Chapter 55
humsafar 55
Chapter
55
चित्रा को कुछ कहते नही बना, वह सिर्फ अपनी आँखे नीची किए बैठी रही। वहीं निक्षय उसे देख मुस्कुरा रहा था और उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश मे लगा था। चित्रा ने थोड़ी हिम्मत की और बोली, "सॉर्री निक्षय! मेरी वजह से तुम्हारी तबियत बिगड़ी। मुझे नही पता था की तुम्हे बाहर का खाना सूट नही करता और वो भी तीखा खाना। लेकिन इस मे तुम्हारी भी गलती है। तुम्हे भी सब जानते हुए वो सब खाना नही चाहिए था।"
"मैंने वो सब तुम्हारे लिए नही किया" निक्षय ने मुस्कुरा कर कहा, "मै हमेशा बाहर कंट्रि या हॉस्टल मे रहा हु जहाँ सिर्फ सिंपल खाने मिलता था। यू नो सादा खाना...! इसीलिए मेरा पेट भी थोड़ा सेंसिटिव हो गया। जब अपने दोस्तों को सब कुछ खाते लाइफ इंजॉय करते देखता था तो मेरा भी दिल करता था। लेकिन कभी हिम्मत नही हुई। हमेशा नतीजे के बारे मे सोच पीछे हट जाता। कल तुम्हारे साथ ये मौका मिला खुद को खोलने का, आज़ाद हवा मे उड़ने का तो मै ना नही कहना चाहता था। मै भी हवा के रुख के साथ उड़ जाना चाहता था। इसीलिए जब तुमने कहा तो मैंने भी मना नही किया और सच कहू तो अब मै लाइफ को इंजॉय करना चाहता हू, क्या तुम मेरा साथ दोगी?"
चित्रा बस उसे देखती रही और कुछ नही कहा। निक्षय ने फिर कहा, "मै कोई फोर्स नही कर रहा मेरी लाइफ मे आने के लिए! मै तो बस तुम्हारी कंपनी चाहता हू ताकि मै सही रास्ते पर चल कर अपनी लाइफ जी सकूँ। सब को बस एक ही तो लाइफ है यार, मै किसी अफसोस के साथ मरना नही चाहता।" चित्रा ने मुस्कुरा कर हाँ कर दी "सिर्फ दोस्ती! और कुछ नही....... मै नही चाहती तुम कोई भी उम्मीद रखो।" और उसकी दोस्ती एक्सेप्ट कर उस मिठी खिचड़ी को दोनों ही इंजॉय करने लगे।
"वैसे अच्छा है, तुम सोते हुए लात नही मारती!" निक्षय ने खाते हुए बिना चित्रा की ओर देखे कहा।
चित्रा की भौहें तन गयी, "फिर से खानी है क्या? लगता है धीरे से पड़ी थी सुबह!"
"मुझे कोई प्रॉब्लम नही है. अगर तुम चाहो तो फिर से आज रात को.......ताकि कल सुबह फिर से........! " निक्षय ने मासुमियत से कहा तो चित्रा और ज्यादा गुस्सा हो गयी और वहा से एक कुशन उठाकर निक्षय पर टूट पड़ी। निक्षय और चित्रा इस वक़्त सारांश के ऑफिस मे थे और सारांश कार्तिक के साथ मीटिंग मे था। वो दोनों जैसे ही केबिन मे आये, सोफे पर चित्रा को निक्षय के ऊपर चढ़ा देखा तो सारांश ने हल्का सा खाँस दिया।
अपने दोनों दोस्तों को दरवाजे पर खड़ा देख चित्रा झेंप गयी और निक्षय के ऊपर से खुद कर सीधी खड़ी हो गयी। सारांश के चेहरे पर शैतानी चमक थी लेकिन कार्तिक के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। उसे चित्रा की किसी और से नज़दीकी पसंद नही आ रही थी। "क्या....हो रहा... है... ये सब...!"कार्तिक ने एक एक शब्द पर जोर देकर पूछा। चित्रा ने एक नज़र निक्षय की ओर देखा फिर कार्तिक की ओर देखकर बोली, "नही...! ऐसा कुछ नही है! मै तो बस इसके लिए खाना लाई थी और ये है की........। देख न सडु...! ये मुझे चिढ़ाने का कोई मौका नही छोड़ता।"
सारांश भी कहा कम था। उसने भी आग मे घी डालने का काम किया, "तु सफाई मत दे चिट्टू....... हम कुछ गलत नही समझेंगे। क्या हो गया अगर तु निक के लिए खाना लेकर आई तो!"
"वो भी अपने हाथो से बना कर।" निक्षय ने बात को और ज्यादा खोल कर सब के सामने रख दिया। चित्रा ने घूर कर उसे देखा और बोली, "आज रात मिलो तुम मुझे! बचकर जाओगे कहा, आना तो घर ही है तुम्हें!"
"तुम दोनों साथ मे रहते हो? एक ही घर मे?" कार्तिक ने चौंक कर पूछा जिससे वो दोनों ही एक दूसरे को देखने लगे।
"ये कुछ ज्यादा नही हो रहा......! मतलब शादी से पहले......!!!" इससे पहले सारांश अपनी बात पूरी कर पाता चित्रा ने उसे बीच मे ही टोकते हुए बोली, "वो मॉम ने कहा था की ये मेरे साथ ही मेरे घर पर रहेगा। इसे बाहर का खाना अलाउ नही है न इसीलिए...!"
"इसीलिए तूने खुद कुकिंग की! वो भी उसके लिए जिसे तु पसंद नही करती?" सारांश शॉकिंग एक्सप्रेसन देकर कहा। कार्तिक को ये बात चुभ गयी, उसने नज़र अपने फोन मे गड़ा दी। चित्रा को वहाँ से भागने मे ही अपनी भलाई दिखी और जबरन मुस्कुराते हुए सब को बाय बोल वहाँ से निकल गयी। सारांश ने एक बार निक्षय को देखा और फिर उसके सामने टेबल पर रखे खिचड़ी को। उसने आगे बढ़कर एक चम्मच खाई और तुरंत ही उगल दी।
"क्या है ये? मुझे लगा था खिचड़ी है!!!" सारांश ने मुह बना कर कहा तो निक्षय हँस पड़ा और बड़े ही मजे से खाने लगा। इतनी देर मे ड्राईवर घर से सारांश का लंच लेकर आया जो अवनि ने भिजवाया था। उसे ज्यादा कुछ बनाने तो नही आता था लेकिन जो भी था उसने पूरे दिल से बनाया था और ये बात लंच बॉक्स खोलते ही सारांश को समझ आगयी।
सारांश मुस्कुराया और कार्तिक से पूछा, "कार्तिक!!! लगता है आज तुझे मेरा खाना शेयर करना पड़ेगा। क्योंकि चित्रा के हाथ की खिचड़ी अगर तूने आज खाई तो लाइफ मे कभी खिचड़ी को देखेगा भी नही।"
कार्तिक ने झूठी मुस्कान के साथ कहा, "तु रहने दे, आज मेरा मन नही है खाने का। वैसे भी ये खाना तेरी बीवी ने खास तेरे लिए बनाई है, अगर मैंने शेयर किया तो शायद उसे बुरा लगे। मैंने मना कर दिया था घर से खाना भेजने को। मै बस अपने लिए एक कॉफी लूँगा।"
"अरे ऐसे कैसे! माना मेरी बीवी है लेकिन तेरी इकलौती साली भी तो है। और मुझे पता है उसे बुरा नही लगेगा। इनफैक्ट अगर तूने नही खाया तो उसे जरूर बुरा लगेगा।" सारांश ने जबरन उसे अपने साथ खाने के लिए बैठाया। सच तो ये था की कार्तिक और काव्या के बीच सब कुछ ठीक नही चल रहा था।
अवनि आईने के सामने अपने हाथों मे अपना चेहरा छुपाये बैठी थी। आज जो हरकत उसने सारांश के या
साथ किया वो करने से पहले उसने एक बार भी नही सोचा। वह इतनी बोल्ड कैसे हो गयी उसे खुद समझ नही आ रहा था। रात को सारांश का सामना करने के लिए अवनि को बहुत ज्यादा हिम्मत की जरूरत थी। उसने एक गहरी साँस ली और अपने धड़कन को काबू मे कर उठ खड़ी हुई। सबसे पहले उसे कमरे को सजाना था जिसके लिए सारा सामान उसने पहले ही मंगवा लिए थे।
अवनि ने एक भरपूर नज़र पूरे कमरे मे डाली और दिमाग मे हीपूरा डिजाइन तैयार कर अपना काम शुरू कर दिया। आज का एक एक पल का इंतज़ार अवनि के लिए मुश्किल होते जा रहा था और जैसे जैसे वक़्त गुजरता अवनि के दिल की धड़कन और तेज होते जाती। पूरे कमरे को फूलों से सजा कर अवनि ने पहले हर बारीकी पर ध्यान दिया और फिर खुद भी तैयार होने चली गयी।
आलमारी खोल अवनि ने पहनने के लिएएक लाल रंग की साडी निकली जिसे पहन वह इस घर मे आई थी। आज उन लम्हों कों फिर से जीना था उसे इसीलिए सब कुछ वैसे ही तैयार किया जैसा की उस रात था। अवनि इस बीच गुजरे दिनों को भूल शुरू से शुरुआत करना चाहती थी। नज़र बार बार घडी की ओर जाती, सारांश को आनेमे अभी वक़्त था और वक़्त जैसे कछुये की रफ़्तार से चल रहा था।
अवनि ने खुद को आईने मे देखा, हल्के मेकअप छोटी सी बिंदी हाथो मे लाल चूड़ियाँ खुले बाल और वही पाजेब जो सारांश ने अपने हाथों से पहनाई थी। तभी अवनि का फोन बजा। अवनि ने सारांश का नाम देखा और खुशी से नाचते हुए उसने फोन उठा लिया, "हेलो सारांश...! कहाँ है आप? अब तक आये क्यों नही? आपको पता भी है मै कब से आपका इंतज़ार कर रही हू? जल्दी आइये!" अवनि एक ही सांस मे सब बोल गयी। उधर से सारांश की धीमी आवाज़ आई।
"अवनि....! आई एम सॉर्री......! मै आज घर नही आ पाऊँगा। इस वक़्त मै एयरपोर्ट के लिए निकल रहा हू, तीन से चार दिन लग जायेंगे वापस आने मे। जरूरी है अवनि वरना मै कभी नही जाता तुम्हें छोड़ कर... वो भी आज की रात। मुझे माफ कर दो, मैंने हमारा ये वक़्त खराब कर दिया।"
अवनि के चेहरे की खुशी पल भर मे गायब हो गयी। उसकी जगह उदासी ने ले ली और उसके जिन आँखों मे सपने नाच रहे थे, उन आँखों से आँसू बह निकले।
क्रमश: