Chapter 25
Episode 25
Chapter
पीहू अपने कमरे में सोने चली गई... और स्नेहा वापस टीवी में अपना फेवरेट कार्टून टॉम एंड जेरी देखने में बिजी हो गई।
राहुल और प्रीति ने देखा कि पीहू सोने चली गई... तो उन्हें सही समय लगा स्नेहा को अपने रास्ते से हटाने के लिए…
ऐसा सोच कर राहुल जल्दी से एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली ले आया। प्रीति आसपास नजर रखने लगी... राहुल ने आकर स्नेहा के सर पर वह थैली पहना दी... और उसको कस कर बंद कर दिया। स्नेहा इस अप्रत्याशित हमले से थोड़ा चौक गई थी। इसलिए उसने बचने के लिए हाथ पैर मारना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर हाथ पैर मारने के बाद भी जब स्नेहा छूट नहीं पा रही थी... तो उसने हाथ पैर मारना बंद करके मंत्र जाप करना शुरू कर दिया। स्नेहा ने अपने हाथ से इशारा किया… उसने अपना हाथ पीछे से आगे की तरफ किया तो स्नेहा के हाथ के इशारे के साथ ही राहुल उसके पीछे से आगे आकर गिरा।
राहुल के गिरते ही प्रीति एकदम से चौक गई... उसने तुरंत ही स्नेहा पर हमला करने के लिए एक फ्लावर वास उठा लिया… और स्नेहा पर हमला कर दिया। इससे पहले कि वो वास स्नेहा को लगता... प्रीति खुद जाकर उस सोफे पर पीछे से आगे की तरफ सिर के बल गिर पड़ी। उसका सर सामने रखी सेंटर टेबल से टकरा गया था। राहुल भी एक तरफ पडा हुआ था।
दोनों ने हिम्मत करके उठने की कोशिश की... पर दोनों ही उठ नहीं पा रहे थे। स्नेहा हाथ बांधे उन दोनों को ही घूर रही थी। राहुल अब जल्दी ही उठा और प्रीति को पकड़कर उठाने लगा। प्रीति ने एक नजर स्नेहा की तरफ देखा और राहुल का सहारा लेकर खड़ी हो गई।
वह दोनों स्नेहा से कुछ दूरी पर जाकर खड़े हो गए दोनों ने अपनी गर्दन नीचे कर रखी थी। स्नेहा ने गुस्से में उनसे कहा, "मैंने तुम लोगों को पीहू के कारण छोड़ दिया था... पर मुझे लगता है तुम लोगों को खुद ही मरने की बहुत ज्यादा जल्दी है।"
वह दोनों लोग स्नेहा को ही घूरने लगे थे। स्नेहा ने फिर उनसे कहा, "तुम लोगों ने एक बार भी पीहू के लिए सोचा…!!"
तो प्रीति बोल पड़ी, "पीहू के लिए क्यों सोचूँ…?? पीहू तो सिर्फ इसलिए जिंदा है... क्योंकि मेरे पापा की पूरी प्रॉपर्टी पीहू को ही मिलने वाली है। अगर वह प्रॉपर्टी मेरे पापा सीधे मेरे नाम कर देते... तो मुझे भी कोई भी जरूरत नहीं थी पीहू की।"
स्नेहा की यह सब सुनकर आंखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई। उसने प्रीति से पूछा, "पीहू तुम्हारी ही बेटी है ना…!"
प्रीति ने हिकारत भरे स्वर में कहा, "नहीं... पीहू मेरी बेटी नहीं है। वह केवल मेरे पापा की एक नाजायज औलाद है। सारी की सारी प्रॉपर्टी मेरे पापा ने उस पीहू के नाम कर दी है। अगर मुझे वह प्रॉपर्टी चाहिए तो मुझे पीहू का अच्छे से ध्यान रखना होगा... और पीहू को अपनी बेटी की तरह ही रखना होगा। नहीं तो वह प्रॉपर्टी किसी ट्रस्ट के नाम हो जाएगी…!!"
प्रीति ऐसा कहकर गुस्से से स्नेहा को देख रही थी और राहुल ने सांत्वना देने के लिए अपना हाथ प्रीति के कंधे पर रख दिया।
स्नेहा को पीहू के बारे में जानकर बहुत ही ज्यादा दुख हुआ पर जब उसे पता चला कि पीहू भी उसी की तरह है। अनाथ और अपने ही दुश्मनों के बीच घिरी हुई... तो स्नेहा ने बहुत ही गुस्से भरी नजर से उन दोनों को देखा।
जिनके चेहरे पर कुछ भी गलत किए का कोई पछतावा नहीं दिखाई दे रहा था।
स्नेहा ने कहा, "तो फिर ठीक है... अगर तुम दोनों को पीहू इतनी ही बुरी लगती है... तो मैं भी इस बोझ से मुक्त हो जाऊंगी कि मैंने अपनी ही पीहू को अनाथ बना दिया। अब तुम लोग अपनी उल्टी गिनती गिनना शुरू कर दो।"
ऐसा सुनते ही राहुल और प्रीति के माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी थी।
स्नेहा ने वहीं पर बैठकर मंत्र जाप करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर के मंत्र जाप के बाद दोनों की आँखों में परिवर्तन दिखने लगा था।
राहुल और प्रीति अब एक दूसरे को घूर कर देखने लगे थे... जैसे अभी के अभी एक दूसरे का खून कर देंगे। स्नेहा वहीं सोफे पर बैठकर मंत्र जाप कर रही थी। स्नेहा के मंत्र जाप बंद करते ही दोनों ने एक दूसरे पर हमला कर दिया।
सबसे पहले राहुल ने प्रीति को उठाकर दूर फेंक दिया... और वहीं अपनी जगह खड़ा-खड़ा प्रीति को घूरने ने लगा। प्रीति भी एक झटके में उठ कर खड़ी हो गई... जैसे फेंकने का उस पर कोई भी असर नहीं पड़ा हो। प्रीति गुस्से में दौड़ती हुई राहुल की तरफ आई... और राहुल को एक जोरदार धक्का देकर दीवार से लगा दिया। दीवार से लगते ही राहुल के सिर से खून बहने लगा था।
पर राहुल ने भी उस खून की परवाह किए बिना प्रीति की तरफ दौड़ लगा दी... और प्रीति को उठाकर वहीं पास में रखें कांच की सेंटर टेबल पर पटक दिया। टेबल पर गिरते ही प्रीति के मुंह से एक आह निकली... सेंटर टेबल के कांच प्रीति की पीठ और बाहों में घुस गए थे। जिनसे खून बहने लगा था... पर प्रीति रुकने की बजाय राहुल पर झपट पड़ी थी।
इससे पहले कि प्रीति राहुल को कुछ नुकसान पहुंचा पाती... राहुल ने प्रीति की गर्दन पकड़कर उसे ऊपर उठा दिया। ऊपर उठते ही प्रीति की सांसे रुकने लगी थी। पर प्रीति ने तभी अपने घुटने को राहुल की नाक पर मार दिया... जिससे राहुल की पकड़ प्रीति से छूट गई... और राहुल दूर जाकर गिरा। प्रीति भी जमीन पर गिर पड़ी थी... प्रीति ने कुछ लंबी सांसे भरी फिर झटके से उठकर राहुल की कॉलर पकड़ ली थी... और उसको घसीटते हुए दीवार के पास ले जाने लगी।
राहुल ने प्रीति का हाथ पकड़ा हुआ था... जैसे ही प्रीति राहुल के सिर को दीवार पर मारने ही वाली थी... कि राहुल ने प्रीति के हाथ पर झटका देकर प्रीति को सामने गिरा दिया।
अचानक से स्नेहा ने एक चुटकी बजाकर सब कुछ रोक दिया था। स्नेहा ने एक अंगड़ाई ली और फिर वह सामने रखी टेबल पर अपने पैर फैला कर और हाथ सिर के पीछे रखकर आराम की मुद्रा में लेट गई। फिर उसने कहा,
"अब शुरू करो…!!!"
स्नेहा के ऐसा कहते ही सारे दृश्य फिर से शुरू हो गए। प्रीति और राहुल जो कि एक मिनट के लिए स्टैच्यू बन गए थे फिर से लड़ने लगे।
राहुल प्रीति की तक तरफ दौड़ कर गया और उसने एक मुक्का प्रीति के पेट में मारा। प्रीति के मुंह से खून के फव्वारे छूट गए थे। सारा खून राहुल के मुंह पर गिरा था। खून मुंह पर गिरते के बाद... राहुल ऐसे मुस्कुराया मानो कोई खजाना मिल गया हो। उसकी आंखें शैतानी से चमक उठी थी। राहुल ने अपने चेहरे पर गिरे खून को अपनी जीभ से ऐसे चाटा…जैसे कोई बच्चा अपने मुंह पर लगे कैचप को चाटता है। अबकी बार राहुल ने जोर का मुक्का फिर से प्रीति के पेट में जमा दिया। उस मुक्के के प्रहार से प्रीति पेट के बल झुक गई। प्रीति के झुकते ही... राहुल ने उसे उठाकर पास ही रखी एक टेबल पर पटक दिया।
टेबल पर एक प्लेट में फ्रूट्स रखे हुए थे... और एक चाकू भी रखा था। उसी चाकू के पास जाकर प्रीति गिरी थी। वह दोनों ऐसे यंत्रवत लड़ रहे थे... जैसे उन्हें उनके शरीरों पर लगी... चोटों से कोई मतलब ही नहीं था। ना दर्द… ना ही कोई तकलीफ... कुछ भी नहीं।
टेबल पर गिरते ही प्रीति के हाथ में वह चाकू आ गया था। राहुल जैसे ही प्रीति को मारने के लिए प्रीति के पास पहुंचा... प्रीति ने वह चाकू उठाकर सीधे उसके दिल के पास मार दिया। चाकू वही राहुल की पसलियों में अटक गया था और बाहर नहीं निकल रहा था। प्रीति ने चाकू को बाहर निकालने की कोशिश की... ताकि वह दोबारा चाकू से राहुल पर हमला कर सकें... पर जब उसे लगा कि चाकू बाहर नहीं निकल रहा था तब प्रीति ने उस चाकू को वहीं पर गोल घुमाना शुरू कर दिया।
घर में राहुल की हृदय विदारक चीखें गूंज उठी थी... अचानक से वह चाकू राहुल के शरीर से बाहर निकल गया... और साथ ही खून का एक फव्वारा छूट गया। चाकू को लिए हुए ही प्रीति थोड़ा दूर जाकर गिरी थी। प्रीति ने जल्दी से उठते हुए राहुल की तरफ दौड़ लगा दी... जो अब तक जमीन पर पड़ा हुआ था।
प्रीति उसके सीने पर चढ़कर बैठ गई थी। और उस चीरे में से हाथ डालकर उसकी पसलियां तोड़ रही थी। एक-दो पसलियां तोड़ने के बाद थोड़ी जगह बनी... उसमें से प्रीति ने राहुल का दिल बाहर निकाल लिया... उस दिल को देखकर प्रीति ऐसे खुश हो रही थी... जैसे किसी बच्चे को अपना मनपसंद खिलौना मिलने पर खुशी होती है।
प्रीति उस दिल से को बार-बार चूम रही थी और कभी उसे गले से लगा रही थी। अचानक वह दिल उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर पड़ा... प्रीति को लगा... कि यह सब राहुल के कारण हुआ था तो वह फिर से राहुल के मरे हुए शरीर के साथ बर्बरता दिखाने लगी।
वह राहुल के शरीर को चाकू से गोदे जा रही थी।
अचानक स्नेहा उठ खड़ी हुई... स्नेहा के उठते ही प्रीति को जैसे एकदम से होश आया। प्रीति ने देखा कि उसके हाथ खून से रंगे हुए थे और वह राहुल के शरीर पर बैठी थी... जिससे खून बह रहा था... राहुल का दिल उसके शरीर के पास पड़ा हुआ था।
यह देख कर प्रीति जोर से चीख उठी... प्रीति की चीख सुनकर पीहू की अपने कमरे में आंख खुल गई थी। वह डर गई और डरकर बाहर आने की कोशिश करने लगी।
प्रीति ने मुड़कर देखा तो स्नेहा सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। स्नेहा को मुस्कुराता देख प्रीति का गुस्सा बढ़ते जा रहा था... अचानक वही चाकू लेकर प्रीति ने स्नेहा पर हमला कर दिया। स्नेहा एक तरफ हो गई और प्रीति जमीन पर जाकर गिरी। फिर भी प्रीति तुरंत उठ खड़ी हुई और फिर से स्नेहा की तरफ उसे मारने के लिए दौड़ी। स्नेहा ने प्रीति का हाथ पकड़कर उस वार को रोक लिया था।
उसी समय पीहू हॉल में आ गई थी...बाहर का इतना डरावना माहौल देखकर पीहू बहुत ही ज्यादा डर गई थी…. और डर के कारण वह जोर से चिल्लाई…
"बूईईईऽऽऽऽऽ…!!!"
पीहू के चिल्लाते ही स्नेहा का ध्यान एक पल के लिए पीहू पर चला गया... उतने में प्रीति ने स्नेहा को एक चाकू मारकर घायल कर दिया। प्रीति के चाकू का प्रहार स्नेहा की बांह पर लगा था। स्नेहा अपनी बांह पकड़ कर नीचे बैठ गई।
स्नेहा की बांह से भी खून निकलने लगा था। प्रीति ने जब स्नेहा पर दोबारा हमला किया तो... स्नेहा ने एक जोरदार धक्का प्रीति को दिया। जिससे प्रीति मुंह के बल जमीन पर जाकर गिरी... और उसके हाथ में पकड़े चाकू से उसकी ही गर्दन कट गई। वह वही पड़ी की पड़ी रह गई और उसके गले से खून बह निकला।
पीहू ने यह देखा तो पीहू को लगा... स्नेहा ने ही प्रीति को मार डाला... पीहू दौड़कर प्रीति के पास गई और उसे जगाने लगी…
"मम्मा…!! उठो मम्मा…!!!"
और जोर-जोर से चिल्ला कर रोने लगी। स्नेहा पीहू के पास गई तो... पीहू ने स्नेहा को जोर से धक्का दे दिया... स्नेहा दूर जाकर गिरी। स्नेहा जानती थी कि... इस समय पिहू किस हालात से गुजर रही थी... फिर भी स्नेहा को पीहू की चिंता थी। इसलिए वह पीहू के पास फिर से गई... स्नेहा ने पीहू को फिर से चुप कराने की कोशिश की... पर पीहू स्नेहा को ही अपने हाथों से मारने लगी थी।
स्नेहा पीहू की ऐसी हालत देखकर रोने लगी थी। वहां जो कुछ भी हुआ था... उससे स्नेहा को कोई भी फर्क नहीं पड़ता था। पर फिर भी पीहू की ऐसी हालत स्नेहा से देखी नहीं जा रही थी। स्नेहा ने अब की बार पीहू को कसकर गले लगा लिया। पीहू ने स्नेहा के बाजू को जोर से काटा और भागकर अपने कमरे में चली गई।
स्नेहा भी उसके पीछे-पीछे पीहू के कमरे में गई थी। पीहू अपने कमरे का सारा सामान उठा उठा कर फेंकने लगी थी। स्नेहा ने पीहू को रोकने की कोशिश की... तब पीहू के हाथ में टेबल लैंप थी। पीहू ने गुस्से में वो लैम्प स्नेहा के सिर पर मार दी।
स्नेहा को चोट लग गई थी... उसकी चोट से खून बहने लगा था। पीहू फिर भी सामान को फेंके जा रही थी। स्नेहा फिर से पीहू के पास बढ़ी तो पीहू दौड़कर कमरे से बाहर निकल गई।
स्नेहा जब बाहर आई... तो उसने देखा पीहू छत की तरफ जा रही थी। स्नेहा को कुछ दुर्घटना का अंदेशा हुआ... तो वह दौड़कर पीहू के पीछे गई। पीहू लगभग छत पर पहुंच गई थी। इस स्नेहा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश की तो पीहू ने स्नेहा को एक जोरदार धक्का दे दिया।
जिससे स्नेहा सीढ़ियों से नीचे गिर कर बेहोश हो गई। पीहू ने स्नेहा को वैसे देखा... तो वह बहुत ज्यादा डर गई। पीहू जल्दी जल्दी भागते हुए नीचे आई और स्नेहा के पास बैठकर रोने लगी।
पीहू बार-बार स्नेहा को हिला कर उठाने की कोशिश कर रही थी। पर स्नेहा उठ ही नहीं रही थी। पीहू रोते-रोते कहने लगी,
"बूईईई ऽऽऽ सॉरी बूईईई ऽऽऽऽ…!!! मैंने आपको मार दिया... अब पीहू के पास कोई नहीं आएगा... पीहू बैड गर्ल बन गई है…. अब पीहू किसके साथ खेलेगी... किसके साथ बातें…??"
ऐसा कहते हुए पीहू रोने के साथ-साथ स्नेहा को हिला कर उठाने की कोशिश कर रही थी।
पीहू के आंसू आकर स्नेहा के चेहरे पर गिरने लगे तो... स्नेहा होश में आई। वह धीरे-धीरे अपनी आंखें झपका रही थी। दर्द के कारण स्नेहा की आंखें नहीं खुल रही थी।
पीहू ने जब स्नेहा को होश में आया देखा... तो वह बहुत खुश हो गई और स्नेहा के चेहरे पर किस करने लगी।
वह कहने लगी, "एम सॉरी बूईईईऽऽऽ पीहू बहुत गंदी है। पीहू ने आपको छत से धक्का दे दिया। "
स्नेहा ने भी पीहू को चुप करा कर गले लगा लिया।
स्नेहा ने पुलिस को कॉल करके वहाँ के बारे में सारी जानकारी दी।
पुलिस इंस्पेक्टर वहां आया... तो वहां के हालत देखकर उसकी भी रूह कांप उठी थी। उसने स्नेहा से पूछा तो...
स्नेहा ने बताया, "राहुल और प्रीति की लड़ाई हो रही थी। प्रीति ने राहुल को मार डाला... जब मैं कमरे से बाहर आई। तो मैनें प्रीति को राहुल की हत्या करते देख लिया। तब प्रीति ने मुझ पर भी हमला कर दिया था। जिसके कारण ही मुझे इतनी सारी चोटें लगी।"
पुलिस ने जब पीहू से पूछा तो पीहू ने भी बताया की प्रीति ने स्नेहा को मारने की कोशिश की थी। प्रीति ने स्नेहा को चाकू मारा था... तब पीहू ने वह सब कुछ देखा था। स्नेहा ने अपने बचाव के लिए प्रीति को धक्का दिया और प्रीति गिर पड़ी थी।
पुलिस ने लाश का पंचनामा करके बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। आस पास के बहुत से लोग इकट्ठा हो गए थे। स्नेहा ने पुलिस से घर की सफाई करवाने के लिए पूछा तो इंस्पेक्टर ने उसे परमिशन दे दी।
फिर स्नेहा ने इंस्पेक्टर से पूछा, "इंस्पेक्टर साहब... यहां का माहौल बहुत ही ज्यादा बुरा हो गया है। हमारे परिवार के तीन सदस्यों की मौत हो चुकी है... और बाकी तीन सदस्य लापता हैं। क्या मैं इस घर से कुछ दिनों के लिए कहीं और रहने जा सकती हूं…??"
इंस्पेक्टर ने स्नेहा को कहीं और रहने जाने की इजाजत दे दी। शाम को ही स्नेहा अच्युतानंद के पास पीहू के साथ पहुंची।
उसने पहले मां के मंदिर में जाकर मां को नमस्कार किया और उन्हें धन्यवाद भी दिया। स्नेहा मन ही मन कहने लगी, "मां आज आप के कारण मैंने अपना बदला ले लिया है... और मुझे पीहू जैसी बेटी भी मिल गई है। आपका बहुत-बहुत आभार मां…!!!"
ऐसा कहकर वह अच्युतानंद के पास चली गई। उसने अच्युतानंद को नमस्कार कर कहा, "प्रणाम गुरुदेव... आपकी ही सहायता से आज मेरा लक्ष्य पूर्ण हुआ है। अब आप जो आज्ञा दे... मैं उसके लिए तैयार हूं। आप मुझे अपने किसी कार्य के लिए अपनी भैरवी बनाना चाहते थे... अब मेरे सारे उद्देश्य पूरे हो गए हैं... अब मैं आपकी सेवा में प्रस्तुत हूं।"
स्नेहा की ऐसी बातें सुनकर अच्युतानंद के चेहरे पर एक बहुत ही कुटिल मुस्कान फैल गई।