Chapter 72

Chapter 72

humsafar 72

Chapter

72







    सुबह सुबह सारांश ने अवनि को प्यार से जगाया। लेकिन अवनि इतनी गहरी नींद मे थी की उसपर कोई असर नही हुआ। सारांश ने फिर से जगाने की कोशिश की लेकिन अवनि कंबल खिचकर दूसरी ओर घूम गयी। जब कोई और रास्ता नज़र नही आया तो सारांश ने अवनि को गोद मे उठाया और ले जाकर बाथरूम मे शावर के नीचे खड़ा कर दिया। सुबह सुबह ठंडा पानी जब अवनि पर गिरा तो एक झटके से अवनि की नींद खुली। खुद को ऐसे देख गुस्से से उसकी मुट्ठी बन्ध गयी। उसने गुस्से मे सारांश के सीने पर अपने छोटे छोटे मुक्के बरसाना शुरू कर दिया। 

     "आउच्! आउच्!! आउच्!!! अवनि मार डालोगी क्या?लग रही है मुझे, आउच्!" सारांश ने भी नाटक करते कहा और उसे नीचे उतारा। अवनि को पूरा भीगा हुआ देख सारांश को शरारत सूझी। उसने अवनि के कमर मे हाथ डाला और उसे अपनी तरफ खीच लिया। अवनि ने अपने दोनो बाहों को सारांश के सीने पर रख खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन उसकी पकड़ से छुटना इतना आसान नही था। अवनि को अपनी नींद बहुत प्यारी थी। देर रात सोने की वजह से अवनि की नींद पूरी नही हुई थी और ऐसे पानी डाल दिया जाना उसे बिलकुल भी अच्छा नही लगा लेकिन उसे ध्यान आया की सारांश तो शायद रात को सोया ही नही है!!! 

     अचानक ही अवनि ने अपनी कोशिश बंद कर दी और सारांश का कॉलर पकड़ अपनी ओर खीचा जिससे सारांश भी पूरी तरह भीगने लगा। अवनि ने देखा,पानी सारांश के पलकों से होकर उसके चेहरे पर गिर रही थी। ये बहुत ही खूबसूरत सा पल था जो सुबह सबेरे उसे सारांश के साथ मिला था। जो अवनि कुछ देर पहले तक गुस्से मे थी अचानक से रोमांटिक हो कर सारांश के गले मे बाहें डाल दी। 

     "नींद खुल गयी आपकी, मैडम!!!" सारांश ने पूछा। 

   "हम्म्......! लेकिन इस तरह कौन जगाता है?  माना आप ज्यादा नही सोते इसका मतलब ये तो नही की सामने वाला भी आप की तरह ही.....! अगर जगाना हो तो प्लीज!!!  थोड़ा प्यार से जगा सकते है!!! आई मीन ऐसे नही। " अवनि ने मासूम बन कर कहा। 

   "ठीक है! लेकिन अब जल्दी से तैयार हो जाओ हमें बाहर जाना है।" सारांश ने कहा और अवनि की कमर छोड़ दी। 

   "लेकिन इतनी सुबह.....! थोड़ी जल्दी नही उठ गए हम?" अवनि ने जबरन मुस्कुरा कर कहा। 

    "नही......! बिलकुल भी नही.....! अब से रोज सुबह इसी समय। अब तुम जल्दी से तैयार होकर निकलो मै बाहर वेट कर रहा हु।" सारांश ने कड़क आवाज़ मे कहा और बाहर चला गया। अवनि अपना मुह फुलाए उसे जाते देखती रही और फिर खुद को सुखा कर कपड़े बदल कर बाहर निकली। बाहर आते ही सारांश ने उसे कुछ कपड़े पकड़ाये और तैयार होने को कहा। 

      "लेकिन इसमें क्या खराबी है?" अवनि ने अपने कुर्ता जींस की तरफ देख कर पूछा। 

    "जितना कहा जा रहा है उतना ही करो। ज्यादा दिमाग चलाने की जरूरत नही है।" सारांश ने कहा। अवनि ने देखा, इस वक़्त सारांश अपने चेहरे पर बड़े ही सख्त भाव के साथ खड़ा है और उसपर किसी भी बात का कोई असर नही होम वाला तो उसने कपड़े उठाये और चेंज करने चली गयी। कुछ देर बाद अवनि उबासी लेते हुए बाहर आई। अपने कपड़े देख अवनि समझ गयी थी की सारांश आज से उसकी रोज क्लास लगाने वाला है। उसने देखा सारांश अपने स्टडी रूम जो की उसी कमरे से जुडा था, से बाहर आया। उसके हाथ मे एक ज्वैलरी बॉक्स था जिसे उसने अवनि की ओर उछाल दिया। अवनि ने घबरा कर उस डब्बे को संभाला और बोली, "ऐसे कौन फेंकता है? गहनो को इज़्ज़त के साथ रखा जाता है!!!" 

      तभी अवनि को अचानक से कुछ याद आया और वह सारांश से पूछ बैठी, "आप प्रवीण जी को जानते है?"

     सारांश ने ना मे गर्दन हिला दिया तो अवनि ने ने कहा, "इसका मतलब अपने ही माँ के गहने छुड़वाए थे, शादी से पहले!"

   गहनों की बात सुन सारांश ने अवनि से कुछ नही छुपाया और बोला, "जब तुम कार्तिक के ऑफिस मे जॉब के लिए आई थी मै तभी समझ गया था की कुछ तो प्रोब्लम जरूर है जिस कारण तुम इतने अर्जेंट मे जॉब ढूँढ रही हो। इसीलिए मैंने शादी का पूरा खर्च उठाने का सोचा ताकि माँ पापा को पैसों की चिंता ना करना पड़े। फिर जब तुम ने उनके शॉप पर अपना कार्ड यूज किया था तभी मैंने सारी बातों का पता लगवाया था। उसके बाद ही मैंने प्रवीन जी से बात कर उन्हे सारे गहने लौटाने को कहा था और शादी के बाद ही मैंने उन्हें उनके पैसे भी लौटा दिये थे। ये सारी बातें मै छुपाना नही चाहता था लेकिन अगर बता देता तो शायद तुम्हें मेरे ऐसे बताना बुरा लगता और बात ईगो पर आती। अगर मै तुम्हारे लिए कुछ भी करता हु तो मुझे अच्छा लगता है।" 

    सारांश की बातें सुन अवनि झट से उसके गले लग गयी। इस वक़्त उसे अपने पति पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था, लेकिन सारांश ने कहा, "बस बस! अब पहले इसे खोल कर तो देखो!!!" 

     अवनि ने कहा, "खोलने की क्या जरूरत, आप मुझे जो भी देंगे, अच्छा ही होगा। जो आपको पसंद वो मुझे भी पसं............!" लेकिन अवनि की पूरी बात उसके गले से बाहर निकल ही नही पाई और बॉक्स मे रखे सामान को देख उसने झटके से उसे बेड पर फेंक दिया। "ये.....! ये......! ये क्या है?" अवनि की जान सुख गयी। उसने हकलाते हुए सारांश से पूछा। उसे बॉक्स मे कोई ज्वैलरी नही बल्कि उसमे एक छोटी सी ब्लैक कलर की पिस्टल थी। 

     अवनि की हालत खराब थी लेकिन सारांश बिलकुल शांत खड़ा था। उसने झुक कर पिस्टल उठाई और उसे अवनि के हाथ पर रखते हुए कहा, "इसे पकड़ने की आदत डाल लो। हो सकता है आगे जरूरत पड़े।" अवनि की समझ मे कुछ नही आया। वो तो अभी भी शॉक मे थी। अपने हाथ मे वो एक छोटी सी पिस्टल देख उसके हाथ काँपने लगे लेकिन सारांश ने उन काँपते हाथों को मजबूती से पकड़ लिया। 

     "अवनि......! हम लोग जिस मुकाम पर है, वहाँ हमारे बहुत से दोस्त है लेकिन एक सच ये भी है की जितने दोस्त है उससे कहीं ज्यादा दुश्मन भी है जिनसे हमें बच कर रहना पड़ता है। तुम बाहर जाती हो इसीलिए ये तुम्हारी सेफ्टी के लिए दे रहा हू, ना की किसी को मारने के लिए जिससे तुम इतना डर रही हो। मॉम के पास भी एक है और वो हमेशा उसे अपने साथ रखती है। तुम भी इसे अपने साथ रखो। अगर कोई भी खतरा नज़र आये और बचने का कोई रास्ता ना दिखे तो सामने वाले पर गोली चलाने से मत चूकना, बाकी सब मै संभाल लूँगा। आगे जो भी होगा वो सब मै देख लूँगा तुम बस मेरी बात याद रखना।" सारांश ने कहा और अवनि का हाथ पकड़ कर अपने साथ घर के ही पीछे वाले यार्ड मे बने कमरे मे ले गया। कुछ बेसिक एक्सरसाइज के बाद सारांश ने अवनि की ट्रेनिंग शुरू कर दी जो की अगले कुछ दिनों तक लगातार चलने वाली थी। 


       काव्या ने सुबह सुबह नाश्ता बनाया तबतक कार्तिक भी तैयार होकर नीचे आ गया। काव्या कब से उससे बात करना चाह रही थी लेकिन कार्तिक था की इस टॉपिक को उठने ही नही देता था। उसने आँखे ही बन्द कर ली इन सारे इमोशंस से। दोनो ने बिना कुछ कहे नाश्ता किया और अपने अपने काम पर निकल गए। पूरे रास्ते काव्या अपनी सोच मे डूबी रही। उसे पता भी नही चला की वह दोनो उसके बुटीक के सामने खड़े है। 

     कार्तिक ने काव्या के काँधे पर हाथ रखा तब काव्या होश मे आई और एक नज़र कार्तिक की ओर देखा जो उसे देख मुस्कुरा रहा था। उसकी मुस्कुराहट के पीछे का दर्द देख काव्या से रहा नही गया और वह गाड़ी से उतर गयी। कार्तिक भी वहाँ से अपने ऑफिस के लिए निकल गया। काव्या अपने बुटीक मे पहुँची जहाँ उसकी दोनो इंप्लॉयी ज्योति और प्रभा पहले से मौजूद थी। काव्या को देख दोनो ने उसे मॉर्निंग विश किया। 

     काव्या ने टेबल पर दोनो कोहनी टिका कर अपने चेहरे को हथेली मे छुपा लिया। "आखिर कब तक ऐसे ही चलेगा! जब हम दोनों ही सच जानते है फिर इस रिश्ते का क्या वजूद है!!! मै ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर नही बैठ सकती, कुछ तो करना ही पड़ेगा। आखिर किसी का तो घर बसे। मुझे नही चाहिए अपनी लाइफ मे कोई लेकिन कार्तिक........! और माँ को भी कितनी उम्मीदे है अपने पोते पोतियो के लिए। लेकिन क्या चित्रा इस सब के लिए मानेगी? उसके मन मे क्या है,  मुझे पता लगाना ही होगा। सिर्फ कार्तिक की धमकी से मै यूँ चुप नही बैठ सकती लेकिन कैसे करू......?"

    काव्या अभी ये सब सोच ही रही थी की तभी ज्योति ने आ कर बताया, "दीदी......! आप को मालूम, हमारे सामने वाले मे एक नया बंदा आया है। कोई इवेंट मैनेजमेंट कंपनी का मालिक है। यही अपना ऑफिस खोला है, अरे ऑफिस क्या घर ही बना लिया है उसने। सच कहू दीदी......! बड़ा ही खूबसूरत सा है,देखा मैंने उसे। नाम कुछ........! याद नही आ रहा.......! हाँ....... तरुण!!!" 

     काव्या जो की अभी तक ज्योति की बातों पर ध्यान नही दे रही थी, तरुण का नाम सुनते ही चौंक गयी, "तरुण.....! यहाँ.......!"







क्रमश: