Chapter 162
YHAGK 161
Chapter
161
करीब 3 दिन की छुट्टी मनाने के बाद रूद्र और शरण्या वापस दिल्ली चले आए। शरण्या का बिल्कुल भी मन नहीं था नैनीताल से वापस आने का क्योंकि वह जानती थी वापस दिल्ली आने का मतलब क्या होगा। रूद्र से दूर जाना उसके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। अब उसे महसूस हो रहा था कि 8 साल पहले रूद्र किस दर्द से गुजरा था। उसे भी तो इतनी ही तकलीफ हुई होगी जितनी आज शरण्या को हो रही थी। आज वह भी अंदर ही अंदर टूट कर बिखर रही थी जिस तरह 8 साल पहले रूद्र बिखर गया था। ना उस वक्त रूद्र अपना दर्द बांट पा रहा था और ना ही अब शरण्या अपना दर्द किसी को बता पा रही थी। एक जरा सी गलतफहमी उन दोनों को ही अलग करने जा रही थी और रूद्र को इसकी भनक तक ना थी। जैसे जैसे दिन गुजर रहे थे वैसे वैसे शरण्या की घबराहट बढ़ती जा रही थी।
शिखा जी ने रॉय फैमिली को अपने घर इनवाइट किया और साथ ही पंडित जी को भी। लावण्या उन दोनों की शादी को लेकर कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड थी। उसने अपनी तरफ से खाने-पीने के सारे इंतजाम कर रखे थे और ऑफिस से भी छुट्टी ले ली थी। रेहान को इस सब में कुछ खास इंटरेस्ट नहीं था इसलिए वह ऑफिस चला गया।
पंडित जी ने दोनों की कुंडलियां देखी और बोले, "1 दिन हल्दी, 1 दिन मेहंदी और संगीत और अगले दिन शादी। अगर कोई दिक्कत हो तो हम दिन बदल सकते हैं।"
रूद्र बोला, "नहीं नहीं पंडित जी! कोई दिक्कत नहीं है।"
लावण्या बोली तुम दोनों डायरेक्ट शादी क्यों नहीं कर लेते? कितनी बार एक दूसरे को हल्दी लगाओगे? हां मेहंदी की रस्म कर सकते हैं क्योंकि शरण्या के हाथों की मेहंदी तो कुछ दिनों में उतर जाएगी। हल्दी का रंग नहीं जाता।" कहते हुए उसने रूद्र को कंधे से मारा।
रूद्र शरमा गया और नजरें झुका कर बोला, "हमें कोई परेशानी नहीं है। हल्दी मेहंदी संगीत आप लोगों को जो करना है कीजिए लेकिन शादी उसी दिन होगी। ना एक दिन आगे, ना एक दिन पीछे।" कहते हुए उसने शरण्या की तरफ देखा। शरण्या के चेहरे पर खुशी के कोई भाव नहीं थे। रूद्र को पिछले कुछ दिनों से उसका व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था। उसने हर तरीके से इसके बारे में पता लगाने की कोशिश की लेकिन कहीं से कुछ भी पता नहीं चल सका। कुछ पूछने पर भी शरण्या उसे जवाब नहीं देने वाली थी और यह बात रूद्र अच्छे से समझ चुका था। अपनी शादी के लिए जो इतनी एक्साइटेड थी वही शादी को लेकर उसके चेहरे पर खुशी का कोई निशान नहीं था। वह बस मुस्कुरा रही थी और कुछ नहीं। वह खुशी उसकी आंखों में थी ही नहीं। रूद्र उससे बात करना चाह रहा था लेकिन उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह इस सब की शुरुआत कैसे करें।
लावण्या ने सबके लिए खाना टेबल पर लगवा दिया। तब तक पंडित जी भी अपनी दक्षिणा लेकर वहां से जा चुके थे। सब ने खाना खाया और मिस्टर रॉय अनन्या जी और शरण्या के साथ वापस अपने घर के लिए निकल पड़े। रूद्र अपने कमरे में बैठा शरण्या के बारे में सोच रहा था। लावण्या ने जब उसे इतनी गहरी सोच में डूबा हुआ देखा तो उससे रहा नहीं गया और बिना नॉक किए उसके कमरे में आई।
रूद्र को एहसास ही नहीं हुआ कि उसके कमरे में कोई आया है। लावण्या धीरे से चलते हुए उसके करीब आई और जोर से चिल्लाई, "भू......!!!"
रूद्र एक पल को डर गया और अपने दिल पर हाथ रखते हुए बोला, "लावण्या तुम! इस तरह कौन करता है? पता है मैं कितनी बुरी तरह से डर गया था? अभी मेरा दिल निकल कर बाहर आ जाता तो?"
लावण्या हंसते हुए बोली, "तुम्हारा दिल तुम्हारे पास है कहां जो निकल कर बाहर आएगा! वैसे इतने गहरे ख्याल में डूबे हो गालिब, आखिर किसके ख्यालों में गुम हो गालिब!"
रूद्र ने एक गहरी सांस ली और बोला, "तुम्हारी शायरी सुनकर बेचारे ग़ालिब अभी जिंदा होते तो सुसाइड कर लेते। वैसे मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था।"
लावण्या हैरान होकर बोली, "मुझे तो लगा था तुम शरण्या के बारे में सोच रहे होगे। तुम्हें अपनी शरण्या से फुर्सत मिल गई जो तुम मेरे बारे में सोच रहे थे? इससे बड़ा सरप्राइज और क्या हो सकता है? वैसे मुझ पर इतनी मेहरबानी क्यों?"
रूद्र झूठे गुस्से में उसे घूरते हुए बोला, "सब की शादियों में मैंने ऐसे अरेंजमेंट किए थे कि हल्दी मेहंदी संगीत में होने वाले दूल्हा दुल्हन एक साथ रहे और एक साथ सब इंजॉय कर सके। मेरे शादी में तुम्हें टांग अड़ाना जरूरी था? हाँ ठीक है! मेरी शादी के लिए तुमने अपनी डैड से बात की थी लेकिन यह क्या बात हुई? मेरी हल्दी अलग होगी, शरण्या की हल्दी अलग होगी, एक साथ होती तो तुम्हारा क्या जाता? सब की तरह हमें भी इंजॉय करने का हक है।"
लावण्या उसके करीब आई और धीरे से बोली, "अब और कितना इंजॉय करना है? मेरी हल्दी में भी तुम दोनों ने पूरी तरह से इंजॉय किया था। रजत और नेहा की हल्दी में भी तुम दोनों गायब थे। अब क्या चाहते हो? अपनी हल्दी में भी तुम दोनों गायब रहो? कोई नहीं छोड़ेगा तुम दोनों को इतना जान लो तुम। मुझे तो लगा था कि तुम मुझे थैंक यू बोलोगे। तुम्हारी हल्दी अलग होगी उसकी हल्दी अलग होगी, किसी का भी ध्यान तुम दोनों पर एक साथ तो नहीं जाएगा। अपने कमरे में जाने के बहाने तुम कहीं भी जा सकते हो और वो इंजॉय करना अगर तुम्हें पसंद नहीं है तो फिर बोलो, तुम दोनों की हल्दी का इंतजाम साथ में करवा देते हैं फिर तो तुम दोनों के साथ कोई नहीं कोई हमेशा रहेगा अकेले टाइम नहीं मिलेगा तुम दोनों को। खैर अब जब तुम यही चाहते हो तो ठीक है, मैं कहती हूं सबसे कि तुम दोनों की हल्दी एक साथ करवा दे।" कहते हुए लावण्या कमरे से जाने लगी तो रूद्र दौड़ते हुए उसके सामने आ गया और उसका रास्ता देखते हुए बोला, "तुम्हारी बहन की वजह से मेरा दिमाग खराब हो गया है। कुछ सोचने समझने की हालत में ही नहीं हूं। वैसे आईडिया बुरा नहीं है जैसा तुम्हें ठीक लगे तुम करो लेकिन इस सब में तुम्हें मेरी हेल्प करनी होगी।"
लावण्या ने भी बड़े अदब से कहा, "जी जनाब बिल्कुल!" और वह मुस्कुराते हुए वहां से निकल गई। बाहर आकर उसके चेहरे की मुस्कुराहट थोड़ी कम हो गई। उसने मन ही मन कहा, "बस शरण्या इस घर में बहू बनकर आ जाए उसके बाद मैं यहां से चली जाऊंगी। चाहे कोई कुछ भी कहे।"
अपने शादी के लिए अब तो रूद्र भी थोड़ा नर्वस हुआ जा रहा था लेकिन उसकी यह सारी नर्वसनेस शादी की शॉपिंग को लेकर थी, उसे अपने और शरण्या के लिए मैचिंग ड्रेस चाहिए थी। उसने शहर के बड़े और नामचीन तकरीबन चार से पांच डिजाइनरों को एक साथ कांटेक्ट किया और खास तौर पर शरण्या के लिए डिजाइन करने को कहा। शादी के कार्ड छपने के लिए जा चुके थे लेकिन इधर शरण्या के दिमाग में कुछ और चल रहा था। उसने रूद्र को अपने उसी फ्लैट में मिलने के लिए बुलाया जो रूद्र ने हीं उसके लिए खरीदा था।
रूद्र खुश था कि शादी से पहले उसे और शरण्या को एक साथ कुछ वक्त मिलेगा। वरना जब भी वह दोनों साथ होते थे तो हर किसी की नजर उन पर ही होती थी। या फिर शादी की शॉपिंग और ऑफिस के काम से भी वह दोनों ही उलझे हुए रहते एक दूसरे के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे थे।
रूद्र ऑफिस के काम में लगा हुआ था और जल्दी से जल्दी उसे निपटाने की कोशिश कर रहा था। रजत को समझ नहीं आया कि आखिर रूद्र को इतनी हड़बड़ी किस बात की है? वह आकर रूद्र के सामने बैठ गया और दोनों कोहनी टेबल पर रख कर अपना चेहरा हथेली पर टिका दिया। रुद्र का ध्यान एकदम से रजत पर गया तो लैपटॉप पर चलते उसके हाथ रुक गए। उसने अजीब नजरों से रजत को घूर कर देखा तो रजत मुस्कुरा दिया और भौंहे उचका दी।
रूद्र अपनी कुर्सी पर आराम से बैठते हुए बोला, "अगले 2 घंटे में मुझे सारा काम खत्म करना है और शरण्या से मिलने जाना है। लेकिन यह काम है कि खत्म ही नहीं हो रहा।"
रजत मुस्कुरा कर बोला, "आर एस! इतनी बेचैनी में काम करोगे तो कहां से खत्म होगी? आराम से........! आप ही कहते हो ना! और 2 घंटे बाद यानी आप दोनों की डेट है? सही है! शादी से पहले हमें तो डेट पर जाने का मौका नहीं मिला। हां गलती मेरी भी है, लेकिन कोई बात नहीं आप दोनों की शादी हो जाए उसके बाद मैं नेहा को लेकर जाऊंगा। रही बात काम की तो एक काम कीजिए ना, यह काम मैं निपटा दूंगा आप जाकर उस काम को देखो जिसके लिए मन बेचैन है। 2 घंटे बाद क्यों? आप अभी जा सकते हैं।"
रूद्र खुश हो गया और एकदम से उठते हुए बोला, 'ठीक है मैं निकलता हूं तुम यह सारा काम देख लेना।" फिर एकदम से रुक गया और बोला, "नहीं अभी नहीं जा सकता। हो सकता है वह मेरे लिए कुछ सरप्राइज प्लान कर रही होगी। इतनी जल्दी जाकर मैं उसका सरप्राइज खराब नहीं करना चाहता।"
रजत उसे समझाते हुए बोला, "आपको उन्हें सरप्राइज नहीं देना, वह आपको सरप्राइज देना चाहती है तो आप भी तो दो। ठीक है कम से कम जाकर आप देख तो सकते हो ना कि वो क्या कर रही है और 2 घंटे बाद वहां पहुंचना है तो उनके लिए बुके गिफ्ट वगैरा लेने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ना।"
रुद्र मुस्कुरा दिया और रजत को गले लगाते हुए वहां से बाहर की तरफ भागा। रजत रूद्र का काम निपटाने के लिए बैठ गया। उसने देखा ज्यादा काम नहीं था फिर भी घबराहट और बेचैनी में रूद्र का काम खत्म नहीं हो पा रहा था। रजत को हंसी आ गई।
रूद्र ऑफिस से तेजी से बाहर निकला। उसने शरण्या के लिए एक बड़ा सा बुके लिया, कुछ चॉकलेट। वैसे भी वैलेंटाइन वीक चल रहा था ऐसे में पूरा मार्केट इन्हीं सब चीजों से भरा पड़ा था इसीलिए रूद्र रुको कोई खास परेशानी नहीं हुई। अपनी एक्साइटमेंट में 2 घंटे के बजाय 1 घंटे पहले ही वहां पहुंच गया। घर की एक चाभी रूद्र के पास थी। अंदर से हल्की म्यूजिक की आवाज आ रही थी। रूद्र ने चाबी दरवाजे में डाली और हल्के हाथों से घूमाया ताकि शरण्या को पता ना चल सके। उसने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर चला आया। पूरा हॉल फूलों और लाइट्स से सजा हुआ था। उसे देख रूद्र को अच्छा तो लगा लेकिन शरण्या वहां नहीं थी। उसने पूरे फ्लैट में शरण्या को ढूंढा लेकिन शरण्या उसे कहीं नहीं दिखी। रुद्र को लगा शायद वह कुछ और लेने गई हो यह सोचकर उसने अपने साथ लाया फूल और चॉकलेट टेबल पर रख दिए और उसका इंतजार करने लगा।
घूमते घूमते उसकी नजर टेबल पर ही रखें एक पेपर पर गई जिस पर उसने पहले ध्यान नहीं दिया था। रूद्र ने वो पेपर उठाया तो उसमें शरण्या की लिखावट थी। उसमें लिखा था,
रूद्र,
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। यह बात किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है और ना ही जताने की। एक दूसरे से अलग होकर ना हम कभी जी पाए और ना ही ऐसा होगा। बिना किसी गलती के हम दोनों ने सजा काटी है। मैंने नहीं, तुमने काटी है। मैं तो बेहोश थी, पूरी दुनिया से बेखबर। जब जागी तो तुम्हें अपनी आंखों के सामने पाया। बहुत खुश थी मैं तुम्हें फिर से अपने पास देखकर। अपने प्यार को जीतते देखकर मन घमंड से भर गया और शायद यही नहीं करना चाहिए था। रूद्र जानती हु मैं! तुम हमारी शादी के सपने देख रहे हो और बस कुछ ही दिन बाद हमारी शादी है। यकीन करो, मैं बहुत ज्यादा खुश हु।
इशिता को मुझसे परेशानी थी इसीलिए उसने तुम्हें मुझसे दूर कर दिया। तुम लौटकर वापस मेरे पास आए लेकिन ना सिर्फ इशिता बल्कि उसकी बच्ची की तरफ तुम्हारी भी कोई जिम्मेदारी है। मैं नहीं चाहती कि मेरे प्यार में तुम अपनी जिम्मेदारी को भूल जाओ। आज भले ही इशिता बदल गई हो, वह अपनी बच्ची को अकेले संभाल सकती हो लेकिन उस बच्ची का तुम पर भी तो कोई हक है। मैं जानती हूं अगर मैं तुम्हें कहूंगी तो तुम कभी नहीं मानोगे इसीलिए मैंने तय किया कि मैं हमेशा के लिए यहां से चली जाऊ, तुमसे दूर बहुत दूर। अब एहसास हो रहा है कि तुम्हें कितनी तकलीफ हुई होगी। आज उस दर्द से मैं भी गुजर रही हूं लेकिन इस बात की खुशी है कि तुम्हारे नाम का सिंदूर मेरी मांग में है और हमेशा रहेगा। जब तक जिंदा रहूंगी तुम्हारी ही होकर रहूंगी। तुम बस अपनी दुनिया में लौट जाओ। जब तक तुम्हें यह खत मिलेगा तब तक मैं यहां से बहुत दूर निकल चुकी होउँगी। अपना ध्यान रखना और ऐसी वैसी कोई हरकत मत करना।
तुम्हारी,
सिर्फ तुम्हारी,
शरण्या
रूद्र की तो मानो पूरी दुनिया ही उजड़ गई हो। उसके पैर उसे संभाल ना सके और वह जमीन पर गिर पड़ा।