Chapter 63
YHAGK 62
Chapter
62
रूद्र दादी के पास बैठा उन्हें खाना खिला रहा था। दादी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी ऐसे में उन्हें सिर्फ पतली हल्की खिचड़ी ही दी जा रही थी, वह भी वो बड़ी मुश्किल से खा पाती थी। आज तो उनका रुद्र उनके साथ था जिस कारण वह खुशी से मन ना होते हुए भी खा रही थी। खाना खिलाने के बाद रूद्र की मां उसे लेने आई ताकि वो रात का खाना सबके साथ बैठकर खाएं। बरसों बाद उनका पूरा परिवार एक साथ एक जगह पर मौजूद था ऐसे में पूरे परिवार के साथ खाना उनका जैसे सपना सा हो गया था। रूद्र की मां उसे खींच कर सबके बीच ले आई। उस वक़्त वहां सभी मौजूद थे।
रूद्र को देखते ही मिस्टर रॉय ने नज़र फेर ली। धनराज उठकर जाने को हुए तो रेहान ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया। अपना गुस्सा अपने मन में ही दबाए वो वहां बैठ गए। शिखा जी ने रूद्र को अपने पास वाली कुर्सी पर बैठने को कहा लेकिन रूद्र जानता था कि उसके यहां बैठने का क्या मतलब हो सकता है। सिर्फ एक उसकी उसकी वजह से पूरा माहौल तनावग्रस्त हो रहा था जो वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था। "मां मेरा खाने का बिल्कुल भी मन नहीं है। शाम को कॉफी पी थी, शायद इसलिए! आप रहने दीजिए, मेरा जब मन होगा मैं खा लूंगा।" कहकर रूद्र वहां से जाने को हुआ तो मौली उसे रोकते हुए बोली, "डैड...! आप डिनर स्किप नहीं कर सकते। वैसे ही कल रात आप ये गलती कर चुके हैं। चुपचाप बैठ कर खाना खाइए आपकी मेडिसिन का टाइम हो रहा है।"
मौली के ऑर्डर सुनकर रूद्र बोला, "मैं दादी के कमरे में जा रहा हूं, वहीं कुछ खा लूंगा। वैसे भी दादी माँ अभी सोई नहीं है और मैं उन्हीं के लिए तो आया हूं। आप जानती है ना मैं और दादी कितनी सारी बातें करते है! आप मेरा खाना वहीं भिजवा देना", कहकर वो वहां से निकल गया। शिखा जी बस उसे जाते हुए देखती रही। उन्होंने अपना और रुद्र का खाना लिया और वहां से चली गई। रूद्र के पापा ने उन्हें आवाज भी दी और साथ खाने को कहा लेकिन उन्होंने जैसे कुछ सुना ही ना हो। एक एक कर मौली रेहान और विहान ने भी अपना खाना लिया और शिखा जी के पीछे चल पड़े। मानसी भी उनके साथ आना चाहती थी लेकिन घरवालों के आगे वह ऐसा कर ना सकी।
खाना खाने के बाद रूद्र ने मौली से कहा, "बेटा! आप जाकर सो जाओ मैं यही अपनी दादी के पास रहूंगा, ठीक है?" मौली ने भी हां में सिर हिलाया और बाहर निकल गयी। इस वक्त कमरे में उसके साथ सिर्फ उसकी दादी और शिखा मौजूद थी। शिखा ने प्यार से अपने रूद्र के सर को सहलाया। और उसके चेहरे को प्यार से निहारने लगी। दादी सो चुकी थी और पूरे दिन में उन्हें अब जाकर रूद्र से बात करने का मौका मिला था। वो आंखों में आंसू भर कर बोली, "अपनी मां से इतनी नाराजगी कि तू इतनी दूर चला गया? अपनी कोई खबर भी नहीं होने दी! मैंने तो गुस्से में कहा था लेकिन तू तो सच में हम सब से बहुत दूर चला गया! अब भी नाराज से अपनी माँ से?"
रूद्र उनका हाथ थाम पकड़ते हुए बोला, "अपनी मां से कोई नाराज हो सकता है क्या? जानता हूं आपने जो भी कहा था गुस्से में कहा था लेकिन ये आपका हक था। आपको पूरा हक है कि मुझे आप कुछ भी कह सकती हैं, मुझ पर हाथ भी उठा सकती हैं आप, मैं बुरा नहीं मान सकता और ना ही मुझे बुरा लगता है। बस मैं ही सबसे दूर जाना चाहता था इसीलिए या शायद मुझमें इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि मैं आप लोगों का सामना कर सकूं। वह तो मुझे रेहान का मेल मिला तब जाकर पता चला कि दादी की तबीयत ठीक नहीं है और मैं चलाया, बिना कुछ भी सोचे समझे लेकिन अब शायद लगता है नहीं आना चाहिए था। मेरी वजह से पूरा माहौल खराब हो रहा है। सबके माथे पर शिकन है सिर्फ मेरी वजह से।"
शिखा ने प्यार से कहा, "जिसके चेहरे पर शिकन आती है आने दे, तूने कुछ गलत नहीं किया तो फिर तू क्यों छुप रहा है दूसरों से! जिसने गलती की वो तो अपनी जिंदगी आराम से गुजार रहा है। सारे दर्द सारी तकलीफें मेरे बच्चे की किस्मत में ही क्यों लिखी भगवान ने? मुझे लगता था तेरी डोर मेरे हाथ में है और तुझे मैं जब चाहू जैसे चाहू मोड़ सकती हूं लेकिन मैं भूल गई थी किस्मत के आगे हमारी कुछ नही चलती। पुरोहित जी ने कहा था मुझे, जल्द से जल्द तेरी शादी करवा दु लेकिन नहीं करवा पाई। पंडित जी ने भी यह बात कही थी कि तेरी किस्मत में शादी है लेकिन जीवनसाथी का सुख नहीं, सोचा शायद उसकी किस्मत में हो तो तेरी जिंदगी में भी खुशियां आएगी इसीलिए मैं तेरी और शरण्या के रिश्ते के लिए इतनी ज्यादा बेचैन थी।"
रूद्र ने उन्हें हैरानी से देखा और बोला, "अगर मेरी जिंदगी में जीवन साथी का योग नहीं था यह बात आपने पहले क्यों नहीं बताया माँ? अगर मुझे पता होता मैं कभी शरण्या की जिद के आगे झुककर उससे शादी नहीं करता! मेरे साथ साथ उसकी भी जिंदगी बर्बाद कर दी मैंने। मुझे लगा था मेरे यहां से जाने के बाद वह मुझे भूल जाएगी। उसका सारा पागलपन खत्म हो जाएगा अगर मैं यहां नहीं रहा तो। अगर मुझे पता होता मेरी किस्मत में ऐसा कुछ लिखा है मैं कभी शायद उसके करीब जाता ही नहीं।"
अब हैरान होने की बारी शिखा की थी। उन्होंने पूछा, "मतलब तुम दोनों ने सच में शादी कर ली थी? मतलब शरण्या की कही बातें सच थी?" रूद्र ने कुछ कहा नहीं बस हां में सर हिला दिया। तभी मौली अपने हाथ में पानी का बॉटल और मेडिसिन का बॉक्स उठा ले आई और रुद्र की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "डैड..! ये रही आपकी मेडिसिन.......! जल्दी से खा लीजिए।'
शिखा उन दवाइयों को देख कर बोली, "ये कैसी दवाइयां है मौली? रूद्र को इन दवाइयों की क्या जरूरत पड़ गई? क्या हुआ है उसे?" मौली ने कहा, "ज्यादा कुछ नहीं दादी! बस उन्हें बिना दवाई खाए नींद नहीं आती है। यह उनके नींद की दवाई है।" रूद्र ने कहा, "मौली! आज मुझे दवाई नहीं लेनी। आज मैं अपनी दादी के पास हूं, मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी इसे ले जाओ और जाकर सो जाओ। हम कल सुबह मिलते है।" फिर अपनी माँ से बोला, "माँ...! आप भी सो जाइये, मै यही दादी के साथ हु।
