Chapter 67

Chapter 67

humsafar 67

Chapter

67

    काव्या तैयार हो कर निकली लेकिन कार्तिक अभी तक नही आया था। वो बुटीक जाने के लिए तैयार हुई और बाहर आकर नाश्ता बनाया, तबतक कार्तिक भी ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुका था। कल रात के बाद से ही कार्तिक ने कुछ नही कहा था और एकदम से शांत रहा। नाश्ते के वक़्त काव्या ने कुछ कहना सही नही समझा लेकिन जब कार्तिक का हो गया तो काव्या से रहा नही गया। 

    "मै एक बार चित्रा से बात करना चाहती हु। " काव्या ने कहा। कार्तिक ने कोई रिएक्सन नही दिया। 

   "किस बारे मे?" कार्तिक ने एकदम से शांत भाव से पूछा। काव्या उसका व्यवहार देख हैरान रह गयी। "तुम्हारे और चित्रा के रिश्ते के बारे मे कार्तिक!!!" काव्या ने कहा। 

   "इस मे बात करने जैसी क्या बात है? जो है वो सब के सामने है। इसमें छुपाने जैसी क्या चीज है!" कार्तिक ने पूछा। काव्या को समझ नही आया की वो कहे क्या। कार्तिक जैसे ही उठ कर जाने को हुआ तभी काव्या ने उसका हाथ पकड़ लिया। कार्तिक ने उसे ऐसे देखा जैसे उसे कुछ पता ही नही हो। 

    "इस तरह शुतुरमुर्ग के जैसे जमीन मे अपना सिर दबा लेने से परेशानी खत्म नही हो जायेगी। जब दो लोग एक दूसरे से प्यार करते है तो उन्हे साथ रहने का पूरा हक होता है। तुम्हारा मै जानती हु और अब मुझे सिर्फ चित्रा के बारे मे जानना है। वरना इस तरह बहुत तकलीफ होती है कार्तिक और मै तुम्हें इस दर्द को जीने नही दे सकती। अगर मै गलत नही हु तो वो भी तुम से......" इससे पहले काव्या अपनी बात पूरी करती कार्तिक ने उसकी बात बीच मे ही काट दी। 

     "इससे कहीं कुछ फर्क नही पड़ता काव्या। जो होना था वो हो चुका है। मेरी शादी तुमसे हुई है और अब चित्रा किसी और से जुड़ने जा रही है। और ये तुम किस दर्द की बात कर रही हो!!! वही दर्द जो तुम झेल रही हो मेरे साथ। अगर तुम इस दर्द के साथ जी सकती हो तो मै क्यों नही। ये जो साथ रहने वाला ज्ञान तुम मुझे दे रही हो, वो खुद क्यों नही अपनाती!!! तुम खुद तो तरुण के पास जाना नही चाहती और मुझे चित्रा के साथ जोड़ने की कोशिश करना चाहती हो। ये बात सबसे पहले तुम पर लागू होती है काव्या, पहले अपना गिरेबान मे झांको!!!  अगर तुम चित्रा के पास जाओगी तो मै भी तरुण को ढूँढ निकालूँगा। अगर तुम्हें मंजूर है तो कहो वरना इस बारे मे हम कभी बात नही करेंगे!" कार्तिक ने सख्त लहजे मे कहा। 

     "मेरी और तरुण की कहानी कुछ और है। हमारे बीच अतीत की कुछ कड़वी यादें है जिस कारण हम कभी एक नही हो सकते। माँ पापा कभी नही अपनाएंगे हमारा रिश्ता और मुझे किसी एक को चुनना पड़ेगा।" काव्या ने दर्द भरी आवाज़ मे कहा। 

     "मेरे और चित्रा के बीच भी तो यही कहानी है काव्या! हमारा साथ होना उसके माँ पापा को मंजूर नही होगा ये बात मै अच्छे से जानता हू। आज भले ही मै एक सक्सेसफुल हु मेरी खुद की एक पहचान है लेकिन उन लोगो की नज़र मे मै हमेशा एक ड्राईवर का बेटा ही रहूँगा। चित्रा का यूँ मेरे करीब आना, हमारी दोस्ती हमेशा से उन्हें खटकती रही है। यही वजह थी की वो लोग यहाँ से कहीं और चले गए। शायद उन्हे पहले ही इस बात का एहसास हो गया था की आगे क्या होने वाला है। भूल गया था मै, भूल गया था मै की चित्रा वो चाँद है जिसे मै जमीन से सिर्फ देख सकता हु लेकिन छु नही सकता।" इस बार कार्तिक रो पड़ा। 

       अब तक जिन आँसुओ को कार्तिक ने थाम रखा था वो  सारे बांध तोड़ कर बह गए। इससे पहले कार्तिक घुटने के बल गिरता, काव्या ने उसे संभाला। "बहुत खुश था मैं, हमारे रिश्ते को लेकर। लेकिन उसने आकर सब खराब कर दिया। उसे वापस नही आना चाहिए था, नही आना चाहिए था।" कार्तिक बच्चो की तरह सुबकते हुए बोला। काव्या भी अपने आँसू रोक नही पाई। 

  

    चित्रा अपने कमरे से बाहर निकली और पानी लेने किचन मे गयी। निक्षय भी उस वक़्त वहीं मौजूद था लेकिन उसने चित्रा को देख कर भी अनदेखा कर दिया। चित्रा को कुछ अजीब लगा। जो निक्षय उसे छेड़ने का कोई मौका नही छोड़ता था आज उसे देख कर भी खामोश है। ये बात उसे खटक गयी। उसने पानी पिया और निक्षय के सामने जाकर खड़ी हो गयी। 

    "अम्म्....! क्या बन रहा है? बहुत अच्छी खुशबु आ रही है!!!" चित्रा ने निक्षय की खामोशी को तोड़ने की कोशिश की लेकिन निक्षय ने बस टका सा जवाब दिया, "पोहा" चित्रा फिर कंफ्यूज हो गयी की आखिर निक को हुआ क्या है। 

    "लेकिन मुझे पोहा नही खाना। आज मेरा उपमा खाने का मन है।" चित्रा ने एक बार फिर कोशिश की लेकिन निक्षय कुछ कहने की बजाय दूसरी तरह एक और बर्तन रखा और उपमा बनाने की तैयारी करने लगा।

   "मुझे चाय पीना है" चित्रा ने फिर कहा तो निक्षय ने पोहा हटा कर चाय चढ़ा दी। उसे चुपचाप सारा काम करते देख चित्रा इरिटेट् होने लगी। उसने एक गहरी सांस ली और बोली, "सारांश सही बोलता है, तुम एक बहुत अच्छे हसबैंड बनोगे।" लेकिन फिर भी निक्षय ने कुछ नही कहा। चित्रा ने गुस्से मे उसकी कॉलर पकड़ ली और उसे खींचते हुए किचन से बाहर लेकर आई। 

    "हुआ क्या है तुम्हें? बात क्यों नही कर रहे? आज मौन व्रत लिया है क्या, क्या नाराज़गी है बताओगे नही तो पता कैसे चलेगा!!! और तुम्हारी आँखे....... सोये नही थे क्या तुम रात भर?" चित्रा ने सवाल किया। 

     निक्षय ने कुछ देर उसे देखा और कहा, "तुम्हारी सिसकियों की आवाज़ ने सोने नही दिया मुझे।" निक्षय का जवाब सुन चित्रा चुप हो गयी और उसका कॉलर छोड़ दिया। 

    "क्या हुआ!!! तुम्हें तो बात करनी थी ना! तो बात करो मुझसे चित्रा, चुप क्यों हो बोलो!" निक्षय ने ताना मारा। चित्रा के पास कहने को कुछ नही था। "जानता हु तुम्हारे ऊपर घरवालो का प्रेसर है लेकिन मैंने तो कोई प्रेसर नही डाला न, फिर क्यों? तुम ने अपना फैसला सुनाया, मैंने उस फैसले का मान रखा लेकिन चित्रा अगर इतने भर से तुम्हारी ये हालत है तो जब हमारी शादी हो जायेगी तब तुम क्या करोगी? हर रात ऐसे ही सिसकती रहोगी? मै शादी करके अपनी बीवी को घर लाना चाहता हु ना की किसी और की प्रेमिका को। मैंने कहा था, मै इंतज़ार करूँगा लेकिन नही, तुम्हें जाने किस बात की जल्दी थी। आगे बढ़ने के लिए पीछे सब छोड़ना पड़ता है। मैंने हमेशा से चाहा है और यही मै फिर कहूँगा किसी से दूर जाने के लिए नही चित्रा बल्कि मेरे पास आने के लिए मेरे पास आना। पहला प्यार हम नही भूल सकते खास कर बचपन का प्यार, लेकिन सिर्फ यादों के सहारे लाइफ नही कटती चित्रा!!!" निक्षय ने कहा और वापस किचन मे चला जी। चित्रा बुत बनी वहाँ खड़ी रह गयी। 

     निक्षय किचन से पोहा उपमा और चाय लेकर आया और टेबल पर लगा दिया। फिर चित्रा का हाथ पकड़कर उसे बिठाया और अपने हाथों से उसे उपमा खिलाने के लिए चम्मच आगे किया। चित्रा ने भी बिना कुछ कहे उसके हाथ से खाना शुरू किया। "तुम से चाहे जितना भी नाराज हो जाऊ, चाहें जितना भी दूर चला जाऊ लेकिन तुम्हारी परवाह करना तो नही छोड़ सकता न! ज्यादा नही तो कम से कम हम दोस्त तो है ही और दोस्ती कभी नही टूटती।" उसकी बात सुन चित्रा की आँखों मे आँसू आ गए। 

       "तुम जो चाहोगी जैसा चाहोगी वैसा हज होगा। मै कुछ भी करूँगा तुम्हारे लिए। अगर तुम्हें उसे भूलना है तब भी मै तुम्हारे साथ हु और अगर तुम्हें उसे पाना है तब न मैं तुम्हारे साथ हु। बस मुझे इतना जानना है की तुम क्या चाहती हो!" निक्षय ने प्यार से कहा। चित्रा को समझ नही आया की वो क्या जवाब दे। 


     अवनि और सारांश श्रेया के घर पहुँचे। उस वक़्त मानव श्रेया को नाश्ता करवा रहा था। अवनि ने जब उसके सिर और पैर मे पट्टी बंधी देखी तो वो घबरा गयी। उसने मानव से पूछा लेकिन श्रेया ने कहा, "अरे कुछ नही! वो मै बस फिसल कर गिर गयी थी यहाँ हॉल मे। ज्यादा कुछ चोट नही आई है, ये आदिमानव भी न खामखा परेशान हो गया और तुझे भी परेशान कर दिया।" 

    "तो फिर ये बताओ की तुम गिरी कैसे? मतलब सिर के बल या मुह के बल?" सारांश ने पूछा। 

   "सिर के बल" श्रेया ने कहा फिर अचानक से उसे अपने माथे पर लगी चोट याद आई, "नही नही! मुह के बल गिरी। रात ज्यादा हो गयी थी और मुझे नींद भी आ रही थी। बस होश ही नही रहा और ये सब...!"

     सारांश बस हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसे सिर से पाव तक स्कैन करने लगा। अवनि ने कहा, "सारांश आप भी एक बार देखिये ना इसे। कहीं कोई ज्यादा चोट न लगी हो।"  सारांश दो कदम चलकर श्रेया की तरफ बढ़ा लेकिन उसका हाथ जब अपनी पॉकेट पर गया तो उसने अवनि से कहा, "अवनि शायद मेरा फोन रह गया है कार मे, ला दोगी प्लीज!" 

      अवनि बाहर की ओर जाने लगी तो श्रेया ने उसे आवाज़ दी। अवनि रुकी लेकिन उसे कुछ कहने की बजाय श्रेया ने मानव को देखा जिससे मानव को समझते देर नही लगी की अवनि को अकेला नही छोड़ना है। वो भी कार देखने के बहाने से उसके साथ ही बाहर गया। दोनो के बाहर जाते ही सारांश ने श्रेया से सवाल करना शुरू कर दिया। 

      "तुम्हे नही पता की एक वकील और एक डॉक्टर से कभी झूठ नही बोलते। ये भी नही पता की तुम कैसे गिरी! जो सिर के बल गिरते है उनके एंकल् मे मोच आती है और जो मुह के बल गिरते है उन्हे घुटने मे चोट लगती है। तुम्हारी जो हालत है उस हिसाब से देखा जाए तो तुम थोड़ा अजीब तरीके से नही गिरी!!!और जिस तरह से तुम ने अवनि के पीछे मानव को लगाया उससे एक बात समझ मे आई। अब तुम बताओ किसने किया ये सब?" सारांश का सवाल सुन श्रेया को समझ नही आया की वो कहे क्या? 




क्रमश: