Chapter 43

Chapter 43

humsafar 43

Chapter

43

    अवनि बाथरूम से बाहर आई तो देखा सारांश सोने की बजाय बेड पर लैपटॉप लिए काम कर रहा था। उसकी आँखे स्क्रीन पर गडी थी और उसकी पतली लंबी उंगलियाँ कीबोर्ड पर ऐसे चल रही थी मानो वह कोई पियानो हो। अवनि कुछ देर वही बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी होकर उसे देखती रही तो सारांश ने बिना उसकी और देखे कहा, "तुम्हे मजा आता है क्या मुझे ऐसे घूरने मे?"

    सारांश की बात सुन धीरे से बेड के पास आई और अपने साइड खड़ी हो गयी। "अपने तो कहा था सुबह मीटिंग है, तो सोये क्यों नही?" अवनि ने कहा तो सारांश ने लैपटॉप बंद कर साइड मे रख दिया और लपककर उसका हाथ पकड

बेड पर बैठा दिया। सारांश की इस हरकत से अवनि सारांश के फिर करीब थी। "कहा था न! तुम्हारे साथ बहुत अच्छी नींद आती है।"

    अवनि हैरान रह गयी, उसने सारांश के इस बात पर ध्यान ही नही दिया था। उसने पूछा, "ये कब हुआ? और ये हमारी साथ मे दूसरी रात है तो इस बात का क्या मतलब?"

   सारांश ने हँसते हुए कहा, "दूसरी नही....तीसरी! एक रात हॉस्पिटल मे.। भूल गयी तो याद दिलाउ और होटल वाली बात.... वो कैसे भूल सकता हु।" सारांश ने अपने दोनो हाथ मोड़ कर अपने सिरहाने रख लिया और छत को निहारते हुए उस दिन की होटल वाली बात को याद करने लगा। अवनि भी कुछ देर सोच मे पड़ गयी फिर अपना सिर खुजा कर लेट गयी और सोने की कोशिश करने लगी। सारांश ने करवट ली और अवनि को देखने लगा। 

    "तुम्हे कोई आईडिया नही है अवनि! तुम्हारा मेरे सामने होना वो भी इतने करीब.......ये सब एक सपने के सच होने जैसा है।" सारांश मन ही मन सोच रहा था और अवनि.....! अवनि तो एक बार फिर उन गहरी आँखों मे इतनी गहराई तक डूब गयी की नींद कब आई उसे पता ही नही चला। सारांश ने उसके माथे पर किस किया और सो गया। दोनो करीब थे, आमने सामने थे लेकिन दूरिया अभी बाकी थी। 


    सुबह सुबह घडी का अलार्म बजा जिसे अवनि ने सेट किया था, तो सारांश ने झट से उसे बन्द कर दिया ताकि अवनि की नींद ना खुले। सारांश  तब तक मॉर्निंग वॉक से वापस आ चुका था और अवनि को सोते देखना उसके लिए एक सुकून भरा पल था। कुछ देर बाद सारांश फ्रेश होकर नीचे किचन मे आया और सब को साइड कर खुद नाश्ता तैयार करने लगा। कंचन ने जब सारांश को नाश्ता बनाते देखा तो अवनि के बारे मे पूछा। 

    "वो सो रही है, उसे सोने दीजिये कुछ दिन आराम से। शादी की भागदौड़ मे जो थकान हुई है उसे उतरने मे थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही।" सारांश ने कहा। 

  "अरे ऐसे कैसे? ससुराल है ये उसका! ये उसका काम है जो आप कर रहे हो बेटा।" कंचन ने कहा।  

  "गलत...! ये उसका घर है, ससुराल कहकर इसे पराया मत करिये। वैसे भी उसकी पहली रसोई की रस्म अभी बाकी है। जब हो जायेगा तब वो खुद करेगी और अगर नही करना चाहे तो मै हु ही, उसके लिए नाश्ता बनाने के लिए। और आप....!" सारांश ने थोड़ा गंभीर होकर कहा, "आप न कभी कोशिश भी मत करना मेरी सास बनने का। आप मेरी माँ है और हमेशा मेरी माँ ही रहेंगी।" कहकर उसने कंचन को गले लगा लिया। कंचन को लगा जैसे उसका खोया हुआ बेटा उसे वापस मिल गया हो। उसकी आँखों मे आँसू आ गए तो सारांश ने उन्हे पोछकर स्माइल करने कहा और मुस्कुरा दिया। 

      कंचन को सही नही लगा तो वह धीरे से अवनि के कमरे मे गयी और उसे उठाया। "अवनि उठ...! तेरा पति नीचे सब के लिए नाश्ता बना रहा है और तु यहाँ सोई पड़ी है।"अवनि अलसाइ सी उठी और जब घडी की ओर देखा तो उसकी नींद उड़ गयी। "मैंने तो अलार्म लगाया था, फिर ये बजा क्यों नही?" अवनि ने देखा अलार्म ऑफ किया हुआ था। "ये ऑफ किसने किया?" अवनि ने पूछा। 

   "मैंने....!" सारांश ने कमरे मे दाखिल होते कहा। "माँ....! मैंने मना किया था न अवनि को उठाने से।"

   "अरे लेकिन मै बिना अलार्म के नही उठ पाती हु!" अवनि ने अपनी मजबूरी बताई तो सारांश ने कहा, "तुम्हे उठना है तो मुझे बोल देना, मै जगा दूँगा। और इतनी सुबह उठ कर क्या करोगी!? कुछ दिन आराम करो फिर मै खुद तुम्हे उठा कर अपने साथ भगाउँगा... पार्क मे। अब जब उठ गयी हो तो तैयार होकर नीचे आ जाओ नाश्ता तैयार है। तुम्हारे दिदु और जीजू भी आते ही होंगे।"

   सारांश की बात सुन अवनि जल्दी से तैयार होने चली गयी तो सारांश ने कंचन को नाश्ते की टेबल पर पहुँचने को कहा और चेन्जिंग रूम मे चला गया। कंचन कुछ देर वही बैठी कमरे को देखती रही और उठ कर बाहर चली गई। 

   नाश्ते की टेबल पर चित्रा और श्रेया सबसे पहले हाजिर थी। एक एक कर सभी वहाँ जमा हो गए लेकिन कार्तिक गायब था। सिया ने काव्या से पूछा तो काव्या ने कहा, "कार्तिक तो सुबह ही ऑफिस के लिए निकल गए।" काव्या की बात सुन सिया ने सारांश की ओर देखा तो सारांश ने भी कंधा उचका दिया, "आज तो शनिवार है और हम सब हफ्ते मे एक दिन आज यहाँ एक साथ इकट्ठा होते है चाहें कितना भी काम हो। ऑफिस मे आज कोई मीटिंग है, ऐसा तो कुछ याद नही मुझे।"

   सारांश की बात सुन अवनि ने उसे घूर कर देखा क्योंकि रात को बार बार उसने कहा था की आज सुबह मीटिंग है। सारांश ने जब अवनि को अपनी ओर घूरता पाया तो उसने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। 

   कार्तिक को ऑफिस मे कोई मीटिंग नही था। वो अपनी ही बेचैनी मे उलझा हुआ था। उसके दिमाग मे चित्रा के जाने की बात घूम रहा था और एक नाम..... निक्षय। 

    नाश्ते के बाद कंचन और अखिल अपने घर लौटने की तैयारी करने लगे, श्रेया भी साथ ही जाने के लिए तैयार हो गयी। सारांश जब ऑफिस के जाने को हुआ तो चित्रा ने रोक लिया। "कल मै जा रही हु तो आज का क्या प्लान है?" 

"जो तु कहे! शाम को चलते है सब...... पूरी मस्ती, नो रोका टोकी" सारांश ने कहा तो चित्रा खुश हो गयी। तभी एक नौकर ने आ कर बताया की कोई  मानव नाम का लड़का अवनि से मिलने आया है। श्रेया और अवनि भी वही थे, मानव का नाम सुन अवनि ने उसे अंदर बुलाने को कहा तो श्रेया चिढ़ गयी। और अवनि को खुश देख सारांश को अच्छा नही लगा लेकिन उसने कुछ नही कहा। 

    मानव काव्या की शादी मे शामिल नही हो पाया था तो अवनि को ढूँढते हुए वह शादी की वेन्यु पर गया जहाँसे उसे यहाँ का पता मिला। लेकिन अवनि को नई नवेली दुल्हन के रूप मे देख मानव का दिल टूट गया। अवनि उसे देख मुस्कुरा दी लेकिन श्रेया तुनक कर बोली, "आ गया हमारा आदिमानव..! बड़े दिनों बाद दर्शन हुए है आपके। वैसे कौन से जंगल मे थे आप?"

   "नही नही...! मै तेरे घर पे नही था जंगली बंदरिया" मानव ने भी उसी की भाषा मे जवाब दिया। श्रेया और मानव के बीच की लडाई कोई नई नही थी लेकिन इस बीच चित्रा भी कूद पड़ी अपनी नई नई दोस्त के लिए। "ये चूज़ा कौन है जो तुझे इस नाम से बुला रहा है?" चित्रा ने श्रेया से पूछा। इससे पहले श्रेया कुछ कहती मानव बोला, "ये छिपकली कौन है जो डाइनासौर बनने की कोशिश कर रही है।"

   चित्रा अपनी तारीफ सुन तिलमिला गयी लेकिन सारांश को माहौल थोड़ा इंट्रेस्टिंग लग रहा था। अवनि ने बीच बचाव किया तो मानव ने पूछा, "अच्छा अवनि....! तुमने जिसके लिए वो गेम्स की सीडी मंगवाई थी.... ... "

   "उससे ही शादी हो गयी इसकी।" श्रेया ने सारांश की ओर इशारा कर कहा तो सारांश ने हाथ हिला दिया जिसे देख मानव का बचा खुचा कॉन्फिडेंस भी चला गया क्योंकि सारांश के उसकी पर्सनाल्टी कही भी नही टिकती थी। "तुम दोनो एक साथ बहुत अच्छे लग रहे हो।" मानव बेचारा सिर्फ इतना ही बोल पाया और वहाँ से जाने लगा। 

    चित्रा को सीडी का ध्यान आया तो वह बोली, "ओये चिलगोजे...! रुक।"

   "मेरा नाम मानव है।" मानव ने अकड़ कर कहा। 

   "हाँ हाँ..! जो भी है। वो सीडीज तेरी थी!" चित्रा ने कहा तो मानव ने हाँ मे गर्दन हिला दिया। दरसल चित्रा को वो गेमस बहुत पसंद आये थे तो उसने उसे थैंक्स कहा और आज शाम की पार्टी मे आने के लिए इनवाईट कर दिया तो मानव भी खुश हो गया, आखिर इतनी खूबसूरत लड़की सामने से पार्टी मे बुला रही थी। 

    मानव जाने लगा तो  अवनि ने उसे साइड मे लेजाकर उसे श्रेया का ध्यान रखने के लिए कहने लगी। इधर सारांश को अवनि और मानव का यूँ बात करना अच्छा नही लगा लेकिन कुछ कहा भी नही। लेकिन हमारी चित्रा मैडम से कहा सब्र होता है। उसने सारांश से कहा, "संभाल ले.....! कॉलेज मे तेरी बीवी पे लाइन मारता था।" चित्रा की बात सुन सारांश का चेहरा उतर गया। 

 

  चित्रा आज अपने घर गयी थी जहाँ उसके और कार्तिक के बचपन की ढेर सारी यादें बसी थी जिन्हे वो फिरसे जीना चाहती थी। एक बार फिर वो बचपन मे लौट गयी कार्तिक के साथ। शाम को सारांश जल्दी वापस आ गया ताकि चित्रा की पार्टी मे लेट ना हो। अवनि उस वक़्त अपने कमरे मे बैठी कोई किताब पढ़ रही थी। सारांश देखा और चुपके से अंदर आकर उसे गोद मे उठा लिया। अवनि अचानक से सारांश के आने से चौँक गई, उससे भी ज्यादा उसकी हरकत पर। 

   "छोड़िये मुझे, नीचे उतारिये!!! मै गिर जाऊंगी।" अवनि ने कहा। 

  "अरे! ऐसे कैसे गिर जाओगी! इतना भी भरोसा नही है मेरे पे!" कहकर सारांश ने उसे हवा मे उछाल दिया। अवनि ने डर से आँखे बंद कर ली और चिल्लाई, "सारांश.....! मुझे नीचे उतारिये वरना मै चिल्लाकर सब को बुलाऊँगी।"

    सारांश ने उसे बेड पर लिटाकर कहा, "हम्म्! तो बुलाओ...! ये कमरा साउंड प्रूफ है, मै भी देखता हु कौन आता है तुम्हारी आवाज़ सुनकर। चिल्लाओ जितना चिल्लाना है।" कहकर सारांश ने अपना चेहरा उसकी गर्दन मे छुपा लिया। अवनि को गुदगुदी सी हुई। अवनि ने उसे खुदसे दूर करने की कोशिश नही की जिससे सारांश का हौसला बढ़ा और उसने उसकी गर्दन को चूम लिया। 






क्रमश: