Chapter 157

Chapter 157

YHAGK 156

Chapter

 156






 रेहान और लावण्या की शादी की सालगिरह की पार्टी थी। उन दोनों की शादी को 9 साल पूरे हो चुके थे। ऐसे में जब पूरा परिवार एक साथ था तो एक ग्रैंड पार्टी तो बनती थी। अगले दिन रजत और नेहा की शादी थी उससे पहले मेहंदी और संगीत। कल जिस तरह रूद्र ने लावण्या की बातों पर शक जताया था उससे लावण्या थोड़ी चौकन्नी थी। उसने पूरी कोशिश की जिससे रूद्र को शक ना हो। लेकिन उसे अच्छे से पता था कि अगर एक बार रूद्र के दिमाग में शक बैठ गया तो फिर उसे निकालना आसान नहीं होगा। 


    लावण्या आज शाम की पार्टी का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी। जब वह इस शादी को ही नहीं मानती थी तो शादी की सालगिरह मनाने का कोई मतलब ही नहीं था। लेकिन यहां बात सिर्फ उसकी और रेहान की नहीं थी। बात यहां रुद्र और शरण्या की थी साथ में रजत और नेहा की भी! सिर्फ एक अपना दर्द देखकर वह इन सब की खुशियों को नकार नहीं सकती थी। इसीलिए घर से निकलना उसने सही नहीं समझा और खुद को सारी रस्मों में बिजी कर लिया। लेकिन उस सबसे पहले उसने अपने लॉयर को फोन किया तो लॉयर ने सबसे पहले उसे शादी की सालगिरह की बधाई दी। 


    लावण्या का दिल किया कि वह अभी रो दे। वो लॉयर उनका फैमिली लॉयर था जिसे वह बचपन से जानती थी। लावण्या बिना किसी बात को घुमाते हुए सीधे सीधे मुद्दे पर आई और बोली, "वकील अंकल! मुझे तलाक के कागजात बनवाने हैं।"


    तलाक की बात सुनकर ही वकील साहब हैरान रह गए और उन्होंने कहा, "बेटा! यह आप किसकी तलाक की बात कर रहे हैं? आपकी कोई दोस्त है क्या? अगर ऐसी बात है तो उनसे कहिए कि वह मुझसे डायरेक्ट आकर बात करें।"


    लावण्या बोली, "नहीं अंकल! किसी और के लिए नहीं बल्कि खुद मुझे तलाक चाहिए अपने पति से।"


    वकील साहब को लगा कि लावण्या मजाक कर रही है। उन्होंने कहा, "आज आपकी शादी की सालगिरह है बेटा! फर्स्ट अप्रैल नहीं जो आप अपने पति के साथ मजाक करना चाहती हैं।"


   लावण्या गंभीर होकर बोली, "वकील अंकल प्लीज! मैं मजाक नहीं कर रही हूं। मैं जो कह रही हूं उतना कीजिए और इस बारे में किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए। मैं रेहान के साथ अब और नहीं रह सकती। मुझे उससे तलाक चाहिए और मेरी तरफ से आज के दिन के लिए यह मेरे पति को सबसे बेहतरीन तोहफा होगा। वकील अंकल प्लीज! इस बारे में किसी को खबर नहीं होनी चाहिए, किसी को नहीं मतलब किसी को भी नहीं। फिर चाहे जो भी हो जाए। यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए। अगर बात किसी तीसरे तक पहुँची तो शरण्या और रूद्र के लिए बुरा हो सकता है और ये मैं कभी नहीं चाहूँगी। पेपर्स जब तैयार हो जाए तो मुझे बता दीजिएगा, मैं खुद आकर ले जाऊंगी। उसे कहीं पर भी भेजने की जरूरत नहीं है और ना ही किसी को भी इस सब में शामिल करने की जरूरत है। चाहे जितने भी दिन लगे, मैं इंतजार करने को तैयार हूं। लेकिन सारे पेपर आप खुद तैयार करेंगे, ठीक है?" कह कर उसने फोन काट दिया। 


     वकील साहब काफी देर तक फोन हाथ में लिए बैठे रह गए। लावण्या ने खुद को सब के बीच जाने के लिए तैयार किया और चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट लेकर नीचे चली गई। इस वक्त रजत और नेहा की मेहंदी की रस्में हो रही थी और दोनों को ही मेहंदी लग रही थी। रजत ने तो सिर्फ अपने हाथ पर नेहा का नाम लिखवाया लेकिन नेहा की पूरी कलाई मेहंदी से भर चुकी थी और उसके पैरों में मेहंदी लग रही थी। 


    शरण्या भी वही बैठी हुई थी। रूद्र ने उसका हाथ पकड़ा और एक मेहंदी का कोन लेकर वहीं उसके हाथों पर मेहंदी लगाने लगा। उसे देख लावण्या ने सीटी बजाई और बोली, "क्या बात है रूद्र! पहली बार देख रही हूं। एक काम करो, तुम दोनों भी लगे हाथों सात फेरें ले ही लो। एक के खर्चे में दोनों की शादी निपट जाएगी।"


