Chapter 97

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humsafar 97

Chapter

97






     सारांश और बाकी घर वाले अवनी के गुमशुदा होने के कारण परेशान थे और सबसे ज्यादा परेशान इसलिए थे क्योंकि किडनैपर्स की तरफ से फिरौती की कोई मांग नहीं की गई थी और ना ही किसी तरह का कोई फोन कॉल आया था। यह काम जिसने भी किया था काफी शातिर ढंग से किया था कि पीछे कोई सुराग नहीं छोडा था जिसके जरिए अवनी तक पहुंचा जा सके। जब सारांश को कोई और रास्ता नहीं मिला तब उसने पुलिस कमिश्नर को फोन कर उनसे मदद मांगी। पुलिस को भी जब कहीं से कोई सुराग नहीं मिला तब उसने अपनी पूरी टीम को शहर में चारों ओर दौड़ा दिया और अपने खबरी नेटवर्क को एक्टिव किया लेकिन उस सब का भी कोई फायदा नहीं हुआ । " यह सब किसी गैंग का काम नहीं है। यह लोग जो भी है इन लोगों की कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है। या तो आप लोगों से या फिर यंग मैडम से। इसीलिए उनके मिसिंग होने पर भी कोई फोन कॉल नहीं आया। यानी कि साफ है, यह फिरौती के लिए नहीं हुआ है। कोई है जो आप लोगों को परेशान करना चाहता है" कमिश्नर ने कहा। पूरी रात निकल चुकी थी और पूरा दिन भी। अवनि को गुम हुए चौबीस घंटे से ज्यादा हो चुका था। 


     अवनि की जब आंख खुली तब कुछ देर तक उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाया रहा। कुछ देर बाद जब वह पूरी तरह होश में आई तब उसने खुद को एक कुर्सी से बंधा हुआ पाया। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसके हाथ पीछे की तरफ बंधे हुए थे और पैर भी रस्सी से बंधा हुआ था। उसे कुछ समझ नहीं आया कि आखिर वह यहां पहुंची कैसे? वह तो घर जाने के लिए निकली थी। गाड़ी में बैठने के कुछ देर बाद ही उसे नींद आने लगी थी और वह सो गई थी। उसके बाद अब जाकर उसे होश आया था। उसे सबसे पहले सारांश का ही ख्याल आया। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन इससे रस्सियों की रगड़ पड़ने से उसके हाथ छील गए और खून निकलने लगा। "वो मुझे ढूँढ रहे होंगे" सोचते हुए अवनि ने चिल्लाना शुरू किया। उसकी आवाज़ सुन कुछ देर बाद दो आदमी अंदर आए।

     "कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यों बांध कर रखा है। तुम्हें पता भी है इसका अंजाम क्या होगा। मुझे यहाँ से जाने दो।" अवनि चिल्लाई।

     "इसका मुह भी बन्द कर देना चाहिए था।" एक ने कहा। 

   "ए लड़की......! हमें मत बता कि तु कौन है! अच्छे से जानते है तुझे भी, तेरी सास को भी और तेरे पति को भी। तुझे बता दु की इस वक़्त तेरा पति और उसके कुत्ते पागलों की तरह तुझे ढूँढ रहे है।" दुसरे ने कहा। 

     "कितने पैसे मिले है तुम्हें ये सब करने के लिए? मै तुम्हें उससे दुगनी कीमत दूँगी। बस मुझे यहाँ से जाने दो।" अवनि ने कहा। 

    "तुझे सच मे लगता है की हम ने ये सब पैसों के लिए किया है!!! बिलकुल भी नही। तेरा जो पति है न! उससे बदला लेने के लिए उठाया है तुझे। उस आदमी ने हमें अपनी बीवी की कमाई पर पलने वाला नकारा बना दिया। उसकी वजह से हमारी बीवीयाँ हमारी नही सुनती सिर्फ उसकी सुनती है तो हम ने सोचा थोड़ा उसे सबक सिखाया जाय। हमें तेरे पैसों से मतलब नही है लेकिन....... तेरे से मतलब जरूर है।" उस आदमी ने एक गंदी नज़र अवनि पर डाली जिससे अवनि अंदर तक काँप गयी। 

    "बस कर भाई! अगर मालिक को पता चला तो अच्छा नहीं होगा", तभी उस आदमी का फोन बजा, "यह देख! मालिक का फोन भी आ गया" उसने फोन उठाया और स्पीकर पर डालकर बोला,"मालिक! लड़की को होश आ गया है, क्या करना है उसका?"

     "फिलहाल तो उसका ध्यान रखो,जब तक वह यहां है, वो मेरे बेटे के लिए मेरी तरफ से तोहफा है। एक बार उसका मन भर जाए उसके बाद तुम लोग मजे कर सकते हो उसके साथ। ये लड़की सारांश मित्तल का गुरूर है ना अब देखना मेरा बेटा उसके गुरूर का क्या हाल करता है!"   उस आदमी ने फोन पर कहा। 

     अवनि चौक गई क्योंकि यह बात उसने खुद शुभ से कही थी इसका मतलब यह जो भी है इसका शुभ से लेना देना है। "यानी कि जिसने भी मुझे किडनैप किया है वह शुभ का पिता है! यानी शुभ ने अपने पिता के साथ मिलकर यह सब किया। मुझे सारांश को बताना होगा लेकिन मैं उस तक मै अपना लोकेशन कैसे भेजूं? कैसे बताऊं कि मैं यहां हूं? मुझे तो खुद भी नहीं पता",अवनि ने मन ही मन सोचा। 

    "तुम्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि तुमने क्या किया है। अपनी मौत को दावत दी है तुमने। सारांश मित्तल कभी किसी को छोडता नहीं। तुमने मुझ पर हाथ डालकर बहुत गलत किया है। तुम्हारा और तुम्हारे मालिक का जो होगा उससे तुम लोग की रूह तक कांप जाएगी। बस एक बार सारांश को पता चल जाए कि मैं कहां हूं।" अवनि ने गुस्से मे उन दोनों को घूरते हुए कहा। 

      "कमीनी! तू भी अपने पति की तरह ही है। अब देखना कि तेरे साथ क्या होगा", और गुस्से मे उसने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया जिससे वह कुर्सी समेत एक तरफ लुढ़क गई। अवनि दर्द से कराह उठी उसे लगा वो फिर से बेहोस हो जायेगी। वह दोनों अवनी को उसी हालत में छोड़कर उस कमरे से बाहर निकल गए। अवनि को इसी मौके की तलाश थी। उसने पूरी कोशिश की अपने मंगलसूत्र तक पहुंचने की। उसने पूरा दम लगा कर आगे की ओर झुकना चाहा और काफी कोशिशों के बाद वह कामयाब भी हो गई। अवनी ने अपने मंगलसूत्र में लगे उस हरे रंग के पेरिडॉट को अपने दांतों से पकड़ा और पूरी जोर से उसे दबा दिया। 


      सुबह का वक्त वक्त था और अभी पूरी तरह से उजाला भी नहीं हुआ था। सारांश जो की कई घंटों से लैपटॉप के सामने बैठा था, अचानक से उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने किसी को फोन किया और लैपटॉप लेकर तुरंत कमरे से बाहर निकल आया। बिना किसी को कुछ भी बता घर से चला गया। घर में किसी को आहट भी नहीं हुई उसके जाने की। गाड़ी में बैठते ही उसने एक बार फिर उसी शख्स को फोन किया और कुछ मेल किया। उसने इन सब के बारे में उसने पुलिस को खबर करना जरूरी नहीं समझा और खुद ही निकल पड़ा। 

      एक आदमी अवनि को देखने वापस अंदर आया। अंदर आते ही उसने अवनी को औंधे मुह पड़ा देखा तो उसने जल्दी से जाकर अवनी को सीधा बैठाया। "कुछ खाने को मिलेगा क्या? बहुत भूख लग रही है।" अवनि ने मासूम सी शक्ल बना कर कहा। वह आदमी गया और थोड़ी देर बाद खाने की प्लेट लेकर आया। उसके सामने खाना रखते हुए बोला," कल रात से तुम्हारे लिए खाना रखा हुआ है। खा लो जल्दी से वरना कमजोर हो जाओगी।"

     " यह सब करने के लिए तुम लोगों को शुभ ने कहा है ना। देखो झूठ मत बोलना, तुम लोगों ने हीं कहा ना कि सारांश अब कभी मुझ तक नहीं पहुंच पाएगा तो कम से कम मुझे इतना तो पता होना चाहिए ना कि मैं किसकी वजह से मरने जा रही हूं!" अवनी ने मासूम बनते हुए कहा। 

     "ले तेरी आखिरी इच्छा भी पूरी कर देते हैं। हां उन्हीं के लिए ही हो रहा है लेकिन कोई अलीशा है जिस के कहने पर हुआ यह सब। चल अब खाना खा ले, शरीर में ताकत रहेगी तभी तो छोटे मालिक को तु बर्दाश्त कर पाएगी और हम सब को भी", कहकर वह बेशर्मी से हंसने लगा। 

     "लेकिन मेरे हाथ तो खोलो! मैं से बंधे हुए हाथ से कैसे खाऊंगी! कहीं तुम्हें डर तो नहीं लग रहा कि मैं भाग जाऊंगी। लेकिन खुद ही सोच कर देखो, तुम लोग इतने सारे हो मैं अकेली! ऐसी अनजान जगह से कैसे  भाग पाऊंगी और फिर अगर मैंने खाना नहीं खाया, मुझे कुछ हो गया तो तुम्हारा मालिक तुम्हारे साथ क्या करेगा यह भी सोच लो" अवनि ने उसे समझाते हुए कहा। 

     उस आदमी को भी अवनि की बात सही लगी कि आखिर इतने सारे लोगों के बीच से वह अकेले कैसे भाग सकती है इसलिए कुछ सोचकर उसने एक हाथ में बंदूक निकाली और दूसरे हाथ से अवनि के दोनों हाथ खोल दिए ताकि वह खुद से खा सके क्योंकि उसने पूरा एक दिन बेहोसी में गुजारा था। अवनि पूरे वक्त कमरे का मुआयना करती रही कि आखिर कहीं से कोई खिड़की या ऐसा कोई दरवाजा दिखे जिससे वह भाग सके। 

     खाते वक्त भी वह पूरे प्लानिंग कर रही थी जब उसे कुछ और समझ नहीं आया तो उसने उस आदमी का ध्यान भटका कर भागने का सोचा लेकिन बाहर उसके और भी आदमी खड़े होंगे यह सोच उसने यह आइडिया ड्रॉप कर दिया। अवनी काफी धीरे-धीरे खा रही थी जिस वजह से सामने खड़ा आदमी अब इरिटेट होने लगा था। उसने कहा, "ए लड़की! जल्दी खा ताकि मैं तुझसे फिर से बांधकर यहां से जा सकूं। तेरी वजह से इतनी सुबह मुझे उठना पड़ा। बाकी सब तो सो रहे हैं साले, मुझे अपनी नींद हराम करनी पड़ी।"

     जैसे ही अवनि ने ये बात सुनी कि सब सो रहे हैं, उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने खासने का नाटक किया और जल्दी से पानी मांगने लगी। आदमी ने पानी उठाकर अवनी के सामने बढ़ाया। अवनी ने भी ग्लास लिया और थोड़ा सा पिया। बाकी पानी पीने की बजाय कुछ सोचकर उसने पानी को सब्जी की कटोरी मे डाल दी और फिर वापस उस पानी को ग्लास मे डाल दिया। मौका मिलते ही उस पानी को सामने खड़े उस आदमी की आंख में झोंक दिया। पानी में मिर्ची वाली सब्जी होने के कारण उसकी आंख जलने लगी। अवनि ने इस मौके का फायदा उठाया और उसके हाथ से बंदूक छीन कर उसके सर पर जोर से वार किया जिससे वह आदमी बेहोश हो गया। वह दरवाजे की ओर भागी। वह चाहती तो इसी वक्त सामने वाले को गोली मार सकती थी लेकिन गोली की आवाज से उसके बाकी साथी जाग जाते और वह और भी ज्यादा मुसीबत में पड़ जाती। 

     अवनि जैसे ही दरवाजे से बाहर निकली, वहां उसने तीन लोगों को एक के बाद एक जमीन पर पड़े सोए हुए देखा। वह इतना तो समझ गई थी कि यह कोई अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग है जो काफी टाइम से बंद पड़ा हुआ है और कोई आता जाता नहीं। "आई होप के सारांश को मेरा सिग्नल मिल गया हो"  सोचते हुए अवनि ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और एक के बाद एक सब को पार करते हुए निकलने लगी। लेकिन जाने कैसे उनमें से एक की आंख खुली और उसकी नजर अवनी पर पड़ गई। उस आदमी ने जोर से चिल्लाना शुरू किया, " अरे...! वह लड़की भाग रही है। पकड़ो उसे।"

    अवनी उन सबके जागने से पहले तेजी से वहां से भागने लगी और सबको पीछे छोड़ते हुए वह काफी दूर भी नहीं निकल आई थी लेकिन अभी भी बिल्डिंग से बाहर नहीं निकली थी। उसे बस सारांश तक पहुंचने का इंतजार था तभी उनमें से एक आदमी बिल्डिंग की छत से कूदकर उसके सामने आकर उसका रोककर खडा हो गया। अवनी डर गई और उसने बंदूक उसके सामने तान दी। अवनि को डरा हुआ देख वह आदमी हंसने लगा और बोला, "लड़की...! यह कोई खेलने की चीज नहीं है और तुम्हारे काम की तो बिल्कुल भी नहीं, इसे मुझे दे दो।"

      अवनि के दिमाग मे में सारांश की वही बातें घूम गई जब उसने कहा था,"अवनी! कुछ भी हो , अगर कोई भी खतरा तुम्हें दिखे तुम बस गोली चला देना बाकी का मैं संभाल लूंगा" थोड़ी घबराहट और थोड़े गुस्से में उसने सारांश को याद करते हुए उस शख्स पर गोली चला दी जो सीधे उसके कंधे और गर्दन के बीच मे जा लगी और वह आदमी उसी वक्त बेहोश हो गया। अवनि उसे पार करते हुए जैसे ही बिल्डिंग से बाहर निकली सड़क के दुसरे किनारे सारांश की कार आकर रुकी। 

      अवनि भागते हुए सारांश की गाड़ी में जा बैठी। उसके पीछे आते हुए लोगों को देख सारांश में भी तेजी में गाड़ी दौड़ाई और वहां से दूर निकल गया। करीब 1 घंटे तक इधर उधर भागने के बाद सारांश ने एक सुनसान इलाके में गाड़ी रोकी जहां दूर-दूर तक कहीं कोई बिल्डिंग नहीं था सिर्फ खाली मैदान था। सारांश गाड़ी से उतरा और उसके पीछे अवनि भी गाड़ी से उतर गई। उसके हाथ में अभी भी गन थी। सारांश ने एक गहरी सांस ली और उसने अवनी को कस कर अपनी बाहों में भींच लिया। पूरे 36 घंटों के बाद उन दोनों ने एक दूसरे को देखा था। उन दोनों में से किसके आँसू पहले निकले यह कहना मुश्किल था लेकिन वह दोनों ना जाने कितनी देर एक दूसरे को गले से लगाए वहीं खड़े रहे। 

       सारांश उससे दूर हुआ और अच्छी तरह से उस का मुआयना करने लगा। उसके हाथ में लगी चोट देखकर उसका दिल पसीज गया। "चलो मैं तुम्हें फर्स्ट ऐड करता हूं", सारांश ने कहा तो अवनी बोली, "नहीं सारांश! पहले घर चलते हैं। यह सब तो बाद में भी होता रहेगा, मैं ठीक हूं कुछ नहीं हुआ मुझे। लेकिन मैंने............! मैंने किसी को गोली मार दी है!" सारांश ने देखा अवनी के हाथ में अभी भी वह गन मौजूद थी। उसने उसके हाथ से वह गन लिया और एक कपड़े से पोंछ कर एक साइड मे फेक दिया। "तुम बिल्कुल भी टेंशन मत लो। मैंने कहा था ना जो भी वह मैं संभाल लूंगा।" सारांश ने मुस्कुरा कर कहा। 

      अवनी ने भी हां में सिर हिला दिया और जाकर उसके सीने से लग गई। "आपका प्यार, आपका भरोसा मेरी सबसे बड़ी ताकत है सारांश। वरना मुझ मे कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं यह सब कर सकूं" अवनि ने कहा। सारांश बड़े प्यार से उसके बालों को सहला रहा था कि अभी वहां तीन चार गाड़ियां आकर रुकी अपनी डर गई और उसने सारांश को और कसकर पकड़ लिया। उसे अब किसी भी हालत में सारांश से दूर नहीं होना था। 






क्रमश: