Chapter 97
YHAGK 96
Chapter
96
मौली को उसके बिस्तर पर सुलाकर रूद्र अपने कमरे में चला आया। नींद की दवाई खाने के बावजूद उसे नींद नहीं आ रही थी और बार बार उसे शरण्या और उसके साथ गुजरे वक्त किसी फिल्म की तरह आंखों के सामने चल रहे थे। जब वह यहां आया था तब उसके मन में बस यही एक डर था कि कहीं शरण्या से उसका सामना ना हो जाए लेकिन अब उसका बस एक ही लक्ष्य था कि उसे शरण्या को कहीं से भी ढूंढना है और लोगों को गलत साबित करना है। उसका और शरण्या का रिश्ता यूं ही नहीं टूट सकता! किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि वह उन दोनों को अलग कर सकें। इस बात पर शरण्या को पूरा भरोसा था और उस भरोसे को अब तक रूद्र ने कायम रखा था। अपने दिल में जिंदा रखा था उसे अपनी शरण्या को।
उसे गए लगभग 8 साल हो गए थे और इस बारे में रूद्र को कुछ नहीं पता, ऐसा कैसे हो सकता था? उसने कह तो दिया कि वह शरण्या को ढूंढ कर रहेगा और शरण्या जिंदा मिलेगी भी लेकिन इस सब की शुरुआत कहां से करें उसे खुद समझ नहीं आ रहा था। पूरी रात उसकी आंखों में गुजर गई। कभी वह शरण्या की तस्वीर देखता तो कभी उसका वो टूटा हुआ मंगलसूत्र जो उसने अभी तक नहीं जोड़ा था।
रूद्र एकदम से उठा और उस मंगलसूत्र के दानों को पिरोने की कोशिश करने लगा, लेकिन उससे हुआ नहीं। अब तक उसने कभी कोशिश नहीं की थी क्योंकि से लगा था शायद उन दोनों की कहानी बस यही तक थी। लेकिन अब जब उम्मीदें फिर से बंधी हैं तो वह फिर से उन सारे एहसासों को जीना चाहता था। एक बार फिर उसका हाथ थामना चाहता था एक बार फिर उसे अपनी जिंदगी मे लाना चाहता था। लेकिन सबके लिए उसे कहीं ना कहीं से शुरुआत तो करनी ही थी।
पूरी रात बैठकर उसने उस डोर को संवारा जो उन दोनों के रिश्ते की निशानी थी। सुबह होने तक रूद्र ने उन सारे मोतियों को पिरो दिया था और वह सारी यादें उसके जेहन में एक बार फिर ताजा हो उठी जब उन दोनों ने मिलकर वह मंगलसूत्र खरीदा था। रुद्र के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान खिल गई।
सुबह सवेरे रूद्र बिना मौली को जगाए घर से बाहर निकल गया। मॉर्निंग वॉक के बहाने वह दिल्ली की सड़कों पर भटकता रहा। अपने मन में चल रहे तूफान को शांत करने की कोशिश करते हुए वह बस भागे जा रहा था। कभी इन्हीं सड़कों का वह शरण्या की आवाज के पीछे भागता था। आज इन्हीं रास्तों पर शरण्या को याद करते हुए एक बार फिर भागे जा रहा था। अचानक से उसके कदम रुके, वह वहां से आगे बढ़ ही नहीं पाया। उसने जब सर उठा कर देखा तो पाया कि वह एक हॉस्पिटल के सामने खड़ा है।
सुबह के 7:00 बज रहे थे और सिर्फ स्टाफ मेंबर और इंडोर पेशेंट के घर वाले ही वहां नजर आ रहे थे। रूद्र समझ नहीं पाया कि वह इस वक्त यहां क्या कर रहा है। वह जैसे ही वहां से जाने को हुआ तभी उसकी नजर हॉस्पिटल से बाहर निकलती हुई नेहा पर गई। उसे देख रूद्र को यह समझते देर न लगी कि नेहा इसी हॉस्पिटल में काम करती है और यह हॉस्पिटल खुद इशान का ही है।
रूद्र वहां से जाना चाहता था लेकिन तभी नेहा की नजर रूद्र पर गई और उसे आवाज देते हुए चिल्लाई, "रूद्र..........!"
रूद्र ने जब नेहा की आवाज सुनी तो उसके कदम वहीं रुक गए। उसे नेहा की वह सारी बातें धीरे धीरे याद आने लगी जो कुछ भी उसने आश्रम में कहा था। नेहा की कहीं उन सारी बातों का मतलब समझने की रूद्र कोशिश करने लगा और उसकी तरफ पलट गया। नेहा आराम से चलते हुए उसके पास आई और बोली, "तुम यहां........? इतनी सुबह..........! मैंने उम्मीद नहीं की थी कि तुम ही आते ही यहां जाओगे। मैंने तो बस यूं ही तुम्हें बागवानी दिखाने को बुलाया था। खैर कोई बात नहीं! अब तुम आ ही गए हो तो थोड़ा हॉस्पिटल भी घूम लो।"
रूद्र को हॉस्पिटल का माहौल कभी पसंद नहीं आया लेकिन इसके बावजूद उसने नेहा को मना नहीं किया और उसके साथ चल पड़ा। वाकई में गुलाब के पौधे बड़े खूबसूरती से लगाए गए थे। सारे एक तरह से और सब अलग अलग रंगों के।
रूद्र ने बड़े ध्यान से उन्हें देखा और बोला, "लाल गुलाब नहीं है तुम्हारे पास? लोग खासतौर पर लाल गुलाब पसंद करते हैं!"
नेहा ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। वहां लाल गुलाब के पौधे थे इसके बावजूद रूद्र का यह सवाल सुनकर उसे कुछ अजीब नहीं लगा। उसने कहा, "यहां लाल गुलाब भी है। तुम्हें कौन सा चाहिए, तुम वह बता सकते हो! अगर बता नहीं सकते तो खुद ढूंढ सकते हो। इस हॉस्पिटल में तुम्हें वो सारे रंग मिल जाएंगे जो तुम्हें चाहिए। आज घूमने आओगे या फिर...........!"
रूद्र उसे बीच में ही टोकते हुए बोला, "मुझे हॉस्पिटल का माहौल कभी पसंद नहीं आया। जब मौली छोटी थी तब भी डॉक्टर ने उसे एडमिट करने को कहा था लेकिन मैंने डॉक्टर को घर बुला लिया था। अब इसे तुम एक तरह का मेनिया भी कह सकती हो। वैसे तुम्हारा हॉस्पिटल है बहुत खूबसूरत और मुझे यकीन है जो मुझे चाहिए वह यहां जरूर मिल जाएगा। लेकिन फिलहाल मुझे जाना होगा। तुम भी तो घर के लिए निकल रही थी शायद, है ना? वैसे एक बात पूछनी थी........ क्या मुझे ईशान से मिलना होगा?"
नेहा ने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुरा कर रह गई। रूद्र को यहां देख उसे बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसा लगा मानो उसने आधी जंग जीत ली हो, लेकिन ये जंग कैसी थी?
दरवाजे की घंटी सुनकर मौली की नींद खुली। उसने आंखें मलते हुए घड़ी देखा तो हड़बड़ा कर उठ गई। सुबह के 9:00 बज रहे थे और मौली कभी इतनी देर तक नहीं सोती थी। उसने अपने सर पर हाथ मारा और बोली, "ओह्ह शीट्! मैं इतनी देर तक कैसे सोती रह गई? पता नहीं डैड कहां है? कहीं दरवाजे पर वो ही तो नहीं?"
दरवाजे की घंटी एक बार फिर बजी तो मौली हड़बढड़ाते हुए बिस्तर से कूद गई और जल्दी से जाकर दरवाजा खोला उसे उम्मीद कि दरवाजे पर रूद्र होगा लेकिन वहां धनराज जी खड़े थे। अपने सामने अपने दादा जी को खड़ा देख मौली ने पूरा दरवाजा खोल दिया और उन्हें अंदर बुलाते हुए बोली, "अरे दादू आप.........! आइए ना अंदर!"
धनराज जी ने घर के अंदर कदम रखा और चारों तरफ देखते हुए बोले, "रूद्र........ कहां है? अभी सो रहा है क्या?"
मौली बोली, "डैड इस वक्त तक नहीं सोते हैं कभी। उनकी आदत है, वह कितनी भी देर रात सोए, सुबह उठ ही जाते हैं। कभी कभी तो सोते ही नहीं, अक्सर ऐसा होता है। जब तक नींद की गोलिया ना ले उन्हें नींद नहीं आती। इन्फैक्ट नींद की गोलियां भी उन पर असर नहीं कर पाती। मुझे लगा शायद वो ही आए हैं। आज मुझे छोड़कर जोगिंग के लिए निकल गए अकेले। आप बैठिए ना, डैड बस आते ही होंगे, मैं उन्हें कॉल कर देती हूं।" कहकर मौली ने अपना फोन किया और रुद्र का नंबर डायल किया। लेकिन रूद्र का फोन घर के अंदर ही बज रहा था।
उसने कहा, "कोई बात नहीं दादू! डैड थोड़ी देर में आ जाएंगे। मैं आपके लिए कॉफी बना दू?"
धनराज जी अपने हाथ मे लाया पार्सल टेबल पर रखते हुए बोले, "उसकी कोई जरूरत नहीं है बेटा! मैं बस तुम दोनों के लिए यह जलेबियां लाया था, रूद्र की मनपसंद दुकान से। तुम्हारे डैड को उनके यहां की जलेबियां बहुत पसंद थी।"
मौली ने जब देखा तो थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, "दादू........ वो........ दादू एक्चुअली........... डैड अब मीठा नहीं खाते। मीठे में सिर्फ एक ही चीज खाते हैं और वह भी सिर्फ खिचड़ी।"
धनराज जी ने जब सुना तो उन्हें बहुत तकलीफ हुई। रूद्र, जो मीठे का दीवाना था और खास तौर पर जलेबिया उसकी कमजोरी थी, उसने अपनी कमजोरी को ही खुद से दूर कर लिया। क्या उसने हर वह चीज छोड़ दी जो से अच्छी लगती थी। जो उसे प्यारी थी!" धनराज जी ने खुद को संभालते हुए कहा, "कोई बात नहीं बेटा! एक काम करो आप मेरे लिए एक कप कॉफी बना दो।"
मौली ने जब सुना तो वहां खुशी खुशी किचन में चली गई। धनराज जी ने चारों तरफ नजर घुमाकर उसके घर को देखा। एक छोटा सा फ्लैट जिसमें करीब 3 कमरे थे। छोटा सा किचन, एक बड़ा सा हॉल, पीछे तरफ बालकनी जहां कुछ पौधे लगे हुए थे। घर में घूमते हुए उनकी नजरों से रूद्र और शरण्या की तस्वीर छुपी ना रह सकी। उस तस्वीर में वह दोनों एक साथ जितने खुश नजर आ रहे थे इतना खुश उन्होंने रूद्र को पहले कभी नहीं देखा था और अब तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी नहीं नजर आती। जब उन्होंने रूद्र का कमरा साफ किया था तो वहां मौजूद कई सारी चीजें शरण्या से जुड़ी हुई थी। कई सारी ऐसी पेंटिंग्स थी जो शरण्या की ही थी। अपने बेटे की ऐसी बदली हुई जिंदगी देख धनराज जी की आंखें नम हो गई। क्या कुछ नहीं कहा था उन्होंने रूद्र को, हर रिश्ता तोड़ दिया था उन्होंने अपने बेटे से, बिना यह जाने बिना यह समझे कि वह खुद कितनी तकलीफ में है। पहले जैसी कोई भी आदत नहीं रह गई थी रूद्र में। वह पहले वाला रूद्र कहीं खो गया था।
मौली हाथ में कॉफी का मग लेकर आई और अपने दादू को आवाज लगा कर कहा, "दादू! ये आपकी फिल्टर कॉफि! बिना चीनी वाली।"
धनराज जी चौंक कर बोले, "आपको कैसे पता मुझे कौन सी कॉफि पसंद है?"
मौली ने कहा, "डैड ने सब के बारे मे बताया है मुझे, खास कर आपके और दादी के बारे मे। पहले पी कर देखिये कैसा बना है?"
धनराज जी ने मग लिया और एक घूँट भरते हुए कहा, "बिलकुल तुम्हारी दादी जैसी.......!" दोनों दादू और पोती एक साथ हँस पड़े।
रूद्र को काफी सारी बातें खटक रही थी। उसके दिमाग मे एक साथ कई बातें घूम रही थी और वो उन सारी कड़ियो को जोड़ने की कोशिश करने लगा। रास्ते पर चलते हुए वो सड़क किनारे ही बैठ गया। अपनी ख्यालो मे ग़ुम रूद्र को वक्त का होश ही नहीं रहा। अचानक से उसे कुछ ख्याल आया और उसने किसी से बात करने के लिए फोन अपनी पॉकेट मे ढूंढा लेकिन फोन तो वह घर पर हि भूल गया था ऐसे मे वो बेचैन हो उठा। उसे जल्दी से जल्दी घर पहुँचना था ताकि उसने जो सोचा था वो उसे अंजाम दे सके।
रूद्र लगभग भागते हुए अपने फ्लैट मे आया और दरवाजे की घंटी बजाई। मौली ने जब सुना तो दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी लेकिन धनराज जी ने उसे रोक दिया और खुद दरवाजा खोलने आगे आए। जैसे ही रूद्र ने देखा कि दरवाजा खोलने बाला शख्स खुद उसके पिता है तो वह उन्हें वहाँ देखकर हैरान रह गया। उनके पैर छूकर रूद्र अंदर आया और बोला, "पापा! आप, यहाँ.......! मेरा मतलब.......!"
ज्यादा फॉर्मल होने की जरूरत नहीं है। मै बस अपने बेटे और पोती को घर ले जाने आया हु। बाकी बातें घर जाकर करेंगे, तुम दोनो फटाफट अपना सामान बांध लो।"धनराज जी ने लगभग आदेश देते हुए कहा।