Chapter 85

Chapter 85

सुन मेरे हमसफ़र 78

Chapter

78







    कुणाल अभी तक किचन से आया नहीं था। कुहू को लगा शायद उसे उसकी अंगूठी मिल नहीं रही इसलिए वह उठी और किचन में चली गई। अंदर जाकर देखा तो कुणाल सिंक के पास चुपचाप खड़ा था। कुहू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा "क्या हुआ? अंगूठी नहीं मिली क्या?"


     कुहू के इस तरह छूने से कुणाल होश में आया और जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोला "नहीं। मिल गई है। मैं बस आ ही रहा था।" कुहू ने उसकी बांह पकड़ी और उसे अपने साथ बाहर डाइनिंग हॉल में लेकर आई। शिवि ने एक बार भी नजर उठा कर नहीं देखा। वह बस अपनी धुन में थी।


      खुद को ऐसे इग्नोर होते देख कुणाल ने कहा "मैं निकलता हूं, मुझे कुछ काम था।"


      यह सुन कार्तिक ने कहा "लेकिन बेटा! थोड़ी देर के लिए रुक जाओ। देखो सभी कितना इंजॉय कर रहे हैं। तुम भी बैठो सबके साथ।"


     निर्वाण ने जानबूझकर उसे चिढ़ाते हुए कहा "हां बिल्कुल कुणाल! आओ बैठो हमारे साथ।"


     कुणाल का बिल्कुल भी मूड नहीं हो रहा था कि वह अब थोड़ी देर के लिए भी वहां रुके। इसीलिए उसने कहा, "सॉरी अंकल! लेकिन मुझे अभी निकलना होगा। पिछले 2 दिनों से बिल्कुल भी काम नहीं हो पाया है। आज सैटरडे और कल संडे। ये दो दिन बैठ कर सारे काम निपटाने होंगे। और वैसे भी, मैं अभी नया हूं इन सब के ग्रुप में तो थोड़ा सबके बीच घुलने मिलने में वक्त लगेगा। लेकिन मुझे पूरा यकीन है, जिस तरह आप लोगों ने मुझे अपना लिया ऐसे ही बाकी सब भी मुझे अपना लेंगे।" कुणाल की नजरें एक बार फिर शिवि पर चली गई लेकिन शिवि अभी भी चुपचाप खाने में मगन थी। कुणाल वहां से सीधे निकल गया।


    शिवि ने तिरछी नजरों से उसे जाते हुए देखा लेकिन उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे। निर्वाण भी उसे जाते देख रहा था और अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था।


      बाहर आकर कुणाल अपनी गाड़ी में बैठा और तेजी से गाड़ी ड्राइव करते हुए मित्तल मेंशन से बाहर निकल गया। उसके कानों में बार-बार शिवि की कहीं बातें गूंज रही थी और आंखों के सामने शिवि का गुस्से वाला चेहरा। उसे यकीन नहीं हो रहा था यह वही लड़की है जिससे उसने प्यार किया। जिसे ढूंढने के लिए अपनी रातों की नींद उड़ा दी, वह उसके इतना करीब थी और उसे पता ही नहीं चला।


     शिवि का उससे मिलना क्या कोई कोइंसिडेंस था? उसके और नेत्रा के रिलेशनशिप के बारे में बस वो दोनों ही जानते थे। नेत्रा ने तो निर्वाण तक को नहीं बताया था और जब निर्वाण ने उसकी जान लेने की कोशिश की, तब नेत्रा ने ही शिवि को फोन कर उसे कुणाल के बारे में बताया था ताकि शिवि कुणाल का खास ख्याल रख सके। आखिर कुणाल की जो भी हालत थी उसकी जिम्मेदार वह थी।


     नेत्रा ने तो साफ-साफ कहा था कि कुणाल उसका दोस्त है लेकिन जिस तरह से वह परेशान थी, उससे शिवि को शक हुआ और उसने सीधे-सीधे नेत्रा से पूछ लिया "क्या कुणाल तेरा बॉयफ्रेंड है?" नेत्रा कुछ कह नहीं पाई। ना उसने हा कहा और ना उसने इंकार किया और यह काफी था शिवि के समझने के लिए।


     कुणाल इस सबसे बेखबर अपने मन के तूफान से लड़ता इधर-उधर भटकता हुआ ना जाने शहर के किस कोने में पहुंच चुका था। उसने गाड़ी साइड लगाई और अपनी मां को फोन कर दिया।



   कुणाल के जाने के बाद अव्यांश ने निर्वाण से पूछा "तेरे और कुणाल के बीच कुछ प्रॉब्लम चल रही है क्या?"


      यह सवाल सुनकर निर्वाण चौक गया। लेकिन उसे इतनी भी कुछ हैरानी नहीं हुई, क्योंकि उसे लगा ही था अव्यांश उससे कुणाल के बारे में कुछ ना कुछ जरूर पूछेगा। लेकिन इतनी जल्दी और कुहू से सामने पूछेगा, ये नही सोचा था। अव्यांश के सवाल पर सबसे पहले तो निर्वाण की नजर कुहू पर गई जो उसके ही जवाब का इंतजार कर रही थी। आखिर उसके सामने उसी के होने वाले पति के बारे में बात करना निर्वाण को सही नहीं लग रहा था। वह चाहता तो था कि सबको कुणाल की असलियत बता दें, लेकिन इस बारे में उसके पास कोई सबूत नहीं था।


      अव्यांश ने फिर सवाल किया "क्या बात है निर्वाण? सब ठीक है? देख! इस बारे में मैं सीरियस हूं। अगर कोई प्रॉब्लम है तो तू बता सकता है।"


    निर्वाण ने कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोला लेकिन एक बार फिर उसकी नजरे जाकर कुहू पर अटक गई। उसने जबर्दस्ती मुस्कुराकर कहा "नहीं भाई, ऐसा कुछ नहीं है। सब ठीक है। मैं तो बस उससे इसलिए नाराज था क्योंकि वो हमारी प्यारी बहन को हमसे दूर ले जाएगा। तुम्हे अच्छा लगेगा क्या?"


     कुहू को निर्वाण के इस बात पर प्यार आया लेकिन अव्यांश उसकी बात काट कर बोला "अरे बिल्कुल! कम से कम हमारी एक मुसीबत टल रही । बेचारा कुणाल अपने सर ले जा रहा है। बाकी बची खुची मुसीबत कोई और ले जाए तो हम चैन की जिंदगी जिए।"


     सुहानी और काया के हाथ में जो आया उसने वही उठाकर अव्यांश की तरफ फेंक कर मारा।  कुहू भी कहां पीछे हटने वाली थी! उसने भी अव्यांश की धुनाई चालू कर दी। अव्यांश एकदम से पीछे हटता हुआ बोला "क्या कर रहे हो आप लोग? मेरे ससुराल वाले यही सामने बैठे हैं, कम से कम उनके सामने तो आप लोग थोड़ा तमीज से पेश आओ। क्या सोचेंगे ये लोग आप के बारे में? अरे और कुछ नहीं तो थोड़ा सा मेरी इज्जत का ही ख्याल कर लो।"


     शिवि जो चुपचाप वहां बैठकर सब कुछ देख रही थी और निर्वाण की बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी, उसने जोर से कहा "बिल्कुल नहीं। सोनू, कुहू दी! अपनी चप्पल दूं मैं आपको या आपके पास से काम चल जाएगा?"


     अव्यांश बचता बचाता हुआ वहां से पीछे गार्डन की तरफ भाग गया। लेकिन जाते-जाते उसने निर्वाण को कुछ इशारा कर दिया। भाई बहनों के बीच ऐसी नोकझोंक को देख घर में सभी मुस्कुरा रहे थे, खासकर मिश्रा जी और उनकी पत्नी। और निशी तो कुछ दिनों में यह सब कई बार देख चुकी थी। उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन अव्यांश के हरकत पर उसे हंसी आ गई। लेकिन एकदम से उसकी हंसी कही गायब हो गई।


    मिश्रा जी ने जब अपनी बेटी के चेहरे पर ऐसे भाव देखें तो समझ गए। अकेली संतान होने का दर्द ना सिर्फ उन दोनों ने बल्कि उनकी बेटी ने भी बर्दाश्त किया था। जो भी उनके सामने हुआ था, यही लड़ाई झगड़े वो अपने घर में भी चाहते थे। लेकिन निशी की किस्मत में ऐसी प्यार भरी लड़ाई नहीं लिखी थी। लेकिन मिश्रा जी खुश थे कि उनकी बेटी ऐसे भरे पूरे परिवार में आई है जहां उसे हर रिश्ते का सुख मिलेगा।


     निर्वाण ने सब को शांत करवाया और बोला "आप लोग बातें करो, मैं थोड़ी देर में आता हूं।" किसी ने भी निर्वाण से कुछ पूछा नहीं और लग गए अपनी धुन में। आज पूरे दिन का प्रोग्राम जो बनाना था उन्हें। कहां शॉपिंग जाना है, कहां मूवी देखने जाना है कौन सी मूवी जानी है वगैरा-वगैरा।


     निर्वाण चुपचाप पीछे बालकनी में चला आया जहां अव्यांश खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था। उसके आते ही अंशु ने सबसे पहला सवाल किया "तेरे और कुणाल के बीच क्या प्रॉब्लम है? देखा नीरू! मुझसे झूठ मत बोलना। कुहू दी जितनी मेरी अपनी है तेरे लिए भी उतनी ही अपनी है, भले ही नेत्रा के साथ उनकी नहीं बनती तो क्या! कुणाल से मिलने के लिए तू जितना एक्साइटेड था, उसे देखने के बाद तेरे चेहरे पर मैंने एक बार भी उससे मिलने की खुशी नहीं देखी। तब दरवाजे पर खड़े होकर शायद तूने उसे कुछ कहा भी था। कुछ बताएगा तू मुझे? क्या हुआ है? अंदर कमरे में तुम दोनों फाइट कर रहे थे ना?"