के साथ बैठ कर खाना सब को नसीब नही होता। अवनि भी सारांश के बगल मे बैठ गयी और खाना खाने लगी। सब लोग आराम से खा रहे थे तभी जानकी ने कहा, "चित्रा बेटा! तुम्हारे लिए कोई पार्सल आया था आज, किसी निकी ने भेजा है।
निकी का नाम सुन चित्रा के गले मे निवाला अटक गया और वह खास्ने लगी। कार्तिक ने झट से अपना पानी का ग्लास उसकी और बढ़ा दिया लेकिन चित्रा ने उसे लेने की बजाय अपना ग्लास उठा लिया। "ये निकी कौन है?" सारांश ने पूछा तो कार्तिक को भी कुछ शक हुआ।
"भैस की पूछ है....! मेरा मतलब मॉम की दोस्त का बेटा है, निक्षय।" चित्रा ने कहा।
"तो...?" कार्तिक ने पूछा।
" तो मॉम चाहती है की मै शादी कर लू।" चित्रा ने मुह बना कर कहा।
"अरे तो इसमे गलत क्या है..! तुम्हारे दोनो दोस्तों की शादी हो चुकी, अब तुम्हारी बारी।" सिया ने कहा।
"आँटी...! हर बच्चे के लिए उनके पैरेंट्स उनके आईडियल होते है। उन दोनो के लिए उनके पैरेंट्स उनके आईडियल है इसीलिए उन्होंने शादी कर ली और मेरे पैरेंट्स मेरे आईडियल है इसीलिए मै शादी के नाम से भी भागती हु।" चित्रा ने आँखे झुका कर कहा। उसकी बातों मे उसके दिल का दर्द साफ झलक रहा था।
सिया ने बात बदलते हुए कहा, "अरे कार्तिक!!! तुम्हे अपने ऑफिस का इंटीरियर चेंज करवाना था न। "
" हम्म्!!! बस एक अच्छी डिजाइनर मिल जाए।" कार्तिक ने कहा।
"तो ढूँढने की क्या जरूरत है! अपनी चित्रा तो है ही, सबसे बेस्ट....! उसे अच्छे से पता है तुम्हारी पसंद नापसंद।" सिया ने कहा तो कार्तिक को समझ नही आया की वह का कहे लेकिन सारांश परेशान हो गया। वह नही चाहता था की चित्रा और कार्तिक साथ मे काम करे या साथ मे वक़्त बिताए। इससे दोनो को ही कई परेशानियो का सामना करना पड़ सकता था।
"अरे मॉम!!! फिर तो वो ऑफिस नही जंग का मैदान बन जायेगा।" सारांश ने हँसते हुए कहा।
"तुम तो चुप ही करो!!! बचपन मे देखा है मैंने इन दोनो। को। तुम्हारे इतने सारे शौक थे की तुम तो पढ़ाई मे ज्यादा टाइम देते नही थे। तब पढाई मे कार्तिक की हेल्प कौन करता था... सिर्फ चित्रा!" सिया ने सारांश को चुप कराते हुए कहा।
धानी ने कहा, "ये बात तो सच है। सारांश ने कभी पढाई पर ज्यादा समय खर्च नही किया क्योंकि वो हमेशा से अव्वल रहा है लेकिन कार्तिक हमेशा से ही पढाई मे औसत रहा। स्कूल की बातें उसकी समझ मे नही आती थी तो चित्रा ही घंटों तक बैठ कर उसे सब समझाती थी। आज अगर कार्तिक सफल है इस मुकाम तक पहुँचा है तो उसके पीछे सिर्फ चित्रा का ही हाथ है। ये दोनो जितना लड़ते है उतना ही इन दोनो मे प्यार भी है।"
धानी की बाते सुन कार्तिक को बचपन के दिन याद आ गए और उसके होंठो पर मुस्कुराहट तैर गयी। सिया ने कहा, " अब बोलो! क्या तुम दोनो साथ मे काम करने को तैयार हो?"
सिया के सवाल पर कार्तिक से कुछ कहते नही बना लेकिन चित्रा ने आँखे नीची कर धीरे से कहा, "आँटी....! कार्तिक आज जो कुछ भी है अपने मेहनत से है। मैंने तो बस थोड़ा सा सपोर्ट किया। वैसे भी एक आदमी की सफलता के पीछे या तो उसकी माँ का हाथ होता है या फिर उसकी बीवी का। और वो दोनो ही इस वक़्त उसके पास बैठी है। मै ये काम नही कर पाऊँगी, मेरी परसो की फ्लाइट है। मै वापस जा रही हु।" इतना सुनते ही कार्तिक का हाथ जहाँ था वही रुक गया। चित्रा का जाना उसे ना पहले अच्छा लगता था और ना ही अब अच्छा लग रहा था।
क्रमश: