Chapter 108

Chapter 108

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Chapter

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 सिद्धार्थ और श्यामा सबसे पहले निहारिका के ऑफिस पहुंचे। निहारिका उसे देखते ही सरप्राइज हो गई और उसके गले जा लगी। " तुम कब आए वापस? मुझे किसी ने बताया भी नहीं!" निहारिका ने कहा। सिद्धार्थ बोला, "यही बस एक महीना होने को है। ज्यादा काम की वजह से थोड़ा उलझा हुआ वरना तुझ से मिलने जरूर आता।"
    " और बताओ, इस बार शादी करने का इरादा है या फिर जिंदगी भर सिंगल रहोगे?" निहारिका ने पूछा। 
     सिद्धार्थ और निहारिका को एक साथ इतने सहज होते देख श्यामा समझ गई कि वे दोनों एक-दूसरे को काफी अच्छे से जानते हैं। एक हीन भावना जो हमेशा से श्यामा के अंदर दबी थी, वह एक बार फिर अपना सिर उठाने लगी। श्यामा वहां से भाग जाना चाहती थी लेकिन तभी सिद्धार्थ ने उसका हाथ पकड़ा और बोला, "मीट माय वाइफ, श्यामा!"
     निहारिका ने जब सिद्धार्थ के मुंह से यह सुना तो बहुत बुरी तरह से चौक गई, "व्हाट....!!! तुमने शादी कर ली, बिना बताए! मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी सिद्धार्थ! दिस इज नॉट फेयर"
     "गुस्सा मत हो! शादी अभी हुई नहीं है लेकिन बहुत जल्दी हो जाएगी। कल हमारी सगाई है और एक महीने के अंदर ही शादी। इसीलिए हम यहां तुम्हारे पास आए हैं कि तुम हमारे लिए एक अच्छी सी वेडिंग आउटफिट्स तैयार कर सको और श्यामा पर क्या अच्छा लगेगा क्या नहीं, यह भी मुझे जानना है ताकि मैं खुद से भी उसके लिए शॉपिंग कर सकूं।" सिद्धार्थ ने मुस्कुरा कर कहा तो निहारिका समझ गयी। उसने श्यामा को अच्छी तरह से निहारा फिर कुछ देर उसके चेहरे को देखते हुए बोली," सिद्धार्थ! सच में तुम्हारी वाइफ बहुत सुंदर है।  एक काम करो अंदर जाकर कुछ कपड़े देख लो तुम दोनों।"
    निहारिका की तारीफ सुन श्यामा को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि आज तक किसी ने भी उसकी इस तरह तारीफ नहीं की थी और ना ही कभी सुंदर कहा था। उसके सांवले रंग की वजह से हमेशा उसे हर जगह अपमानित ही होना पड़ा था। निहारिका खुद भी खूबसूरत थी जिस वजह से वह सिद्धार्थ के साथ खड़े होने में शर्मिंदा महसूस कर रही थी। 
     सिद्धार्थ ने उसका हाथ पकड़ा और लेकर अंदर चला गया जहां एक से बढ़कर एक डिजाइन के कपड़े रखे हुए थे। इतने खूबसूरत कपड़ों को देख श्यामा को समझ नहीं आया कि कौन सा देखें और कौन सा छोड़ें। सिद्धार्थ ने उसमें से आठ दस कपड़े उठाएं और एक को श्यामा की ओर बढ़ा दिया। श्यामा चुपचाप उस कपड़े को लेकर ट्रायल रूम में गई। उसने एक-एक कर वह सारे कपड़े पहनकर सिद्धार्थ को दिखाएं जो सिद्धार्थ ने उसके लिए सेलेक्ट किया था। श्यामा को वह सारे कपड़े बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लगे लेकिन सिद्धार्थ को उनमें से कोई नहीं जचा। हार कर सिद्धार्थ ने निहारिका को बुलाया। 
     निहारिका आई और वहां से एक चूड़ीदार सूट उठाकर श्यामा की ओर बढ़ा दिया। श्यामा लेकर चेंजिंग रूम में गई और जब वहां खुद को आईने में देखा तो देखती रह गई। जिस बादामी रंग को वह अब तक नापसंद करती आई थी वही बादामी रंग उस पर इतना खूबसूरत लग रहा था जैसे उसी के लिए बना हो। लेकिन वह उसके पीछे की ज़िप नहीं लगा पा रही थी। श्यामा को ध्यान आया कि निहारिका बाहर ही खड़ी थी। उसने हल्के से दरवाजा खोल कर सिर बाहर निकाला और निहारिका को ढूंढने लगी। 
