Chapter 34

Chapter 34

humsafar 34

Chapter

34

काव्या बस रोये जा रही थी। वह इस वक़्त ऐसे हालात से गुजर रही थी की उससे ना तो अपना दर्द छुपाये बन रहा था और ना ही वह किसी को अपना दर्द दिखा सकती थी। उसने एक बार खुद को आईने मे देखा, माँग मे सिंदूर किसी और के नाम का और दिल मे प्यार किसी और के लिए। वह अपनी ही हालत पर हँस पड़ी फिर वही टेबल पर अपना सिर टिका कर बैठ गयी। 

     अवनि हैरानी से नानु को देखे जा रही थी। उनके बातों का मतलब वह अच्छे से समझ रही थी लेकिन एक ही बात बार बार खाये जा रही थी। नानु के कहे मुताबिक तो उसका जीवनसाथी लक्ष्य को होना चाहिए था फिर सारांश न सबके बीचमे कैसे आ गया जिसे वह सिर्फ पंद्रह दिनों से ही जानती थी। उसने नानु के सामने अपनी उलझन रखी। 

   "ना मै तीन साल पहले गलत था और ना ही अब कुछ गलत हुआ है। तुम्हे लगता है तुम अपने पति को सिर्फ कुछ ही दिनों से जानती हो लेकिन एक बार उससे पूछ कर देखो की आखिर वो तुम्हे कब से जानता है। तुम दोनो पहली बार कब मिले! शायद उसे याद हो।" नानु ने कहा और वहाँ से चले गए। 

    नानु के शब्द अवनि को परेशान कर रहे थे। उसने अपने दिमाग पर पूरा जोर लगाया मगर उसे कही से भी ये नही लगा की वह सारांश को पहले कभी मिली हो। उसका सिर दुखने लगा तो अपना सिर पकड़कर वही बिस्तर पर बैठ गयी। कुछ देर बाद उसे अपने कमरे मे किसी की आहट हुई। अवनि ने सिर उठाकर देखा सामने श्रेया खड़ी मुस्कुरा रही थी। 

     अवनि कुछ देर खामोशी से उसे देखती रही। कल के अपने बर्ताव से उसका मन भारी होने लगा। वह उठी और सीधे जाकर श्रेया के गले से लगकर रोने लगी। श्रेया उसका पीठ सहला कर उसे शांत कराने की कोशिश करने लगी। थोड़ी देर रोने के जब उसका मन हल्का हुआ तब उसने श्रेया के चेहरे की ओर देखा, जहाँ उसने थप्पड़ मारा था उस हिस्से मे अभी भी सूजन बाकी थी। 

     " ज्यादा जोर से मारा न मैंने! मै बहुत बुरी हु यार, मुझसे बुरा कोई हो ही नही सकता। मुझे माफ कर दे, प्लीज मुझे माफ कर दे!" अवनि ने रोते हुए कहा। 

    "तु गुस्सा थी अवनि, किसी न किसी पर तो तेरा गुस्सा उतरता ही और अच्छा ही हुआ की तेरा गुस्सा मेरे पर उतरा। मै तो हमेशा से चाहती थी की तुझे एक ऐसा पार्टनर मिले जो तुझसे बहुत प्यार करता हो, जो तेरे लिए कुछ भी कर जाए। आज मै बहुत खुश हु, सच मे! " श्रेया ने कहा। 

     "लेकिन तेरा दिल तो टूट गया न! मेरी खुशियो की परवाह करने मे तेरा प्यार तुझसे छीन गया। उसपर से मैंने भी बिना सोचे समझे तेरे साथ....... " अवनि कहते कहते रुक गयी। 

     "माना मै सारांश को पसंद करती थी मगर सबसे ज्यादा प्यार मैंने तुझे किया है। तेरे लिए सब कुछ बेस्ट चाहा है मैंने और देख.... तेरा लाइफ पार्टनर तो बेस्ट से भी बेस्ट है। यकीन नही होता तो अपना मंगलसूत्र ही देख ले। जब सर से पाव तक मैचिंग कपड़ो और गहनो से सजी है वही तेरे मंगलसूत्र मे ये हरे रंग का पेंडेंट क्यों है? क्योंकि ये  कोई मामूली सा पेंडेंट नही है। तुझे पता भी नही की सारांश ने इसे पाने के लिए कितना एफर्ट लगाया है!" श्रेया ने कहा। 

   अवनि ने असमझ की स्थिति मे कहा, "क्या मतलब? ऐसा क्या है ये?"

    "ये मिटियोराइट है मेरी जान....... वो भी असली वाला"

   "मिटियोराइट!!!!! मतलब टूटता तारा....!!!!! मगर तुझे कैसे पता??" अवनि की आँखे हैरानी से बड़ी हो गयी तो श्रेया ने भी हाँ मे गर्दन हिलाकर कहा, "वो कल मुझे चित्रा ने बताया, सारांश तो इसे अंगूठी मे डलवा कर तुझे प्रपोज करने वाला था मगर लास्ट मोमेंट पर इसे इसमे अटैच करवाया। इसी वजह से तो चित्रा को देर हो गयी थी पहुँचने मे, और रही बात क्यों की... ....तो ये तो उसी से पूछ लेना अपनी सुहागरात पर" कहकर श्रेया ने आँख मारी फिर दरवाजे की ओर भागी और पलटकर कहा, "अवनि..... मुझे उम्मीद है की तु अब अपने आने वाले कल के बारे मे सोचेगी। तेरे लिए मैंने उस अपना जीजू बनाया है अगर तूने कुछ भी गड़बड़ की तो मै नही छोड़ूंगी.... ना तुझे और उसे तो बिलकुल भी नही। और हाँ......तेरे हाथ की मेहंदी मे उसका नाम बहुत खूबसूरत लगता है यार......." और वह मुस्कुरा कर बाहर चली गयी। 

    श्रेया के जाने के बाद अवनि सोच मे पड़ गयी। उसने एक बार खुद को आईने मे अच्छी तरह से देखा। सर से पाँव तक वह हीरो से सजी थी और ये सब सिर्फ सारांश का किया था। उसके माथे पर वो बिंदी अभी भी चमक रही थी जो सारांश ने अपने हाथों से लगाई थी। उसके माँग मे भरा सिंदूर उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। अवनि ने एक बार फिर से अपनी हथेली को देखा, सच मे उसका रंग बहुत गहरा रचा था, और वो नाम भी.....!

       अवनि उठी और खिड़की पर चली आई। चारों ओर नज़र दौड़ाने के बाद उसकी नज़र प्रवीण जी पर गयी जो वहाँ खड़े शायद किसी का इंतज़ार कर रहे थे। अवनि को कंचन के गहनो के बारे मे याद आया और वह उनसे पूछना चाहती थी मगर तभी उसने सारांश को उनके पास जाते देखा। सफेद कुर्ता गुलाबी पजामे मे, अवनि की आँखे उसपर ठहर सी गयी। उसने देखा सारांश ने एक लीफाफ प्रवीण को दिया। प्रवीण ने भी उस लीफाफ को खोलकर देखा और उनके चेहरे पे मुस्कान खिल गयी। अवनि जानती थी की ऐसी मुस्कान सिर्फ पैसों को देखकर ही आती है इसीलिए इतना तो तय था की उस लीफाफ मे चेक ही हो सकता है लेकिन सारांश तो उन्हे जानता तक नही फिर..........! 

     अचानक से अवनि को उन गहनो का ख्याल आया मगर सारांश को उन गहनों के बारे मे कैसे पता? "शायद मै कुछ ज्यादा सोच रही हु, होगा उसका कोई काम " सोचते हुए अवनि बिस्तर पर लेट गयी और उसकी आँख लग गयी। कुछ ही देर के बाद उसके दरवाजे पर हुई दस्तक से अवनि की नींद खुली। अवनि हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोला तो सामने सारांश को खड़ा पाया। सारांश तो अवनि को बस देखता ही रह गया। 

    सिया भी वहीं सारांश के पीछे ही खड़ी थी। जब उसने उसे यूँ ही चुप देखा तो हल्का सा खाँसते हुए इशारा किया। सारांश झेंप गया और अवनि से बोला, "ये मैरेज रजिस्ट्रार् के ऑफिस से आये है। सर्टिफिकेट बनाने केलिए आपके साइन चाहिए था। क्या हम......." सारांश ने अंदर आने का इशारा किया तो अवनि पीछे हो गयी और रास्ता दे दिया। ऑफिसर ने कुछ पेपर्स निकाले और उन दोनो को ही साइन करने को दे दिया। 

    सारांश और अवनि ने उन ऑफिसर्स के सामने ही पेपर्स साइन किये और शादी की सबूत के तौर पर कुछ तस्वीरे भी खिचवाई। फोटोग्राफर उन दोनो की तस्वीरे लेकर चला गया। सिया भी ऑफिसर्स को लेकर कार्तिक और काव्या के पास चली गयी लेकिन जाते जाते पलटकर मुस्कुरा दी। उन सब के जाने के बाद कमरे मे सिर्फ वही दोनो बचे थे। अवनि का घबराहट के मारे गला सुख गया। शादी के बाद यह पहला मौका था जब वह सारांश के सामने अकेली खड़ी थी और अब उन दोनो को रोकने टोकने वाला कोई नही था। 

      सारांश ने उसकी ओर पानी का ग्लास बढ़ा दिया। अवनि ने ग्लास पकड़ा और घबराहट मे एक ही सांस मे खाली कर गयी। उसकी हालत देख सारांश को हँसी आ गयी। उसने अवनि को कंधे से पकड़कर बिस्तर पर बैठाया और उसका चेहरा अपने हाथ मे लेकर कुछ देर तक देखता रहा मानो उसके चेहरे को पहली बार देख रहा हो। अवनि ने जब नजरे उठाकर उसकी आँखो मे देखा तो उसका दिल धड़क उठा। 

     सारांश हौले से उसके चेहरे की ओर झुका तो अवनि ने अपनी आँखे मूंद ली। सारांश ने झुक कर धीरे से उसके माथे को चूम लिया। 



क्रमश: