Chapter 149
YHAGK 148
Chapter
148
रूद्र जितना अच्छा बेटा था उतना अच्छा पिता भी और उतना ही अच्छा एक बिजनेसमैन भी। मौली के रिपोर्ट आने के बाद वह बुरी तरह से टूट गया था लेकिन फिर भी एक उम्मीद का दामन थामें उसने दो और जगह मौली का ब्लड टेस्ट करवाया। लेकिन नतीजा फिर भी वही निकला। रिपोर्ट्स बिल्कुल सही थे। डॉ स्मिता ने उससे एक जाने माने कैंसर स्पेशलिस्ट का नंबर दिया और उन्हें रेकमेंड भी कर दिया।
मौली की बीमारी अभी अर्ली स्टेज में थी इसलिए ज्यादा घबराने वाली कोई बात नहीं थी। और रूद्र ने सोच रखा था कि उसे क्या करना है! घर में यह बात सिर्फ अभी रूद्र की मां को ही पता थी। बाकी लोगों को भनक तक नहीं थी, ना ही शरण्या को इस बात का एहसास था।
मिस्टर रॉय अनन्या जी के साथ सुबह सुबह सिंघानिया हाउस पहुंचे। शिखा जी सबके लिए नाश्ता लगवा रही थी। उन दोनों को देखते ही शिखा जी खुश हो गई और कहा, "अरे भाई साहब! आप लोग यहां! इतनी सुबह! सब लोग बस अभी आते ही होंगे। अच्छा हुआ आप लोग आ गए। मैं आप सभी को खाने पर बुलाने ही वाली थी। काफी दिन हो गए हम लोग साथ नहीं बैठे।"
मिस्टर रॉय भी मुस्कुरा कर बोले, "भाभी जी! वह कुछ काम था इसलिए हम आए थे। रूद्र और शरण्या कहां है?"
शिखा जी बोली, "वह दोनों अभी बस आते ही होंगे। मौली को स्कूल छोड़ने जाना था। बस शरण्या उसी को तैयार करने में लगी है। आप लोग बैठिये, सब आ जाए तो सभी साथ में नाश्ता करेंगे। तब तक मैं आप लोगों के लिए चाय लेकर आती हूं।"
शिखा जी ने इतना कहा ही था कि उसी वक्त घर का एक हेल्पर चाय की ट्रे लिए वहां चला आया और मिस्टर रॉय और अनन्या जी की तरफ बढ़ा दिया। उन दोनों ने जैसे ही अपनी चाय खत्म की, उसी वक्त सभी नाश्ते के लिए हॉल में जमा हो गए। इतनी सुबह अपने मम्मी पापा को घर पर देख लावण्या खुश हो गई और उनके गले लग गई। उसने कहा, "पापा! मैं आपको बहुत मिस कर रही थी।"
अनन्या जी बोली, "हां! जैसे मैं तो कुछ हूं ही नहीं!"
लावण्या अपनी मां के गले लग गई और कहा, "मैं तो दोनों को मिस् करती हु। लेकिन अगर मैं किसी को ज्यादा याद करती हूं तो आप हैं मॉम! एक बेटी अपनी मां का मन तभी समझती है जब वह भी उसी हालात से गुजरती है जिस हालात से उसकी मां गुजर रही होती है।"
अनन्या जी ने जब सुना तो उनका दिल धक से रह गया। लावण्या से अलग होते हुए बोली, "ये क्या बकवास कर रही हो तुम?"
लावण्या अपनी बात को समझाते हुए बोली, "मां! एक बेटी अपनी मां का मन तभी समझती है ना जब उसकी खुद की शादी होती है और जब उसे ससुराल में रहना पड़ता है अपना मायका छोड़कर! वैसे तो यह मेरा ससुराल नहीं घर है और मां मुझसे बहुत प्यार करती है। लेकिन फिर भी मैं आपको बहुत मिस करती हूं। बेटियां पापा की लाडली होती है लेकिन मां के लिए उसका दिल कभी पिघलता है जब वह उस दर्द को महसूस करती है! जब वह खुद एक मां बनती है!"
अनन्या जी उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, "बहुत बड़ी हो गई है तू! बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगी है। उसी वक्त रूद्र शरण्या के साथ मौली को गोद में उठाए चला आया। लावण्या ने देखा तो पूछ बैठी, "क्या हुआ रूद्र! मौली की तबीयत ठीक नहीं है क्या जो इस तरह तुम उसे गोद में उठाकर लेकर आ रहे हो!"
रूद्र से कुछ कहते नहीं बना। मौली ने भी अपना सर पकड़ते हुए कहा, "यही बात तो मैं कह रही हूं डैड से! लेकिन वह सुनते ही नहीं। पता नहीं क्यों, पिछले कुछ दिनों से मुझे स्पेशल ट्रीटमेंट मिल रही है।"
रूद्र ने मौली को गोद से उतारा और उसे डाइनिंग चेयर पर बैठा दिया। फिर वह मिस्टर रॉय और अनन्या जी के पास जाकर उनके पैर छुए और उन्हें भी साथ में नाश्ता करने को कहा।
नाश्ता कर लेने के बाद मिस्टर रॉय ने बात शुरू करते हुए कहा, "कुछ दिनों पहले लावण्या ने मुझसे एक बात कही थी रूद्र और शरण्या को लेकर! मुझे लगता है हमें इस बारे में बात करनी चाहिए। अनन्या को भी इस सब से कोई प्रॉब्लम नहीं है तो हमने सोचा, अब जब हम लड़की वाले हैं तो रिश्ता ले कर आने का हक भी तो हमारा ही है।"
मिस्टर रॉय की बात सुनकर सबकी नजरें रूद्र और शरण्या पर ठहर गई। शरण्या एक पल को सोच में पड़ गई। फिर जब उसे इस बात का मतलब समझ आया तो थोड़ा शरमा गई और नजरें झुका ली। रूद्र को अच्छा तो लगा लेकिन ऐसे हालात में शरण्या से शादी करना यानी उसे धोखा देना ही होता। फिर भी उसने कुछ कहा नहीं। घरवाले आपस में ही बातें कर रहे थे और रूद्र और शरण्या वहां चुपचाप बैठे हुए थे।
शरण्या चाहती थी कि रूद्र इस बारे में कुछ कहें लेकिन रूद्र को कुछ भी बोलना अभी सही नहीं लग रहा था। खासकर शरण्या के सामने। घर वाले तैयार थे उन दोनों की शादी के लिए। एक बार पुरोहित जी से बात करने की कवायद हो रही थी ताकि उन दोनों के बीच आने वाली अब हर बाधा को समय रहते दूर किया जा सके। उन दोनों के बीच अभी तक इतना कुछ हो गया था कि सबके मन में एक डर बैठ गया था।
रूद्र ने शरण्या से कहा, "शरण्या...! मौली का बैग ऊपर कमरे में रह गया है। तुम वो ले आओगी प्लीज!"
शरण्या उठी और ऊपर कमरे की ओर बढ़ गई। जैसे ही शरण्या कमरे में पहुंची, रूद्र बोला, "मैं आप लोगों के फैसले की इज्जत करता हूं और मैं भी यही चाहता हूं। लेकिन अभी नहीं! जब तक शरण्या की सारी पुरानी यादें वापस नहीं आ जाती, जब तक उसे यह याद नहीं आ जाता कि मैंने उसके साथ क्या किया है तब तक मैं यह शादी नहीं कर सकता। मैं नहीं चाहता हमारे बीच किसी भी तरह का कोई भी पर्दा हो, कोई भी राज रहे। मैं यह नहीं चाहता कि शादी के बाद जब उसे सारी बातें याद आए तो उसे लगे कि उसके साथ कोई धोखा हुआ है। जानता हूं वह मुझसे बहुत प्यार करती है लेकिन फिर भी मैं कभी नहीं चाहूँगा कि उसके मन में कोई बात गांठ बन जाए जो हमारे रिश्ते पर असर डाले। मैंने और शरण्या ने एक दूसरे से कभी कुछ नहीं छुपाया। मैं चाहता आगे भी ऐसा ही हो।"
शरण्या मौली का बैग लेकर नीचे आई तो अनन्या जी बोली, "जैसा तुम कहो! हम तो हमारी बेटी को घर ले जाने आए हैं। अगर आप लोगों की इजाजत हो तो क्या हम उसे अपने साथ ले जा सकते हैं?"
शरण्या के दूर जाने के ख्याल से हि रूद्र सिहर उठा। शिखा जी भी परेशान हो गई। उन्होंने एक नजर रुद्र के चेहरे पर आए उन भावों को देखा और फिर अनन्या जी से बोली, "लेकिन अनन्या! शरण्या हमारी बहू है। उसे यहां रहने दो ना! इतने सालों के बाद तो वह आई है, ऐसे मत ले जाओ उसे!"
अनन्या जी बोली, "शरण्या हमारी भी तो बेटी है ना! और बेटियां कभी एक घर की नहीं होती! ससुराल और मायका दोनों की रौनक होती है। इतने सालों बाद मुझे मेरी बच्ची मिली है। थोड़ा लाड प्यार मुझे भी जता लेने दो। अभी तक हमने उसे दुल्हन बनाकर विदा नहीं किया है, यही सोच कर तो हम आए थे शादी के बात करने और शादी की तारीख तय करने। कुछ दिनों के लिए ही सही लेकिन शरण्या को हमारे साथ भेज दो, फिर उसके बाद ले आना बारात और ले जाना अपनी बहू को। मैं नहीं रोकूंगी!" कहते हुए अनन्या जी की आंखें नम हो चली।
अपनी मां की आंखों में अपने लिए इतना सारा प्यार देखकर शरण्या भी भावुक हो उठी और उसने अपनी मां को साइड से गले लगा लिया। रूद्र एकदम से बोला, "शरण्या! जाकर अपनी पैकिंग कर लो और सबके साथ चली जाना!"
मौली शरण्या की कमर से लिपट गई और बोली, "मैं भी मॉम के साथ जाऊंगी!"
रूद्र ने अपना फोन चेक करते हुए कहा, "तुम कहीं नहीं जा रही। तुम मेरे साथ रहोगी! तुम्हारी मॉम कुछ दिनों के लिए अपनी मॉम के पास जा रही है तो उन्हें इंजॉय करने दो।"
शरण्या मौली के सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "जाने दो ना रूद्र! वैसे भी इसके बिना मेरा मन नहीं लगेगा। अपने ननिहाल जाने का हक इसे भी तो है। मौली मेरे साथ जाएगी।"
"मौली कहीं नहीं जाएगी, मेरे साथ रहेगी!" रूद्र सख्त आवाज में बोला। "मैंने कहा ना मौली कहीं नहीं जाएगी मतलब कहीं नहीं जाएगी! मेरे साथ रहेगी यहीं इसी घर में! तुम जाकर अपनी पैकिंग करो, सिर्फ अपनी पैकिंग!" कहकर रूद्र ने मौली और उसके बैग को उठाया और वहां से निकल गया। रेहान भी उसके पीछे-पीछे चला आया। रुद्र का यह बर्ताव किसी के भी समझ से परे था लेकिन शिखा जी अच्छे से समझ रही थी कि वह मौली को अपने पास क्यों रखना चाहता था। रॉय हाउस में मौली के जाने से रूद्र को कोई परेशानी नहीं थी। परेशानी यह थी कि मौली का इलाज करवाना था वह भी शरण्या को बिना बताए। रुद्र नहीं चाहता था कि मौली की बीमारी के बारे में ज्यादा लोग जाने। खुद मौली को भी बताना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। शरण्या के लिए तो वह उसकी बेटी थी। ऐसे में उसे दूर रखने का जो मौका को ढूंढ रहा था वह मिस्टर रॉय ने आकर दे दिया।
रूद्र अपनी गाड़ी के पास पहुंचा तो रेहान उसे पीछे से आवाज देते हुए बोला, "रूद्र! रुक जा मैं भी चलता हूं तेरे साथ!"
रूद्र रेहान की तरफ पलटा और बोला, "लेकिन तुम और लावण्या तो एक साथ जाते हो ना! फिर मेरे साथ क्यों जाना है? वैसे भी मैं मौली और राहुल को स्कूल छोड़ने जा रहा हूं।" कहते हुए उसने गाड़ी की पीछे वाली सीट की ओर इशारा किया। तब तक मौली आगे की सीट पर और राहुल पीछे की सीट पर बैठ चुके थे। रेहान बोला, "कोई बात नहीं! स्कूल होते हुए हम लोग ऑफिस चलेंगे।"
इससे पहले कि रूद्र कुछ कहता लावण्या पीछे से आते हुए बोली, "रेहान......! मैंने कहा था ना कि हम साथ में चलेंगे! फिर इस तरह मुझे छोड़ कर क्यो जा रहे हो?देख रही हूं आजकल तुम मुझसे थोड़े कटे कटे से रहने लगे हो। पहले जितना प्यार नहीं करते मुझे।"
रेहान घबरा कर बोला,"ऐसा कुछ नहीं है लावण्या! वह तो मैंने बस सोचा थोड़ा जल्दी ऑफिस चला जाऊं। कुछ काम निपटाने थे। तुम्हारे मम्मी पापा आए हुए हैं तो मुझे लगा तुम्हें रुकना होगा उनके साथ। कोई बात नहीं तुम आराम से आना मैं रूद्र के साथ जा रहा हूं।"
लावण्या रेहान के करीब आइ और उसका कॉलर ठीक करते हुए बोली, "मैं सिर्फ आज की बात नहीं कर रही हूं! पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं तुम्हें। उस रात के बाद से तुम थोड़े अजीब से बिहेव कर रहे हो। मेरे करीब भी नहीं आते।"
उन दोनों का रोमांस देखकर रूद्र ने गाड़ी की हॉर्न बजाई और बोला, "सारा रोमांस यही पर करना है क्या? रात के लिए कुछ तो बचा कर रखो तुम दोनों और रेहान...! तुझे चलना है तो चल वरना तु लावण्या के साथ ही आना।"
रेहान जल्दी से बोला, "नहीं भाई! मैं आता हूं! लावण्या तुम बाद में आ जाना, ठीक है?" कहते हुए उसने गाड़ी का पीछे का दरवाजा खोला और बैठ गया। रूद्र ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। उन सब के जाने के बाद लावण्या के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी। उसने खुद से कहा, "जानती हूं रेहान आजकल तुम मुझसे इतने उखड़े उखड़े क्यों रहते हो! यही तो मैं चाहती थी। जो दर्द तुमने मुझे दिया है वही दर्द मैंने तुम्हें भी दिया। कहा था मैंने, मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं! कभी नहीं छोडूंगी! बिल्कुल भी नहीं छोडूंगी! एक औरत सिर्फ तब तक कमजोर है जब तक वह प्यार में है। वरना जिस दिन औरत नफरत पर उतर जाए, उससे ज्यादा बेरहम और पत्थर दिल कोई नहीं होता। यह तो बस शुरुआत है रेहान सिंघानिया! अब तुम देखोगे मैं क्या करती हूं!"