Chapter 186

Chapter 186

YHAGK Finale

Chapter

 185






 रेहान लावण्या को ढूंढते हुए बाहर चला आया। सारे लोग शादी के मंडप के पास जमा थे और बाहर कोई नहीं था सिवाय लावण्या के। रेहान ने उसे इस तरह अकेले में खड़े देखा तो उसके पास जाकर बोला, "लावण्या तुम इस वक्त यहां क्या कर रही होम सब ठीक तो है? तुम ठीक हो?"


    रेहान की बातें सुनकर लावण्या ने अपनी आंखें मूंद ली। वो हर गुजरा पल उसके जेहन में जैसे ताज़ा था। रेहान उसके कंधे पर हाथ रखकर फिर बोला, "क्या हुआ तुम्हें? कुछ हुआ है क्या? कोई बात हुई है? बताओ मुझे। अंदर हमारे बेटे की शादी हो रही है ऐसे में हम दोनों का वहां होना जरूरी है......... तुम्हारा होना जरूरी है!"


    लावण्या की आंखें नम हो गई। उसने खाली आँखों से आसमान की तरफ देखा और एक गहरी सांस भरकर कहा, "इतने साल हो गए रेहान हमें अलग हुए लेकिन..........."


     रेहान उसकी बात को बीच में काटते हुए बोला, "हम कभी अलग नहीं हुए लव! कभी नहीं।"


      लावण्या ने हैरानी से रेहान की तरफ देखा और फिर अपना चेहरा दूसरी तरह घुमाते हुए बोली, "इतने सालों में तुम्हारी कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं.........."


      एक बार फिर से रेहान उसकी बात बीच में काट कर बोला, "है ना! रोज रात को उसकी खिड़की के नीचे उसका इंतजार करता हूं सिर्फ उसे जीभर कर देखने के लिए। ऑफिस में मौका नहीं मिलता और उसे देखे बिना नींद नहीं आती।"


     लावण्या की हल्की हंसी छूट गई। वो अच्छे से जानती थी कि रेहान उसी की बात कर रहा है फिर भी उसने कहा, "इतने सालों में तुम्हें अपने लिए कोई ढूंढ लेनी चाहिए थी।"


   रेहान भी सीधे-सीधे बोला, "अगर यही बात मैं तुमसे कहूं तो?"


   लावण्या के पास इसका कोई जवाब नहीं था। उसके दिल में हमेशा से रेहान के लिए प्यार रहा और किसी के लिए नहीं। लावण्या ने सर झुका लिया और कहा, "नैना ने मुझसे पूछा कि उसका ससुराल कहाँ होगा? मेरा घर या तुम्हारा घर? कुछ सोचा तुमने इस बारे में?"


     रेहान बोला, "मेरा घर तो वहां है जहां तुम हो। ऐसे में तुम्हारा घर और मेरे घर का कोई सवाल ही नहीं लव।" कहते कहते रेहान अटक गया। बड़ी हिम्मत करके उसने कहा, "क्या हमारा घर नहीं हो सकता? क्या हम जिंदगी भर बस यूं ही एक दूसरे को दूर से देखते रहेंगे? माना मैं गुनहगार हूं। सब का गुनहगार हूं। मेरी वजह से जाने कितनों ने तकलीफें झेली है और मैं यह बात मानता भी हूं लेकिन कानून के पास भी हर गुनाह की सजा होती है, हर गुनाहगार को पता होता है कि उसकी सज़ा कब खत्म होगी। मेरी सजा कब खत्म होगी? मुझे भी अपने घर जाना है।"


    लावण्या ने बड़ी हिम्मत करके रेहान की तरफ देखा। उसकी आंखों में तड़प और चेहरे पर दर्द साफ नजर आ रहा था। लावण्या का मन भारी हुआ जा रहा था। उसने खुद को रोका नहीं और रेहान के गले से लग गई। रेहान का दर्द आंखों से छलक गया। कुछ देर लगी उसे यह समझने के लिए कि यह कोई सपना नहीं है। उसके बाद उसने लावण्या को अपनी बाहों में भर लिया। 


      "मुझे अपने साथ ले चलो रेहान! मुझे तुम्हारे साथ रहना है।" लावण्या की बातें सुन रेहान ने उसके बालों को चूमा और कहा, "तुम चाहोगी मैं वहां ले चलूंगा तुम्हें। मुझे बस तुम्हारे साथ रहना है। कहां, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"


    जाने कितनी ही देर वो दोनों वहां खड़े रहे। काफी देर से रूद्र उन्हें ही देखे जा रहा था। वो उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था लेकिन उसने कहा, "यहाँ इसी तरह रहने का इरादा है या फिर तुम दोनों के लिए भी कमरा तैयार करवा दूं?"


     रूद्र की आवाज सुन रेहान और लावण्या होश में आए और एक दूसरे से अलग हुए। दोनों की ही आंखें नम थी। रूद्र बोला, "शादी संपन्न होने को है। दूल्हे के मां-बाप! चलो और हो सके तो तुम दोनों भी साथ में फ़ेरे ले ही लो। कब तक एक दूसरे से दूर रहोगे? ये तुम दोनों के लिए ही मुश्किल है तो फिर ऐसा काम क्यों करना जिसे करते हुए हमें तकलीफ हो? आज के बाद तुम दोनों अलग नहीं रहोगे और लावण्या! अच्छा लगा यह देखकर कि तुम रेहान को दूसरा मौका देना चाहती हो। तुम दोनों ने बहुत कुछ देख लिया अब और नहीं। अंदर चलो सब तुम दोनों का इंतजार कर रहे हैं। उम्मीद करता हूं तुम दोनों एक साथ आओगे।" कहकर वह अंदर चला गया। 


    रेहान ने प्यार से लावण्या को देखा और कहा, "चले!"


   लावण्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, "हम्म्म!" और दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे अंदर चले आए। उन दोनों को एक साथ इस तरह अंदर दाखिल होते देख हर कोई उन्हीं को देख रहा था। सभी घर वालों की नजर भी उन्हीं पर थी लेकिन इस वक्त किसी ने भी कुछ कहा नहीं। 


     शरण्या की नजर जब उन दोनों के जुड़े हुए हाथ पर गई तो उसने रुद्र का बाजू पकड़ लिया और उस तरफ इशारा किया। रुद्र ने देखा और मुस्कुरा दिया फिर उसने मंडप में बैठी नैना की तरफ देखा और धीरे से थम्स-अप का इशारा कर दिया। बदले में नैना मुस्कुरा दी। 


    राहुल का ध्यान जब इस पर गया तब उसने भौंहे उचका कर इशारे में सवाल कर दिया जिस पर नैना ने रेहान और लावण्या की तरफ इशारा कर दिया जो एक साथ एक दूसरे का हाथ थामें बैठे हुए थे और लावण्या रेहान के कंधे पर अपना सर टिकाए हुए थी। राहुल के लिए तो जैसे यकीन करना मुश्किल था कि आज उसकी शादी के दिन उसके मां पापा उसे इतना खूबसूरत तोहफा देंगे! बरसों से राहुल बस इसी दिन का इंतजार कर रहा था। उसने धीरे से नैना को कहा, "अगर मुझे पता होता कि मेरी शादी के दिन ऐसा कुछ होगा तो मैं बहुत पहले शादी कर चुका होता। तुमसे तो मैं बहुत पहले मिल चुका था, इतनी देर नहीं करनी चाहिए थी। वैसे यह चमत्कार तुमने किया कैसे?"


     नैना धीरे से उसके कान में बोली, "जो भी किया है रूद्र अंकल ने किया है। स्क्रिप्ट से लेकर डायलॉग सब कुछ उन्हीं ने लिखा था, मुझे बस एक्टिंग करनी थी। वैसे यह सब करके मुझे बहुत अच्छा लगा।"।


 


    वही मौली इतनी खूबसूरत लग रही थी कि मानव की नजर बार-बार उसे ही देखे जा रही थी लेकिन मौली की नजर हवन कुंड की तरफ थी। आखिर में परेशान होकर उसने मानव की ओर देखा और धीरे से एक आंख मार दी। जिसे देख मानव ने नजरे चुरा ली और थोड़ा घबरा भी गया। इस तरह मंडप में बैठे किसी दुल्हन को ऐसी हरकतें करते देख ना जाने लोग क्या सोचते! 


     शादी संपन्न होते ही रूद्र ने रेहान और लावण्या से कहा, "अब तुम दोनों की बारी है। तुम दोनों भी यहीं पर फ़ेरे ले लो।"


    रेहान ने मुस्कुराकर लावण्या की तरफ देखा तो लावण्या ने अपना सर झुका लिया। एकदम से रेहान को खयाल आया और उसने मिस्टर रॉय की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा। उसे उनके परमिशन की जरूरत थी। मिस्टर रॉय रेहान के पास आए और दोनों के सर पर हाथ रखकर अपनी मंजूरी दे दी। अपनी बेटी की खुशी के आगे ना उन्होंने तब कुछ कहा था और ना ही अब कुछ कहते। 


    दूल्हे के साथ साथ मां बाप ने भी आज शादी कर ली, लोगों को यह बात थोड़ी अजीब तो लग रही थी लेकिन साथ ही खुशी भी थे। अगले दिन यह खबर हेड लाइन बनने वाली थी। 


     मौली जब से दुल्हन बनी थी तब से रुद्र ने एक बार भी उसे नजर उठा कर नहीं देखा था। विदाई के समय मौली जब रूद्र के पास आई, रूद्र से खुद को कंट्रोल नहीं किया गया और मौली को अपने सीने से लगाकर रो पड़ा। बेटियां भले ही नजरों के सामने ही क्यों ना रहे लेकिन उनकी विदाई किसी को भी रुला जाती है। यही उसके साथ भी हो रहा था। चाहे कितना भी कोई समझा दे कि मौली उसकी नजरों के सामने ही रहेगी लेकिन फिर भी उसके दूर जाने का ख्याल रूद्र अपने मन से निकाल नहीं पा रहा था। 


     उन दोनों बाप बेटी को रोते देख सबकी आंखों में आंसू आ गए। लावण्या ने भी अपने आंसू पोंछे और रेहान से कहा, "तुम्हारी बेटी है वो। पिता होने का फ़र्ज़ नहीं निभाओगे?"


    रेहान ने इनकार में सर हिला दिया और कहा, "वो रूद्र की बेटी है। उस पर मेरा कोई हक नहीं। काश हमारी भी एक बेटी होती!"


     मौली रूद्र से अलग नहीं होना चाहती थी लेकिन विदाई का समय हो चुका था। शिखा जी ने शरण्या को इशारा किया तो शरण्या ने मौली के सर पर हाथ रखा और बोली, "इतना रोओगी तो सारा मेकअप खराब हो जाएगा। मानव डर के भाग जाएगा। और किसी का नहीं तो कम से कम उसके बारे में तो सोंचो। और तू मेरी रजिया..........! कितना रुलाएगी मेरी बच्ची को, अब बस भी कर।"


     शरण्या ने आज बरसों बाद रूद्र के उसके निकनेम से बुलाया था जिसे सुन वहां मौजूद सभी हंस पड़े विदाई का गमगीन माहौल एक बार फिर हल्का फुल्का सा हो गया। 




     सब के जाने के बाद भी रूद्र वहीं बैठा रह गया। शरण्या उसके साथ ही थी। एक लंबी खामोशी के बाद उसने पूछा, "लावी दी और रेहान के लिए तुमने पहले से ही सारी तैयारियां कर रखी थी। उनका कमरा तैयार करवा दिया। क्या तुम्हें पता था कि आज के दिन ऐसा कुछ होने वाला है?"


      रूद्र हल्का सा मुस्कुराया और बोला, "रेहान और लावण्या काफी टाइम से एक दूसरे से अलग होते हुए भी अलग नहीं हो पा रहे थे। रेहान तो हमेशा से लावण्या को अपने पास चाहता था। लेकिन देखा था मैंने कई बार लावण्या की आंखों में। वो खुद भी रेहान के पास आना चाहती थी लेकिन शायद उसे ऐसा कोई मौका नहीं मिल रहा था। हम सब ने कोशिश करके देख लिया। उन दोनों का रिश्ता टूटने से बचाने के लिए हमने कोशिश की थी। कोई फायदा नहीं हुआ। एक दूसरे से अलग करने की भी कोशिश की लेकिन वह भी नहीं हुआ। राहुल भी यह काम नहीं कर पाया। ऐसे में उम्मीद बंधी नैना से। ज्यादा कुछ नहीं बस थोड़े बहुत इमोशनल डायलॉग और थोड़े आंसू, बस फिर क्या था लावण्या को भी समझ आ गया कि उसे अपने दिमाग की नहीं अपने दिल की सुननी है। उसने वही किया। मौका भी था और दस्तूर भी। आखिर हम जो चाहते थे वह हो गया  भले ही उसमें देर लगी। भले किसी ने भी किया लेकिन नतीज़े ही हमें असर करते हैं। आज से घर में सिर्फ खुशियां ही खुशियां होंगी। मां का सपना था अपने घर में अपने दोनों बहुओं के साथ रहने का। उनका यह सपना अब वाकई में पूरा होगा। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है!"


     शरण्या ने भी अपना सर हिलाते हुए कहा, "ये बात तो बिल्कुल सही है रूद्र। जब तुमने होटल में 3 कमरे बुक करने को कहा था तो मुझे थोड़ा अजीब लगा था। मुझे लगा कि.........."


      रूद्र ने शरारत से उसे छेड़ते हुए कहा, "अगर तुम्हें लगता है तो एक और कमरा तैयार करवाने में टाइम नहीं लगेगा।"


     उसकी आंखों में शरारत देख शरण्या ने उसे मुक्का मारा और कहा, "अभी-अभी बेटी का कन्यादान किया है तुमने। थोड़ा तो शर्म कर लो। मैं घर जा रही हूं।" कहते हुए वह उठी और जाने लगी। 


     रुद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने पास बैठाते हुए कहा, "कुछ देर रुको ना मेरे पास। मुझसे दूर जाने की इतनी जल्दी क्यों है तुम्हें? पूरी जिंदगी तुम्हें देखते हुए गुजार सकता हूं लेकिन जब तुम आंखों से ओझल हो जाती हो हर लम्हा जैसे........." कहते-कहते वह खुद ही रुक गया फिर बोला, "बस मुझसे कभी दूर मत जाना।" शरण्या ने उसके काँधे पर सर रख दिया। दोनो पूरी रात वहीं बैठे रहे। 




   बड़ी खुशियों वाली रात थी ये। सभी खुश थे और अपनी आने वाली जिंदगी को महसूस कर रहे थे। गम का कोई निशान नहीं था। जागते रहने के सबके पास अपनी अपनी वजह थी लेकिन शिखा जी का मन बेचैन हो रहा था। उनके मन में एक बार फिर पुरोहित जी की बातें घूम रही थी। 










।।।।।।।। समाप्त।।।।।। 


।।।।।।।। The End।।।।।।। 








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Dear readers आपने मेरी इस कहानी को बहुत बहुत बहुत ज्यादा प्यार दिया है साथ ही मुझे बहुत ज्यादा सपोर्ट भी मिला है इस सब के लिए मैं तहे दिल से आप सब का धन्यवाद करती हूं यह इस कहानी का अंतिम भाग था लेकिन कहानियां कभी खत्म नहीं होती जहां खत्म होती है वहां एक नई शुरुआत जरूर होती है अगर किस्मत ने चाहा तो मैं इस कहानी का दूसरा सीजन जरूर लिखूंगी लेकिन फिलहाल मेरी नजर में यह कहानी अपने आप में पूरी है दूसरे सीजन की उम्मीद अभी ना ही करें तो बेहतर होगा क्योंकि अभी किसी और कहानी पर भी फोकस करना है बहुत जल्द इसी महीने मैं आप सबके सामने एक और नई कहानी के साथ हाजिर हो जाऊंगी अभी फिलहाल होली का मौसम है रंगों के इस त्यौहार में आप सब की जिंदगी खुशियों के रंगों से सराबोर हो यही मेरी शुभकामनाएं हैं और नहीं कहानी होली के बाद तब तक के लिए एक ब्रेक तो बनता है