Chapter 31
humsafar 30
Chapter
31
अवनि को नेग मे ऐसा कुछ मिलेगा ये बात किसी ने भी उम्मीद नही की थी। सारे लोग कुछ देर तक वही खड़े सोचने लगे की आखिर हुआ क्या। अवनि और सारांश अवाक् से कभी एक दूसरे को देखते तो कभी कार्तिक को जो खड़े खड़े मासूम सी शक्ल बना कर मुस्कुरा रहा था। कंचन तो अभी भी यकीन करने की कोशिश कर रही थी उसके मन के किसी कोने मे दबी चाहत शायद पूरी हो जाए। श्रेया के चेहरे का तो रंग ही उड़ गया।
सबसे ज्यादा खुश अगर कोई था वो थी सिया। उस माहौल मे पसरे सन्नाटे को चीरते हुए एक सिटी की आवाज़ से सब होश मे आये और सब की गर्दन उस ओर घूम गयी। सब लोग हैरान रह गए मगर सारांश ने सर पिट लिया। सिटी बजाने वाला कोई और नही सिया ही थी। वह जल्दी से पास आई और बोली, "अब पकड़ा है तो छोड़ना मत।"
सिया की बात से अवनि को एहसास हुआ की अभी भी उसके हाथ मे सारांश का हाथ है तो उसने झटके से अपना हाथ खीचा मगर सारांश उससे भी तेज था। उसने अवनि कुछ करने का मौका नही दिया और उसके छुड़ाने से पहले ही कसकर पकड़ लिया। अवनि को काफी शर्मिंदगी हो रही थी, उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर सारांश ने ना सिर्फ उसका हाथ छोड़ने से मना कर दिया इसके उलट उसने अवनि को अपने और करीब खीच लिया और घुटने के बल बैठ गया सबके सामने उससे अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
सारांश की इस हरकत की उम्मीद किसी ने नही की थी लेकिन उसे कहा किसी की परवाह थी।, "अवनि!! मुझे नही पता की कैसे करते है लेकिन मेरी लाइफ का ये पहला मौका है जिसे मैंने खास बनाने की सोचा था मगर इस तरह ऐसे सिचुएसन मे मुझे भी बहुत अजीब लग रहा है। अब जो है सो है, मेरी लाइफ का सबसे बड़ा सच यही है अवनि की मुझे तुम से प्यार है, पहले दिन से ही। तुम्हे तो शायद याद भी नही होगा हमारी पहली मुलाकात। मगर मुझे सब अच्छे से याद है। फिर भी अगर तुम्हारी हाँ है तो विल यू मैरी मी?"
अवनि को मानो काटो तो खून नही!!! उससे कुछ कहते नही बना तो कंचन बोल पड़ी, "अरे सारी बातें यही दरवाजे पर ही करना है क्या? सब लोग अंदर आराम से बैठिये फिर बात करते है। सारांश बेटा.....!" कंचन ने सारांश को इशारा किया तो सब अंदर आगये मगर सारांश ने अवनि का हाथ नही छोड़ा।
कंचन के कहने पर सारांश उसका हाथ पकड़े ही अखिल के कमरे मे गया। वहाँ अखिल के साथ नानु और विशाल भी मौजूद थे। सारांश आगे आया और अखिल का हाथ पकड़ कर बोला, "मुझे उम्मीद नही थी ये बात ऐसे सामने आयेगी। मै एक मामूली सा इंसान हु जिसकी छोटी छोटी चाहते है छोटी छोटी खुशियाँ है और जिसके लिए उसके अपने बहुत मायने रखता है लेकिन मै आपकी बेटी से भी बहुत प्यार करता हु। मै ये वादा तो नही कर सकता की मै हमेशा उसे खुश रखूँगा मगर मै ये वादा जरूर करता हु की मै पूरी कोशिश करूँगा उसको दुनिया की हर खुशी दे सकूँ । उसे जो चाहिए वो सब लाकर उसके कदमो डाल दूंगा, उसकी हर इच्छा का सम्मान करूँगा।"
सिया कमरे मे अखिल से बोली, "भाई साहब !!! ज्यादा कुछ नही कहूँगी, मेरा बेटा जो है जैसा है आपके सामने है। आज तक कभी किसी तरह का दिखावा नही किया उसने। जो कहता है वो करता भी है और ये बात हर कोई जानता है।"
तभी कार्तिक ने अंदर आते हुए कहा, "माँ पापा!! अवनि और सारांश, दोनो ही मेरे लिए बहुत खास है। नाही मै सारांश का बुरा सोच सकता हु और नाही अवनि का बुरा सोच सकता हु। मैने जो भी किया बहुत सोच समझ कर किया। आगे आप लोगो की मर्ज़ी लेकिन एक बार मै अवनि से बात करना चाहूँगा...... अकेले मे।"
कार्तिक की आखिरी लाइन सुन सब थोड़ी सोच मे पड गए मगर अखिल ने ही इशारे से हामी भर दी। सारांश अभी तक अवनि का हाथ थामे रखा था कार्तिक की बात सुन उसने एक बार अवनि की ओर देखा फिर धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया। कार्तिक अवनि को लेकर दूसरे कमरे मे चला गया। कंचन ने नानु की ओर देखा नानु ने कहा, "जिस की शादी होनी है उसी से पूछना बेहतर होगा बेटी। उसके जीवन का फैसला करने का अधिकार हमें नही होना चाहिए। वैसे भी आज मैंने तुमसे जो कहा था उसे याद करो और उस पर विचार करो बाकी सब भोलेनाथ पर छोड़ दो।"
काव्या अपने कमरे मे तैयार हो कर बैठी थी। कुछ दिन पहले तक जिस चेहरे पर शादी की खुशी थी वहीं आज कही दिखाई नही दे रही थी। बाहर से वह जितना शांत दिख रही थी उसके अंदर उतना ही बवंडर मचा था। कुछ ही देर मे काव्या की एक दोस्त भागती हुई अंदर आई और नीचे हो रहे हंगामें के बारे मे सब कुछ बताया। काव्या हैरान रह गयी, उसे समझ नही आया की कैसे रिएक्ट करे। वह तो सोच रही थी की बस भाग कर नीचे जाए और सब कुछ अपनी आँखो से देखकर तसल्ली करे।
कार्तिक अवनि को लेकर वापस अखिल के कमरे मे आया। सब की नज़र अवनि पर थी की वो क्या फैसला लेगी। कंचन ने सीधे सीधे पूछा और आश्वस्त भी किया की किसी तरह का कोई दबाव नही है लेकिन अवनि ने कोई फैसला खुद लेने की बजाय सब कुछ नानु पर छोड़ दिया। उसे अभी भी उम्मीद थी की नानु उसका और लक्ष्य का साथ देंगे।
नानु ने सारांश और अवनि को अपने पास बुलाया। दोनो नानु के पास दोनो हाथ पकड़ कर बैठ गए। नानु ने दोनो का हाथ एक दूसरे पर रखा और बोले, "जोड़िया हम नही बनाते। इसे ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए लेकिन इसे निभाना की जिम्मेदारी पति पत्नी की होती है। भाग्य का लिखा टाला जा सकता है लेकिन बदला नही जा सकता। तुम दोनो का मिलना पिछले काफी समय से टल रहा था लेकिन सितारे अपनी चाल नही बदलते। मुझे बस इतना ही कहना है, चाहे कुछ भी हो जाए कभी एक दूसरे का साथ मत छोड़ना। जब तक तुम दोनो साथ हो, हर मुश्किल से जीतोगे। आगे कई मुश्किलें सर उठाएंगी, अगर साथ छूटा तो सब खत्म।"
अपनी बात कहते हुए नानु ने अवनि का हाथ सारांश के हाथ मे दे दिया और दोनो के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया। अवनि की आँखों मे आँसू आ गए लेकिन नानु इतने पर नही रुके। "मेरी एक ही इच्छा है की मै अपनी दोनो नातिन की शादी एक साथ देखु। मेरी मानो, अगर सही लगे तो ये शादी आज ही हो जाए तो शुभ है।"
अवनि शॉक रह गयी, उसे नानु से ऐसी उम्मीद नही थी। वह एक कोशिश खुद से करना चाहती थी, "नानु..! अचानक से सीधे शादी....... मतलब बिना किसी रीति रिवाज के शादी!! सिया मैम के भी तो अपने कुछ सपने होंगे न! यूँ इस तरह..... क्यों न अभी सिर्फ सगाई कर ले तो!!!" अवनि सिर्फ इस शादी से बचना चाहती थी लेकिन सिया ने उसकी इस कोशिश पर पानी फेर दिया, "नही अवनि!!! मेरा बस एक ही सपना है की मै अपने बेटे और बहू को शादी के जोड़े मे मंडप मे बैठे देखु। अगर ये शादी आज ही हो जाती है तो मुझसे ज्यादा खुश और कोई नही होगा। तुम बस हाँ कर दो।" सिया प्यार से अवनि के सिर न पर हाथ फेरते हुए बोली।
अवनि वही पत्थर सी बैठी थी। सिया ने नानु की बात का समर्थन किया और सब आज ही शादी के लिए राज़ी हो गए। कंचन की तो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी।
सिया के बुलाने पर त्रिशा आई और अवनि को तैयार कराने ले गयी। जो कुछ भी अभी हो रहा था अवनि को अभी तक उसपर यकीन नही हो रहा था। उसे तो सारांश अपनी लाइफ का सबसे बड़ा विलेन लग रहा था जिसने उसकी दुनिया एक झटके मे उलट पलट कर दी है। वह आईने के सामने बैठी सारांश के किये अब तक के बर्ताव के बारे मे सोच रही थी की क्या उसने ये सब कुछ पहले से प्लान किया था तभी उसे त्रिशा का ख्याल आया जो कुछ भी उसने कहा था।
"त्रिशा एक बताइये! जब आप उस समय दिदु के बाल बना रही थी तब मेरे लिए आप उन्हें छोड़कर क्यों आई? क्या आपको पहले से किसी ने कहा था ऐसा करने को?" अवनि ने पूछा।
त्रिशा ने पहले तो उसे एक नजर देखा फिर बोली, "हमारे एनजिओ मे सब को पता है की सारांश भैया को कोई लड़की पसंद है और कार्तिक भाई की शादी के बाद वो उन्हे अपनी दिल की बात बताने वाले है, लेकिन वो कौन है ये बात कोई नही जानता। यहाँ जब मैंने आपको देखा तभी समझ गयी थी की वो आप ही हो, हमारी सब की होने वाली भाभी!!"
"आप सिया मैम के एनजिओ से है?" अवनि ने हैरानी से पूछा।
"हम्म्!!! जब पंद्रह साल की थी तभी बाबा ने मेरी शादी करवा दी या कहे की मुझे चंद पैसों के लिए बेच दिया। तब सिद्धार्थ भैया सिया मैडम ने ही मुझे और मेरी जैसी और भी लड़कियो को बचाया था। हम सब को पढ़ना लिखाना और अपने पैरों पर खडा कराना, सब कुछ किया।" कहते हुए त्रिशा की आँखे भर आई।
"लेकिन अपने कहा की आप लोग नही जानते थे फिर आपको पता कैसे चला की वो लड़की मै ही हु कोई और नही!"
"आपके माथे की बिंदी.......! सारांश भैया के साथ मै खुद गयी थी इसे लाने। जब आप उस कमरे मे आई, तभी आपके माथे पर लगी इस बिंदी को देख मै समझ गयी थी की वो आप ही हो और शायद अपने सारांश भैया को ठीक से देखा नही। उनकी शेरवानी और आपका लहंगा बिलकुल एक जैसा है। वो कहते है न 'कपल आउटफिट' हाँ.....वही। और फिर आप है ही इतनी खूबसूरत। आप दोनो एक साथ बहुत अच्छे लगते है.......भाभी!!!" त्रिशा के मुह से ये सब सुन अवनि और हैरान रह गयी। उसने सच मे ठीक से सारांश को देखा नही था, तब भी नही जब वो कमरे मे आया था।
क्रमश: