Chapter 51

Chapter 51

humsafar 51

Chapter

51





     अवनि आज थकी हुई थी सो उसने जाकर कपड़े बदले और बिस्तर पर आ गयी। सारांश ने बीच मे फिर तकियों की दीवार बनाई तो अवनि ने उन्हे उठा कर दूसरी ओर फेंक दिया और बोली, "मुझे सुबह उठा देना प्लीज" फिर सारांश के सीने पर सिर रख सो गयी। सारांश उससे बात करना चाहता था लेकिन अवनि इतनी जयादा थकी हुई थी की लेटते ही उसे नींद आ गयी। उसे सोता देख सारांश ने उसके माथे पर किस किया और सो गया।


   सुबह जब चित्रा की आँख खुली तो सामने का नजारा देख उसके होश उड़ गए। निक्षय उसके कमरे मे उसके बेड पर सोया हुआ था। चित्रा को गुस्सा आया और वो जोर से चीखी जिससे निक्षय की नींद खुल गयी। वो भी डर के मारे चित्रा की ही तरह चीख पड़ा और उठ बैठा। "तुम यहाँ क्या कर रहे हो, ये मेरा कमरा है। मैंने तुम्हे तुम्हारा कमरा दिया था न रहने को तो यहाँ क्यों मरने आये?" चित्रा बरस पड़ी। 

     निक्षय ने कहा, "मै तो सिर्फ एक बार तुम्हे देखने आया था। तुम्हें ठंड लग रही थी और कंबल साइड मे गिरा पड़ा था। मै तो बस......!" लेकिन इससे पहले वह आगे कुछ बनाती कह पाता चित्रा बोली, "तो वापस नही जा सकते थे? यहाँ रुकने क्या जरूरत आन पड़ी?" कहकर उसने निक्षय को एक जोरदार लात मारी जिसके कारण वह बेड से नीचे गिर पड़ा लेकिन चित्रा भी उसके साथ ही नीचे उसके ऊपर गिरी। 

    चित्रा को कुछ समझ नही आया, वह बस हैरानी से निक्षय को देखे जा रही। वही निक्षय उसकी आँखों मे खोया था। चित्रा ने जब देखा तो उसने उसे जगाने के लिए हाथ उठाया तो अपने हाथ मे निक्षय का हाथ पाया। वह समझ गयी की उसके हाथ पकड़ने के कारण ही निक्षय को वही उसके कमरे मे सोना पड़ा था। चित्रा झेंप गयी और उठने लगी। निक्षय ने उसे सहारा दे कर खड़ा होने मे हेल्प की और खुद भी खड़ा हो गया। 


     सिया अभी अभी उठकर बाहर हॉल मे बैठी चाय पी रही थी। तभी सारांश और अवनि भी तैयार होकर वहाँ पहुँचे और सिया के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। इतने मे रज्जो उन दोनों के लिए चाय ले आई और बोली, "अरे गुड मॉर्निंग जी सब को! और सारांश ब्रो यू के लिए कॉफी। वैसे इतना अर्ली तैयार सैयार हो कर कहीं गोइंग क्या?"

     सारांश मुस्कुरा दिया और कहा, " हाँ रज्जो ब्रो!!! हम दोनों मंदिर जा रहे है।" 

   "ये तो वेरी गुड है जी!" रज्जो बोली। 

  "मंदिर से वापस आकर तुम दोनों अवनि के मायके हो आना, मैंने उन्हे बता दिया है की तुम लोग नाश्ता वहीं करोगे। और अगर अवनि का मन हो तो उसे वही रहने देना, वापस चलने की जिद मत करना।" सिया ने कहा तो सारांश ने भी हाँ मे अपना सिर हिलाकर अवनि का हाथ पकड़ वहाँ से मंदिर के लिए निकल गया। 

    मंदिर जाते ही रास्ते मे अवनि ने सारांश से श्रेया के घर रुकने को कहा तो सारांश ने गाड़ी उसी ओर मोड़ ली। श्रेया के घर के बाहर पहुँच कर सारांश ने गाड़ी रोकी तो अवनि ने उसे भी उतरने को कहा। सारांश मुस्कुरा दिया और बोला, "तुम ही जाओ पहले, मेरा वहाँ अंदर जाना सही नही होगा। आजकल वैसे भी चित्रा की कंपनी को इंजॉय कर रही है, पता नही किस हाल मे होगी! इसीलिए कह रहा हु तुम ही जाओ और मिल आओ। मैं यही तुम्हारा इंतज़ार करता हु।" 

    अवनि ने सारांश की बात को समझ अकेली ही अंदर चली गयी। अंदर जाकर उसे एहसास हुआ की सारांश का कहना बिलकुल सही था। दरवाजा खुला था और घर की हालत भी कुछ ठीक नही थी। अवनि को थोड़ी घबराहट हुई और वह सीधे जहाँ उसे बेसुध सोते हुए पाया जिसे देख अवनि को थोड़ी राहत हुई। अवनि ने जाकर श्रेया को जगाया और उसे पीने के लिए थोड़ा निंबू पानी दिया जिससे श्रेया की कल रात की उतर सके। 

     श्रेया को जब होश आया तो उसने खुद को अपने घर पर पाया। "लेकिन मुझे लेकर कौन आया? मै तो मानव के साथ थी कल!" श्रेया ने अपना सिर खुजाते हुए कहा तो अवनि को कुछ समझ नही आया। दो लोग जो एक दूसरे की शक्ल भी नही देखना चाहते वो दोनों कल रात साथ मे थे ये बात कुछ हज़म नही हुई अवनि को। श्रेया ने उसे अपनी नई जॉब के बारे मे बताया तो अवनि बहुत ज्यादा खुश हो गयी लेकिन जब उसे पता चला की मानव भी उसी कंपनी मे है अवनि ने अपना सिर पिट लिया। 

     "हो गया सत्यानाश....... पूरी कंपनी का। तुम दोनों ही वहाँ भूचाल ला दोगे।" अवनि ने कहा तो श्रेया ने उसे शांत किया और बोली, "ऐसा कुछ नही होगा। हम दोनों का डिपार्टमेंट अलग अलग है तो फिक्र मत कर। अब तु बता, क्या चल रहा है तेरी लाइफ मे! कहाँ थी कल पूरा दिन? कल शाम को तुझे भी बुलाना था लेकिन तेरा फोन नही लग रहा था।" 

      "शाम को...! शाम को तो मै सारांश के साथ डेट पर.......!" अवनि बोलते बोलते रुक गयी तो श्रेया ने उसे घूरा और मुस्कुरा कर पूछी, "हम्म्....! तो बात कहाँ तक पहुँची?"

    "ऐसा कुछ नही है। वो बस सारांश और मै....... वो पुरा दिन शॉपिंग मे निकल गया और शाम को हम बस यूँ ही घूमते हुए शहर से बाहर चले गए थे। इसीलिए मेरा फोन नही लग रहा होगा" अवनि ने झेंप कर कहा तो श्रेया के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी। "मुझे खुशी है अवनि की तु अब सारांश के लिए वो सब फील करने लगी है जिसे प्यार कहते है। मुझे बहुत ज्यादा खुशी है।" श्रेया ने अवनि का चेहरा ऊपर उठाकर कहा। 

    "झल्ली....! तुझे थैंक यू बोलकर शर्मिंदा नही होना चाहती। मै सारांश के साथ मंदिर जा रही हु और वहाँ देवी माँ से प्रार्थना करूँगी की जितनी अच्छी तु मेरी दोस्त है उतनी अच्छी मै भी तेरी दोस्त बन सकु। तेरे लिए वो सब तो नही कर सकती जो तूने मेरे लिए किया लेकिन मै अगर तेरे किसी भी काम आ सकी तो मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और कोई नही हो सकती। मै चलती हु, सारांश नीचे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। चल बाय, और अपना ख्याल रखना" कहकर अवनि श्रेया के घर से निकल गयी। 

    "मै उम्मीद करती हु अवनि की जिस तरह तेरी जुबान पर सारांश का नाम चढ़ा है वैसे ही तुझ पर भी सारांश का रंग चढ़ जाए और तुम दोनों एक हो जाओ। अपनी पिछली जिंदगी को भूल आगे बढ़ जा अवनि और कभी पीछे मुड़कर मत देखना।" श्रेया ने अवनि को जाते देख मन ही मन सोचा और फ्रेश होने बाथरूम चली गयी, आज ऑफिस का पहला दिन जो था। 

     करीब एक घंटे की ड्राइव के बाद दोनों मंदिर पहुँचे और बाते करते हुए ऊपर सीढ़िया चढ़ने लगे। ये मंदिर शहर मे हो कर भी शहर की भीड़भाड़ से दूर था और आसपास थोड़ी हरियाली भी थी जिससे लगता था की वो लोग शहर से बाहर है। वहाँ की खूबसूरती देखते हुए दोनों ऊपर मंदिर के सामने पहुँचे। अचानक से अवनि को ध्यान आया की उसने पूजा के लिए समान तो लिया ही नही। अब फिर नीचे जाना पड़ेगा। ये सोच अवनि परेशान हो उठी। 

     मंदिर मे कुल इक्यावन् सीढ़िया थी जिस कारण अवनि परेशान होने लगी तो सारांश ने उसे शांत किया और खुद ही  नीचे चला गया। जाने से पहले अवनि ने एक पुरा लिस्ट बता दिया जिसमे नारियल फूल माला सिंदूर प्रसाद चुन्नी और मन्नत का धागा भी शामिल था। सारांश के नीचे उतरते ही अवनि मंदिर के दूसरे तरफ गयी और वहाँ उसकी नज़र नीले रंग के धागे पर गयी जिसे देख उसका चेहरा पत्थर से जैसा कठोर हो गया। उसने उस नीले धागे को एक झटके से तोडा और मंदिर के सामने चल कर वापस आई और वहाँ जलते हुए हवनकुंड मे उस धागे को डाल दिया।




क्रमश: