Chapter 129

Chapter 129

सुन मेरे हमसफ़र 122

Chapter

122





    निशी इस वक्त ऐसी जगह पर खड़ी थी जहां से पूरे वो शहर का नजारा देख सकती थी। निशी रात के अंधेरे में झिलमिलाते चमकते शहर को देख रही थी। इतने में अव्यांश ने पीछे से उसके कमर में हाथ डाला और उसके कंधे पर अपना चेहरा टिका कर बोला "बहुत खूबसूरत है ना?"


     अव्यांश की छुअन और उसकी नज़दीकियों से निशी अंदर तक सिहर गई। बड़ी मुश्किल से उसने अव्यांश की बातों का जवाब दिया "हां..... हां, बहुत खूबसूरत है।"


   निशी का जवाब सुनकर अव्यांश ने एक गहरी सांस ली और साथ में निशी को और भी कस कर अपनी बाहों में भर लिया। निशी का दिल उछल कर उसके हाथ में आने को तैयार था। घबराहट में उसने अपनी आंखें बंद कर ली और हकलाते हुए कहा "अव्यांश......!"


    अव्यांश ने उसे एक झटके से अपने सामने कर दिया। निशी की बालों की लटें उसके चेहरे पर बिखर गई। अव्यांश ने प्यार से उन्हें अपनी उंगलियों से उन्हें एक तरफ किया और उसके चेहरे को अपने करीब खींच लिया। उस रात जो मजबूरी में और निशी की बेहोशी में हुआ था, वो पूरे होशो हवास में करना चाहता था। अब तक उसने निशी को उस बारे में कुछ नहीं बताया था। अगर उसको पता चलता तो ना जाने कैसे रिएक्ट करती?


     अव्यांश के इतने करीब आने से निशी के दिल की धड़कने थोड़ी और तेज हो गई। इस सब में उसे कुछ गलत महसूस नहीं हो रहा था, लेकिन फिर भी एक हिचक उसके दिल में थी। निशी जानती थी कि अव्यांश के दिल में उसे पाने की चाहत है और निशी नहीं चाहती थी कि वह किसी और का हक छीने। उसने अव्यांश के सीने पर हाथ रखा और बोली "अव्यांश! तुम्हारी गर्लफ्रेंड का पता चला तो उसे अच्छा नहीं लगेगा।" 


    गर्लफ्रेंड की बात सुनकर अव्यांश का सारा मूड खराब हो गया। इस लम्हे में वो किसी और को इमेजिन भी नहीं करना चाहता था और यहां तो निशी उसकी गर्लफ्रेंड को बीच में ले आई, जो कभी थी ही नहीं। अव्यांश ने नाराज होकर कहा "अगर मेरी गर्लफ्रेंड का पता चल गया तो क्या? मैं अपनी पत्नी के साथ हूं और इतना जान लो, तुम्हारा मुझ पर किसी और से ज्यादा हक है। और मेरा भी तुम पर किसी और से भी ज्यादा हक है।"


   अव्यांश ने निशी के कमर को और जोर से पकड़ा और बोला "मैं चाहूं तो कभी भी अपना हक तुमसे छीन सकता हूं और तुम मुझे रोक नहीं सकती। लेकिन यह मेरी शराफत है कि मैं अभी तक अपनी हद में हूं। वैसे तुम्हे नही लगता, आज का दिन भी कुछ बुरा नहीं है। हम आज से ही अपनी मैरिड लाइफ शुरू कर सकते हैं।" अव्यांश ने निशी को एक झटके में अपनी गोद में उठा लिया और टेंट के अंदर ले गया।


      निशी बुरी तरह घबरा गई। उसने अव्यांश को समझाना शुरू किया "अव्यांश प्लीज! अभी नहीं। देखो, हम दोस्त है ना।" लेकिन अव्यांश वैसे ही उससे नाराज था। उसने एक नहीं सुनी और ले जाकर निशी को टेंट के अंदर पटक दिया। निशी घबराकर पीछे हटने को हुई लेकिन अव्यांश ने अपने कदम पीछे लिए और बाहर से टेंट का ज़िप लगाकर निकल गया।


    अव्यांश को ऐसे जाते देख निशी को लगा शायद वो उससे नाराज होकर उसे छोड़कर चला गया। निशी उठी और अव्यांश को आवाज लगाते हुए टेंट के बाहर निकलकर भागी। "अव्यांश रुक जाओ मुझे छोड़कर मत जाओ।"


     निशी ने घबराते हुए इधर उधर देखा तो पाया उसकी गाड़ी वहीं पर खड़ी थी और अव्यांश उसी जगह खड़ा था जहां पर कुछ देर पहले वह खड़ी थी। निशी की जान में जान आई और उसने अव्यांश के पीछे खड़े होकर कहा "सॉरी! लेकिन मैं कभी तुम्हें हर्ट नहीं करना चाहती थी।"


     अव्यांश उसकी तरफ पलटा और आंखों में आंखें डाल कर बोला "तुम मुझे हर्ट करना नहीं चाहती? लेकिन हर बार तुम मुझे हर्ट कर देती हो। पति हूं मैं तुम्हारा! तुम्हारे साथ की जरूरत है मुझे। पूरी जिंदगी हमें साथ रहना है, इस बात को तुम एक्सेप्ट कर क्यों नहीं लेती?"


     निशी हिचकते हुए बोली "सॉरी! लेकिन तुम्हारी गर्लफ्रेंड........."


    अब अव्यांश की बर्दास्त से बाहर था। उसने चिल्लाते हुए कहा, "गर्लफ्रेंड! गर्लफ्रेंड!! गर्लफ्रेंड!!! थक चुका हूं मैं इस शब्द से। अरे कोई गर्लफ्रेंड नहीं है मेरी! कोई लड़की नहीं है मेरी लाइफ में, सिवा तुम्हारे। झूठ बोला था मैंने तुमसे ताकि तुम नॉर्मल हो सको। हमारे बीच कुछ भी अजीब सा सिचुएशन ना बने।"


     निशी यह सुनकर हैरान रह गई। उसने सवाल किया "मतलब तुमने मुझसे झूठ बोला?"


    अव्यांश उसके और करीब आया और कहा "हां! हां मैंने तुमसे झूठ बोला। तुम्हें यह एहसास दिलाया कि जिस तरह ये शादी तुम्हारे लिए मजबूरी थी, मेरे साथ भी वही हुआ। क्योंकि मैं नहीं चाहता था, वह 2 दिन जिस तरह तुमने चुपचाप गुजारे थे, किसी बेजान पुतले की तरह..........  मैं उस बेजान पुतले को अपने घर में नहीं देख सकता था। अगर तुम्हें फिर से पहले जैसा करने के लिए मुझे झूठ बोलना पड़ता तो मुझे वह भी मंजूर था और वही मैंने किया! और इसके लिए मुझे कोई पछतावा नहीं है। अब तुम डिसाइड करो, तुम्हें क्या करना है। इस रिश्ते में आखिरी फैसला तुम्हारा होगा। मैं हर हाल में तुम्हारे साथ खड़ा हूं।"


    निशी को इस सबकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। उसने नजरे नीचे की और सुबकते हुए कहा "अव्यांश! मुझे थोड़ा सा टाइम चाहिए। जो कुछ हुआ, तुम जानते हो। उस सब से बाहर निकलने में मुझे थोड़ा वक्त लगेगा। प्लीज, बस थोड़ा सा चाहती हूं मैं तुमसे।"


    अंशु ने आगे बढ़कर निशी को गले लगा लिया और बोला "तुम्हें जितना टाइम चाहिए तुम ले सकती हो, मुझे कोई जल्दी नहीं है। हमारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है ।और एक बात तुम गांठ बांध लो, हम पति-पत्नी हैं, दोस्त नहीं।" अंशु ने धीरे से उसके कान पर अपने दांत गड़ा दिए। निशी के पूरे शरीर में झुनझुनी सी दौड़ गई।




*****





    होलिका दहन को सभी ने एंजॉय किया। शिवि और पार्थ एक दूसरे में उलझे हुए थे तो उसे देखकर कुणाल अंदर ही अंदर जलभून रहा था। कुहू कुणाल को सब से कहीं दूर ले जाना चाहती थी ताकि उसका अटेंशन पा सके। लेकिन कुणाल तो अपने दोस्त कार्तिक सिंघानिया के साथ चिपका हुआ था और उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था। शायद वो कुहू से ही बचने की कोशिश कर रहा था।


     कार्तिक सिंघानिया को देख सुहानी ब्लश कर रही थी और उससे बात करने का मौका ढूंढ रही थी। लेकिन काया उसे देख घबराई हुई सी इधर-उधर छुपने की कोशिश कर रही थी। लेकिन हर बार उसे लगता जैसे किसी की नजर उसी पर गड़ी हो।


     अपनी एक्साइटमेंट में सुहानी को ध्यान ही नहीं रहा कि उसे काया से उस इंसान का नाम जानना था जो काया के पीछे पागल था। इस सबके बीच काया का फोन दो-तीन बार और बजा। वो नंबर ऋषभ का ही था। काया उसे सेव नहीं करना चाहती थी और फोन को ऑफ नहीं कर सकती थी। उसने फोन साइलेंट पर किया और उसे सुहानी के कमरे में छोड़कर चली आई।


      बाहर निकलते हुए काया सीढ़ियों के पास किसी से टकरा गई। उसकी चीख निकल गई। काया लड़खड़ा कर सीढ़ियों से गिरने को हुई लेकिन किसी की मजबूत बाहों ने उसकी कलाई पकड़ी और उसे अपनी तरफ खींच लिया। काया सीधे जाकर उसके सीने से लग गई।