रूद्र की बात मान कर मौली और शिखा जी अपने अपने कमरे मे चले गए। शिखा जैसे कमरे मे पहुँची धनराज गुस्से मे उबल पड़े, "अपने बेटे से फुर्सत मिल गयी तुम्हें? अपने बेटे से कह दो वो यहाँ से चला जाए। उसकी वजह से पहले ही दोनो परिवारों के बीच काफी दूरियाँ आ चुकी है, मैं नही चाहता अब और कुछ हो। वैसे ही कोई कसर नही छोड़ी है उसने। एक सिर्फ उसके आने से पूरा माहौल खराब हो गया है। एक सिर्फ उसकी वजह से किसी के भी चेहरे पर खुशी नहीं है। उसकी वजह से कम मुसीबत नहीं झेली है हमने और सबसे ज्यादा उस बच्ची ने।"
शिखा जी ने शांत स्वर में कहा, "हम लोग जिनके लिए यहां आए हैं, वह भी उन्हीं के लिए यहां आया है। वरना वह कभी आता हीं नहीं। इतने सालों में उसने अपनी खबर तक नहीं लगने दी। कहां था, कैसा था, क्या कर रहा था कुछ नहीं पता हमें। अचानक से अगर वह यहां आया है तो उसकी कोई वजह है। और वो यहां सिर्फ अपनी दादी के लिए आया है। एक उसके आने से मां के चेहरे पर जो खुशी है, यह आपको नजर नहीं आती बाकी। सब के चेहरे आपको नजर आते हैं आपको। मत भूलिए, मां ने ये आश्रम रूद्र के नाम कर दी है। वह इस आश्रम का मालिक है और कभी भी आ जा सकता है। मां ने अपने अंतिम संस्कार का हक भी उसे ही दिया है, अपने बेटे को नहीं। तो उसके यहां से जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। अगर आपको या आपके बेटे को तकलीफ है तो आप लोग यहां से जा सकते हैं।"
रेहान का जिक्र सुनते ही धनराज से रहा नहीं गया और शिखा पर बरस पड़े, "तुम्हें दिक्कत क्या है रेहान से? वह भी तुम्हारा ही बेटा है, मेरे अकेले का नहीं! रूद्र और रेहान दोनों ही जुड़वा है, इसके बावजूद तुमने हमेशा सिर्फ रूद्र की तरफदारी की और आज भी कर रही हो। तुम्हारे बेटे ने जो किया है वह किसी से छुपा नहीं है। ना तो उसे किसी तरह से सही ठहराया जा सकता है और ना ही उसे ठीक किया जा सकता है। इसलिए उसकी वकालत करना बंद करो। हमारा एक ही बेटा है और वह है रेहान। ये बात अपने दिल में बिठा लो।"
"रुद्र और रेहान को मैंने एक जैसे ही परवरिश दी है सिंघानिया साहब! दोनों ही मेरे बेटे हैं लेकिन दोनों में इतना ज्यादा फर्क मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी। तकलीफ मुझे इस बात की है कि अपने बेटे को समझने में मैंने गलती कर दी। जिस वक्त मेरे बच्चे को मेरी जरूरत थी मैंने उसका साथ छोड़ दिया। आज सिवाय दर्द के उसके पास क्या है, कुछ भी तो नहीं! मुस्कुराना तक भूल चुका है वह! ना जाने किस किस दर्द से गुजरा है मेरा बच्चा और मेरे रूद्र पर उंगली उठाने की कोशिश भी मत कीजिएगा! कोई गलती नहीं की मेरे बच्चे ने। अगर किसी की गलती थी तो वह आपके बेटे रेहान की थी, जिसके किए की सजा मेरे रूद्र ने भुगति।"
"बेवजह रेहान पर इल्जाम लगाना बंद करो शिखा! रूद्र का दोष तुम रेहान पर डालना चाहती हो? कैसी मां हो तुम जो अपनी एक बेटे की गलती अपने दूसरे बेटे पर डालना चाहती हो?" शिखा धनराज के करीब आई और उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा, "आपके दादा जी घर के बड़े बेटे थे इसलिए वह जुड़वा थे। उनके बेटे यानी आपके पिताजी पहली संतान थे इसलिए वह जुड़वा थे। आप अपने पिता की पहली संतान है इसलिए आप भी जुड़वा हैं जैसे कि हमारा रूद्र! इस खानदान की परंपरा के अनुसार रूद्र की पहली संतान को भी जुड़वा होना चाहिए तो फिर मौली अकेली क्यों है? सोचा है आपने......? नहीं सोचा......! आप क्यों सोचेंगे इस बारे में? आपकी नजर में तो सारी ही बुराइयां सिर्फ मेरे रूद्र में है।"
धनराज की आवाज़ काँप गयी। "तुम कहना क्या चाहती हो साफ साफ कहो शिखा! पहेलियां मत बुझाओ।" शिखा मुस्कुराते हुए बोली, "मौली आपके लाडले बेटे रेहान और इशिता की बेटी है, उस की नाजायज औलाद! रेहान और लावण्या का रिश्ता ना टूटे इसलिए उसने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया और यहां से बहुत दूर चला गया जानते हैं क्यों? क्योंकि शरण्या जिद पर अड़ी थी यह साबित करने के लिए कि वह बच्ची रूद्र की नहीं है। उसे साबित करने के लिए किसी डीएनए टेस्ट की भी जरूरत नहीं पड़ती, बस एक सोनोग्राफी रिपोर्ट से भी पता चल जाता। शरण्या बार बार कहती रही कि बच्चा रेहान का है लेकिन किसी ने उसका यकीन नहीं किया। उसने कहा था जिस दिन इशिता को एहसास हो जाएगा कि रूद्र सिर्फ शरण्या का है उस दिन वह खुद उसे छोड़ कर चली जाएगी और हुआ भी ऐसा ही। चली गई वह......! अपनी बच्ची को रूद्र के हवाले कर चली गई वो। रूद्र ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की क्योंकि उसने सिर्फ उस बच्चे की जिम्मेदारी ली थी इशिता की नहीं। जिन दो लोगों ने गलती की, आज वो दोनों ही अपनी अपनी दुनिया में खुश है। अपने अपने परिवारों के साथ है। लेकिन मेरे बच्चे का क्या........? क्या मिला उसे यह सब कुछ करके? सबकी जिंदगी में खुशियां बिखेर कर चला गया वह। सारे गम अपने साथ ले गया और पीछे छोड़ गया अपनी शरण्या को, किसके भरोसे? हमारे भरोसे ना! और हमने क्या किया? हम उसके लिए इतना भी नहीं कर पाए!!! अब अगर रूद्र ने सवाल किया शरण्या के बारे में तो क्या जवाब देंगे हम, कभी सोचा है आपने? जिन जिन लोगों ने उसे देखकर नज़रे फेरि है ना, वह सब लोग नजर झुका कर मेरे बच्चे के सामने खड़े रहेंगे और बहुत दिन बहुत जल्द जाएगा आप सब की जिंदगी में। जब आप में से किसी की हिम्मत नहीं होगी मेरे बच्चे के सामने सर उठा कर खड़े होने की।"
शिखा जी ने कमरे की लाइट ऑफ कर दी और बिस्तर पर लेट गई। धनराज वहीं खड़े शिखा की बातों को समझने की कोशिश कर रहे थे और इस बात पर यकीन करने की कि रेहान कुछ गलत कर सकता है। मौली उनके कमरे के दरवाज़े के बाहर खड़ी थी।