    रूद्र शरण्या की हाथों में मेहंदी लगाने में व्यस्त था। उसने बिना लावण्या की तरफ देखें कहा, "तुम पहली बार देख रही हो लेकिन मैं कोई पहली बार नहीं कर रहा। तुम्हारी शादी के वक्त भी अपनी शरण्या के हाथों में मैं ने हीं मेहंदी लगाई थी।"


    शरण्या मुस्कुरा कर बोली, "हां! और रंग भी उतना ही गहरा आया था।"


   लावण्या को वो दिन याद आ गया जब शरण्या की हाथों की मेहंदी का रंग निखार कराया था और उसकी मेहंदी फिकी रह गई थी। अपनी मेहंदी को याद करके ही उसका चेहरा मुरझा गया और वह बोली, "कैसे भूल सकती हूं मैं! मेरी मेहंदी का रंग फीका रह गया था। शायद मेरा पति मुझे प्यार ही नहीं करता।" फिर एकदम से उसे ख्याल आया कि वह सबके बीच बैठी है। उसने बात को बदलते हुए कहा, "ऐसा भी होता है क्या? मेहंदी है! कब रंग चढ़ जाए कब ना चढ़े, कुछ कह नहीं सकते।"


    लावण्या वहां से जाने को हुई तो शरण्या ने एक हाथ से उसकी कलाई पकड़ ली और बोली, "एक बार फिर कोशिश करके देख लो ना दी! उस बार नहीं चढ़ा तो क्या! हो सकता है इस बार मेहंदी का रंग और गहरा हो जाए।"


    लावण्या एक फीकी हंसी हंस दी और बोली, "मुझे बहुत काम है शरण्या! मेहंदी लगा कर नहीं रह सकती। कुछ ऑफिस में काम भी निपटाने है। फिर कभी देखूंगी, अभी अपने प्यार को आजमाने का मूड नहीं है मेरा। तुम लगाओ! वैसे भी तुम्हारी हथेली पर बहुत गहरा आएगा। तुम्हारा रूद्र तुमसे इतना प्यार करता है कि मेहंदी के सूखे पत्ते भी अगर हथेली पर रगड़ लोगी तब भी तुम्हारी हथेली पर रंग चढ् जाएगा।" लावण्या की बात सुन शरण्या मुस्कुरा दी और रुद्र की तरफ देखा जो उसकी दूसरी हथेली पर डिजाइन बनाने में बिजी था। 


     शरण्या की मेहंदी जब पूरी हो गई तो रूद्र वहाँ से उठ कर जाने लगा। लेकिन शरण्या ने उसे रोक लिया और अपने हाथ में लगी मेहंदी को रूद्र की हथेली पर लगा दिया। रूद्र ने भी अपनी मुट्ठी बांध ली जिसमें शरण्या की जूठी मेहंदी लगी थी।


     दोपहर में सभी खाना खाने में लगे हुए थे। नेहा के हाथों में मेहंदी लगी थी इसलिए वह खुद से नहीं खा पा रही थी। रजत बाहर गया हुआ था। शरण्या के हाथों में लगी मेहंदी खराब ना हो जाए इसलिए रूद्र इस बार भी अपने हाथों से खिला रहा था। उन दोनों को देखकर लावण्या ने अपने दोनों हाथ गाल पर रख लिए और कोहनी टेबल पर टिका दी। 


     नेहा ने जब देखा तो उसके आगे अपना हिला कर बोली, "इस तरह नजर क्यों लगा रही हो? अपने पति को बोलो! वह भी तुम्हें खिलाएगा। लेकिन इसमें गलती तुम्हारी है! तुम्हें मेहंदी लगवा लेनी चाहिए थी।" 


    रूद्र ने तिरछी नजर से नेहा को देखा और बोला, "उसके पति को, छोड़ो तुम्हारा होने वाला कहां है! उसे भी तो यहां होना चाहिए ताकि वह तुम्हें अपने हाथों से खिला सके।"


     शरण्या रूद्र की बात हामी भरते हुए बोली, "रूद्र ने यह बात बिल्कुल सही कही। लाइफ में बस कुछ ही मौके ऐसे आते हैं जब आपका पति आपको अपने हाथों से खिलाता है। वरना पूरी जिंदगी अपने ही हाथ चलाने पड़ते हैं।"


   रूद्र ने बड़े रोमांटिक अंदाज में शरण्या के करीब आकर कहा, "आप कहें तो हम जिंदगी भर आपको अपने हाथों से खिलाने को तैयार है!"


    शरण्या शर्म से लाल हुई फिर उसने रूद्र के कंधे पर मारते हुए कहा, "सिर्फ बातों से पेट भरना है?" रूद्र ने जल्दी से एक निवाला उसके मुंह में डाला। 


    उसी वक्त रजत भी वहां चला आया। उसे देखकर रूद्र बोला, "तेरी होने वाली बीवी तुझे याद कर रही थी। उसे खाना खिलाने वाला कोई नहीं है, तू खिला दे वरना भूखी रह जाएगी बेचारी।"


   रजत को सबके सामने नेहा के साथ थोड़ी शर्म आ रही थी। फिर भी वह नेहा के पास बैठा और एक निवाला उठाकर नेहा की तरफ बढ़ा दिया। रजत के चेहरे पर इस वक्त शर्म साफ नजर आ रही थी। रजत को लगा शायद नेहा नहीं खाएगी लेकिन उसके उम्मीद के विपरीत नेहा ने खाने से इंकार नहीं किया। 




    शाम को संगीत का फंक्शन था, साथ में रेहान और लावण्या के सालगिरह की पार्टी भी। जैसे-जैसे शाम ढल रही थी, लावण्या की बेचैनी भी बढ़ रही थी। लेकिन फिर भी खुद को जैसे तैसे उसने शांत कर रखा था। बाहर से कुछ मेहमान भी आए थे। नेहा की मेहंदी सूख चुकी थी और उसका रंग भी अब चढ़ने लगा था। रजत उसकी मेहंदी में अपना नाम ढूंढ रहा था, जिसके लिए उसे ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी। 


     शरण्या भी अपनी मेहंदी गोरा रंग देखकर खुश थी। रूद्र भी उसी की मेहंदी ही देख रहा था। आखिर इतनी मेहनत से जो लगाई थी उसने! लावण्या ने जब उन दोनों को देखा तो शरण्या का हाथ पकड़ कर बोली, "मैंने कहा था ना! तुम्हारी मेहंदी का रंग बहुत खूबसूरत होगा। क्योंकि तुमसे प्यार करने वाला इतना खास जो है। भगवान ने तुम दोनों को एक दूसरे के लिए बनाया है चाहे कोई लाख कोशिश क्यों ना कर ले, तुम दोनों को कभी कोई अलग नहीं कर सकता। बस अब तुम दोनों इसी तरह एक साथ रहो, खुश रहो और तुम दोनों के ढेर सारे बच्चे हो।"


     शरण्या तपाक से बोली, "क्रिकेट टीम के जैसे?"


   रूद्र ने हैरानी से शरण्या को देखा तो शरण्या ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया और लावण्या हंसने लगी। सभी नाच गाने में व्यस्त थे जिसकी शुरुआत रजत और नेहा ने एक रोमांटिक गाने पर डांस करके किया था। नेहा प्रेग्नेंट थी, ऐसे में उसे ज्यादा डांस करना नहीं था और रजत ने भी उसका पूरा ध्यान रखा। नेहा को रजत की बस यही बात अच्छी लग रही थी कि वह नेहा से ज्यादा उसके बच्चे का ध्यान रखता था। डांस खत्म होने के बाद रजत ने वहीं आराम से नेहा को सोफे पर बैठाया और उसके लिए खुद जाकर जूस लेकर आया। मौली वही बैठी थी तो रजत ने उसे अपनी गोद में बैठा लिया। 


    शरण्या रूद्र के साथ डांस करना चाहती थी लेकिन रूद्र का मन नहीं हो रहा था। उसे थोड़ी थकान सी लग रही थी। लेकिन शरण्या भी कहां कम थी! उसने "दीदी तेरा देवर दीवाना" गाने पर रूद्र को बुरी तरह से परेशान किया। लावण्या का बिल्कुल भी मन नहीं था फिर भी उसे सबके साथ डांस करना ही पड़ा। जहां सभी खुश थे तो वहां वो अपने लिए उदास नहीं हो सकती थी।


     कुछ देर के बाद रूद्र खुद जाकर केक लेकर आया जिसे उसी ने आर्डर किया था। वह केक रेहान का फेवरेट था जिसके टॉपिंग में रेहान और लावण्या का एक छोटा सा स्टैचू लगा हुआ था, जिसे देखकर रेहान बहुत ज्यादा खुश हो गया। सब कुछ भूलकर रेहान ने लावण्या की तरफ हाथ बढ़ाया। ना चाहते हुए भी लावण्या ने रेहान के हाथ में अपना हाथ दे दिया। 


    रेहान उसे लेकर सेंटर टेबल की तरफ आया और उसके कंधे से पकड़ कर दोनों ने ही फूंक मारी और कैंडल बुझा दी। दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़कर केक काटा और सबसे पहले एक दूसरे को खिलाया। रेहान कुछ वक्त के लिए सब कुछ भूल गया लेकिन रेहान को केक खिलाते हुए लावण्या ने मन ही मन कहा, "ये हमारी आखिरी एनिवर्सरी है रेहान! इसके बाद मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहूंगी!"