Chapter 34

Chapter 34

YHAGK 33

Chapter

 33








       "ध्यान कहाँ रहता है तुम्हारा! कितना खून बह रहा है! कहीं टाँके ना लगाने पड़ जाए! तुम भी ना रूद्र! बहुत बड़े लापरवाह हो। अपना थोड़ा सा ख्याल नहीं रख सकते तुम? इतना गहरा घाव! कर क्या रहे थे तुम आखिर?" शरण्या गुस्से में बड़बड़ाए जा रही थी और रूद्र का हाथ पकड़ उस पर दवाई लगाने की कोशिश कर रही थी। रूद्र के हाथ से बहता खून शरण्या से देखा नहीं जा रहा था। दवाई लगाने के वक़्त उसे रूद्र के दर्द की चिंता हो रही थी। लेकिन रूद्र को इस सब से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। हालात ऐसे थे मानो घाव रूद्र को नहीं बल्कि शरण्या को लगी हो। रूद्र अपने अंदर गुस्से का ज्वालामुखी दबाए शांति से बैठा था और शरण्या उसे डांटे जा रही थी। जब रूद्र से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसका गुस्सा फूट पड़ा। 


     "सिर्फ मुझ पर तेरा सारा गुस्सा निकलता है? तेरी सारी जोर जबदस्ती सब मुझ पर ही चलती है क्या? दूसरों के सामने भीगी बिल्ली बनकर खड़ी रहती है। जो शेरनी मेरे सामने खड़ी रहती है जो मेरे सिर पर सवार रहती है वह शेरनी दूसरों के सामने क्यों नहीं आती?"


     "तू क्या बोल रहा है मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा। यह वक़्त ये सब बातें करने की नहीं है। तेरा हाथ जख्मी है तुझे दर्द हो रहा होगा।" शरण्या ने बात को घुमाना चाहा लेकिन रूद्र ने उसे धकेल देते हुए दीवार से लगा दिया और गुस्से मे उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए बोला, "तुझे नहीं पता मैं किस बारे में बात कर रहा हूं? इतनी मासूम है तू? जो जोर तु मुझ पर चलाती है, उस विक्रम पर क्यों नहीं चला पाई? उसका छूना तुझे अच्छा लग रहा था, बोल!!! मजा आ रहा था तुझे उसकी बाहों में जो उससे दूर नहीं जाना चाहती थी तू? या फिर तू इतनी भोली है कि एक बार भी तुझे एहसास नहीं हुआ वह तुझे गलत तरीके से छू रहा था! बार बार कहा मैंने तुझसे ऐसे कपड़े मुझे पसंद नहीं है लेकिन तुझे तो मेरी बात सुननी ही नहीं थी, है ना? तो फिर क्यों फर्क पड़ता है तुझे, मुझे दर्द हो या ना हो! मुझे घाव कहीं भी लगे! सिर्फ चोट लगी है ना मेरे हाथ में! इससे मुझे बिल्कुल भी दर्द नहीं हो रहा। तू जानती है मुझे दर्द कहां हो रहा है? यहां मेरे सीने में! आग लगी है यहां लेकिन तुझे क्या फर्क पड़ता है!!! तू जा..... तेरा विक्रम तेरा इंतजार कर रहा होगा। मेरे पास तु अपना वक़्त बर्बाद कर रही है।" कहते हुए रूद्र ने शरण्या को दूसरी ओर झटक दिया जिससे शरण्या सीधे जमीन पर जा गिरी। रूद्र का ऐसा व्यवहार शरण्या के लिए उम्मीद से परे था। उसने कभी नहीं सोचा था कि रूद्र इस तरह उस पर गुस्सा करेगा और इतनी कड़वी बातें करेगा। 


     शरण्या की आंखों में आंसू आ गए। इसके बावजूद वह उठकर रूद्र से बोली, "सही कहा तुमने! मुझे अच्छा लग रहा था जब विक्रम ने मुझे छुआ। तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई फीलिंग है? कौन हूं मैं तुम्हारी जो तुम इतना गुस्सा कर रहे हो? ना हम दोस्त हैं ना ही मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हु और ना ही कोई रिश्तेदार तो तुम्हें भी कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए। जैसे सब इंजॉय कर रहे थे मैं भी इंजॉय कर रही थी। और सही कहा तुमने विक्रम मेरा इंतजार कर रहा होगा। मुझे जाना चाहिए। अपनी पट्टी तुम खुद कर लेना, मै चलती हु।"


     रूद्र इतने गुस्से मे था कि उसने एक नज़र शरण्या को देखा भी। शरण्या भी गुस्से मे पट्टियाँ उसके हाथ मे पकड़ा कर जाने लगी तो रूद्र ने उसका हाथ पकड़ वापस से खिंचा और दीवार से लगा दिया। एकदम से दीवार से टकराने से शरण्या की पीठ मे दर्द की लहर दौड़ गयी। "बांध इसे!!!" रूद्र बोला। शरण्या ने कांपते हाथों से पट्टी उठाई। इस वक़्त उसके सामने जो रूद्र खडा था वो उसे बिलकुल भी नही जानती थी। उसका एक अंजाना रूप देख शरण्या बुरी तरह से डर गयी थी। 


      पट्टी बांधने के बाद शरण्या जैसे ही वहाँ से जाने को हुई रूद्र ने उसके हाथ को मजबूती से पकड़ लिया और घुमाकर उसका चेहरा दीवार की तरफ कर दिया जिससे शरण्या और भी ज्यादा डर गयी लेकिन इसके बावजूद उसने ऐसी कोई हरकत नही की जिससे रूद्र का गुस्सा और ज्यादा भड़के। वो बस दोनो हाथों की मुट्ठियों को बांधे आँखे बन्द किए इंतज़ार कर रही थी जो कुछ भी रूद्र करने वाला था। रूद्र ने पास पड़ी पेन उठाई और उसके पीठ पर चलाने लगा। शरण्या दर्द से तड़प उठी लेकिन रूद्र को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा था। अपने गुस्से मे इतना अंधा हो चुका था कि उसे एहसास ही नही हुआ शरण्या के पीठ पर कई जगह से खून निकलने लगा था। शरण्या के पास रूद्र की ज्यादतियो को चुपचाप बर्दास्त करने के अलावा कोई और रास्ता न था फिर भी बीच बीच मे वो चीख पड़ती। 


      पार्टी लगभग खत्म होने को थी। रात के 1:00 बज चुके थे और आधे से ज्यादा लोग अपने घर को चले गए थे। सभी आपस में बात करने में लगे थे तभी लावण्या क्या ध्यान शरण्या पर गया जो काफी देर से पार्टी से गायब थी। उसे देखते ही लावण्या हैरान हो गई। शरण्या ने बंद गले का वन पीस ड्रेस पहन रखा था जो लावण्या उसके लिए बहुत पहले लेकर आई थी। वो बोली, "यह क्या शरण्या!!!तुमने ड्रेस क्यों चेंज कर ली? कितनी खूबसूरत लग रही थी तुम उन कपड़ों को मे! और यह क्या, बंद गले का सूट? तुम कब से इस तरह के कपड़े पहनने लगी? तुम्हें तो यह बिल्कुल भी पसंद नहीं थी!" शरण्या जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करने लगी और बोली, "वो क्या है ना दी! अभी कुछ देर पहले वॉशरूम गई थी तो मेरी वह ड्रेस थोड़ी खराब हो गई। इसलिए चेंज करना पड़ गया और वैसे भी मेरे पास पहनने के लिए और दूसरा कुछ ढंग का था नहीं। आप भी तो इतने प्यार से लेकर आई थी मेरे लिए तो सोचा आज ही पहन लु। आपका भी दिल रह जाएगा।" 


    शरण्या की बात सुन लावण्या खुश हो गई और उसे गले से लगा लिया। जैसे ही लावण्या की हाथ शरण्या के पीठ पर गई शरण्या के मुंह से हल्की सी आह निकल गई। लावण्या को थोड़ा अजीब लगा। उसने अलग होकर शरण्या का चेहरा देखा तो उसे थोड़ा अजीब लगा। उसकी आंखें सूजी हुई थी मानो वह काफी देर से रो रही हो। उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर बोली, "क्या हुआ छोटी? तू रो रही थी क्या? किसी ने कुछ कहा तुझसे? मां ने कुछ कहा? ये तेरी आंखें इतनी सूजी हुई क्यों है? क्या हुआ बताओ मुझे, मैं अभी खबर लूंगी उसकी!" शरण्या उसका हाथ पकड़ते हुए बोली, "ऐसा कुछ नहीं है दी। वह शायद थोड़ी एलर्जी हो गई मुझे, साबुन आंख में चला गया था। उसे निकालने के चक्कर में देखो क्या से क्या हो गया। ऐसा कुछ नहीं है और आपको लगता है कि कोई आपकी बहन को कुछ कह सकता है? मुह ना तोड़ दूं मैं उसका।" शरण्या की बातें लावण्या मानना नहीं चाहती थी लेकिन फिर भी उसने ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया। 


    वहां मौजूद लगभग सारे मेहमान अब जा चुके थे। विहान भी घर जाने को निकलने वाला था तभी अमित ने उसे रोकते हुए कहा, "विहान! क्या तुम मानसी को घर छोड़ दोगे प्लीज! वो क्या है ना! मेरे दोस्त का एक्सीडेंट हुआ है और नेहा को भी हॉस्पिटल में इमरजेंसी मे जाना है। तो मै उसे लेकर हॉस्पिटल जा रहा हूं। तुम प्लीज मानसी को घर छोड़ दोगे?" विहान को तो मानो बिन मांगी मुराद मिल गई हो। उसने अमित के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "तुम आराम से जाओ, मै हु यहां देखता हूं।" अमित नेहा को लेकर चला गया तो वही बिहान को मानसी के साथ छोड़ गया। विहान बोला, "चलें!!!" तो मानसी उसके पीछे-पीछे धीमे कदमों से चल दी। विहान ने गाड़ी का दरवाजा मानसी के लिए खोला तो वहां जाकर बैठ गई। इस वक़्त मानसी बहुत ज्यादा डरी हुई थी। विहान ड्राइविंग सीट पर बैठा और गाड़ी लेकर वहां से निकल पड़ा। बीच रास्ते में उसने मानसी से बात करने की कोशिश की लेकिन मानसी ने अपने हाथ में पकड़े बैग को इतनी कसकर पकड़ रखा था मानो वह बुरी तरह से डरी हुई हो। 


    "मानसी! तुम ठीक हो? क्या हुआ तुम्हें, इतने घबराई हुई क्यों लग रही हो? कुछ हुआ है क्या? बताओ मुझे!" विहान बोला लेकिन मानसी ने ना तो कुछ कहा और ना ही उसकी तरफ देखा। वह बिल्कुल उसी तरह डरी सहमी सी बैठी रही। विहान ने हाथ बढ़ा कर उसके हाथ को छूना चाहा तो मानसी ने एकदम से उसके हाथ को झटक दिया और चिल्लाते हुए बोली, "खबरदार! छूना मत मुझे, दूर रहो मुझसे! मैंने कहा दूर रहो मुझसे! अच्छे से जानती तुम यहां क्या करने वाले हो! तुम्हें एक बहाना चाहिए था बस!" और वह चीखती हुई चलती गाड़ी से कूद पड़ी। विहान बुरी तरह से घबरा गया और उसने एक झटके से गाड़ी रोकी। वह तेजी से दरवाजा खोल बाहर निकला और मानसी के पीछे भागा। मानसी खुद को संभालते हुए वहां से दूसरी तरफ पागलों की तरह भाग जा रही थी मानो उसके पीछे कोई आदमखोर पड़ा हो। 


   विहान ने दौड़कर जाकर मानसी को पकड़ा तो मानसी और भी ज्यादा अजीब पागलों की तरह बर्ताव करने लगी और खुद को उसकी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी। जब विहान से उसे संभाला नहीं गया तो उसने मानसी को अपने सीने से लगाया और किसी रोते हुए बच्चे की तरह उसे शांत कराने की कोशिश करने लगा। कुछ देर की कोशिश के बाद मानसी थोड़ी शांत हुई। उसे इस तरह देख विहान बहुत ज्यादा घबरा गया था मानो उसे किसी तरह का कोई दौरा पड़ा हो। कुछ देर बाद विहान ने उससे बात करने की कोशिश की। "मानसी क्या हुआ? देखो!!! यहां पर कोई नहीं है। सिर्फ मैं हूं तुम्हारे साथ। कोई नहीं आएगा तुम्हारे पास, कोई तुम हाथ नहीं लगाएगा। तुम बिल्कुल ठीक हो। देखो कोई भी तो नहीं है यहां!" मानसी ने सर उठा कर विहान की ओर देखा। उसकी आंखों में अपने लिए पर फिक्र देख मानसी की आंखों में आंसू आ गए। वह रोते हुए उसके गले जा लगी और बोली, "मुझे यहाँ से ले चलो, प्लीज मुझे यहाँ से ले चलो!" कहते हुए मानसी बेहोश हो गयी। विहान ने उसे सहारा देते हुए गाड़ी में बिठाया और जैसे ही वहां से जाने को हुआ उसका फोन बजने लगा। उसने देखा रूद्र उसे फोन कर रहा था। 


     "हैलो रूद्र! कहाँ है तु? सब तुझे ढूंढ रहे थे यार! ऐसे अचानक कहाँ गायब हो गया तु?" 


    "मेरी छोड़, तु बता कहाँ है तु? पार्टी मे या कहीं बाहर!" रूद्र की आवाज़ सुन विहान की हिम्मत नही हुई कि वो उससे कुछ और सवाल कर सके। उसने थूक निगलते हुए कहा, "नही मै पार्टी मे नही हु। सब लोग चले गए है और बस कुछ करीबी लोग ही वहाँ मौजूद है। मै वो मानसी को..... मेरा मतलब नेहा की भाभी को घर छोड़ने जा रहा हु। उसकी तबियत ठीक नही और अमित नेहा को हॉस्पिटल छोड़ने गया है।"


    रूद्र के उसकी बात सुनने का वक़्त नही था, "जितना पूछ रहा हु बस उतने का ही जवाब दे! वो विक्रम! पार्टी से निकला क्या? देखा था तूने उसे?" 


    विक्रम का नाम सुन विहान चौंक गया। आज से पहले रूद्र को कभी विक्रम मे इंट्रेस्ट नही रहा फिर अचानक से उसका इस तरह से पूछना विहान को शक होने लगा था। उसने कहा, "मेरे ठीक सामने ही निकला है वो। अब तक तो घर पहुँचने वाला होगा। लेकिन तुझे उससे क्या काम है? और तु है कहाँ? चल क्या रह है तेरे दिमाग मे? क्या करने वाला है तु उसके साथ? हैलो....! हेलो!!!!!! रूद्र!!?? हैलो......!!!" विहान उसे आवाज़ देता रह गया लेकिन रूद्र पहले ही फोन काट चुका था। 
















क्रमश: