Chapter 6

Chapter 6

humsafar 6

Chapter

6  अवनि अपने कमरे मे चली गयी। उसके जाते ही काव्या भी उसके पीछे पीछे कमरे मे घुस आयी और दरवाजा बंद कर दिया। 

   "तु कार्तिक के ऑफिस गयी थी? "

   "हाँ.... "

  "और तु सारांश से मिली? "

  "हाँ..... "

  "सारांश ने खुद तुझे जॉब ऑफर की? "

   "हाँ........ "

"तु सच बोल रही है अवनि??? मुझे यकीन नही हो रहा, सारांश !!!!" काव्या ने दोनो हाथ अपने सिने पर रख कर बेहोश होने का नाटक करने लगी। 

  "अरे रे रे रे.... दिदु क्या हुआ तुम्हे? संभालो खुद को। और क्या है ये!! जीजू के रहते किसी और पे लाइन मारने की कोशिश भी की ना तो मैं बता दे रही हु, मुझ से बुरा कोई नही होगा।" अवनि ने धमकी भरे लहजे मे कहा लेकिन काव्या ने जैसे कुछ सुना ही नही। 

  "सामने से कैसा दिखता है वो?? मैंने तो बस उसे अखबारों मे ही देखा है। बता न कैसा दिखता है सामने से?? " काव्या ने बच्चो की तरह उछलते हुए पूछा। 

  अवनि के आँखो के सामने वो नजारा घूम गया जब अचानक से सारांश उसके एकदम करीब आ गया था। उस वक़्त उसका दिल मानो एक पल को धड़कना भूल गया। वो गहरी आँखे..... ऐसा लगा जैसे वो उन आँखो मे डूब ही जायेगी। बिल्कुल एक राजकुमार की तरह जो हर लड़की के सपनों मे आता है। 

  "बता न..... " काव्या ने अवनि को झंझोरा तो तो वह होश मे आई। "मुझे नही पता दी, मैंने ध्यान से नही देखा और वैसे भी वो अपना काम कर रहा था मेरी तरफ पीठ करके, मैंने नही देखा। और वो कोई तोप है क्या जो मै उसको देखने मे इट्रेस्टेड रहु...... " अवनि ने खीझते हुए कहा। 

  "तोप!!!! अरे बॉम्ब है बॉम्ब। तुझे पता भी है वो कौन है??" काव्या ने समझाना चाहा। 

    "मुझे नही पता और मुझे जानना भी नही है। अब जाओ यहाँ से मुझे आराम करना है। " कहकर अवनि ने धक्के मार कर काव्या को कमरे से बाहर निकाला और दरवाजा बंद कर लिया। 

   अवनि आकर बिस्तर पर लेट गयी और आँखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन आँखे बंद करते ही उसके सामने सारांश का चेहरा सामने घूम गया। उसकी आँखे, उसके सुर्ख होंठ..........नही!!!!!। अवनि जैसे नींद से जागी। "ये क्या हो रहा है तुझे अवनि? ये तु क्या सोच रही है? याद रख....... सिर्फ लक्ष्य!!! सिर्फ और सिर्फ लक्ष्य, और कुछ नही कोई नही" सोचते हुए अवनि उठकर बाथरूम गयी, हाथ मुह धोये वापस बिस्तर पर आकर उसने अपनी आँखे बंद की और थोड़ी देर मे सो गयी। 

   जल्दी सोने की वजह से आधी रात को ही अवनि की नींद खुल गयी । थोड़ी भूख महसूस हुई तो किचन मे चली आई।फ्रिज के उपर एक नोट चिपका था "खाना फ्रिज मे है गर्म करके खा लेना भुक्खड़" "ये दिदु भी न.... बहुत मिस् करने वाली हु आपको मैं" अवनि खुद मे बड़बड़ाने लगी। उसने फ्रिज से खाना निकाल कर गर्म किया और खाकर वापस अपने कमरे मे चली आई। सोकर उठने की वजह से इतनी जल्दी नींद भी नही आने वाली थी तो उसने अपना फोन उठाया और लक्ष्य को मैसेज करने लगी। 

   "अरे नही......! लक्ष्य के फाइनलस होने वाले है और उसने साफ साफ मना किया था कॉल या मैसेज करने से" सोचकर उसने फोन रख दिया। कल से नया दिन नया काम इसीलिए अवनि सोने की कोशिश करने लगी लेकिन नींद आँखों से कोसो दूर थी। 

     इस चाँदनी रात मे कोई और भी था जो अवनि की तरह ही जाग रहा था, नींद उसकी आँखों से भी दूर थी। उसकी गहरी आँखों मे कुछ ख्वाब तैर रहे थे। वह अपने कमरे की खिड़की पर बैठा चाँद को निहार रहा था मानो उस चाँद मे किसी का चेहरा ढूंढ रहा हो। 

   "सारांश......! सारांश........!! " सारांश की माँ सिया ने आवाज लगाई लेकिन सारांश मानो यहाँ था ही नही। वह मुस्कुराई और कमरे मे दाखिल हुई फिर करीब आकर उन्होंने फिर आवाज दी, "अवनि.......! " 

    अवनि का नाम सुन सारांश उछल पड़ा। वह हड़बड़ा कर  कमरे मे इधर उधर देखने लगा, "कहाँ है अवनि???"

   "तुम्हारे दिल मे... " सिया ने सारांश के दिल पर उंगली से इशारा करते हुए कहा। 

   "मॉम आप भी न...! " सारांश झेप गया। 

  "क्या मॉम? साफ साफ तुम्हारे चेहरें पर लिखा है दैट यू आर इन लव माय सन"  सिया ने सारांश के चेहरे को प्यार से छुकर कहा। 

  "मुझे कोई प्यार व्यार नही हुआ है। एक मिनट!!! आप को अवनि के बारे मे कैसे पता चला? मै तो आज ही मिला हु उससे तो आपको कैसे........... कार्तिक!!!!!! उसी ने बताया न आपको!! उसे तो मैं छोडूंगा नही! "

  "उसको कुछ मत कहना, मैंने ही फोन किया था उसे" सिया ने कहा।  " तुम इतने खोये खोये से थे अपने ख्यालो मे गुम.... होठों पर मुस्कान आँखों मे चमक...... मुझ से रहा नही गया तो मैंने ही उसे फोन कर पूछा उसका नाम जिसने तुम्हे बीमार किया है। " सिया ने शरारत से कहा। 

   "मॉम.......! ऐसा कुछ नही है। अभी तो मै खुद भी स्योर् नही हु अपनी फीलिंग्स को लेकर।" सारांश ने नज़रे नीची करते हुए कहा। 

  "अच्छा........! तो फिर वो मेरी फ्रेंड है न मिसेज मेहरा उनके बेटे के लिए बात चलाती हु। अवनि से मिल चुकी हु, दोनो की जोड़ी सही रहेगी।" सिया ने गंभीर आवाज मे कहा। 

  "नही मॉम....... " सारांश ने घबरा कर कहा तो सिया की हँसी छुट गयी। "ये सब अपने जानबूझ कर कहा न!! " सारांश ने हल्का गुस्सा दिखाकर कहा तो सिया बोली, 

"जब चाँद मे महबूब का चेहरा नज़र आये 

तो समझो इश्क़ है। 

जब आईने मे किसी और का अक्स नज़र आये 

तो समझो इश्क़ है।

जब किसी और का नाम अपनी पहचान लगने लगे

तो समझो इश्क़ है"

  "मॉम...! पापा होते तो ऐसा ही कहते न?" सारांश उदास हो कर बोला। 

  "हाँ बेटा...! ये सारी बातें शरद ही कहते थे। ये शब्द उनके ही है। उनका बहुत मन था अपने बच्चो को इस तरह परेशान करने का लेकिन.....!" सोचते हुए सिया भावुक हो गयी। लेकिन अपनी उदासी छुपाते हुए बोली, "लेकिन जब वो नही है तो ये जिम्मेदारी भी तो मेरी हुई न और मै नही छोड़ने वाली तुम्हें" कहते हुए सिया ने सारांश को गुदगुदी करनी शुरू कर दी जिससे बचने की कोशिश मे बेचारा सारांश नीचे गिर पड़ा। 

  "लेकिन मॉम आप अवनि से कब मिली?? " सारांश ने पूछा। 

  "कार्तिक की सगाई मे। बड़ी प्यारी बच्ची है, मुझे तो पहली नज़र मे ही भा गयी थी। तु तो गायब था।" सिया बोली। 

   "मगर कहते है न जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर मै सगाई से गायब नही होता तो पनीसमेंट मे मुझे शादी की जिम्मेदारी नही मिलती, ना ही मै रास्ते मे अवनि से टकराता। आप जानती है मॉम उसकी दोस्त ने मुझे कितना कुछ सुनाया!!!जबकि मेरी कोई गलती भी नही थी।" सारांश ने बच्चो की तरह मुह बिचका कर कहा। 

   "कोई बात नही मेरा बच्चा!!! वैसे भी लगता है तुम्हारी सज़ा अब मजा बनने वाली है, क्यों? " सिया ने चुटकी की तो सारांश शरमा गया। "अच्छा अब सो जाओ। कल सुबह ही जाकर मै अवनि के माँ पापा से रिश्ते की बात करती हु।" सिया ने कहा।

  "नही मॉम, इतनी जल्दी नही। पहले मुझे उसे जानना है पहचानना है। पहले वो भी मुझे जान ले समझ ले फिर!" सारांश ने कहा। सिया ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाया फिर सोने चली गयी। सारांश भी सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी ही देर मे उसे नींद आ गयी। 

   


क्रमश: