Chapter 82
humsafar 82
Chapter
82
एक प्यार भरी रात के बाद सुबह जब अवनि उठी तो खुद को काफी हल्का महसूस कर रही थी। सारांश को सारी सच्चाई बताने के बाद उसे काफी अच्छा लग रहा था। सारी बातें सोचते हुए उसके होठो पर मुस्कान तैर गयी लेकिन अगले ही पल घड़ी पर नज़र पड़ते ही अचानक से वो मुस्कान गायब हो गयी, "सारांश ने मुझे उठाया क्यों नही? कहीं वो नाराज तो नही है? कहीं मैंने नींद मे कुछ ऐसा वैसा तो नही बोल दिया जिसका उन्हे बुरा लगा हो?" अवनि झटके से उठ बैठी और कमरे के चारों ओर देखा लेकिन सारांश वहाँ नही था। उसने गार्डन और फिर बाथरूम मे भी देखा लेकिन वहाँ कोई भी नही था।
तभी कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज़ आई तो अवनि उसी ओर तेज़ कदमों से भागी। उसने देखा सारांश अभी अभी अपनी मॉर्निंग रुटिन से वापस आया था। अवनि भाग कर जाकर उसे पकड़ लिया, "आपने मुझे जगाया क्यों नहीं? मुझे लगा मेरी किसी बात से आप नाराज है और मुझे बिना बताए आप ऑफिस चले गए।"
" नाराज......! मैं क्यों नाराज होने लगा तुमसे! हां मैं नाराज़ हो सकता हूं तुमसे अगर तुमने मुझसे एक वादा नहीं किया तो", सारांश ने कहा।
" कैसा वादा?" अवनि ने पूछा।
" मुझसे वादा करो अवनि कि आज के बाद तुम मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाओगी। जो भी बात होगी तुम मुझे सबसे पहले आकर बताओगी। मुसीबत से अगर लड़ना है और अगर हमें साथ में रहना तो हमारे बीच की अंडरस्टैंडिंग सबसे अच्छी होनी चाहिए। ये जो भी है बहुत चालाक है, इससे लड़ने के लिए हमें पूरी प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी इसीलिए चाहे कुछ भी हो हम दोनों एक दूसरे से कभी कोई बात नहीं छुपायेंगे।" उसने कहते हुए हाथ आगे किया तो अवनि ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया।
"लेकिन आप ऐसे क्यों बात कर रहे है? और ये प्लानिंग.......! मेरी कुछ समझ नही आई।" अवनि ने असमझ की स्थिति मे कहा तो सारांश ने उसे सारा सच बताना ही सही समझा।
"अवनि.....! जिसे तुम लक्ष्य समझ रही हो वो कोई लक्ष्य नही है और ना ही वो तुम्हारा कोई सीनियर था। इनफैक्ट वो तो कभी उस कॉलेज मे पढ़ा ही नही। श्रेया ने मुझे पहले ही सब बता दिया था फिर भी मै ये सब तुम से सुनना चाहता था। मुझे तुम पर और तुम्हारे प्यार पर हमेशा से यकीन रहा है अवनि और इसीलिए मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है उससे लड़ने के लिए, बस तुम्हें हिम्मत बनाये रखना है। वो जो भी है बहुत शातिर है जो अपने पीछे कोई सुराग नही छोड़ता और सच कहु तो शायद मै जानता हू उसकी असलियत। इस बारे मे मै इस वक़्त तुम्हें नही बता सकता लेकिन इतना तय है की वो बहुत जल्द तुम्हारे सामने होगा।", सारांश ने कहा।
लक्ष्य के बारे मे ये सब सुन अवनि को एक बार फिर झटका सा लगा। उसे समझ नही आ रहा था आखिर और कितने धोखे दिए है अब तक उसने! और क्या क्या जानना बाकी है उसके बारे मे! "मै आपका पूरा साथ दूँगी और वो जो कोई भी है, उसे हम कभी जीतने नही देंगे।" अवनि ने कहा और टॉवल उठाकर बोली, " मैं फ्रेश होकर आती हूं" अवनि ने कहा और बाथरूम में चली गई। उसने पूरा मन बना लिया था की अब वो लक्ष्य से नही डरेगी।
कुछ देर बाद जब अवनि नहा कर बाहर निकली तो वहां कमरे मे सारांश नहीं था। अवनि अपने बाल सुखाते हुए गार्डन की ओर गई तो वहाँ का नजारा देख उसके होश उड़ गए। सारांश पूल के अंदर था और उसकी बॉडी में कोई हलचल नहीं हो रही थी। अवनि को पता था कि सारांश ऐसा करता है लेकिन फिर भी वह घबरा गई और पूल में छलांग लगा दी।
पिछली बार की तरह इस बार भी अवनि ने सारांश को बचाने के लिए पूल में छलांग लगाई लेकिन जैसे ही उसके करीब पहुंचने को हुई, वो खुद ही डूबने लगी। जिस वक़्त अवनि ने पूल मे छलांग मारी तभी सारांश ने उसे देख लिया था। सारांश को पता था की अवनि इस बार भी उसे बचाने के चक्कर मे खुद ही डूबने लगेगी। उसने जल्दी से अवनि को कमर से पकड़ा पर अपनी ओर ऊपर की तरफ खींच लिया। कुछ ही देर मे अवनि की सांसें उखड़ने लगी थी, उसने जब सारांश का सहारा पाया तब वह उससे किसी बेल की तरह लिपट गई।
अवनि ने अपनी उखड़ चुकी सांसों को नॉर्मल किया और सारांश से अलग होते हुए बोली, "आप ठीक तो है? आपको कुछ हुआ तो नहीं? आप ऐसे.........मेरी तो जान ही निकल गई थी!"
"तुम्हें पता है अवनि फिर भी तुम...!" सारांश ने हंसते हुए कहा।
" जानती हूं और याद भी है मुझे आपने जो भी कहा था लेकिन मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। क्या पता आपको जब मेरी जरूरत हो और मैं इस तरह किनारे पर बैठी रहू और मुझे पता ही नहीं चले! आगे से भी जब भी आप ऐसी कोई हरकत करेंगे मैं तब भी ऐसे ही करूँगी। अगर आप नहीं चाहते तो प्लीज जब मैं आपके आसपास ना रहु तो आप इस तरह की कोई हरकत नहीं करेंगे और ये वाला वादा मुझे आपसे चाहिए।" अवनि ने हल्का गुस्सा दिखाते हुए कहा।
सारांश ने भी उसकी बात समझते हुए वादा किया। अवनी अभी अभी नहा कर निकली थी और एक बार फिर वह भीग गई थी। अवनि सारांश की पकड़ से छूट कर बाहर निकलना चाहती थी लेकिन सारांश ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। अवनि सारांश के इरादो को अच्छे से भाँप गई,उसने कहा "आज मेरा व्रत है! ऐसा वैसा कुछ नहीं कर सकते है आप!"
"मैं कहां कुछ कर रहा हूं! आज तुम्हारा व्रत है और मौसम भी गर्म है। पानी में रहोगी तो तुम्हारे टेंपरेचर भी नॉर्मल रहेगा और तुम्हें प्यास भी नहीं लगेगी, तुम्हारा व्रत भी आसानी से पूरा हो जाएगा।" सारांश में शरारत से कहा। अवनि ने उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश की तो सारांश ने भी उसे किनारे पर लाकर बैठा दिया। अवनि मौका पाते ही वहां से भाग निकली।
सारांश जैसे ही ऑफिस जाने के लिए नीचे उतरा, सिया नाश्ते की टेबल पर उसी का इंतजार कर रही थी। सारांश धीरे से चलता हुआ सिया के पास आया और टेबल से एक फ्रूट उठाकर सिया से बोला, "मॉम! मेरी एक जरूरी मीटिंग है मैं ऑफिस में ही नाश्ता कर लूँगा।"
सिया ने एक टेढ़ी नजर सारांश पर डाली जो ऑफिस जाने के लिए तैयार था, " वहीं रुक जा....!" सिया की आवाज सुन सारांश जान गया की सिया इस तरह कभी बात नहीं करती है लेकिन जब करती है इसका मतलब जरूर उसकी टांग खींचने वाली हैं। सिया कुर्सी से उठी और उसके पीछे आकर खड़ी हो गई और बोली "बाप पर गया है तू। फ्रूट हाथ में रख कर क्या दिखाना चाहता है कि आज तु खाना खाने वाला है!!! चुपचाप इसको बास्केट में डाल दे और मुझसे तो झूठ बोलने की कोशिश भी मत करना।"
सिया की बात सुन सारांश झेंप गया और सर झुका लिया। सिया ने उसके कान खींचे फिर गाल थप थपाकर बोली, "शरद भी बिल्कुल ऐसे ही करते थे, जब भी मैं कोई व्रत करती थी ना वह भी मेरे साथ ही मेरे लिए भूखे रहते थे। अच्छा लगा तुझे ऐसा करते देख। मैं हूं इसलिए जाने दे रही हूं वरना शरद होते ना तो इस वक्त तुम्हारा क्या हाल करते वो तुम सोच भी नहीं सकते।" कहकर सिया खिलखिला कर हंस पड़ी। सारांश भी मुस्कुरा दिया और सिया को बाय बोल कर ऑफिस के लिए चला गया। अवनि वही पीछे खड़ी दोनों की बातें सुन रही थी।
कार्तिक तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल रहा था वही काव्या बेड पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी और बोर हो रही थी के सामने फ्रूट का एक पूरा बॉल रखा हुआ था जो अवनि वहाँ रख कर गयी थी और जिसे उसने अभी तक हाथ भी नहीं लगाया था। कार्तिक उसके पास आया और बोला, "काव्या ऐसे कैसे चलेगा अगर तुम खाओगी नहीं तो! डॉक्टर ने कहा था ना प्रॉपर रेस्ट और खाना दोनों जरूरी है तुम्हारे लिए भी और बेबी के लिए भी , फिर भी तुम!"
"अवनि कितनी खुश है ना अपने पहले तीज को लेकर! मां को देखा करते थे हम लोग इस दिन का इंतजार करते हुए! एक अलग ही रौनक होती थी उनके चेहरे पर आज के दिन। वही रौनक आज मै अवनि के चेहरे पर देख रही हूं। जिस अचानक से उसकी शादी हुई, दोनों का रिश्ता इतनी जल्दी इतना गहरा और मजबूत हो जाएगा मैंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। और देखो! जो अवनी आधी रात को उठकर भी खाना खाती थी वह आज किसी के लिए पूरा दिन भूखी रहेगी। पहले मुझे यह सब बातें बड़ी अजीब सी लगती थी लेकिन सच कहूं तो इस बार मेरा भी दिल कर रहा है। काश मै भी कर पाती।"
" तुम्हें कैसे बताऊ काव्या! अवनी शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी मैंने उसे जबरदस्ती तैयार किया था। उसने सारांश से शादी मजबुरी मे की थी क्योंकि उसकी लाइफ में कोई और था और वह उसका इंतजार कर रही थी लेकिन इस तरह अवनी को देखकर मैं खुद भी हैरान हूं और साथ ही खुश भी हूं", कार्तिक ने मन मे कहा।
"कार्तिक! अगर मैं कुछ करने को कहूं तो मेरी एक बात मानोगे प्लीज", काव्या ने कहा।
"हां बोलो काव्या! क्या काम है?" कार्तिक ने पूछा।
" कार्तिक मैं चाहती हूं कि तुम एक बार तरुण से मिलो। मैं नहीं चाहती कि वह किसी की झूठी उम्मीद में जीए। एक बार तुम उससे मिलो और उसे समझाओ कि अपनी लाइफ में आगे बढ़ जाए, जैसे मैं अपनी लाइफ में आगे बढ़ चुकी हूं। मेरी किसी बात पर उस पर कोई असर नहीं होता शायद तुम्हारे कहने का असर हो। उस पर से भी उसने मेरे बुटीक के सामने ही अपना ऑफिस लिया है और वह वहां से......." काव्या कहते कहते अचानक से रुक गयी। कार्तिक समझ गया कि काव्या क्या कहना चाहती है। देखा जाए तो यह सही भी था क्योंकि अब वह काव्या से अलग नहीं हो सकता था लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह तरुण को बोलेंगे तो क्या? क्या उसके कहने का कोई असर होगा भी उस पर? उसने कहा, "मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा काव्या।" कहकर कार्तिक ऑफिस के लिए निकल गया।
चित्रा नाश्ते की टेबल पर बैठे नाश्ते की प्लेट पर रखे पराठे पर छूरी चलाये जा रही थी। उसे ऐसे करते देख लग नहीं रहा था कि आज वो नाश्ता करने के मूड में है। निक्षय वहीं बैठा उसकी हर हरकत पर नजर रखे हुए था। उसने बिना उसकी ओर देखे कहा, "अगर तुम्हारा मन नहीं है तो वही करो जो तुम्हारा दिल कह रहा है। अगर तुम आज का व्रत......." कहते-कहते निक्षय रुक गया। उसने अपनी बात पूरी नहीं की लेकिन चित्रा जानती थी वह क्या कहना चाह रहा है।
"नहीं मुझे किसी के लिए कोई व्रत नहीं करना और खासकर उसके लिए तो बिल्कुल नहीं जिस पर मेरा कोई हक नहीं जिसके लिए व्रत करने वाली ऑलरेडी उसके पास है। अब मुझे जरा सी भी कोई उम्मीद नहीं है किसी के आने का और ना ही किसी का इंतजार है। जो मेरे सामने है बस वही मेरा सच है और कुछ नहीं।" कहकर उसने पराठे का एक टुकड़ा अपने मुंह में रख लिया।