Chapter 26
Episode 26 Ant hi Aarambh hai..
Chapter
स्नेहा के आते ही अच्युतानंद के चेहरे पर एक विशेष जीत भरी मुस्कान आ गई थी... जैसे किसी रेगिस्तान में तपते मनुष्य के चेहरे पर पानी की एक बूंद को देख कर आती है।
अच्युतानंद ने बहुत ही प्रेम से स्नेहा को कुछ दिन आश्रम में बिताने के लिए कहा। अच्युतानंद ने कहा, "स्नेहा इस समय तुम बहुत ही ज्यादा व्यथित हो... तुम कहीं बाहर जाकर रहने की बजाय यहीं रहकर मां के चरणों में ध्यान लगाओ।"
स्नेहा ने कहा, "वह तो ठीक है गुरुदेव... पर पीहू यहाँ कैसे रह पाएगी…??"
अच्युतानंद ने कहा, "पीहू को भी यहां रहने में कोई तकलीफ नहीं होगी... और वैसे भी एक ही हफ्ते की तो बात है... उसके बाद तुम्हें पीहू की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं होगी।" ऐसा कहकर एक रहस्यमयी मुस्कान देकर अच्युतानंद वहां से चले गए।
अच्युतानंद के जाने के बाद स्नेहा बहुत ही ज्यादा संशय में पड़ गई थी। स्नेहा का बदला पूरा होने के बाद... स्नेहा को अच्युतानंद के व्यवहार में बहुत ही ज्यादा परिवर्तन दिखाई दे रहा था। स्नेहा उसे समझ नहीं पा रही थी। स्नेहा वही खड़ी-खड़ी अच्युतानंद के बारे में सोच रही थी कि पीहू ने उसे हिलाया,
"बूईईई हमें भूख लगी है…. बूईईई हम यहां नहीं रहेंगे... मुझे यहां डर लग रहा है... कितनी डरावनी सी जगह है।"
स्नेहा ने कहा, "नहीं बेटा... ऐसा नहीं कहते... यह जगह हमारे लिए बहुत ही ज्यादा सेफ है। यहां पर हमें कोई भी कुछ नहीं कर पाएगा।"
पीहू ने स्नेहा की बात मान ली थी पर पीहू के चेहरे पर डर के भाव दिखाई दे रहे थे। स्नेहा ने पीहू का ध्यान बंटाने के लिए कहा, "ठीक है पीहू... हम बाहर पिज़्ज़ा खाने चलते है और वहां से किसी होटल में जाकर सो जाएंगे।"
पीहू इस बात से खुश हो गई कि वह लोग उस जगह से जा रहे थे। स्नेहा ने अच्युतानंद से जाकर आज्ञा मांगी।
स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव पीहू को मैं बाहर ले जा रही हूं। पीहू का थोड़ा मन बहल जाएगा और अगर ज्यादा देर हुई... तो हम वहीं कहीं रुक जाएंगे।"
अच्युतानंद का चेहरा एक पल के लिए गंभीर हो गया... फिर उसने स्नेहा को जाने के लिए आज्ञा दे दी और जल्दी ही वापस आने के लिए कहा। जल्दी ही स्नेहा और पीहू वहां से बाहर आ गए थे।
स्नेहा पीहू को लेकर एक रेस्टोरेंट में चली गई... वहां उन्होंने पीहू के पसंद का खाना ऑर्डर किया। पीहू बहुत खुश हो गई… और स्नेहा से बातें कर रही थी। स्नेहा से कहने लगी, "बूईईई पता है... वह अंकल है ना... जिन्हें आप गुरुदेव बोल रही थी। वह अंकल... बेड अंकल है।"
स्नेहा ने जल्दी से कहा, "नहीं पीहू बेटा... ऐसा नहीं कहते... वह बहुत ही अच्छे हैं। उन्होंने बूई की बहुत ज्यादा हेल्प की है।"
पीहू ने कहा, "फिर भी बूई पर मुझे वो अंकल बिल्कुल अच्छे नहीं लगते... हम उनके पास नहीं रहेंगे।"
स्नेहा ने हाथ जोड़कर कहा, "ठीक है दादी अम्मा... अभी तो आप फटाफट खाना खाओ।"
वेटर खाना लगाकर जा चुका था। स्नेहा और पीहू ने खाना खाया। उसके बाद पीहू ने आइसक्रीम खाने की जिद की वह भी एक स्पेशल फ्लेवर... चॉकलेट ब्राउनी विद वनीला आइसक्रीम एंड हॉट चॉकलेट सॉस।
स्नेहा ने आसपास बहुत सी दुकानों पर ट्राई किया पर वह फ्लेवर कहीं नहीं मिल रहा था। पीहू ने तो जैसे वही फ्लेवर खाने की जिद पकड़ ली थी।
स्नेहा ने पीहू से कहा, "पीहू बेटा... वह फ्लेवर नहीं मिल रहा है। आप कुछ और खा लो…!!"
पीहू ने कहा, "नहीं बूईईई मुझे वही खाना है... मुझे पता है वह कहां मिलता है।"
स्नेहा ने पूछा, "कहां…??"
तो पीहू ने जो एड्रेस बताया वह शहर के दूसरे कोने पर था। स्नेहा ने वहां फोन करके पूछा तो उन्होंने कहा कि वह फ्लेवर उनके पास अवेलेबल था। स्नेहा पीहू को अपनी गाड़ी में लेकर आइसक्रीम पार्लर की तरफ निकल गई।
वह लोग जल्दी ही आइसक्रीम पार्लर पहुंच गए। स्नेहा को पूरे रास्ते ऐसा लग रहा था... कि कोई उनका पीछा कर रहा था। स्नेहा बार-बार पलट कर पीछे देखती थी पर उसे कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों ने आइसक्रीम खाई और वापस लौटने का निश्चय किया। उस समय थोड़ा लेट हो गया था इसलिए स्नेहा ने वही एक होटल में रात को रुकने का निश्चय किया।
जब वह लोग वापस जाने के लिए गाड़ी के पास पहुंचे... तो गाड़ी पर एक चिट रखी थी।
"जहां से आ रही हो... वहां वापस मत जाना…!!"
स्नेहा ने वह चिट उठा ली और उसे देख कर थोड़ा सा टेंशन में आ गई। पीहू ने पूछा, "बूईईई इस चिट में क्या है…?"
तो स्नेहा ने पीहू को मना कर दिया...
"कुछ नहीं बेटा…!!" और उस चिट को वहीं फेंक कर होटल में चली गई। उन्होंने एक होटल में चेक- इन किया और रात भर के लिए एक कमरा ले लिया। कमरे में पहुंचकर स्नेहा और पीहू दोनों थके होने के कारण जल्दी ही सो गए। स्नेहा ने रात को फिर वही सपना दोबारा देखा।
जिसमें स्नेहा बलि यूथ पर पड़ी थी... एक धुंधला सा दिखने वाला व्यक्ति... स्नेहा की बलि देने वाला था।
स्नेहा घबराकर उठ बैठी स्नेहा ने पानी पिया और वापस बेड पर जाकर लेट गई। थोड़ी देर बाद स्नेहा की आंख फिर से लग गई थी।
अबकी बार स्नेहा ने कुछ फुसफुसाने की आवाज सुनी। स्नेहा उस आवाज को सुनकर सम्मोहित ही हो गई थी। स्नेहा उस आवाज के पीछे-पीछे चल दी।
स्नेहा ने सबसे पहले अपने कमरे का दरवाजा खोला फिर कॉरिडोर से होते हुए... नीचे रिसेप्शन पर पहुंची। वहां कोई भी नहीं था... उस समय रात के 2:30 बज रहे थे।
स्नेहा उस आवाज के पीछे पीछे मंत्रमुग्ध सी चली जा रही थी। थोड़ी दूर पर जाने पर सामने से एक तांत्रिक जैसा दिखने वाला व्यक्ति आकर खड़ा हो गया। उसने स्नेहा के चेहरे पर कुछ छीटें मारे... उससे स्नेहा को अचानक से होश आ गया।
स्नेहा ने उस आदमी को ऊपर से नीचे की तरफ देखा। देखने में वह आदमी लगभग पचास पचपन साल का दिख रहा था। सांवला रंग, गले में बहुत सी रुद्राक्ष और स्फटिक की मालाएं पहनी हुई थी। बांह पर त्रिपुंड बने हुए थे... माथे पर भी एक बड़ा सा त्रिपुंड बना हुआ था और उसके बीचो बीच एक लाल रंग की बड़ी सी बिंदी लगी हुई थी। उसके बाल बहुत ही ज्यादा बिखरे हुए थे और काले रंग की धोती पहनी हुई थी। एक हाथ में एक त्रिशूल था... जिस पर भी कुछ रुद्राक्ष की मालाएं लटक रही थी। स्नेहा उसे मंत्रमुग्ध देखे जा रही थी।
फिर स्नेहा ने अचानक उससे पूछा, "क्या हो रहा था... मैं इस समय यहां क्या कर रही थी…?"
स्नेहा ने थोड़ा रुक कर फिर उससे फिर पूछा, "आप कौन हो... और यहां क्या कर रहे हो…?"
वह व्यक्ति कुछ देर स्नेहा को देखकर मुस्कुराता रहा…
फिर कुछ देर बाद कहने लगा, "मेरा नाम नीलांजन है। मैं उसी पहाड़ी पर अपनी साधना में लगा रहता हूं... जिस पहाड़ी पर तुमने अपने तीन रिश्तेदारों की हत्या की थी।"
यह सुनकर स्नेहा एक पल के लिए अचंभित रह गई... उसने उस व्यक्ति से पूछा, "क्या... क्या कह रहे हैं आप... और आपको यह सब किसने बताया…??"
तो उस आदमी ने हंसते हुए कहा, "मुझे बताने की क्या आवश्यकता है... मैं सब कुछ स्वयं जानता हूं और यह भी कि अभी तुम कहां जा रही हो…!! माना की तुमसे कृत्या ने मन की गति से कहीं भी आने-जाने की शक्ति छीन ली... पर फिर भी रत्नमंजरी की बहुत सारी शक्तियां अभी भी तुम्हारे पास है। तुम्हें यह समझना होगा कि अभी जहां तुम जा रही थी... अगर तुम वहां पहुंच जाती तो कितना बड़ा अनर्थ हो सकता था?"
स्नेहा अचंभित होकर उस तांत्रिक की बातें सुन रही थी। स्नेहा ने पूछा, "आप सब को मेरे बारे में इतनी जानकारी कैसे हैं?? पहले इसी तरह की एक परिस्थिति में मुझे अच्युतानंद जी मिले और अब आप…?? आप लोग मुझसे चाहते क्या हो…??"
नीलांजन ने कहा, "मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता... जो भी चाहता है... वह चाहता है…!!"
स्नेहा ने पूछा, "वह कौन??"
