Chapter 131

Chapter 131

सुन मेरे हमसफ़र 124

Chapter

124








      काया का बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। होलिका दहन के बाद वह छोटी होली मना कर, सबको थोड़ा-थोड़ा गुलाल लगाकर वो वापस अपने घर चली आई। सुहानी ने उसे रोकने की कोशिश भी की लेकिन वह नहीं रुकी। शिवि तो अपनी धुन में थी और हॉस्पिटल से कॉल आते ही पार्थ के साथ निकल गई। उसके जाने के बाद कुणाल का वहां मन नहीं लगा। वो भी अपने दोस्त कार्तिक के साथ वहां से चला गया। 


   सुहानी, जो कि कार्तिक सिंघानिया से बात करना चाहती थी, उसे मौका नहीं मिला। तो उसने कुहू को पकड़ा और उससे कार्तिक के बारे में बहाने से पूछने की कोशिश की। लेकिन कुहू का ध्यान तो कहीं और ही था। वो इस बारे में कुछ बात ही नही करना चाहती थी। कुछ देर बाद वो भी वहां से वापस चली आई। वैसे ही कुहू का मूड ऑफ था। उसे बार-बार शक हो रहा था कि कुणाल के दिल में शिवि के लिए कोई जगह है। 'लेकिन शिवि ने तो कभी इस बारे में कुछ बताया ही नहीं! उससे बड़ी बात, यह दोनों मिले कहां? यह सच है या फिर सिर्फ मेरे मन का वहम?' सोचते हुए कुहू अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।


    काया जैसे ही अपने कमरे में पहुंची उसने पहले तो अपने चेहरे पर लगे गुलाल साफ किए और बाथरूम जाकर फ्रेश हो आई। उसका मन इतना ज्यादा उलझा हुआ था कि अब उसे थकान होने लगी थी। सोने के लिए उसने नाइट सूट अपनी अलमारी से निकाला और कपड़े बदलने को हुई, तभी काव्या उसे कमरे में आई और बोली, "कायू! सो गई क्या?"


    काया डर कर उछल पड़ी। वो अपनी मां पर नाराज होते हुए बोली, "क्या मां आप भी! एक बार नॉक कर देते या पहले आवाज ही लगा देते। एकदम से डरा दिया आपने।"


   काव्या ने उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया और एक पैकेट उसके हाथ में देकर बोली "तुमने कुछ सामान ऑर्डर किया था क्या? यह डिलीवरी वाला देकर गया है।"


     काया सोच में पड़ गई। उसने तो हाल फिलहाल ऐसी कोई ऑनलाइन शॉपिंग नहीं की थी। सबके साथ उसने इतनी ज्यादा खरीदारी कर ली थी कि काफी टाइम तक ऑनलाइन शॉपिंग का सवाल ही पैदा नहीं होता था। तो फिर यह क्या था?


     काव्या वहां से तुरंत निकल गई। उसे लगा शायद काया का कुछ पर्सनल सामान होगा जिसे वह उसके साथ शेयर ना करना चाहे। काव्या को बस इस बात की तसल्ली थी कि भले बच्चे अपनी प्राइवेसी को मेंटेन रखते थे, लेकिन सारे एक दूसरे से कुछ नहीं छुपाते थे। कहीं ना कहीं से उनके सारे सीक्रेट्स बाहर आ ही जाते थे।


     अपनी मां से जाने के बाद काया ने उस पैकेट को खोला और अंदर जो था उसे देखकर वह हैरान रह गई। उस पैकेट में वही ड्रेस थी जो गाया ने सबके साथ शॉपिंग करते हुए उठाई थी। जब ऋषभ जबरदस्त के ट्रायल रूम में घुस गया था। वो पल याद आते ही काया के रोंगटे खड़े हो गए। वो सब कुछ भूल जाना चाहती थी। लेकिन ना जाने उसे क्या हुआ कि उसने नाइट ड्रेस पहने की बजाय उस वन पीस फ्रॉक को पहन लिया और खुद को आईने में देखने लगी।


     फ्रॉक की ज़िप पीछे की तरफ थी जहां काया का हाथ नहीं पहुंच पा रहा था। काया ने कोशिश की लेकिन जब नहीं हुआ तो हार कर वहीं बैठ गई। इतने में किसी के हाथों का स्पर्श काया को अपने पीठ पर महसूस हुआ तो वह उछलकर दूर जा खड़ी हुई। सामने वाले शख्स को देख काया के होश उड़ गए।



    

  ऋषभ हंसते हुए बिस्तर पर जा गिरा और बोला "तुम तो ऐसे डर रही हो जैसे मैं पहली बार तुम्हारे सामने आया हूं।"


     काया दुपट्टे से अपनी पीठ को ढकते हुए बोली "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की, वो भी मेरे कमरे में? 1 मिनट! तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मालूम हुआ? तुम यहां आए कैसे?"


    ऋषभ उठ कर बैठ गया और बोला "कितनी मासूम हो तुम, तुम्हें पता है? तुम जैसे लोगों को इस दुनिया में बेवकूफ कहा जाता है।"


     काया गुस्से में आगे बढ़ी और उसे उंगली दिखा कर बोली "मैं बेवकूफ नहीं हूं!!!"


    ऋषभ ने उसकी उंगली पकड़ ली और उसे अपने करीब खींच लिया। काया सीधे उसके ऊपर जा गिरी। ऋषभ ने मौके का फायदा उठाया और उसे बाहों में भर कर बिस्तर पर सुला दिया फिर बोला "तुम बेवकूफ नहीं हो। मैंने कभी नहीं कहा कि तुम बेवकूफ हो। यह दुनिया कहती है ऐसा। तुम्हारी यह मासूमियत ही तुम्हारी सबसे बड़ी खूबसूरती है और तुम्हारी यही मासूमियत मुझे बहुत अच्छी लगती है। तुम्हें पता है, तुम बिल्कुल मेरी मॉम की तरह हो।"


    ऋषभ उसके चेहरे पर आए बालों को एक तरफ करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। काया, जो अभी तक उसकी आंखों में खोई हुई थी, एकदम से होश में आई और बोली "मुझे हाथ मत लगाना!"


   ऋषभ के हाथ वहीं के वहीं रुक गए। उसने नाराजगी से काया की तरफ देखा, फिर कुछ सोचकर उसके होठों पर शैतानी मुस्कान आ गई। उसने काया के ऊपर झुकते हुए कहा "सोच लो। तुम्हें हाथ नहीं लगाऊंगा तो भी मेरा काम मैं करके जाऊंगा। मुझे कोई रोक नहीं सकता। लेकिन हां! तुम शायद अपने दिल को संभाल ना पाओ। बोलो मंजूर है?"


    काया घबरा गई। उसने जल्दी से अपना सर ना में हिलाया और बोली "प्लीज! तुम ऐसा नहीं कर सकते। तुम तो बहुत शरीफ इंसान हो ना, तुम ही कहते हो ना ऐसा?"


   ऋषभ उसे परेशान करते हुए बोला "लेकिन तुम तो मुझे लफंगा कहती हो, और लफंगा कुछ भी कर सकता है।" ऋषभ काया के ऊपर और थोड़ा झुका। काया ने जल्दी से अपनी आंखें बंद कर ली। ऋषभ ये देख कर मुस्कुरा उठा। उसने अपने गालों पर लगे गुलाल को अपने हाथ में लिया और उसे काया के चेहरे पर लगाने को हुआ। लेकिन काया ने तो उसे हाथ लगाने से मना किया था! उसकी बात को कैसे टाल सकता था! फिर भी उसने अपने गालों का रंग काया के गालों पर लगा दिया, वह भी अपने तरीके से।


      काया ने बेडशीट को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया। ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "पहली होली मुबारक हो। आज के लिए इतना काफी है, बाकी कल।" काया ने उसकी कुछ बात सुनी कुछ नहीं सुनी। घबराहट में वह वैसे ही बेडशीट को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़े रही। ऋषभ कब गया उसे पता ही नहीं चला।