     जब सिद्धार्थ ने उसे यू देखते हुए पाया तो वह पूछ बैठा, "क्या हुआ श्यामा, कुछ प्रॉब्लम है?"  श्यामा ने हिचकीचाते हुए ना में सिर हिला दिया लेकिन सिद्धार्थ समझ गया और वह उठकर उसके पास आया। उसने श्यामा को सिर से पाव तक देखा तो ड्रेस बिल्कुल सही लग रही थी उसके ऊपर। फिर उसे समझ नहीं आया कि श्यामा की परेशानी की वजह क्या है तभी सामने के आईने पर उसकी नजर गई जिससे साफ पता चल रहा था कि उसकी पीठ पर की चेन खुली हुई थी और वह उसे बंद करने के लिए निहारिका कोई ढूंढ रही थी शायद। 
    सिद्धार्थ को यूं आईने में अपनी पीठ निहारता देख श्यामा थोड़ी असहज हो गई और दरवाजे पर से हटकर साइड में खड़ी हो गई ताकि अपनी पीठ छुपा सके लेकिन उसका ऐसे करते ही सिद्धार्थ अंदर दाखिल हो गया। उसने श्यामा को कंधे से पकड़कर दूसरी ओर घुमाया और नज़र दूसरी तरफ फेर उसकी ड्रेस की जिप लगाने लगा। जैसे ही उसकी उंगलियों ने श्यामा की पीठ को छुआ, एक सिहरन सी दोनों को हुई। सिद्धार्थ नहीं चाहता था कि श्यामा असहज हो इसलिए उसने अपने चेहरे पर कोई भी भाव आने नहीं दिया और चुपचाप उसकी ज़िप बंद कर बाहर निकल गया। उसकी खुद की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नजर उठाकर श्यामा की ओर देखें। वह बाहर निकली तो सिद्धार्थ ने कुछ देर उसको उपर से नीचे तक देखा फिर बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड़ बाहर  गया। उसने निहारिका से कुछ कहा तो निहारिका ने अपने असिस्टेंट को इशारा कर श्यामा को वहां से ले जाने को कहा। 
     श्यामा के जाते ही सिद्धार्थ ने निहारिका को घूर कर देखा और बोला, "तुम श्यामा को इस तरह क्यों देख रही थी? कहीं तुम्हारे दिमाग में कुछ चल तो नहीं रहा?"
   " तुम काफी स्मार्ट हो सिद्धार्थ! अब तुमसे क्या छुपाना, श्यामा सोच भी नहीं सकती कि मैंने उसके लिए क्या प्लान कर रखा है। आई होप तुम्हें इससे कोई एतराज ना हो" ,निहारिका ने मुस्कुरा कर कहा तो सिद्धार्थ बोला, "तुम्हारी मर्जी! तुम्हें जो करना है करो मैं कुछ नहीं कहूंगा। बस उसकी आंखों के साथ कोई छेड़छाड़ मत करना, उस की आंखें बहुत मासूम है"
      "अभी से इतने पजेसिव हो! आई लाइक इट, सही जा रहे हो बेटा", निहारिका ने कहा और शरारत से मुस्कुराती हुई बोली, "आई होप अब तुम अपनी पिछली सारी बातों को भूलकर लाइफ में आगे बढ़ जाओगे। मैं बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए। बस एक शिकायत है! लड़की मिल गई, बात पक्की हो गई और मुझे कोई खबर ही नहीं! ठीक है कोई बात नहीं लेकिन अपनी शादी में मुझे बुलाना मत भूलना।"
     "बिल्कुल भी नहीं भूलूंगा। वैसे भी कोई ग्रैंड वेडिंग नहीं है। सिंपल सा कोर्ट मैरिज करने वाले है हम लोग बस। मॉम की चाहत थी कि थोड़ी बहुत रस्में हो तो वह सब घर पर ही होगी। कोई गेस्ट नहीं बस अपने परिवार के लोग। नहीं श्यामा और ना ही मैं यह चाहते हैं कि किसी तरह का शोर शराबा हो  बस एक सिंपल सी वेडिंग और कुछ नहीं",  सिद्धार्थ ने प्यार से कहा। 

       चित्रा ने मॉल से कुछ कपड़े खरीदे और साथ में एक बैग भी। अवनि ने जब देखा तो उसे कुछ अजीब लगा। कपड़े तक तो ठीक थे लेकिन बैग!!!  ऐसा लगा जैसे वह कहीं जाने की तैयारी में हो। जब उससे रहा नहीं गया तो वह पूछ बैठी, "चित्रा! क्या है यह सब तुम कहीं जा रही हो क्या?"
      चित्रा ने कुछ नहीं कहा बस वह चुपचाप वहां खड़ी रही। अवनी ने फिर से पूछा, "चित्रा जवाब दो! कहां जा रही हो? कहीं जा रही हो या फिर किसी से भाग रही हो! एक बात याद रखो, जितना अगर हम किसी से भागते हैं तो वह हमारा पीछा जरूर करता है फिर चाहे वो इंसान हो या प्रॉब्लम। किसी भी प्रॉब्लम का सोल्युशन भागना नहीं है, सामना करो उसका।"
    " किस का सामना करू मै अवनि, किस किसका! मेरा यकीन करो, सब कुछ भूल कर मैं आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हूं। पूरी इमानदारी से निक्षय के साथ अपने रिश्ते में आगे बढ़ना चाहती हूं लेकिन........ और मेरी मॉम!!!उन्हें तो बस एक मौका मिलना चाहिए कार्तिक की बेइज्जती करने का। माना निक्षय खानदानी है, अमीर है, पर इसका मतलब यह नहीं कि कार्तिक किसी से भी कम है। आज कार्तिक जो भी है वह अपने दम पर है और किसी से भी ज्यादा काबिल है। उन लोगों के दबाव में आकर हमने सगाई तो कर ली लेकिन अब वह लोग हम पर शादी का दबाव डाल रहे हैं। यह सब प्रेशर मेरे से हैंडल नहीं हो रहा है अवनी। इसलिए मैं यहां से जाना चाहती हूं। कहां जाऊंगी मुझे खुद नहीं पता। श्रेया को मत बताना वरना वह गुस्सा होगी। मैं उसकी शादी से पहले  जाऊंगी तब तक मैं बस अपना मन शांत करना चाहती हूं", चित्रा ने बेचैनी से कहा। उसकी बेचैनी देख अवनि ने चुप रहना ही बेहतर समझा। 
    शॉपिंग खत्म होने के बाद श्रेया अपने घर के लिए निकल गई और अवनी अपने घर के लिए, लेकिन चित्रा को एयरपोर्ट जाना था इसीलिए उसने ऑटो या टैक्सी ढूंढनी शुरू की। लेकिन कोई भी उसे एयरपोर्ट ड्रॉप करने के लिए तैयार नहीं हुआ। हार कर उसने कैब बुक करनी चाही लेकिन उसे आने में अभी काफी टाइम लगने वाला था। अपनी गाड़ी से एयरपोर्ट नहीं जाना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि इससे घर में सबको पता चल जाएगा उसके जाने का। वह बस बिना बताए कहीं दूर निकल जाना चाहती थी ताकि कोई उसे ढूंढने उस के पीछे ना  पाए। 
     चित्रा को कैब के ड्राइवर का फोन आया और उसने उससे अगले मोड पर आने को कहा। चित्रा ने अपना सामान उठाया और अगली मोड की तरफ निकल पड़ी। वहां पहुंचते ही अचानक से एक कार आकर ठीक उसके सामने रुकी। चित्रा की जान हलक में  गई। उसने गाड़ी वाले पर चिल्लाते हुए कहा, "अबे आंखे नहीं है क्या नयनसुख!" चित्रा अपने आप में ही इस कदर खोई हुई थी कि उसे अहसास ही नहीं हुआ कि वह गाड़ी किसकी है। 
    चित्रा को ऐसे गुस्सा हुआ देख कार्तिक कार से बाहर निकला। उसे अचानक से अपने सामने देख चित्रा थोड़ा घबरा सी गई। उसे उम्मीद नहीं थी कि कार्तिक से इस तरह उसकी मुलाकात हो जाएगी। चित्रा को यूं सामान के साथ देख कार्तिक समझ गया कि जरूर कोई बड़ी बात हुई है। उसने चित्रा से कुछ पूछने की बजाए कैब वाले से ही पूछना बेहतर समझा। कैब वाले ने भी अपने फोन का नेविगेशन देखकर उसे एयरपोर्ट के बारे में बता दिया। कार्तिक ने उस ड्राइवर को एयरपोर्ट तक के पैसे दिए और वहां से भेज दिया। 
     कैब के जाने के बाद कार्तिक ने चित्रा का सामान उठाया और गाड़ी की डिक्की में डाल दिया फिर आगे का दरवाजा खोल उसे बैठने का इशारा किया। चित्रा ने भी कुछ नहीं कहा और जाकर चुपचाप गाड़ी में बैठ गई। "किसी से झगड़ा हुआ है क्या जो ऐसे घर से निकली हो! कहां जा रही हो? तुम्हें देखकर लगता नहीं कि तुम घर से ही  रही हो! मतलब यह कि घर पर किसी को नहीं पता कि तुम कहीं बाहर जा रही हो। क्या हुआ, कुछ हुआ है क्या? घर पर किसी से लड़ाई हुई तुम्हारी कहीं निक्षय से तो........तुम कहो तो मैं बात करूं उससे!" कार्तिक ने एक साथ कई सवाल दाग दिए। 
    चित्रा कुछ नहीं बोली और चुपचाप हुई बैठी रही। कार्तिक समझ गया कि चित्रा को अगर कुछ बताना होता तो ऐसे चुप नहीं रहती, तभी उसका फोन बजने लगा। कार्तिक ने देखा, उसके फोन पर काव्या का कॉल  रहा था। "कार्तिक कहां हो? कब से वेट कर रही हूं तुम्हारा, जल्दी आओ वरना मुझे कुछ हो जाएगा!" काव्या चीखती हुई बोली। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि बगल में बैठी चित्रा भी साफ़ सुन सकती थी। 
     " रहा हूं!  रहा हूं! यार कितनी बेचैन हो रही हो! मै तुम्हारे लिए सारा काम छोड़ कर सड़क पर घूम रहा हूं। बस थोड़ी देर में पहुंच जाऊंगा तुम वेट करो", कार्तिक ने विनती करते हुए कहा और फोन रख दिया। चित्रा ने जब सुना तो उसे थोड़ी चिंता हुई," क्या हुआ कार्तिक, काव्या ठीक तो है! वो ऐसे क्यों बोल रही थी"
    "अरे कुछ नहीं यार बस उसके मूड कुछ ज्यादा ही स्विंग हो रहे हैं। अभी उसको जलेबी खाने का मन हो रहा है। मैंने कहा शाम को लेते आऊँगा लेकिन उसे अभी के अभी खानी है और वह भी मेरे हाथों से। क्या करता, ऑफिस की जरूरी मीटिङ छोड़ कर आया हूं उसके लिए।" कार्तिक ने कहा। 
    "अगर ऐसा है तो मुझे यहीं कहीं पर उतार दो। मैं खुद एयरपोर्ट चली जाऊंगी। तुम घर जाओ काव्या तुम्हारा इंतजार कर रही है। उसकी आवाज से ही पता चल रहा है कि वह कितनी ज्यादा बेचैन है। प्रेग्नेंसी मे ऐसा आम बात है। इस वक़्त वो नही बल्कि तुम्हारा बच्चा परेशान कर रहा है तुम्हे", बोलते हुए चित्रा मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान मे खुशी कम और दर्द ज्यादा था। कहीं कार्तिक ना देख ले ये सोच उसने शीशे की तरफ अपना चेहरा घुमा लिया। 
      कार्तिक भी ड्राईव करने मे बिजी था। उसने चित्रा की तरफ ध्यान ही नही दिया, "तू चुपचाप मेरे साथ चल। एक बार मैं काव्या को यह दे दूं फिर उसके बाद तुझे जहां मन हो वहां छोड़ दूंगा"
      छूट तो बहुत पहले गया है कार्तिक! तेरा और मेरा साथ', चित्रा ने मन ही मन सोचा। कार्तिक ने गाड़ी घर की ओर मोड़ लिया। घर के सामने गाड़ी रोककर कार्तिक ने चित्रा से पूछा, "तु अंदर चलेगी सब से मिलने? काव्ये तेरे बारे में ही पूछ रही थी मुझसे। देख अगर किसी से लड़ाई हुई है तेरी तो कुछ दिनों के लिए मेरे घर पर रुक जा। कहीं और जाने की क्या जरूरत!"
    चित्रा कुछ कहना चाहती थी लेकिन उससे काव्या का पिछली बार का व्यवहार याद  गया जब उसने कार्तिक को पहनाने के लिए धोती उसके हाथ से छीन ली थी। वह समझ गई कि काव्या अब कार्तिक को लेकर इनसिक्योर फील करने लगी है। उसने गाड़ी में ही रहने का फैसला किया और बोली,"नहीं कार्तिक मैं यही रहूंगी। अंदर गई तो और ज्यादा टाइम लग जाएगा और मेरी फ्लाइट मिस हो जाएगीकार्तिक ने भी उससे कोई जीद नहीं की। वह बेहतर जानता था चित्रा को, जितना की वह खुद भी नही जानती थी। 
     कार्तिक अंदर गया और करीब 10 मिनट के बाद ही वह लौट आया। चित्रा को थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। कार्तिक ने गाड़ी स्टार्ट की और एयरपोर्ट के लिए निकल गया। काव्या ऊपर कमरे की बालकनी से उन दोनों को जाते हुए देखती रही। जिस जलेबी के लिए उसने कार्तिक को इतना परेशान किया था वहीं जलेबी अब से कड़वी लगने लगी थी। कार्तिक कुछ और सवाल ना पूछ ले इसलिए चित्रा ने पहले ही गाड़ी का म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया लेकिन इससे चित्रा का दिल और ज्यादा तकलीफ से भर गया

तु जो नज़रों के सामने कल होगा नही
तुझको देखे बिन मै मर ना जाऊ कहीं 
तुझ को भूल जाऊ कैसे, माने ना मनाउ कैसे,
तु बता......
रोके ना रुके ये नैना
तेरी ओर है इसे अब रहना
    चित्रा ने आँखें मूंद कर सीट से सिर टिका दिया। 
     एयरपोर्ट पर पहुंचकर कार्तिक ने चित्रा का सामान उतारा और अंदर जाने के लिए टिकट लिया। "मैं जानता था कि चित्रा मैडम ने अभी तक डिसाइड नहीं किया होगा कि उसे कहां जाना है। इसलिए मैंने आप के लिए भी एंट्री टिकट ले लिया" और कार्तिक ने एक टिकट उसके हाथ में थमा दिया," परेशानी से भागना उसका हल नहीं है चित्रा! अगर किसी से कोई अनबन है तो सामने बैठ कर सुलझाओ। ऐसे भागने से प्रॉब्लम खत्म नहीं होंगी बल्कि और ज्यादा बढ़ जाती है।"
    कार्तिक उस वक्त चित्रा को हग करना चाहता था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई। वह जानता था कि ऐसा करने से जिस दिल को अब तक उसने पूरी तरह संभाल कर रखा वह एक बार फिर बेकाबू ना हो जाए और इस बार काव्या के साथ अपने रिश्ते को पूरी ईमानदारी के साथ जीना चाहता था। जिसके लिए जरूरी था चित्रा से दूरी बनाए रखना। चित्रा को एक उम्मीद सी जगी की शायद कार्तिक जाते जाते उस गले से लगा ले लेकिन वह भी यह बात जानती थी कि अगर कार्तिक उसे करीब आया तो वह कभी उसे भूल नहीं पाएगी और ना ही वह अपनी लाइफ में आगे बढ़ पाएगी। फिर भी वह खड़ी रही, कार्तिक का इंतज़ार करते हुए लेकिन कार्तिक तुरंत ही वहाँ से चला गया। चित्रा भी जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी वहां से निकल गई और अंदर की ओर भागी। उसके आंखों से ओझल होने तक कार्तिक उसे छुप कर देखता रहा फिर वह भी वापस घर चला आया। 

क्रमश:


गरिमा गुप्ता