नीलांजन ने कहा, "जब सही समय आएगा तो तुम्हें सब कुछ अपने आप पता चल जाएगा... फिलहाल तुम्हें यहीं रहने की आवश्यकता है। शीघ्र ही तुम्हारे प्राणों पर एक बहुत ही बड़ा संकट आने वाला है। वैसे तो तुम बहुत सारी तांत्रिक क्रियाएं कर चुकी हो... पर फिर भी वह सारी शक्तियां तुम्हें प्रयोग करना नहीं आता। तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि... अगर कभी तुम आज जैसी परिस्थिति में फंस जाओ तो तुम्हें क्या करना चाहिए??"
स्नेहा बस आश्चर्यचकित होकर नीलांजन को देख रही थी। नीलांजन ने आगे बढ़कर एक धागा स्नेहा की कलाई में बांध दिया... और कहा, "स्नेहा प्रयास करना कि यह धागा तुम्हारे हाथ से ना निकले और तुम किसी भी श्मशान या उसके जैसी जगह नहीं जाओ…!!"
स्नेहा ने उनसे पूछा, "क्यों नहीं जाऊं... मेरे गुरुदेव अच्युतानंद जी ने मुझे वहां रहने के लिए आमंत्रित किया है... मैं बस आज पीहू को वहां रहने के लिए मना नहीं पाई... कल पीहू को मना कर हम लोग वहां रहने चले जाएंगे।"
अचानक नीलांजन के चेहरे के भाव बदल गए थे। उस ने क्रोधित होकर कहा, "तुम जानती भी हो... सभी तांत्रिकों को तुम में इतनी दिलचस्पी क्यों है…??"
स्नेहा ने मूर्खों की तरह कहा, "नहीं…!!!"
तब नीलांजन ने कहा, "तुम्हारा जन्म एक विशेष प्रयोजन के लिए हुआ है... और जिस समय तुम्हारा जन्म हुआ... उस समय एक विशेष नक्षत्र था। जिस में जन्मे बच्चे की बलि देने पर... मनुष्य देवतुल्य शक्तियां प्राप्त कर सकता है। तुमने कभी सोचा कि... तुम कहां तो एक सामान्य लड़की थी। और पिछले तीन ही महीनों में तुमने बहुत सी तांत्रिक क्रियाऐं सीख ली... तुम्हें रत्नमंजरी की बहुत सी शक्तियां कैसे मिली... और स्वयं मां कृत्या ने तुम्हें वरदान दिया है... कभी सोचा कि यह सब तुम्हारे साथ ही क्यों हो रहा है?? क्यों तुम्हारे परिवार की इतनी बेरहमी से हत्या आत्मानंद ने की??? और क्यों अच्युतानंद तुम्हारी इतनी सहायता कर रहा है... और सबसे बड़ी बात आत्मानंद इतना बड़ा तांत्रिक होते हुए भी तुम्हारे एक ही प्रहार से उसकी मृत्यु क्यों हो गई…???"
स्नेहा उन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने लगी… और उनके बारे में ही सोचने लगी…!!
कुछ देर बाद जब स्नेहा को होश आया... तो स्नेहा ने यहां वहां देखा… वह एक सुनसान रास्ते पर खड़ी थी।
थोड़ी देर पहले जिस नीलांजन से वह बात कर रही थी... वह भी अब वहां नहीं था... स्नेहा समझ नहीं पा रही थी... यह सब हो क्या रहा था??
स्नेहा का दिमाग काम करना बंद कर चुका था। स्नेहा वहां से चुपचाप वापस होटल में आ गई... होटल की रिसेप्शनिस्ट ने स्नेहा से पूछा, "मैडम कोई प्रॉब्लम... आप ऐसे अचानक होटल से बाहर क्यों चली गई थी?? पूरा स्टाफ आपको बुला रहा था... रोक रहा था... पर आप बिना किसी की बात सुने... उस छोटी बच्ची को वही रूम में सोता छोड़कर चली गई... वह छोटी बच्ची आपको वहां ना पाकर बहुत ही ज्यादा रो रही थी। बड़ी ही मुश्किल से उसे वापस सुलाया है... प्लीज मैडम आप उसे जाकर देख लीजिए।"
स्नेहा ने कहा, "ओह सॉरी...एक अर्जेंट कॉल आ गया था... मेरे किसी फ्रेंड का एक्सीडेंट हो गया था। तो मुझे ध्यान नहीं रहा इन सब का... आई एम सॉरी…!!"
ऐसा कहकर स्नेहा वापस अपने कमरे में चली गई। कमरे में बैठकर स्नेहा नीलांजन के प्रश्नों के बारे में ही सोच रही थी। स्नेहा ने सोचा... "जो भी नीलांजन ने कहा है... वह बात बिल्कुल ठीक है... पर इन सब प्रश्नों के उत्तर मुझे मिलेंगे कहां…?? नीलांजन ने मुझे किसी भी श्मशान में जाने से मना किया है।"
उस समय स्नेहा का दिमाग बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा था। वह यह सोच भी नहीं पा रही थी कि उसके पास जो तांत्रिक सिद्धियां थी उनका प्रयोग कर इस बारे में बहुत आसानी से स्नेहा पता लगा सकती थी। स्नेहा सोचते सोचते ही सो गई।
सपने में स्नेहा को रत्नमंजरी दिखाई दी… रत्नमंजरी बहुत ही ज्यादा दुखी और त्रस्त दिखाई दे रही थी... रत्नमंजरी ने स्नेहा से कहा, "स्नेहा... हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है... मुझे मुक्ति नहीं मिली... मुझे किसी ने अपनी तंत्र शक्ति से बांध लिया है... वह जानता है कि मैंने तुम्हें बहुत ही शक्तियां दी थी और बहुत सी शक्तियां जो तुम्हें नहीं दे सकती थी... वह सब शक्तियां उसे चाहिए…!!!
ऐसा सुनकर स्नेहा की आंखें हड़बड़ा कर खुल गई। स्नेहा ने पीहू की तरफ देखा... तो पीहू शांति से सो रही थी। स्नेहा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उसे इतना अजीब सब कुछ क्यों पता चल रहा था। चाहे वह सपना हो या फिर नीलांजन…!!
स्नेहा ने मन ही मन मां भगवती का ध्यान किया और फिर से सो गई।
थोड़ी देर बाद स्नेहा के चेहरे पर बहुत तेज धूप आ रही थी। पीहू उसके बगल में बैठी उसे जगा रही थी पीहू कह रही थी, "बूईईई... उठो बूईईई…!! कितनी देर तक सोती हो आप। पता है… टेन बज गए हैं।"
स्नेहा का उठने का मन नहीं कर रहा था... उसने पीहू को भी अपने पास में लिटाते हुए कहा, "कोई ना बिट्टू... सो जाओ थोड़ी देर... हम जल्दी ही उठ जाएंगे। अभी थोड़ी देर और सोने दो ना…!!"
तभी पीहू ने कहा, "नहीं बूईईई मुझे भूख लगी है।"
पीहू को भूखा जानकर स्नेहा फटाफट से उठ गई। स्नेहा ने पूछा, "क्या खाना है बिट्टू।"
पीहू ने उत्साहित होकर कहा, "चॉकलेट केक…!!"
स्नेहा ने पीहू के सर पर हाथ मारते हुए कहा, "पीहू बेटा... यह कौन सा टाइम है... चॉकलेट केक खाने का। सुबह-सुबह ब्रेड जाम खाते हैं... ब्रेड बटर या फिर कॉर्नफ्लेक्स खाते हैं। चॉकलेट केक नहीं खाते।"
पीहू ने मुंह बना लिया तो स्नेहा ने हंसते हुए... दो चीज सैंडविच, अपने लिए चाय और पीहू के लिए चॉकलेट शेक ऑर्डर किया। चॉकलेट शेक का सुनकर पीहू बहुत ज्यादा खुश हो गई थी।
थोड़ी देर बाद वह दोनों नाश्ता करके तैयार हो गए और होटल से चेक आउट करके अपने घर के लिए निकल गए। रास्ते में अचानक पीहू ने जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया... जिसके कारण स्नेहा का ध्यान चूका और उनकी गाड़ी सामने के एक पेड़ से टकरा गई। पेड़ से टकराने की वजह से स्नेहा और पीहू दोनों को ही बहुत ज्यादा चोटें आई थी। स्नेहा पीहू को ऐसे देख कर बहुत ही डर गई थी। तभी सामने से स्नेहा को नीलांजन आते हुए दिखाई दिए।
उन्होंने पीहू और स्नेहा को गाड़ी से बाहर निकाला और एक तरफ लेकर चल दिए। थोड़ी देर बाद वह लोग उसी पहाड़ी के सामने थे... जिस पर स्नेहा ने उन सब की बेरहमी से हत्या की थी। स्नेहा को वह सब कुछ याद आ गया था। तब नीलांजन ने मुस्कुराते हुए स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा, "चिंता मत करो उन सब की आत्माएं तुम्हें नहीं दिखाई देंगी... उन लोगों की मुक्ति की पूजा मैंने करवा दी है।"
ऐसा कहकर नीलांजन उन दोनों को लेकर पहाड़ी के ऊपर बनी अपनी झोपड़ी में चला गया। पीहू अभी भी बेहोश थी। नीलांजन पीहू को वही लेटा कर बाहर निकल गए।
थोड़ी देर बाद कुछ जड़ी बूटियां और कुछ फल लेकर लौटे। उन्होंने स्नेहा के सर पर पट्टी की और कुछ जड़ी बूटियों का लेप पीहू को लगाया।
स्नेहा से कहा, "तुम चिंता ना करो पीहू बिल्कुल ठीक है... और शीघ्र ही होश में भी आ जाएगी... तुम तब तक यह फल खाओ और आराम करो।"
स्नेहा ने नीलांजन से कहा, "मुझे यह सब नहीं खाना है... मुझे केवल आपसे उन प्रश्नों के उत्तर चाहिए जो आपने मुझ से रात को कहे थे…!!"
नीलांजन मुस्कुरा दिए और कुछ देर रुक कर उन्होंने कहना शुरू किया,
"स्नेहा यह सब तब शुरू हुआ जब तुम्हारे पिता को वह पुरस्कार मिलने वाला था। जब यह बात विराज को पता चली... तब विराज ने आत्मानंद से मिलने का निश्चय किया... आत्मानंद ने विराज से तुम्हारे घर वालों की कुछ वस्तुएं मंगवाई थी। वह वस्तुएं विराज तो ला नहीं सकता था... तो उसने तुम्हारे परिवार के बारे में जानकारी निकालना शुरू कर दिया। तब उसे पता चला कि तुम्हारे चाचा और बुआ... तुम्हारे पिताजी की संपत्ति पर नजर गड़ाए बैठे थे और उन्हें मौका नहीं मिल रहा था... उस संपत्ति को छीनने का। तब विराज उनके पास एक प्रस्ताव लेकर पहुंचा। विराज ने तुम्हारे परिवार की वस्तुओं के बदले में सारी संपत्ति उनके नाम करने की बात कही... तब तुम्हारे चाचा ने उससे पूछा... कि वह यह सब कैसे करेगा... तभी विराज ने कहा की तुम्हारे पिता उसके व्यापारिक प्रतिद्वंदी हैं... जिनके कारण उसे हमेशा उसके व्यापार में हानि उठानी पड़ती थी... इसलिए उसने एक तांत्रिक से मिलकर उन्हें रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचा था। उसके लिए परिवार के लोगों की एक एक वस्तु चाहिए थी... जो तुम्हारे बुआ और चाचा उन्हें लाकर दे सकते थे। उसके बदले में विराज ने उन्हें तुम्हारे पिताजी की पूरी संपत्ति दिलवाने का वादा किया था। तुम्हारे चाचा और बुआ ने शीघ्र ही तुम्हारे घर वालों की वस्तुएं चुरा कर विराज को दे दी थी…
विराज ने जब वह चीजें आत्मानंद को दी... तो उसे साथ में बताया था कि तुम्हारी कोई वस्तु उसे नहीं मिली थी। तब आत्मानंद ने विराज से बात करके तुम्हारे बारे में पता लगाया। तभी उसे पता चला कि तुम्हारा जन्म उस विशेष नक्षत्र में हुआ था... जिस में जन्मे बच्चे की बलि देने पर सभी आयामों के द्वार खोलने की क्षमता... किसी भी तांत्रिकों मिल सकती थी। उस क्षमता का प्रयोग वह लोगों की भलाई के लिए भी कर सकता था और समस्त मानव जाति को अस्तित्व विहीन करने के लिए भी…
आत्मानंद ने दूसरा विकल्प चुना था... आत्मानंद को यह पता था कि अगर तुम्हारे परिवार की हत्या हो जाती है... तो तुम्हें यहां वापस आना ही होगा और फिर वह तुम्हारी बलि देकर उन सभी शक्तियों का स्वामी बन जाता। पर साथ ही साथ उसे रत्नमंजरी के बारे में भी पता चल गया था... तब उसने पहले रत्नमंजरी की शक्तियों को अपने बस में करने की कोशिश की। पर ऐन मौके पर रत्नमंजरी तुमसे मिली और तुमने उसकी मुक्ति के लिए पूजा करवा दी।"
स्नेहा ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा, "रत्नमंजरी... वह मुझे कल सपने में दिखाई दी थी... कह रही थी कि उनकी मुक्ति नहीं हुई है…!!"
नीलांजन ने कहा, "वह सब एक माया थी... ताकि तुम इस बारे में पता करने अच्युतानंद के पास जाओ और श्मशान में जाते ही तुम्हारे हाथ में बंधा यह रक्षा सूत्र अपना काम करना बंद कर दें…!!"
स्नेहा ने कहा, "वह कैसे…??"
तब नीलांजन ने कहा, "उसके लिए तो मैं आगे की कथा सुननी होगी…!!"
"जब तुम अपने परिवार के अंतिम संस्कार के लिए और श्मशान में गई... तभी अच्युतानंद को भी तुम्हारे बारे में जानकारी प्राप्त हुई... उस समय वह भी तुम्हारी बलि देकर संसार का सबसे शक्तिशाली तांत्रिक बनना चाहता था। उसने तुम्हारी सहायता करने का झूठा ढोंग किया और तुम उसके ढोंग में फंस गई। अच्युतानंद को अपने आप को अच्छा साबित करने के लिए रत्नमंजरी की मुक्ति की पूजा करवानी पड़ी। ताकि वह तुम्हारी नजरों में भला आदमी बन सके और तुम उस पर आंखें बंद कर विश्वास कर लो। अच्युतानंद ने तुम्हें बहुत सारी साधनाऐं इसलिए ही करवाई ताकि तुम्हारी बलि देने पर वह ज्यादा से ज्यादा शक्तियां अर्जित कर पाए।"
यह सब सुनते ही स्नेहा की आंखों से आंसू बह निकले। वह इस समय कुछ भी कहने की हालत में नहीं थी। स्नेहा को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें??
नीलांजन ने स्नेहा को धैर्य रखने के लिए कहा और उसे कुछ देर आराम करने के लिए कह कर बाहर चले गए।
स्नेहा को अच्युतानंद पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। स्नेहा सोच रही थी कि उसने गलत आदमी को अपना गुरु बना लिया। वह गुस्से में पहाड़ी पर ही इधर-उधर घूम रही थी। जब उसे कुछ और नहीं सूझा तो वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गई। वहां बैठकर उसने देखा कि एक गिलहरी को एक बाज़ खाने की कोशिश कर रहा था। स्नेहा उसे बचाने की कोशिश करने लगी। जब स्नेहा ने उस गिलहरी को बचा लिया तब उसका दिमाग और मन थोड़ा शांत हुआ... पर जब वह बाज़ से गिलहरी को बचा रही थी... तब उसके हाथ में बंधा रक्षा सूत्र टूट कर वहीं गिर गया। जिसका ध्यान स्नेहा को नहीं रहा था।
अब स्नेहा का मन थोड़ा शांत हो गया था... इसलिए वह वापस झोपड़ी में जाकर पीहू के पास लेट गई और पीहू का सिर सहलाते हुए सोचने लगी कि उसके कारण पीहू को पता नहीं क्या क्या झेलना पड़ रहा था। उसने सोचा कि अब उसके कारण पीहू को कोई भी दुख नहीं झेलना होगा।
ऐसा सोचते सोचते स्नेहा सो गई... जब रात के 11:00 बजे तब स्नेहा को ऐसा लगा कि कोई उसे आवाज दे रहा था। स्नेहा उसी आवाज के पीछे मंत्रमुग्ध सी बढ़ती जा रही थी।
जल्दी ही स्नेहा ने वह पहाड़ी पार कर ली और उस नदी के किनारे पहुंच गई जहां अच्युतानंद वाला श्मशान था। स्नेहा सम्मोहित सी श्मशान की तरफ बढ़ती जा रही थी। जल्दी ही स्नेहा उस श्मशान में पहुंच गई जहां उसने साधना की थी।
अच्युतानंद वहीं बैठ कर स्नेहा का इंतजार कर रहा था। स्नेहा को वहां देखते ही उसकी आंखें शैतानी से चमक उठी थी। उसने स्नेहा से कहा, "आज यहां बलि पूजा होने वाली है... तो तुम्हें एक हवन कुंड लगाना है... उसके बाद यहीं आसपास धरती पर कुछ विशेष यंत्रों का निर्माण करना है... फिर सारी हवन सामग्री, मदिरा और पांच प्रकार के मुंडो की आवश्यकता होगी। उनकी भी व्यवस्था तुम्हें शीघ्र अति शीघ्र करनी है... उसके बाद एक कछुआ लाना होगा और उसके पीठ वाले कवच को काटकर अलग करके उसके अंगों को काटकर उसके ही खप्पर में रखना होगा। यह कार्य तुम्हें शीघ्र अति शीघ्र पूरा करना है…!!"
अच्युतानंद की आज्ञा पाकर स्नेहा ने वह सारे कार्य शीघ्र अति शीघ्र पूरे कर दिए। उसके बाद अच्युतानंद ने अपने आसन पर बैठकर मंत्र जाप करना शुरू कर दिया। फिर उसने स्नेहा से कहकर बिल्ली के नरमुंड पर एक दीपक प्रज्वलित करवाया... उसके बाद उसने स्नेहा से कहा, "अपने हाथों को पीछे करके बांध लो…!!"
स्नेहा यंत्र चलित सी उसके आदेशों का पालन कर रही थी। स्नेहा के हाथ अब बंधे हुए थे और वह बलि यूथ से कुछ दूरी पर बैठी थी। थोड़ी देर स्नेहा वैसे ही बैठी रही और अच्युतानंद वही हवन कुंड में मंत्र जाप करते हुए आहुतियां दे रहा था। सामने रखे खड्ग पर उसने अपने रक्त से कुछ विशेष यंत्र बनाएं... और अक्षत, पुष्प अर्पित किए... उसके बाद कछुए के मांस के कुछ टुकड़े खड्ग को अर्पित कर दिए।
अच्युतानंद ने पुनः मंत्र जाप करना शुरू कर दिया। जब अच्युतानंद का मंत्र जाप चरम पर पहुंचा... तो स्नेहा को लगा की पीहू उसे पुकार रही थी... पीहू की पुकार सुनते ही स्नेहा का सम्मोहन टूट गया।
स्नेहा ने आसपास देखा तो अपने आप को एक श्मशान में पाया। आसपास देखने पर स्नेहा को अपना स्वप्न याद आ गया था। वही स्वप्न जिसमें स्नेहा ऐसे ही बंधी हुई थी... और सामने एक व्यक्ति हवन कुंड के सामने बैठा हवन कुंड में आहुतियां दे रहा था।
स्नेहा ने गौर से देखा तो उसे अच्युतानंद सामने बैठा मंत्र जाप करता दिखाई दिया। स्नेहा ने अच्युतानंद से पूछा, "गुरुदेव... आप यह क्या कर रहे हैं…??"
अच्युतानंद ने हंसते हुए कहा, "यह मैं बलि पूजा कर रहा हूं ताकि मैं सर्वशक्तिमान हो जाऊं… यह बलि तुम्हारी ही इच्छा से दे सकता था... और वह इच्छा तुमने कल आकर मेरे सामने व्यक्त की थी।"
स्नेहा उसे अचंभित हो देख रही थी कि अच्युतानंद ने कहा, "तुमने ही तो कहा था... कि तुम्हारा बदला अब पूरा हो गया है... और तुम मेरी इच्छा अनुसार कार्य करने के लिए तैयार हो। मेरी इच्छा के अनुसार मैं तुम्हारी बलि देना चाहता था... बस मुझे मिल गई तुम्हारी स्वीकृति। अब मैं शीघ्र ही तुम्हारी बलि देकर संसार का सबसे शक्तिशाली मनुष्य बन जाऊंगा... ऐसा मनुष्य जो प्रत्येक आयामों में विचरण कर सके…. वहां से किसी भी चीज को यहां लाने की... और यहां की किसी भी चीज को वहां पहुंचाने की... क्षमता मुझ में तुम्हारी बलि देने से आ जाएगी…!!"
ऐसा सुनकर स्नेहा ने मंत्र जाप करना आरंभ किया... अच्युतानंद ने एक भयंकर अट्टहास किया... और कहा, "तुम भूल रही हो स्नेहा... कि तुमने अपनी बलि देने की स्वीकृति स्वयं दी है... तो तुम्हारी समस्त सिद्धियां... अब तुम्हारी सहायता नहीं करेंगी। जब तक की मेरा अंत ना हो जाए... क्योंकि यह सब तुम्हारी सहमति से हो रहा है... तो तुम्हारी सिद्धियां भी अब तुम्हारा किसी भी तरह से साथ देने में असक्षम है…!!"
स्नेहा ने एक पल के लिए आंखें बंद कर पीहू को याद किया... तब तक अच्युतानंद ने स्नेहा को उठाकर बलि यूथ पर डाल दिया था। उसके बाद अच्युतानंद ने खड्ग उठाकर स्नेहा पर एक प्रहार किया जैसे ही खड्ग स्नेहा को लगने वाला था...
उसी समय नीलांजन वहां आ गए... और उन्होंने अपने त्रिशूल से एक शक्ति प्रहार उस खड्ग पर किया... जिससे अच्युतानंद उस खड्ग के समेत दूर जाकर गिरा। स्नेहा ने जब नीलांजन को वहां अपने सहायता करते देखा... तो उसके नेत्रों से जलधार बह निकली।
नीलांजन में एक मंत्र जाप किया... तो स्नेहा की रस्सियां खुल गई थी। अब स्नेहा अच्युतानंद के सामने खड़ी थी... स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव आपको तो पता ही है कि मैंने अपने दुश्मनों की हत्या कैसे की है और अब आपने मेरी बलि देने का प्रयास करके स्वयं को भी मेरा शत्रु बना लिया है…!! स्नेहा अपने शत्रुओं का कोई भी कर्जा नहीं रखती है... मैं शीघ्र ही आपका भी यह कर्जा सूत समेत चुका दूंगी।"
ऐसा कहकर स्नेहा ने अच्युतानंद को उसके गले में पड़े एक काले रंग की दुशाला से पकड़कर उठा लिया। अब स्नेहा ने अच्युतानंद को उठाकर उसी बलि यूथ पर पटक दिया था… जहां थोड़ी देर पहले स्नेहा पडी थी।
स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव... उन सिद्धियों पर आपका भी कोई हक नहीं है… वो सिद्धियां मैंने आप ही के सानिध्य में सीखी है...तो आपसे प्रतिशोध लेने में मैं उन शक्तियों का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करूंगी। आप की हत्या तो मैं अपने इन्हीं हाथों से करूंगी। हे प्रभु... मुझे गुरु हत्या के पाप से मुक्त कीजिएगा…!!" स्नेहा ने आसमान की तरफ देखते हुए हाथ जोड़कर कहा।
इस पर नीलांजन ने कहा, "स्नेहा यह तुम्हारा गुरु ही नहीं... एक बहुत ही दुष्ट व्यक्ति भी है... जिसने अपने निजी स्वार्थ के लिए तुम्हारी भावनाओं के साथ खेला... और तुम्हें अपने तरीके से अपने फायदे के लिए उपयोग किया... इसलिए तुम पर गुरु हत्या का पाप नहीं लगेगा।"
स्नेहा ने नीलांजन को नमस्कार किया और वापस अच्युतानंद की तरफ मुड़ गई... अच्युतानंद की तरफ मुड़ कर स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव…!! इतनी शीघ्रता से मैं आपको नहीं मारूंगी... आपको भी कुछ समय जीवित रहने का अवसर देना होगा।" अच्युतानंद स्नेहा से छूटने की कोशिश कर रहा था पर नीलांजन के कारण छूट नहीं पा रहा था।
ऐसा कहकर स्नेहा ने अच्युतानंद के शरीर से खाल को ऐसे अलग करना शुरू कर दिया... जैसे लोग प्याज के छिलके अलग करते हैं। स्नेहा ने अच्युतानंद के चेहरे से सबसे पहले उसकी खाल हटायी... उसके बाद उसकी आंखें निकाल ली...
आसपास के माहौल में अच्युतानंद की चीखें गूंज रही थी... नीलांजन वही सामने खड़े होकर स्नेहा को यह सब करते देख मुस्कुरा रहे थे। स्नेहा ने उसके बाद उनके शरीर से खाल हटाना शुरू कर दिया... जैसे जैसे खाल अलग होती जा रही थी। वैसे वैसे अच्युतानंद की चीखें बढ़ती जा रही थी... थोड़ी देर बाद स्नेहा ने खाल अलग करना बंद कर दिया।
अब उसने अच्युतानंद के शरीर पर थोड़ी थोड़ी दूर पर चीरा लगाना शुरू कर दिया... चीरे भी ऐसे लगाए थे कि उसके शरीर के सभी अंग बाहर से ही दिखने लगे थे।
स्नेहा ने अच्युतानंद के पेट को फाड़ डाला और उसकी आंतडियां धीरे-धीरे करके बाहर खींचने लगी... जब आंतडियां बाहर खींच रही थी... तब अच्युतानंद बहुत ही जोरों से चिल्ला रहा था। स्नेहा ने उन आंतडियो की माला बनाकर अपने गले में धारण कर ली। अच्युतानंद की चीखें किसी पत्थर को भी पिघलाने में सक्षम थी… पर वह चीखें स्नेहा के ह्रदय को पिघलाने के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं थी।
क्योंकि अच्युतानंद ने स्नेहा के साथ धोखा किया था... अगर वह शुरू में ही स्नेहा को बता देता कि वह स्नेहा की बलि देना चाहता था। तो शायद स्नेहा इस बात के लिए खुशी-खुशी तैयार हो जाती... पर उसने छल से स्नेहा का फायदा उठाने की कोशिश की थी। इसलिए स्नेहा इस तरह की बर्बरता दिखाने के लिए मजबूर हो गई थी।
अच्युतानंद उस समय मरा नहीं था... उसमें अभी भी प्राण शेष थे... और साथ ही में शेष थी स्नेहा के मन में प्रतिशोध की ज्वाला।
स्नेहा ने अच्युतानंद को उठाकर उसी के हवन कुंड की अग्नि में फेंक दिया… जहां अच्युतानंद उसकी बलि देने के लिए मंत्र जाप कर रहा था। उसकी चीखें और भी तेजी से वहां के माहौल में फैल गई थी। उसके शरीर के जलते ही उसके शरीर में से कई आत्माएं बाहर निकल कर स्नेहा के सामने आकर खड़ी हो गई…
उनमें से एक आत्मा ने हाथ जोड़कर स्नेहा से कहा, "देवी…!!! आप के कारण इस दुष्ट के शरीर से हमें मुक्ति मिली है... इसने कई तपस्या और तंत्र साधना करके हमारी आत्माओं को अपने शरीर में धारण किया था... हमें इसकी आज्ञा से कई ऐसे कार्य करने पड़ते थे... जो करना बिल्कुल भी उचित नहीं था।" ऐसा कहकर उस आत्मा ने स्नेहा को बहुत ही धन्यवाद दिया।
थोड़ी ही देर बाद रत्नमंजरी भी आत्मानंद के शरीर से मुक्त हुई... वह भी स्नेहा को बहुत ही ज्यादा आभार व्यक्त कर रही थी। उन सभी आत्माओं ने एक साथ मिलकर स्नेहा से कहा, "आप ही के प्रयासों से आज हम इस दुष्ट से मुक्त हुए हैं... इसलिए हम सब मिलकर आपको कुछ भेंट करना चाहते हैं।"
ऐसा कहकर उन सभी आत्माओं ने एक दिव्य अंगूठी स्नेहा को भेंट की... और कहा, "जब भी आप किसी संकट में हो... उस समय आप केवल इस अंगूठी को देखकर हम में से किसी को भी याद कर लीजिएगा... हम तत्क्षण आपकी सहायता के लिए वहां उपस्थित होंगे। चाहे वह संसार का कोई भी कोना हो... या फिर समय चक्र का कोई भी भाग... या फिर कोई भी आयाम हो। हम उसी क्षण आपकी सहायता के लिए पहुंच जाएंगे।"
ऐसा कहते हुए उन सभी आत्माओं ने स्नेहा से विदा ली... स्नेहा नीलांजन की तरफ मुड़ गई।
नीलांजन ने मुस्कुराते हुए स्नेहा से कहा, "स्नेहा हम अपनी झोपड़ी में बैठकर बात करते हैं… पीहू भी वहां अकेली होगी। हमें जल्दी पीहू के पास पहुंचना चाहिए।"
नीलांजन ने कहा और आगे आगे चल दिए। स्नेहा भी जल्दी जल्दी नीलांजन के पीछे चल पड़ी। थोड़े समय में वो लोग नीलांजन की झोपड़ी के बाहर खड़े थे।
स्नेहा ने अंदर जाकर देखा तो पीहू बहुत ही मीठी नींद में सोई हुई थी। स्नेहा ने बाहर आकर नीलांजन से पूछा, "आप यह सब कुछ कैसे जानते हैं... आपको कैसे पता की अच्युतानंद आज मेरी बलि देना चाहता था और आपको कैसे पता चला कि उसका प्रयोजन क्या था…??"
नीलांजन मुस्कुरा दिये और कहने लगे, "स्नेहा अब तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं... तो तुम्हें इस बात से क्या अंतर पड़ता है कि मैं कौन हूं…??"
स्नेहा उनके चरणों में जाकर गिर पड़ी और विनती करने लगी, "कृप्या कर आप मुझे अपनी पहचान बताएं... अब संसार में किसी पर भी विश्वास करने की सामर्थ्य मुझ में नहीं बची है।"
ऐसा कहकर रोने लगी तब नीलांजन ने स्नेहा के सर पर नेहा भरा हाथ पर फेर कर कहा, "मैं हूं न्याय का देव... शनि…!! मुझे संसार में न्याय करना और न्याय की स्थापना करना दोनों ही कार्य अति प्रिय है। मैंने जब तुम्हारे साथ हुए अन्याय के बारे में जाना तो मुझे बहुत बुरा लगा और लगा कि मुझे इस समय आकर तुम्हारी सहायता करनी चाहिए। अन्यथा एक निर्दोष बालिका जो पहले ही अनाथ है... उसे और भी दुख उठाने पड़ेंगे और तुम्हें भी…!!"
ऐसा कहकर नीलांजन वहां से अंतर्ध्यान हो गए। स्नेहा वापस अपनी झोपड़ी में आकर लेट गई और पीहू को प्रेम से देखते हुए सो गई।
सुबह जल्दी ही स्नेहा की नींद खुली... उसने पीहू को जगाया और वह दोनों उस पहाड़ी से नीचे आ गए।
नीचे पहुंचकर स्नेहा ने पलटकर देखा तो वहां कोई भी पहाड़ी नहीं थी... स्नेहा ने वह सब देख कर शनि देव और महामाया मां महाकाली को मन ही मन प्रणाम किया... इतना सब होने के बाद स्नेहा का मन वहां रहने का नहीं था।
उसने जल्दी ही वह शहर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर वहीं वापस जाने का निश्चय कर लिया...जहां से वो तीन महीने पहले वापस आई थी।
थोड़ी ही देर बाद स्नेहा और पीहू एक ऐरोप्लेन में बैठे थे जो कुछ ही समय में टेक-ऑफ करने वाला था…