Chapter 105
humsafar 105
Chapter
105
दशहरे के दिन सुबह-सुबह अवनि नहा धोकर जब बाहर निकली, उस वक्त सारांश फोन पर किसी से बात कर रहा था। उसके चेहरे के भाव से अवनि को कुछ कुछ समझ आ गया कि जरूर कोई प्रॉब्लम है। फोन काटने के बाद भी सारांश कहीं खोया हुआ सा परेशान दिख रहा था। अवनि उसके पास गई और उसके कंधे पर हाथ रख पूछा, "क्या हुआ सारांश! क्या प्रॉब्लम है, बहुत परेशान नजर आ रहे है?"
सारांश अवनी की आवाज सुन चौक गया। उसे अहसास ही नहीं हुआ कि अवनी कब बाथरूम से बाहर निकली। उसने खुद को संभालते हुए कहा,"नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है! कुछ खास नहीं, बस ऐसे ही", सारांश ने बात टालने की कोशिश की लेकिन अवनी बोली, "आप झूठ बोलने में बिल्कुल भी माहिर नहीं है। आपको झूठ बोलना आता नहीं तो फिर आप बोलते क्यों है?"
सारांश से कुछ कहते नहीं बना। वह इस वक्त काफी ज्यादा डिस्टर्ब लग रहा था। अवनी से देखा नहीं गया और वह सारांश के सीने से लग गई। सारांश को थोड़ी राहत सी मिली लेकिन मन अब भी बेचैन था। अवनि उसका पीठ सहलाते हुए बोली,"आज दशहरा है, आज के दिन कुछ गलत नहीं हो सकता। आज का दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का है, आप देखना बुराई जरूर खत्म हो जाएगी।"
"बुराई खत्म हो यह अच्छा है अवनि लेकिन अगर बुराई के साथ बुरा करने वाला इंसान ही खत्म हो जाए, यह तो सही नहीं है। किसी के मन से बुराई निकाल कर उसे अच्छा इंसान बनाना ही दशहरे का असली मकसद है।"
" भगवान राम ने भी रावण के भीतर की बुराई खत्म करने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन जब रावण ने बुराई का साथ नहीं छोड़ा तब उसका भी अंत होना जरूरी हो गया। आप शुभ को लेकर परेशान है ना",अवनि ने कहा।
सारांश ने कुछ नहीं कहा और यूं ही अवनि को अपनी बाहों में थामे खड़ा रहा,' तुम जाओ! पूजा का समय हो गया है, मैं तैयार होकर आता हूं" कह कर उसने अवनी को छोड़ा और खुद बाथरूम में चला गया।
रावण दहन का कार्यक्रम मित्तल मेन्शन में ही रखा गया था। शाम के वक्त सभी रावण दहन के लिए तैयार खड़े थे, उन सबके सामने रावण का विशालकाय पुतला खड़ा था। अवनि ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की, "हे भगवान! जैसे आज बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी, वैसे ही इस घर से हर बुराई को मिटा दो ताकि सभी चैन और सुकून से जी सकें"
पूरा घर बाहर मौजूद था लेकिन सिद्धार्थ कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। सिया ने उसे ढूँढने के लिए चारों ओर नजर दौड़ाई लेकिन वह वहां था ही नहीं। सिया ने सारांश से पूछा, "सारांश...! सिद्धार्थ कहां है?"
" मॉम वो तो तैयार हो रहे थे, अभी तक नहीं आए। पता नहीं कहां रह गए!" सारांश ने कहा तो सिया ने श्यामा को बुलाया और अंदर जाकर सिद्धार्थ को ढूंढने को कहा। श्यामा पहले तो छोड़ी हिचकीचाइ लेकिन वह सिया की बात टाल भी नहीं सकती थी। उसने हिचकते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और घर के अंदर दाखिल हुई। घर में पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था क्योंकि सभी लोग बाहर थे। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई लेकिन सिद्धार्थ कहीं नहीं दिखा उसे।
श्यामा धीमे कदमों से सिद्धार्थ के कमरे की ओर गयी। वहां जाकर उसने देखा सिद्धार्थ आईने के सामने अपने कुर्ते में उलझा हुआ सा था। उसकी पीठ श्यामा की तरफ थी इसीलिए श्यामा को समझ नहीं आया कि आखिर सिद्धार्थ कर क्या रहा है। "सब आपको बाहर बुला रहे हैं" श्यामा ने धीरे से कहा तो सिद्धार्थ उसकी आवाज सुनकर चौक गया।
सिद्धार्थ के होठों पर एक मुस्कान खिल गई फिर वह शांत होकर श्यामा की ओर पलटा और बोला,"यह बटन लगा देंगी प्लीज! नहीं हो रहा मेरे से।"
"आप कुर्ता उतार कर दे दीजिए, मैं लगा दे रही हूं" श्यामा ने नजरें नीची करते हुए कहा।
"पहले ही देर हो चुकी है। अभी अगर कपड़े निकालूंगा फिर पहनुंगा तो उसमें ज्यादा वक्त लग जाएगा। आप ऐसे ही लगा दीजिए। मेरे हाथ में सुई धागा भी है आपको आसानी होगी", सिद्धार्थ ने कहा लेकिन श्यामा वही दरवाजे पर ही खड़ी रही। उसकी हिम्मत नहीं हुई अंदर कमरे में दाखिल होने की। उसे यूं हिचकिचाता देख सिद्धार्थ खुद उसके करीब आकर खड़ा हो गया और सुई जो की बटन और कुर्ते में लगी हुई थी वह श्यामा को पकड़ा दिया।
श्यामा ने ना चाहते हुए भी सुई हाथ में थामा और कांपते हाथों से उसका बटन लगाने लगी। सिद्धार्थ एकटक उसे देखे जा रहा था लेकिन श्यामा की नजर बटन पर थी। आज पहली बार वह दोनों एक दूसरे के इतने करीब खड़े थे। सिद्धार्थ पहली बार उसके चेहरे को इतने पास से देख रहा था। उसकी झुकी हुई पलके उसे के चेहरे को और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहे थे। सिद्धार्थ तो उन पलकों में इतना खो गया उसके हाथ कब श्यामा के कमर तक पहुंच गए उसे खुद भी पता नहीं चला।
श्यामा ने उस वक्त साड़ी पहन रखी थी। जैसे ही सिद्धार्थ के हाथों में उसके कमर को छुआ एक करंट सा श्यामा को महसूस हुआ, जिसकी वजह से उसके हाथ हिल गए और सुई सिद्धार्थ के सीने में चुभ गई। इस सब से बेखबर सिद्धार्थ अभी भी उसकी कमर को थामे वहीं खड़ा था।
"आई एम सॉरी!!! वह गलती से लग गई! आपको ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?", श्यामा ने घबराते हुए पूछा। सिद्धार्थ बोला, "अगर मैं कहूं कि मुझे दर्द हो रहा है तो उसे ठीक करने के लिए क्या करोगी?"
श्यामा ने हैरानी से सिद्धार्थ को देखा, आखिर उसके कहने का मतलब क्या था! " तुम ऐसे डरी सहमी सी मत रहा करो। मुझे तो गुस्से वाली श्यामा ज्यादा पसंद है।" सिद्धार्थ ने शरारत से कहा जिससे श्यामा को फिर गुस्सा आ गया। उसने खुद को सिद्धार्थ की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की लेकिन सिद्धार्थ ने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी। उसने उसे अपनी ओर कमरे में खींच लिया और दीवार से लगा दिया।
" छोड़िए मुझे! आप मेरे साथ बदतमीजी कर रहे हैं। बाहर सब आपका इंतजार कर रहे हैं, मैं यहां बस आपको बुलाने के लिए आई थी। छोड़िये मुझे और जाने दीजिए वरना मैं चिल्ला चिल्ला कर सबको बुलाऊँगी" श्यामा ने गुस्से में कहा लेकिन सिद्धार्थ पर उसके किसी भी बात का कोई असर ना हुआ। वह उसके और करीब आकर बोला, "तुम्हें चिल्लाना है तो चिल्लाओ! और सब को बुलाओ! मैं भी देखता हूं इस वक्त यहां कौन आता है और अगर कोई आ भी गया तो हमें इस हालत में देख कर खुद ही भाग जाएगा। तुम्हें यकीन नहीं होता तो ठीक है मैं हीं आवाज लगाता हूं सबको"
सिद्धार्थ ने जैसे ही चिल्लाना चाहा श्यामा ने उसके मुंह पर हाथ रख उसे चुप करा दिया," आप आखिर चाहते क्या है? क्यों कर रहे हो यह सब? क्या मिल जाएगा यह सब करके?",श्यामा की आंखों में नमी उतर आई तो सिद्धार्थ की पकड़ थोड़ी कमजोर पड़ गई। उसने श्यामा का चेहरा अपने एक हाथ से थाम लिया और बोला,"सिर्फ तुम्हें चाहता हूं श्यामा! इस घर में........अपने दिल में........ अपनी जिंदगी में.......प्लीज ना मत कहना"
"रिश्ता दो लोगों के बीच में ही नहीं होता है सिद्धार्थ सर, बल्कि दो परिवारों में भी होता है। मेरा तो अब कोई परिवार रहा नहीं और जो कमी मुझ में है उसे देख कर कोई भी परिवार मुझे अपनाना नहीं चाहेगा। जो दर्द मैंने जिया है वह मेरे सीने में दफन है। वो जिंदगी भर मुझे रुलाने को काफी है। अब किसी और रिश्ते को मैं यह मौका नहीं देना चाहती कि वह मुझे कोई भी दर्द दे।"
"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि हर रिश्ता दर्द देता है! एक बार इस रिश्ते को मौका देकर तो देखो! वादा करता हूं, हर दर्द को भूल जाओगी।" सिद्धार्थ बोला।
"सिर्फ अपने बच्चे के लिए आप एक ऐसी लड़की से क्यों बंधना चाहते हैं सिद्धार्थ सर जो आपके लायक नहीं" श्यामा ने कहा।
"तुमसे किसने कहा कि ये रिश्ता मैं मजबूरी में बांधना चाहता हूं? तुमने अनाथआश्रम और वृद्धाश्रम को एक साथ कोलैबोरेट क्यों किया? इसीलिए ना कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। तुम्हें अपनी लाइफ में किसी की जरूरत हो या ना हो लेकिन समर्थ को तुम्हारी जरूरत है और उससे भी कहीं ज्यादा मुझे तुम्हारी जरूरत है श्यामा! यकीन मानो श्यामा मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं किसी को अपनी लाइफ में आने दूंगा। जिस रिश्ते में तुम्हें तकलीफ मिली है वैसे ही तकलीफ से मैं भी गुजरा हूं। आठ साल दिए थे मैंने उस रिश्ते को यह सोच कर कि हम दोनों के बीच का रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत होगा। लेकिन सिवाय दर्द, तकलीफ और तानों के कुछ और हासिल ना हुआ। लोगों के तानों ने जब तक मुझे छलनी किया तब तक मैंने बर्दाश्त किया लेकिन जब उनकी नजर मेरे बच्चे पर गई तब मैं यहां से जाने का फैसला लिया। अब तक मुझे लगता रहा कि मैं अकेले ही समर्थ को संभाल सकता हूं लेकिन तुम्हारे आने से अब ऐसा लगने लगा है कि सच में मै कितना अकेला और अधूरा हूं। समर्थ को इस दुनिया में लाने के लिए मैंने उस लड़की के आगे हाथ जोड़े जिसने मेरे बच्चे को इस दुनिया मे आने से पहले ही मारने की कोशिश की थी। तुम ने तो उसे मां का प्यार दिया है, तुम सोच भी नहीं सकती तुम्हारे सामने मैं किस कदर झुक सकता हूं।" सिद्धार्थ ने कहा।
सिद्धार्थ की बातों से श्यामा पिघलने लगी थी। उसकी आंखों में वह वही दर्द देख रही थी वह जो उसके खुद के सीने में दबी थी लेकिन सामने आईने पर नजर आते ही एक बार फिर वह वास्तविकता मे लौटी। उसने खुद को संभाला और अपना फोन निकाल कर उसका कैमरा ऑन किया,"थोड़ा नीचे झुकिए मेरी तरफ!" श्यामा ने कहा तो सिद्धार्थ थोड़ा सा झुक के उसके चेहरे के करीब आया श्याम ने एक तस्वीर खींची और उसे दिखाते हुए बोली, ,"देखिए इसे! कैसा लग रहा है यह! कैसी लग रही है यह जोड़ी?"
" बिल्कुल राधा कृष्ण की जोड़ी लग रही है", सिया ने दरवाजे पर खड़े होकर कहां तो श्यामा चौक गई। उसे यू सामने देख श्यामा घबरा गई और सिद्धार्थ से दूर हो गई। सिया ने श्यामा का हाथ पकड़ा और फिर से उसे सिद्धार्थ के करीब खड़ा कर बोली, "बिल्कुल राधे श्याम की जोड़ी है तुम दोनों की। जब वह जोड़ी कितनी प्यारी लगती है तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम दोनों बेमेल हो!"
"मैम आप समझ नहीं रही है.....!"
"मैम नहीं मां कहो। सिद्धार्थ मुझे मॉम बुलाता है तो तुम चाहो तो मुझे मॉम भी बुला सकती हो, यह तुम्हारी मर्जी है। लेकिन आज के बाद मुझे मैम कभी मत बोलना", सिया ने सख्ती से कहा। श्यामा ने एक बार फिर उसे मैम बुलाना चाहा तो सिया ने एक बार फिर उसे डाटा। आखिर में जाकर श्यामा को उसे मां कहना ही पड़ा।
"माँ आप........सब कुछ जानते हुए भी आप ऐसा कैसे कह सकती हैं! क्या आप नहीं जानती कि मुझ में क्या कमी है?"
"जो कमी तुम में है वह यह दोनों पूरी कर सकते हैं लेकिन जो कमी इन दोनों में है वह तुम अकेले ही पूरी कर सकती हो। रिश्ता तो ऐसे ही जुड़ता है ना बेटा, कोई भी परफेक्ट नहीं होता। परफेक्ट बनाना पड़ता है। हमारी कमी हमारा जीवनसाथी पूरा करता है। तुम दोनों का रिश्ता भी ऐसा ही है। जब तुमसे पहली बार मिली थी ना उसी वक्त तुम्हें अपना बनाने का दिल किया था। मैं नहीं जानती थी कि मेरी चाहत इतनी जल्दी पूरी होगी। तुम समर्थ की मां बनोगी, तुम्हारा खुद का एक बच्चा जिस पर सिर्फ तुम्हारा हक होगा।"
. "ना मत कहना भाभी!!! प्लीज ना मत कहना! आप जल्दी से आ जाओ इस घर में फिर हम दोनों मिलकर ना इनकी ऐसी टांग खिंचाई करेंगे, ऐसी बैंड बजाएंगे ना कि इसके बाद ये मेरी चुगली करना भूल जाएंगे",सारांश ने श्यामा को पीछे से कंधे से पकड़ते हुए कहा। एक एक कर सभी वहां पहुंच गए और सब ने श्यामा को मनाना शुरू किया। श्यामा बस उन सब का चेहरा ही देख रही थी। जिस एक कमी की वजह से वह खुद को हीन समझने लगी थी, सारी सच्चाई जानते हुए भी इतने सारे लोग उसे अपनाने को तैयार थे। यह सोच उसकी आंखों में आंसू आ गए तभी समर्थ ने उसके पल्लू को खींचते हुए कहा,"मम्मा! प्लीज मान जाओ"
श्यामा को किसी और के बातों से फर्क पड़े या ना पड़े लेकिन समर्थ की बातों ने उसे रुला दिया। वह बैठी और समर्थ को अपने सीने से लगा लिया। "मेरा बच्चा! मेरा बच्चा!" कहते हुए श्यामा जोर जोर से रोने लगी। उसे यूँ रोता देख सभी की आंखों में आंसू आ गए लेकिन सबके दिल में खुशियां ही खुशियां थी। श्यामा ने सीधे-सीधे ना कहते हुए भी उसने इस रिश्ते के लिए हां कर दिया था।
सारांश ने सिद्धार्थ को साइड से हग करते हुए कहा, "भाई मुबारक हो! अब आपकी बैंड बजने वाली है ऐसे भी और वैसे भी!"
सिद्धार्थ ने मुस्कुराकर सर झुका लिया और बोला, "मैं इंतजार करूंगा उस दिन का"
सारांश श्यामा के पास गया और बोला, "पता है भाभी मेरा भाई ना शेर है शेर! और आप देवी मां!!! आप ही इन्हें कंट्रोल कर सकती है!" सिद्धार्थ ने जब सुना तब वह सारांश को मारने के लिए आगे आया। सारांश ने भी श्यामा को अपने आगे खड़ा कर दिया ताकि सिद्धार्थ कुछ ना कर पाए। "आई थिंक अब हमें चलना चाहिए। आप दोनों को रोमांस करना हो तो पूजा के बाद भी कर सकते हैं, मुहूर्त निकला जा रहा है। चलो चलो!! जल्दी चलो सब कोई"
सारांश जल्दी से सब को लेकर वहां से निकल गया। कमरे में सिर्फ श्यामा और सिद्धार्थ ही बचे थे। सिद्धार्थ ने श्यामा का हाथ पकड़ा और उसे घर से बाहर ले आया जहां रावण दहन होना था।
अवनी ने श्रेया को फोन कर बताया, "श्रेया श्याम दि ने सिद्धार्थ भैया से शादी के लिए हा कर दी है।"
श्रेया ने जब यह खबर सुनी तो वह खुशी से उछल पड़ी। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि तलाक होने के इतनी जल्दी ही उनकी जिंदगी इस कदर बदल जाएगी। श्रेया ने जब अपने मां पापा को यह बात बताई तो वह लोग खुश तो हुए लेकिन तुरंत ही उनके चेहरे के भाव बदल गए। उन्हें समझ ही नहीं आया कि उन्हें श्यामा के लिए खुश होना चाहिए या फिर......
रावण दहन का समय हो चुका था। पंडित जी ने मुहूर्त ठीक पहले पूजा की। रावण दहन हर बार की तरह इस बार भी बड़े बेटे होने के नाते सिद्धार्थ को करना था लेकिन दहन से ठीक पहले पुलिस वहां पहुंच गई। पुलिस को वहां आया देख किसी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन सारांश के माथे पर शिकन पड़ गई।
सिया ने उन लोगों से बात करनी चाहि लेकिन इंस्पेक्टर ने सीधे-सीधे सारांश को आवाज दी। उन्होंने एक पिस्टल निकालकर सारांश को दिखाते हुए पूछा, "यह आपकी है?" सारांश ने हां में जवाब दिया तो इंस्पेक्टर ने कहा, "इससे किसी का खून हुआ है। आपने अलीशा को अपने कस्टडी में रखने की इजाजत मांगी थी और हमने वह दे भी दी थी लेकिन आज सुबह ही हमें उसकी लाश मिली है और गोली इसी बंदूक से चली है। हम वहां गए थे जहां पर अलीशा को रखा गया था। वहीं पर उसका कत्ल हुआ है और लाश को उठाकर पीछे झाड़ियों में फेंक दिया गया था।"
"आप कहना क्या चाहते है इंस्पेक्टर! मेरे बेटे ने किसी का खून नहीं किया। वह कर ही नहीं सकता है ऐसा। अगर करना ही होता तो हम अलीशा को अपने कैद में कभी ना रखते" सिया ने सारांश का बचाव किया।
"आईएम सॉरी मैम लेकिन.........मुझे मिस्टर मित्तल को अरेस्ट करना ही होगा", इंस्पेक्टर ने कहा। शुभ वही सबसे पीछे खड़ा अपनी प्लानिंग को कामयाब होता देख मुस्कुरा रहा था।
क्रमश: