Chapter 99

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humsafar 99

Chapter

99

     अवनि और सारांश के घर वापसी से पूरे घरवालों ने चैन की साँस ली। साथ ही सिद्धार्थ और समर्थ के आने से घर मे रौनक और भी ज्यादा बढ़ गयी। सिद्धार्थ सबके लिए कुछ ना कुछ तोहफा जरूर लाया था जो ड्राइवर कुछ देर पहले ही देकर गया था। सिद्धार्थ काव्या के लिए तीन चार अलग अलग तरह के स्पेशल ड्रेस लाया था जो कि प्रेगनेंसी में उसके बहुत काम आता। काव्या उन्हे देख खुश हो गयी और बोली, "थैंक्स भैया! मै सोच ही रही की अपने बुटीक के लिए कुछ ऐसा डिजाइन करू ताकि प्रेग्नेंट लड़कियों के काम आ सके।" काव्या पहली बार उससे मिल रही थी लेकिन उसकी बातों से लग ही नहीं रहा था कि वे दोनों पहली बार मिल रहे हैं। 


     सिया ने सारे बच्चो ने नाम से दान करने के लिए सोचा और उसकी तैयारियो मे जुट गयी। सिद्धार्थ अपने बेटे समर्थ को कमरे मे गया और उसे फ्रेश होने मे हेल्प किया तो उसने साफ मना कर दिया, "डैड.....! अब मै बड़ा हो चुका हु। मै खुद से ये सब कर सकता हु।" समर्थ ने मुह बिचका कर कहा तो सिद्धार्थ ने भी उसे बाथरूम मे अकेला छोड़ दिया। 


     सारांश अवनि के साथ कमरे मे आया और आते ही उसने अवनि को पीछे से पकड़ लिया। इस वक़्त वह उसे जी भर कर प्यार करना चाहता था लेकिन उसे अवनि के चोट का ध्यान आया और उसे बेड पर बैठाकर फर्स्ट एड बॉक्स ले आया। हल्के हाथों से उसकी पट्टी करते हुए सारांश ने पूछा, "ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"


     अवनि ने मुस्कुरा कर ना मे गर्दन हिला दिया और बोली, "मुझे दर्द की क्या परवाह जब मेरा मरहम मेरे सामने है।" उसकी बात सुन सारांश हल्के से मुस्कुरा दिया और उठकर उसके होंठो को चूम लिया, "और ये मेरा मरहम है। तुम्हारे बिना ये सब मुझे काटने को दौड़ता था। जब मुझे तुम्हारा कहीं भी कोई सुराग नही मिला तब पूरे वक़्त मै बस तुम्हारे सिग्नल मिलने का इंतज़ार करता रहा। हर बितते वक़्त के साथ मेरी बेचैनी और भी बढ़ती जा रही थी। किस तरह ये वक़्त गुजरा, ये हम दोनों ही जानते है।" कहते हुए सारांश की आँखों मे आँसू आ गए। 


     अवनि से सारांश के आँसू देखे नही गए और उसने उसे खींच कर गले लगा लिया। इस वक़्त मे वह पूरी तरह सारांश मे खो जाना चाहती थी। 


   शुभ को जैसे ही अपने पिता की मौत की खबर मिली वह बिना कुछ सोचे समझे घर से निकल पड़ा। उस वक्त तक सारांश और अवनि घर वापस नहीं लौटे थे। एक आदमी जिसने फोन पर शुभ को सारी बातें बताई थी, शुभ उसके साथ उसी जगह पर पहुंचा जहां ललित को गोली मारी गई थी। अपने पिता की ऐसी हालत के बारे मे सोच कर उसका रोने का दिल कर रहा था। जब तक शुभ वहां पहुंचा, वहां कहीं कोई निशान बाकी नहीं था और ना ही किसी की लाश थी वहां पर। सिद्धार्थ के आदमियों ने उस पूरी जगह की सफाई कर दी थी, ऐसे जैसे कि वहां कुछ कभी हुआ ही नहीं, "छोटे मालिक मै कह रहा हूं, गोली कहां से चली किसने चलाई किसी को कुछ पता नहीं। बस लग रहा था जैसे हवा से ही किसी ने वार किया हो। यहां दूर-दूर तक कोई नहीं था", उस आदमी ने कहा। 

अपने पिता की लाश को ना पाकर शुभ बेचैन हो गया और गुस्से मे पागलों की तरह बड़बड़ाने लगा,"सारांश मित्तल.....! मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं। तुम्हें ऐसी सजा दूंगा कि तुम मुझे कभी भूल नहीं पाओगे। जिंदगी भर अफसोस करोगे" अभी तक उसे सिद्धार्थ के आने का पता नहीं था लेकिन उसे शक जरूर हुआ था क्योंकि इतनी दूर से फाइल करना सिर्फ सिद्धार्थ का ही काम हो सकता है। एक वही था जिसके पास स्नाइपर थी जिससे दूर तक निशाना लगाया जा सकता था, और सारांश उस वक्त ललित के सामने खड़ा था। लेकिन उसे सबसे ज्यादा हैरानी तब हुई जब उस आदमी ने बताया कि ललित ने यह सब कुछ अलीशा के कहने पर किया था। उसने अलीशा और सारांश दोनों से एक साथ ही बदला लेने का सोचा और मुस्कुरा दिया। 


    अवनि के दोनों हाथों में पट्टी बंधी थी इसीलिए फ्रेश होने में सारांश ने उसकी मदद की। अवनि शर्म से लाल हुई जा रही थी लेकिन सारांश को कोई फर्क नही पड़ रहा था। फ्रेश होने के बाद सारांश ने अवनि को खुद तैयार किया और वह खुद भी फ्रेश होने चला गया। सारांश बाथरूम से निकल कर ऑफिस जाने के लिए तैयार था तो अवनि उसे देख कर चौंक गयी, "आप ऑफिस जा रहे है! मुझे लगा आप आज आराम करेंगे।" 


     "अब और कितना आराम करना है? हाँ अगर तुम्हारा मन है तो मै रुक जाता हु, और आराम करने के लिए",सारांश ने कहा तो अवनि शर्मा गयी और बेड से एक तकिया उठाकर उसे दे मारा।


    दोनों जब तक नीचे पहुंचे तब तक सारे लोग डायनिंग टेबल पर इकट्ठा हो चुके थे, सिवाय शुभ के जो अभी तक घर वापस नहीं लौटा था। जानकी सबके लिए नाश्ता तैयार कर चुकी थी और खासकर सिद्धार्थ के लिए जो पूरे एक साल के बाद लौटा था। खाने मे अपनी पसंद की चीज़े देख सिद्धार्थ ने कहा, "आपको हमेशा कैसे याद रहता है कि मुझे खाने मे क्या पसंद है और क्या नहीं? इतने टाइम में तो मैं खुद भी भूल जाता हु अपनी पसंद नापसंद लेकिन आप नहीं भूलती।"


      "अपने बच्चों की पसंद नापसंद एक मां कभी नहीं भूलती, फिर चाहे बच्चे खुद क्यों ना भूल जाए", कहकर जानकी मुस्कुराई। एक बार फिर पूरा परिवार एक साथ एकजुट खाने की टेबल पर बैठा हुआ था बस एक शुभ की कमी थी जिसने कभी इस परिवार को अपना माना ही नहीं। जानकी को ललित की मौत का थोड़ा सा दुख जरूर हुआ क्योंकि आख़िर जो भी था उसके बेटे का पिता था। लेकिन यह सोचकर मुस्कुरा दी कि आखिर एक शैतान का अंत हुआ। अब बस उसे अपने बेटे की फिक्र थी कि उसे सही रास्ते पर कैसे लाया जाए। 


   अवनि ने समर्थ से बात करनी चाही। उसने जूस का एक ग्लास उसकी ओर बढ़ाया, "हाय! मै अवनि। क्या मै आपकी दोस्त बन सकती हु?"


    समर्थ ने बड़े ही ठंडे लहजे मे जवाब दिया, "नही!"

  अवनि चौंक गयी। उसने तो ऐसा तो कुछ नही कहा था। उसने फिर से सवाल किया, "क्यों? मतलब मै आप को पसंद नही हु?"


     "नही....! आप बहुत खूबसूरत है और मेरी आंटी भी, लेकिन दोस्त नही..! एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नही होते। उन दोनों मे कभी न कभी प्यार हो ही जाता है।" समर्थ ने कहा तो अवनि चौंक गयी। इतने छोटे बच्चे की ऐसी सोच देख उसे अपनी सोच पर शक होने लगा। 


     "सिद्धार्थ मित्तल का बेटा है! बिलकुल उन्ही की तरह हो गया है। भाई! आप न शादी कर ही लो इस बार।" सारांश ने कहा तो सिद्धार्थ ने एक टका सा जवाब दे दिया, "शट अप!"


        नाश्ता करने के बाद सिद्धार्थ उठा और ऑफिस के लिए निकलने को हुआ तो सिया ने उसे टोका, "सिद्धार्थ....!अभी अभी आए हो बेटा, आराम तो कर लो आज के दिन। फिर कल पूजा भी तो है, थकान रहेगी तो फिर कैसे कर पाओगे सब!"


      " मॉम मुझे कुछ नहीं हुआ। मैं बिल्कुल ठीक हूं और थकान तो बिल्कुल भी नहीं है मुझे। बस एक बार जाकर ऑफिस में देखना चाहता हूं कि आखिर इस भोंदू ने सब कुछ कैसे मेंटेन किया है। वैसे सुना है ऑफिस में सब डरते हैं इससे क्यों भोंदू!!!" सिद्धार्थ ने कहा तो सारांश को गुस्सा आ गया। उसने कहा, "क्या करूं भाई! मेरी शक्ल आप से मिलती-जुलती है ना इसलिए ऑफिस में लोग डर जाते हैं मुझसे, वरना ऐसी कोई बात नहीं और ये ना मुझे बात-बात पर भोंदू कहना बंद कीजिए आप भाई। बड़ा हो चुका हूं मै और आप बुड्ढे हो चुके हैं तो थोड़ा तो ख्याल कीजिए मिस्टर सीनियर सिटीजन।"


       "बुड्ढा मैं नहीं तु हो गया है। तेरी उम्र में समर्थ मेरी गोद में आ चुका था। तू खुद की सोच ले", सिद्धार्थ ने सबके सामने बात कही सारांश की भौहे सिकुड़ गई और अवनी ने शर्मा कर अपनी नजरें झुका ली। सिया की हंसी छूट गई।


    सारांश अपने भाई से हारना नही चाहता था इसीलिए उसके तीर से उसी पर वार किया, " अगर ऐसा है तो समर्थ अभी तक अकेला क्यों है? मान भी लो भाई की आप बुड्ढे हो चुके हो, क्यों मॉम?" 


     सिया ने भी सारांश का साथ देते हुए कहा, "ये बात तो सही बोली सारांश ने! अब और कितना इंतज़ार करेंगे हम लोग! उम्र हो चुकी है अब हमारी, क्या पता कल को रहे ना रहे। सोचा था तेरा घर बसता हुआ देख लूँगी तो चैन से मर सकूँगी। तेरे भाई ने शादी कर ली लेकिन तुझे तो जिंदगी भर कुवांरा ही रहना है। भगवान भी ना जाने किस जन्म के पापों का बदला ले रहा है मुझ से ये दिन दिखा कर!" सिया ने नाटक किया। 


     "मॉम प्लीज!!! आप फिर शुरू हो गयी! अभी आपको बहुत लंबा जीना और मुझे ऐसे इमोशनल ब्लैकमेल मत किया करे आप। मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता।" सिद्धार्थ ने कहा तो सिया नॉर्मल होकर बोली, "तो बस तु शादी के लिए हाँ कर दे। देख पंडित ही ने तेरे लिए कई सारी लड़कियो की तस्वीर भी दी है, एक बार देख तो ले उन्हें!"


    "मॉम...! मुझे नही देखनी किसी लड़की की तस्वीर। ना ही मै किसी लड़की से शादी मे इंट्रेस्टेड हु और ना ही किसी लड़की को देखने मे इंट्रेस्टेड हु।" सिद्धार्थ ने साफ शब्दों मे अपनी बात कही तो सिया कुछ सोच कर बोली, "अच्छा................! लड़कियो मे इंट्रेस्ट नही है, तो..............अगली बार पंडित जी से बोल कर तेरे लिए लड़को की तस्वीर मंगवाऊ? बस तु शादी के लिए हाँ बोल दे"


    सिया की बात सुन सब ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी लेकिन सारांश हँसते हँसते वही जमीन पर बैठ लोटपोट हो गया। सिद्धार्थ को अपनी माँ से ऐसी उम्मीद नही थी, ऊपर से सारांश की हँसी जिसके कारण अभी तक जो अपनी हँसी कंट्रोल किए हुए थे वो भी ठहाके मार कर हँसने लगे। सिद्धार्थ झुंझला गया और बाहर निकल गया। सारांश भी उसके पीछे भागा। 


        दोनों भाइयों की नोकझोंक साल में एक बार ही देखने को मिलती थी। वह दोनों जब भी साथ होते थे हमेशा एक दूसरे को परेशान करना, चिढ़ाना उनका फेवरेट काम था। इतने बड़े होकर भी दोनों अभी भी बच्चों की तरह से थे। 


    "अरे लेकिन बताता तो जा कि कैसी लड़की चाहिए तुझे?" सिया ने पीछे से आवाज़ लगाई लेकिन सिद्धार्थ रुका नही और चलते हुए ही जवाब दिया, "जो बिलकुल आप के जैसी हो! ढूँढ लीजिएगा, मिल जाय तो बता देना।"


    सिद्धार्थ तो चला गया लेकिन सिया को उलझन मे डाल गया। "अब अपने जैसी कहा से ढूँढ कर लाऊँ जो उसे भी पसंद आये और उसके नकचढे बेटे को भी", सिया सोच रही थी कि तभी अवनि ने कहा, " मॉम......! आप के जैसी एक है मेरी नज़र मे लेकिन.........!" अवनि बोलते बोलते रुक गयी लेकिन सब का ध्यान अपनी ओर खीच लिया। सब को अपनी तरफ देखता पा कर अवनि थोड़ी असहज हो गयी। सिया ने उसे देख भौहें उचकाई और अपनी बात पूरी करने का इशारा किया। अवनि ने घबराते हुए एक नाम लिया, "श्यामा दी"। 


     सिया श्यामा के बारे मे सब जानती थी इसीलिए अवनि उसका नाम लेने से कतरा रही थी लेकिन सिया ने खुश हो कर कहा, " ये तुम ने मेरे मन की बात कह दी अवनि। मुझे तो पहली बार मे ही श्यामा पसंद आ गयी थी। सिद्धार्थ के लिए वही सही है। बस वो दोनों हाँ कर दे तो लगे हाथों इनकी भी बैंड बजवा दु मैं।"


      अवनि हैरान सी सिया को देखने लगी। सिया समझ गयी की अवनि के मन मे क्या चल रहा है, "मेरी नज़र से देखो तो श्यामा मे कोई खोट या कमी नही है। समर्थ को माँ मिल जायेगी। सिद्धार्थ तो वैसे भी दूसरा बच्चा नही चाहता, इसीलिए तो शादी के लिए हाँ नही करता।"


    बाहर निकल कर सिद्धार्थ ने अपनी गाड़ी की ओर रुख किया तो सारांश ने कहा, "भाई........! आप मेरे साथ चलिए। ऑफिस जाना है तो साथ में चलते हैं ना।"


     "नहीं! वह मुझे मार्केट में थोड़ा काम है। तू चल मैं आता हूं", सिद्धार्थ ने कहा और गाड़ी खुद ड्राइव करके निकल गया। सारांश भी ऑफिस के लिए निकल गया। सिया ने श्यामा को मंदिर बुलाया था पूजा की तैयारियों में हाथ हटाने के लिए। श्यामा अपनी स्कूटी लेकर निकली लेकिन मंदिर से कुछ दूर पर ही सड़क क्रॉस करते हुए उसकी स्कूटी को किसी ने ठोकर मार दी। श्यामा लड़खड़ा कर एक साइड जा गिरी। इत्तेफाक से उसे चोट नही लगी लेकिन उसे इतना गुस्सा आया कि वह उठी और बिना अपनी स्कूटी पर ध्यान दिए दनदनाती हुई उस कार की तरफ गई और ड्राइवर सीट पर का दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगी। 


      श्यामा को इतने गुस्से में देख ड्राइवर सीट पर बैठा वह आदमी कुछ देर सोचा और फिर खुद ही दरवाजा खोलकर बाहर निकलना आया। यह सिद्धार्थ था जिस से श्यामा ना कभी मिली थी और ना कभी उसकी तस्वीर देखी थी। सिद्धार्थ को देखते ही उसका गुस्सा फूट पड़ा। उसके सामने उंगलिया दिखाते हुए बोली,"यह कितना है, नजर आ रहा है? " सिद्धार्थ ने कन्फ्यूजन में हां में सिर हिला दिया तो वह बोली, "अंधे तो नहीं हो! दिखने मे भी ठीक-ठाक ही हो तो फिर क्या यहां पर नए आए हो? इस तरह कौन गाड़ी चलाता है! और तुम जैसो को ड्राइविंग लाइसेंस कौन देता है, उसे तो सुखे कुए मे धकेल देना चाहिए। मेरी स्कूटी तोड़ दी तुमने! तुम्हे पता है मेरा कितना बड़ा नुक्सान कर दिया है तुमने! इसका हर्जाना तुम्हें देना होगा।"


     सिद्धार्थ समझ गया कि वह क्या चाहती है। उसने मुस्कुराकर अपना वॉलेट निकाला और पूछा,"कितना हुआ तुम्हारे स्कूटी का?" कहते हुए उसने नोटों की एक गड्डी निकालकर श्यामा के सामने बढ़ा दी। श्यामा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने भी बड़े प्यार से हाथ बढ़ाया लेकिन पैसे लेने की बजाय उसने सीधे सिद्धार्थ का वॉलेट छीना और बाकी के पैसे भी निकाल कर सिद्धार्थ के हाथ पर रख दिये। फिर उस वॉलेट को अपने बैग में रखते हुए बोली, "यह मेरा स्कूटी मेरे अपनी कमाई का है। तुम्हारे जैसे बाप की कमाई से नहीं खरीदा मैंने। तो चुपचाप मेरी स्कूटी इसकी मरम्मत करवाकर मुझे वापस दे जाना और अपना वॉलेट वापस ले लेना। तब तक वह मेरे पास गिरवी है", कहते हुए श्यामा ने एनजीओ का एक कार्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। 

    " बड़ी बदतमीज़ हो तुम!!! पता नही तुम्हारे घरवाले कैसे झेलते होंगे तुम्हें! जिससे भी तुम्हारी शादी होगी वो बेचारा खुद ही सुखे कुए मे जान दे देगा", सिद्धार्थ गुस्से मे बोला जो श्यामा को चुभ गयी। 


     श्यामा सामने से आती बस मे चढ़ने को हुई लेकिन पीछे पलट कर बोली, "अगली बार जितना कहा जाय उतना ही करना। किसी की पर्सनल लाइफ मे अपनी नाक मत घुसाना" श्यामा जल्दी से बस मे चढ़ गयी और बस भी तुरंत ही वहाँ से निकल गयी। सिद्धार्थ बस वहाँ खड़ा देखता ही रह गया। 






क्रमश: