Chapter 86
humsafar 86
Chapter
86
कल रात के हादसे के बाद एक नई उम्मीद के साथ सुबह-सुबह अवनि की नींद खुली। उसने अपने बगल में देखा तो सारांश उसे लेकर गहरी नींद में सो रहा था। अवनि के हिलने डुलने से सारांश की भी नींद खुल गई। सुबह हो चुकी थी और सच में अवनी को बहुत जोर की भूख लग रही थी। उसे बिल्कुल भी आदत नहीं थी भूखे रहने की फिर भी कल जाने कहां से उसे हिम्मत मिल गई। अवनी के पेट से गुड़गुड़ की आवाज आने लगी जिसे सुन सारांश ने कहा, "तुम जल्दी से नहा लो, मैं तुम्हारे लिए कुछ ले आता हूं।" कहकर उसने अवनि को बाथरूम में भेज दिया और खुद नीचे चला गया।
सारांश जब नीचे किचन में आया तो उसने देखा जानकी पहले ही सबके लिए नाश्ता तैयार कर चुकी थी। जानकी को पता था कि अवनि और सारांश को भूख लगी होगी इसलिए सुबह जल्दी उठकर उसने सबके लिए सबसे पहले नाश्ता तैयार किया। कुछ देर बाद जब अवनि नहा कर नीचे आई तो तब तक सारांश उसके लिए नाश्ता लगा चुका था। सबसे पहले उसने अवनि को अपने हाथों से खिलाया। इतनी देर में घर के बाकी सारे लोग भी वहां जमा हो गए थे।
जानकी को पता था कि शुभ कभी सबके साथ नाश्ता नहीं करता इसलिए या तो वह देर से उठता है या फिर अपने कमरे में ही खाता है। यही सोच जानकी ने उसका नाश्ता निकाला और रज्जो को दे कर बोली, "रज्जो...! इसे शुभ के कमरे में दे आ।"
"मासी आप टेलोगे तो मैं हंड्रेड फीट डाउन वेल में जम्प जाऊंगी, आप टेलोगी तो मैं किसी भी माउंटेन पर क्लाइंब जाऊंगी लेकिन उसके कमरे में जाने के लिए मत टेलो! आप किसी अदर के हैंड से भिजवा दो मैं नहीं जाने वाली।" कहकर रज्जो किचन मे चली गई। इससे पहले कि जानकी किसी और से शुभ का नाश्ता उसके कमरे में भिजवाती, वह खुद ही नीचे आ गया और डाइनिंग टेबल पर सबके साथ बैठ गया।
अवनि सारांश के साथ बैठी थी और उसके ठीक सामने शुभ बैठा था जो उसे बीच-बीच में तिरछी नजरों से देख रहा था। उसे डाइनिंग टेबल पर देख सिया की भौहें तन गई। वह उठी और बोली,"जानकी मेरा नाश्ता मेरे कमरे में लगा दो, मैं वही करूंगी।" कहकर सिया अपने कमरे में चली गई। वहाँ किसी को भी कुछ भी अजीब नहीं लगा। शुभ और सिया के बीच के रिश्ते की कड़वाहट के बारे मे सबको पता थी।
सिया के जाने के बाद जानकी ने सिया का नाश्ता कमरे मे भिजवाया और फिर शुभ का नाश्ता लगाया। कार्तिक ने उससे पूछा,"और बताओ शुभ! इस बार कुछ करने का इरादा है या फिर ऐसे ही"
"सोचा तो बहुत कुछ है!, कहते हुए उसने तिरछी नजर से अवनि को देखा जो चुपचाप नाश्ता करने में लगी थी। सब ने नाश्ता किया और अपने-अपने काम में जाने लगे। सिया भी ऑफिस जाने के लिए आज जल्दी ही तैयार हो गई। जैसे ही बाहर निकली चित्रा के मम्मी पापा पल्लवी और चिराग वहां आ गए जिन्हे देख सिया जानकी और सारांश के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई। सिया ने उन दोनों का स्वागत करते हुए अंदर बुलाया।
अंदर आते ही पल्लवी ने कहा," यहाँ अचानक से थोड़ा ज्यादा भीड़ नजर नहीं आ रही!!! पहले तो इतने लोग नहीं रहते थे यहाँ!" सिया समझ गई कि यह कटाक्ष पलल्वी ने कार्तिक पर किया है। उसके चेहरे की मुस्कान थोड़ी फीकी हो गई लेकिन फिर भी मुस्कुराते हुए कहां ,"नहीं पल्लवी! घर भरा भरा सा लगता है अब, पहले की तरह।" पल्लवी और चिराग को देख कार्तिक ने शिष्टाचारवश दोनों का अभीवादन किया और काव्या को लेकर कमरे मे चला गया। काव्या को पल्लवी की ये बात बिलकुल भी पसन्द नही आई।
दोनों ही पहले पड़ोसन और पक्की सहेलियां रह चुकी थी। बरसो के बाद जब उन दोनों का मिलना हुआ तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। "चित्रा ने बताया थाकि तुम और भाईसाहब आने वाले हैं उसकी सगाई के लिए। तो कब का मुहूर्त निकला है?" सिया ने पूछा।
पल्लवी ने कहा,"परसों का ही मुहूर्त निकला है। देखो ना इतनी जल्दी तैयारियां कैसे करेंगे, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। तभी वहां चित्रा भी आ पहुंची। सिया ने जब चित्रा को देखा तो अपने पास बुलाया और वही साथ में बैठाया फिर उसके चेहरे को छूकर बोली, "आखिर तुम भी किसी का हाथ थामने के लिए तैयार हो ही गई। मुझे पता था जिस दिन तुम्हें ये बात समझ आएगी तो खुद इस रिश्ते के लिए हां कह दोगी। निक्षय सच में बहुत अच्छा लड़का है।"
"यह बात तो बिल्कुल सही कही तुमने सिया। हमारी एकलौती बेटी है, इसीलिए तो बहुत सोच समझ कर हम ने उससे अपनी चित्रा के लिए चुना है।"पल्लवी ने कहा, "तुम्हारी बेटी की सगाई हो रही है सिया तो तुम्हें तो आना ही होगा और सारांश तुम अपनी बेटर हाफ को लेकर ही आना है। और जानकी तुम्हें भी! आप सबको आना है परसों और अवनी तुम्हें तो चित्रा की हेल्प भी तो करनी है शॉपिंग के लिए। तो तुम दोनों के पास वक्त ही तो नहीं है ज्यादा! कब जा रहे हो तुम लोग?"
"आप फिकर मत करिए आंटी! आप लोगों को जो शॉपिंग करनी है आप लोग कीजिए चित्रा की शॉपिंग मैं करवा दूंगी", अवनि ने मुस्कुरा कर कहा।
कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद पल्लवी और चिराग दोनों वहां से जाने लगे तो चित्रा ने कहा मॉम! क्या आप लोगों ने कार्तिक को नहीं कहा आने के लिए? मैं अभी उसे बोल कर आती हूं।" चित्रा उठ कर जाने को हुई तो पल्लवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसी वक्त कार्तिक अपने कमरे से निकला तो चित्रा अपनी मां का हाथ छुड़ाकर कार्तिक की ओर पहुंची और बोली, "कार्तिक......! परसो सगाई है मेरी, तुम आओगे न!"
कार्तिक ने एक बार पल्लवी और चिराग की ओर देखा फिर चित्रा से बोला,"चिटू तू जानती है डॉक्टर ने काव्या को रेस्ट के लिए कहा है और जब सब लोग ही चले जाएंगे तो कोई तो होना चाहिए ना उसके पास। अवनी, बड़ी मां और मासी तीनों ही जब सगाई में चले जाएंगे तो मैं काव्या को किस के भरोसे छोडुगा ये तुम ही बताओ। और ना ही मैं उससे लेकर ट्रेवल कर सकता हूं। ये रज्जो मैडम जी के भरोसे भी छोड़ नहीं सकता। वह कुछ लेकर आएगी और खाने के बजाय इटने को बोलेगी जो काव्या की समझ में नहीं आती।"
कार्तिक की बात सुन रज्जो का चेहरा उतर गया और चित्रा हंस पड़ी। उसने कहा, "तेरी बात भी सही है, इस वक़्त काव्या को तेरी जरूरत है इसलिए मैं तुझे फोर्स भी नहीं कर सकती लेकिन तू कोशिश तो कर ही सकता है ना! मैं चाहती थी कि मेरी सगाई में मेरे दोनों ही दोस्त मेरे साथ हो लेकिन समझ सकती हूं!"
"कोई बात नहीं यार! सगाई ही तो है, कौन सा तेरी शादी हो रही है अभी। वादा करता हूं, तेरी शादी में जरूर आऊंगा और तुम दोनों ने भी तो नहीं सगाई अटेंड नहीं की थी अब मेरी बारी। इसीलिए कहते जो होता है अच्छे के लिए होता है अब तू जाकर निक्षय बाबू का खून मत पीना! बेचारा निक्षय!" कार्तिक की बात सुनकर चित्रा को गुस्सा आया और उसने एक पंच उसकी पीठ पर दे मारा। उन दोनों की नजदीकियां पल्लवी को बिल्कुल भी नहीं अच्छी लग रही थी।उसने चित्र का हाथ पकड़ा और वहां से खींचते हुए ले गयी।
सिया पल्लवी का नेचर को अच्छे से जानती थी लेकिन ना ही वह उसे कुछ कह सकती थी और ना ही कार्तिक के खिलाफ ही सुन सकती थी। दुनिया चाहे जो भी कहे उसने कार्तिक को अपना बेटा माना है और यही सच भी था। सिया उठी और ऑफिस के लिए निकल गयी।
सारांश को घर के कपड़ों में देख शुभ ने पूछा,"क्या बात है भाई! एक की बीवी प्रेग्नेंट है इसलिए वह ऑफिस नहीं जा रहा है और दूसरे को देख कर लगता नहीं कि उसका भी ऑफिस जाने का इरादा है। क्यों भाई अवनि प्रेग्नेंट है क्या?"
" तमीज से शुभ! भाभी है वो तेरी" सारांश ने गुस्से से उसे कहा तो शुभ ने अपने मुंह पर हाथ रखकर सॉरी वाला चेहरा बनाया और अपने कमरे में चला गया। अवनी वही खड़ी थी, सारांश ने उसे एक नजर देखा और फिर पलके झपका कर इशारा किया कि वह यहीं है।
सारांश अपने स्टडी रूम में चला गया। शुभ को अपने कमरे में जाते देख कार्तिक जल्दी से सारांश की स्टडी रूम में गया और दरवाजा बंद कर दिया। कार्तिक को अच्छे से पता था कि सारांश का स्टडी रूम साउंडप्रूफ है इसलिए उसने यही बात बात करना बेहतर समझा। वह दोनों हाथ बांधकर सारांश के आगे खड़ा हो गया और भौहै उचका कर बोला, " क्यों भाई क्या हो रहा है! यह सीक्रेट अफेयर का क्या चक्कर है जरा मुझे बताना तो? तुम कब से किसी लड़की के चक्कर में पड गए? यह सब कौन-सी प्लानिंग में लगे हो और यह कौन सी नई कंपनी आई है और इसका मालिक कौन है अवनि सारांश मित्तल! कल रात शुभ हमारी बातें सुन रहा था इसलिए मैं ने कुछ नहीं कहा तुझे लेकिन अब मुझे बताओगे क्या की क्या बात है?"
कार्तिक के सवाल सुन सारांश कुछ देर खामोश रहा फिर बोला, "तुझे पता है! शादी से पहले अवनी जिसके साथ रिलेशनशिप में थी वह शुभ ही है जो लक्ष्य बनकर उसे धोखा दे रहा था सिर्फ अपना मतलब निकालने के लिए और उसकी लाइफ बर्बाद करने के लिए! "
सारांश की बात सुनकर कार्तिक को यकीन ही नहीं हुआ कि श्रेया ने जिस लक्ष्य के बारे में उसे बताया था वह और कोई नहीं बल्कि शुभ ही है लेकिन जब सारांश ने कहा यह बात खुद अवनी ने हीं कंफर्म किया है तब जाकर उसे यकीन हुआ," लेकिन वह करना क्या चाहता है?"
अवनि जब डाइनिंग टेबल पर से सारे बर्तन समेट रही थी तब उसका ध्यान पल्लवी के फोन पर गया जो वही छूट गया था और जिस पर निक्षय कि मॉम का कॉल आ रहा था। रज्जो ने फोन लिया और बोली, "भाभी मैं यह फोन उन्हें देख कर आती हूं।"
अवनि जो कि उस घर से कुछ देर के लिए बाहर निकलना चाहती थी, उसने कहा, " रज्जो! आप रुक जाओ, मैं उन्हें दे कर आती हूं और मुझे चित्रा से कुछ बात भी करनी थी।" कह कर उसने रज्जो के हाथ से फोन लिया और बाहर निकल गई। ड्राइवर को बोलकर गाड़ी को चित्रा के घर की ओर मोड़ लिया।
सिया जो कि अभी अभी घर से निकल कर कुछ दूर ही गई थी कि अचानक से उसे याद आया कि एक इंपॉर्टेंट फाइल वह घर पर ही भूल गई है जिसे वह किसी नौकर के हाथ में नहीं मंगवा सकती थी। उसने ड्राईवरस बोलकर गाड़ी घर की ओर वापस मोड़ा और अंदर गई। अंदर आते ही उसने देखा जानकी घर के लैंडलाइन की फोन को कान से लगाए खड़ी थी और इससे पहले कि वह कुछ कहती उसकी नजर सिया पर गई जो कि उसके सामने ही खड़ी थी। सिया को देखकर जानकी थोड़ी हड़बड़ा सी गई और उसने झटके से कहा "रॉन्ग नंबर" और फोन रख दिया.
"पता नहीं क्या हो गया है आजकल के लोगों को! जब देखो रॉन्ग नंबर ही आते हैं। यह नंबर कटवा क्यों नहीं देते हैं जीजी!" जानकी ने कहा तो सिया ने बस हां में सिर हिला दिया जैसे वह सब समझ गई हो। जानकी को देखकर साफ साफ पता चल रहा था कि वह घबराई हुई है लेकिन फिर भी अपनी घबराहट को छुपाते हुए वह वापस किचन में चली गई लेकिन उसकी घबराहट को सिया की तेज निगाहों ने देख लिया था। उसने अपने कमरे से फाइल लिया और ऑफिस चली गई।
रास्ते में उसने सारांश को फोन किया और बोली, "सारांश! कल मैं और जानकी अवनि और चित्रा के साथ शॉपिंग के लिए जा रहे है। मुझे सारे इंतजाम चाहिए कल और सब को बता देना कि कल मै और जानकी पूरे दिन मॉल में रहेंगे।" कहकर उसने फोन काट दिया। सिया की बात सुन सारांश सोच मे पड़ गया, उसे अभी भी सिया की बातों पर यकीन नही हो रहा था।