Chapter 16
humsafar 16
Chapter
16
अवनि सिया की बातें सुन रही थी और सारांश को देखे जा रही थी। एक बड़ी सी कंपनी का मालिक बिना किसी हिचकिचाहट आम लोगो की तरह काम मे सब का हाथ बटा रहा था। चित्रा ने देखा तो वह भी सारांश के साथ हो ली। अवनि को बुरा लगा की जब उसने हेल्प करनी चाही तो मना कर दिया और चित्रा को कुछ भी नही कहा। 'लेकिन तुझे इससे क्या अवनि!!! वो सारांश है लक्ष्य नही जो तुझे बुरा लगे' अवनि मन ही मन खुदको कोस कर अंदर चली आई।
श्रेया जब बाहर आई, उसने देखा चित्रा सारांश के साथ कुछ ज्यादा ही क्लोज हो रही थी। उससे देखा नही गया और सारांश को जूस देने के बहाने वहाँ गयी। श्रेया ने जूस का एक ग्लास सारांश को दिया और दूसरा चित्रा को देने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी उसके पैर मे ठोकर लगी और जब वह गिरने को हुई सारांश ने उसे संभाल लिया मगर सारा जूस चित्रा के कपड़ो पर जा गिरा।
"सॉर्री!!!!! आह!!! मेरा पैर!!!" श्रेया को अपने प्रिंस चार्मिंग के बाहों मे अच्छा तो बहुत लग रहा था मगर सारांश को बुरा न लगे इसीलिए चित्रा से सॉर्री तो बोलना ही था। चित्रा के सारे कपड़े खराब हो चुके थे, वह खीझ गयी मगर कुछ नही कहा। चित्रा जानती थी की श्रेया ने ये सब जानबूझ कर किया है क्योंकि वहाँ ऐसा कुछ नही था जिससे उसे ठोकर लगती। वह बिना कुछ कहे नहाने चली गयी।
कार्तिक काव्या के कमरे मे पहुँचा उस समय काव्या अपनी चूड़ियाँ सेट करने मे लगी थी लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था। कार्तिक कब से आकर उसे आवाज़ दे रहा था उसे पता ही नही चला जबतक की कार्तिक ने उसे कंधे से पकड़कर हिलाया नही।
"कहाँ खोई हो? कब से आवाज़ दे रहा हु! क्या सोच रही हो!!" कार्तिक बोला।
"नही!! कुछ भी तो नही!!! बस यू ही" काव्या ने कहा।
"मुझे अच्छे से पता है तुम कब खुश होती हो और कब उदास होती हो। इसीलिए मुझसे कुछ छुपाने की जरूरत नही है। यहाँ आने तक तो तुम बहुत खुश थी अचानक क्या हो गया!!!"
"कहा न कुछ नही!!! बस थोड़ी देर अकेले रहना चाहती थी।" काव्या ने कहा।
"मुझे पता है तुम क्यो उदास हो। सब कहते है शादी के बाद माँ बाप का घर पराया हो जाता है। लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा कभी नही होगा। शादी के बाद तुम्हारे पास दो दो घर होंगे इसीलिए कभी ये सोच कर दुःख मत होना की जिस घर मे तुम पलिबढि वो घर पराया हो जायेगा।" कार्तिक ने समझाते हुए कहा।
"पलिबढि से याद आया.......! चित्रा.......! तुम दोनो काफी क्लोज लगते हो। आई मीन जिस तरह से तुम दोनो लड़ते हो , हो सकता है आगे जाकर तुम दोनो मे.........." काव्या ने बात बदलना चाहा मगर कार्तिक ने बीच मे उसकी बात काट दी।
"वेट! वेट!!वेट!!! अपने इमेजिनेसन के घोड़े को लगाम दो, कुछ ज्यादा ही तेजी से निकल रहा है हाथ से। तुम्हे किस एंगल से लगता है की मेरे और उस चितकबरी...... आई मीन चित्रा के बीच कुछ हो सकता है? आजतक हमारी नही बनी। हम दोनो के बीच अगर कुछ कॉमन है तो वो है सिर्फ और सिर्फ सारांश, और कुछ नही। वैसे भी वो किसी और को पसंद करती है।" कार्तिक ने कहा और काव्या को सीने से लगा लिया। काव्या मुस्कुराई मगर अगले ही पल उसकी आँखों मे नमी तैर गयी।
"सॉर्री! सॉर्री!! सॉर्री!!! मै गलत टाइम पर आ गयी। मगर डोन्ट वरी मैने कुछ नही देखा।" अवनि ने दरवाजे पर आँखे बन्द करके कहा।
"अवनि!!!! ऐसा कुछ नही हो रहा था यहाँ जिसकी वजह से तुझे आँखे बन्द करने की जरूरत हो। अपनी आँखे खोल!!!!" काव्या झेंप कर बोली।
"ओह! सच मे कुछ नही हो रहा था!! शीट यार.......!" अवनि मुह बनाकर बोली "अगर आप दोनो का लवी डवी सीन हो गया हो तो क्या मै दिदु को ले जाऊ!!! नीचे कोई रस्म है उसी के लिए सब इनका इंतज़ार कर रहे है। थोड़ी देर बाद पहुँचा दूँगी, फिर आप लोग अपना कॉन्टीन्यु कर सकते है।" अवनि ने शरारत से कहा।
"हाँ! हाँ!! जितना चढ़ाने का मन है चिढ़ा लो। सूद समेत वापस करूँगा मै तुम्हे और मेरा बदला तुम कभी भूल भी नही पाओगी वादा है ये मेरा।" कार्तिक ने भी झूठा गुस्सा दिखाकर कहा। अवनि काव्या को लेकर नीचे चली आई। शाम का वक़्त था और सारी लेडीज गैंग कुछ रस्म करने के लिए इकट्ठा हुई थी।
"यार अवनि!!! ये दोनो भाई बहन कितने कूल और अमेज़िंग है न!!!" श्रेया ने अवनि से कहा।
"भाई बहन!!! कौन? तु किसकी बात कर रही है?" अवनि चौँक गयी।
"अरे मै इन मित्तलस् की बात कर रही हु। ये सिया मित्तल और सारांश मित्तल।" श्रेया ने बेख्याली मे कहा।
"तु भी मेरी तरह धोखा खा गयी।"
" मतलब???"
"मतलब ये कि सिया मित्तल तेरे मिस्टर लज़ीज़ की मॉम है बहन नही" अवनि ने मुस्कुरा कर कहा।
श्रेया ने अवनि को पहले तो हैरानी से देखा फिर मुस्कुरा कर बोली, "तु मज़ाक कर रही है न!!!"
"अगर मेरी बात पर यकीन नही तो खुद उन्ही से पूछ ले!! उनका एक पाँच साल का पोता भी है" अवनि ने कहा।
"नो वे.....! ऐसा नही हो सकता! वो तो अभी भी पैतीस से ज्यादा की नही लगती यार...! " श्रेया का मुह खुला का खुला रह गया।
"जो जैसा दिखता है वैसा होता नही, दुनिया का यही दस्तूर है बालिके" अवनि ने भी किसी बाबा की तरह प्रवचन दिया।
"हाँ...! जैसे की वो कमीना! तेरा......! शक्ल से तो वो भी काफी शरीफ दिखता है मगर है बहुत बड़ा...... " इससे पहले श्रेया अपनी बात पूरी कर पाती अवनि ने उसे गुस्से से घूर कर देखा तो वह चुप हो गयी।
"माना तु उसे पसंद नही करती, पर इसका मतलब ये नही की तु उसके बारे मे कुछ भी उल्टा सीधा बोले" अवनि ने दाँत पीसकर कहा।
तभी सिया की नज़र अवनि पर गयी जो वही सामने खड़ी थी। उन्होंने अवनि से कहा, "अवनि बेटा!! शायद मेरा फोन ऊपर छत पर रह गयी है। मेरी इंपोर्टेंट कॉल आने वाली थी, तुम जाकर एक बार देखकर ला दोगी बेटा??"
"अरे मैम! इसमे पूछने वाली कौन सी बात है, मै अभी जाकर देखती हु।" कहकर अवनि उठी और छत पर चली गयी। "भगवान करे तुझे कोई और उठा ले जाए" श्रेया गुस्से मे बड़बडाई।
अवनि छत पर चली आई, वहाँ चारों ओर नजर दौड़ाने के बाद उसे फोन तो कही नही मिला मगर छत के एक साइड मे बना स्विमिंग पूल जरूर दिख गया। "वा.........उ! टेरेस पर पूल!!! कितना अमेज़िंग होता होगा न! चारो ओर हरियाली खुला आसमान और उस आसमान के नीचे स्विम करना और वो भी ऐसे छत पर। मैंने तो बस फिल्मों मे ही देखा है ऐसा सीन।"
अवनि अपनी ही धुन मे आगे बढ़ते जा रही थी। पूल को नजदीक से देखने के चक्कर मे वह सिया के फोन के बारे मे भूल ही गयी। जैसे ही अवनि पूल के करीब पहुँची उसके होश उड़ गए। पूल के बिचोबीच पानी के अंदर सारांश तैर रहा था और पानी मे किसी तरह की कोई हलचल नही हो रही थी। अवनि की जान सूख गयी, उसने आव देखा न ताव अपना दुपट्टा साइड मे फेका और पूल मे छलांग लगा दी।
क्रमश: