Chapter 17

Chapter 17

Episode 17

Chapter

स्नेहा जल्दी सुबह उठ गई थी। स्नान, ध्यान, पूजा करके वह मां के की मंदिर में जा बैठी थी। आज स्नेहा का मन अत्यधिक विचलित था। स्नेहा आगे की रणनीति के बारे में ही सोच रही थी। स्नेहा को  ख्याल आया कि कोई भी रणनीति बनाने से पहले एक बार गुरुजी से बात कर लेनी चाहिए। ऐसा सोचते हुए स्नेहा तुरंत अच्युतानंद जी के पास चल दी।

अच्युतानंद जी उस समय ध्यान में बैठे थे। स्नेहा ने उन्हें प्रणाम किया और वही एक तरफ बैठ गई। गुरु जी को ध्यान मग्न देख कर स्नेहा ने उन्हें टोकना ठीक नहीं समझा। स्नेहा खुद भी वही शांति से बैठ गई। 

 फिर उसने सोचा, "जब तक गुरुजी ध्यान में हैं, तब तक आत्मानंद के विषय में जानकारी एकत्र कर ली जाए।" ऐसा सोच कर  स्नेहा ने अपने कानों को छूते हुए कुछ मंत्र पढ़ें और फिर नमस्कार कर कहने लगी, "मांऽऽऽ मुझे आज आत्मानंद के विषय में सभी जानकारियां चाहिए। क्या आप मेरी सहायता कर सकती हैं…??"

 स्नेहा के ऐसा कहते ही उस शक्ति ने स्नेहा को कुछ बताना शुरू कर दिया  जिसे सुनकर स्नेहा के चेहरे के भाव पल पल बदल रहे थे,  कभी  स्नेहा एकदम से क्रोध में भर उठती, तो कभी निराशा उसके भावों पर हावी होने लगती, तो कभी एक दृढ़ निश्चय की चमक स्नेहा के चेहरे पर दिखाई देने लगती।  शक्ति की बातें सुनने के बाद स्नेहा ने वहां के दृश्य देखने का निश्चय किया।  स्नेहा ने आत्मानंद का स्मरण किया तो स्नेहा के सामने एक दृश्य चलने लगा…

                  

 आत्मानंद अपने श्मशान में बैठा विराज से बातें कर रहा था।

 विराज ने कहा, "गुरुदेव आपको क्या लगता है...  वह लड़की हमारे लिए कोई मुसीबत तो नहीं खड़ी कर सकती…??"

 आत्मानंद ने कहा, "वह लड़की मुसीबत खड़ी नहीं कर सकती... बल्कि स्वयं मुसीबत है। तुमने स्वयं कालरात्रि को अपने भोग के लिए आमंत्रित किया है। वह लड़की... उसमें फिलहाल प्रतिशोध की भावना प्रबल है। मैं यह तो नहीं देख पा रहा की वह है... कहां?? और क्या कर रही हैं…? पर मेरी शक्तियों द्वारा मुझे इतना ज्ञान तो अवश्य हो गया है कि वह शीघ्र ही हमारे लिए बहुत बड़ी संकट बनकर उभरेगी।" 

विराज ने आत्मानंद के चरण पकड़ते हुए कहा, "गुरुदेव…!! रक्षा कीजिए... मुझे यह बिल्कुल पता नहीं था कि वह लड़की इतनी घातक बनकर हमारे सामने आएगी।"

आत्मानंद ने कहा, "तुमने बिल्कुल सही कहा... वह कभी भी आक्रमण कर सकती है। पर उसका पहला शिकार कौन होगा…?? यह बताना बहुत ही मुश्किल है। फिर भी मैं आज रात तुम्हारी और अखिलेश के परिवार की सुरक्षा के लिए एक अनुष्ठान रखूंगा।"

 विराज ने थोड़ा घबराते हुए कहा, "गुरुदेव अखिलेश के परिवार की आप चिंता ना करें। वह लड़की उसकी भतीजी है, उसे वह लोग कैसे संभालेंगे यह उनकी परेशानी है। फिलहाल आप हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करें…!"

 आत्मानंद ने कहा, "ठीक है... पहले हम हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करेंगे। उसके बाद देखेंगे  किसके लिए क्या करना चाहिए और कुछ करना भी चाहिए या नहीं। आज मैं एक बहुत ही विध्वंसक शक्ति का आवाह्न करने की सोच रहा हूँ। वह शक्ति ब्रह्मास्त्र के ही जैसी है, जो कभी व्यर्थ नहीं जाती।"

 विराज ने खुश होते हुए कहा, "अवश्य गुरुदेव…! आप मुझे केवल यह बताइए कि आपको उस अनुष्ठान के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होगी। मैं स्वयं वह चीजें आपके लिए लेकर आऊंगा।"

आत्मानंद ने विराज को सामग्री लिखवाना शुरू किया। 

अब सब कुछ देखकर स्नेहा ने वह दृश्य बंद कर दिया।  

अब स्नेहा को यह पता चल गया था कि आज रात आत्मानंद कुछ भयंकर करने वाला था। उसने उसी समय कुछ निश्चय किया और शांत भाव से अच्युतानंद के ध्यान से उठने की प्रतीक्षा करने लगी। थोड़ी देर बाद अच्युतानंद ने अपनी आंखें खोली सामने स्नेहा को बैठा देखकर आश्चर्य से पूछा,  "स्नेहा कुछ समस्या है... तुम इतनी सुबह यहां…??"

 स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव…!! हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है। हमें शीघ्र अति शीघ्र आत्मानंद के विषय में कुछ सोचना होगा।' 

अच्युतानंद जी ने कहा, "स्नेहा तुम्हारी बातों से मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि यह कार्य भी तुम पहले ही कर चुकी हो…! तुमने शायद यह निर्णय ले लिया है कि तुम्हें सबसे पहले किस से और कैसे प्रतिशोध लेना है…??"

"जी गुरुदेव…!!! मैंने यह निर्णय ले लिया है। मैं सबसे पहले आत्मानंद को ही समाप्त करना चाहती हूं। क्योंकि उसके जीवित रहते हुए वह हमारे लिए समस्या ही उत्पन्न करेगा। " स्नेहा ने हाथ जोड़कर कहा।

 तब कुछ सोचते हुए अच्युतानंद ने स्नेहा से पूछा, "और यह सब तुम कैसे करोगी…?"

 स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव यह समय अब आमने सामने की लड़ाई का है।"

 यह सुनते ही अच्युतानंद की आंखें विस्मय से फैल गई। और स्नेहा से पूछने लगे, "तुम जानती भी हो... तुम क्या कह रही हो... आत्मानंद कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं है… तुम उससे सामने से भिड़ने जा रही हो…!"

 "जी गुरुदेव... मुझे आपकी सिखाई हुई विद्याओं पर पूरा विश्वास है। मैं अवश्य ही उस पर विजय प्राप्त कर लूंगी।" स्नेहा ने आत्मविश्वास से कहा।  

आत्मानंद ने कुछ सोचते हुए कहा, "ठीक है... पर तुम अकेले नहीं जाओगी। मैं भी तुम्हारे साथ ही में चलूंगा।"

 स्नेहा ने कहा, "अवश्य गुरुदेव... पर मेरी एक विनती है, आप तब तक मेरी सहायता नहीं करेंगे, जब तक उस युद्ध में मेरी हार निश्चित ना हो जाए। आत्मानंद को जब तक मैं हारा नहीं लेती तब तक मैं चैन से नहीं बैठ सकती।"

 अच्युतानंद ने कहा, "पर... तुम अकेली कैसे…??" 

स्नेहा ने कहा, "गुरुदेव आप इतना तो मुझ पर विश्वास कर ही सकते हैं।"

 अच्युतानंद ने गर्दन हिलाकर अपनी सहमति दे दी। स्नेहा ने उन्हें प्रणाम करके कहा, "धन्यवाद गुरुदेव अब आगे की तैयारियों के लिए मुझे अभी जाना होगा।"

 अच्युतानंद ने कहा, "नहीं स्नेहा…! आगे की तैयारियां मैं करूंगा। हर एक वस्तु, हर एक सामग्री मैं ही वहां लेकर चलूंगा ताकि भूल की कोई भी संभावना ना रहे।" 

स्नेहा ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कुटिया में चली गई।

कुटिया में टहलते-टहलते स्नेहा ने आगे की रणनीति तैयार कर ली थी। अब बस शाम होने की प्रतीक्षा थी। जल्दी शाम भी हो गई स्नेहा अच्युतानंद के साथ तांत्रिक आत्मानंद के ठिकाने पर जाने के लिए निकल पड़ी।

 उन्होंने किसी भी शक्ति का प्रयोग ना करते हुए स्वयं ही जाने का निश्चय किया था। शक्ति प्रयोग से आत्मानंद को उनकी शक्ति का अंदाजा लगाने में थोड़ी सुविधा हो जाती, जो इस समय उनके लिए ज्यादा अच्छा नहीं था। 

शीघ्र ही स्नेहा और अच्युतानंद जी आत्मानंद की साधना स्थली पर पहुंच गए।

 वह एक शमशान था, कुछ जलती हुई, कुछ अधजली और कुछ शांत हो चुकी चिताएं थी। एक जगह कुछ कुत्तों का झुंड बैठा हुआ था, शायद कुछ भोजन की तलाश में। बहुत से पेड़ भी थे,  पर ऐसे लग रहे थे मानो जीवित प्रेत खड़े हो। शवों के जलने की दुर्गंध पूरे आसपास के माहौल में फैली हुई थी। पास ही से सियारों के रोने की आवाज़े आ रही थी।  कुछ ही दूरी पर बैठी एक काली बिल्ली सभी चीजों पर ऐसे नजर रखे हुए थी, जैसे एक सख्त शिक्षक परीक्षा कक्ष में  बैठे हर एक बच्चे पर अपनी कड़ी नजर रखता है। 

माहौल बोझिलता से भरा हुआ था।  स्नेहा और अच्युतानंद के वहां पहुंचते ही एक अजीब सी सरसराहट माहौल में पैदा हो गई थी। जैसे किसी अजनबी के आने से घर में अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। शायद उस शमशान में रहने वाले जीवो को उन दोनों का वहां आना कुछ ठीक नहीं लगा। 

 स्नेहा ने देखा तो आत्मानंद अपने अनुष्ठान की तैयारी कर रहा था। वो एक मृगचर्म पर बैठा था। सामने एक त्रिकोणीय हवन कुंड जल रहा था। कुछ विशेष प्रकार के यंत्र धरती पर बने हुए थे। कुछ विशेष हवन सामग्री वहां इकट्ठा थी। एक बड़ा काला बकरा भी वहां बंधा हुआ था। मदिरा की बोतलें, एक बड़ा सा खड़ग और विभिन्न प्रकार के मुंड भी रखे थे, जिनमें नरमुंड भी थे।

 स्नेहा ने सामने खड़े होकर आत्मानंद को ललकारा…

 "आत्मानंद ऽऽऽऽऽऽ…!!!"

 "अब यह समय मुझ पर तंत्र प्रहार करने का नहीं... अब तो समय अपने प्राणों की सुरक्षा करने का है…!!!"

 आत्मानंद ने क्रोध में उस तरफ घूरा जिस तरफ से वह आवाज आई थी।

 स्नेहा अंधेरे से उजाले की तरफ चल कर आ रही थी। साफ-साफ तो आत्मानंद को दिखाई नहीं दिया पर एक लंबी काली स्त्री आकृति जिसके  बाल हवा में लहरा रहे थे, तेज कदमों से उसकी ही तरफ चली आ रही थी। पीछे एक और पुरुष आकृति भी दिखाई दे रही थी। वह भी उस स्त्री आकृति के पीछे-पीछे आ रही थी।

धीरे-धीरे आकृतियां साफ होती जा रही थी। एक स्त्री जिसकी आंखें तलवार से भी तेज, चेहरा से क्रूरता टपक रही थी। लाल साड़ी धोती की तरह पहने हुए थी, बाएं पैर में एक कड़ा पहने हुए थी जो एक विचित्र स्वर उत्पन्न कर रहा था, बायीं बाजू पर एक अजीब सा बाजूबंद पहने थी जो कि एक चमगादड़ के पंखों से बना हुआ था। कमर पर बाघम्बर लपेटा हुआ था। बाल हवा में लहरा रहे थे। चेहरे पर साक्षात् मृत्यु तांडव कर रही थी। चाल  ऐसी जैसे एक सिंहनी शिकार के लिए निकली हो।

उसे देखते ही आत्मानंद के मन में भी भय व्याप्त हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी स्त्री है, जो उसी के गढ़ में आकर उसे ही ललकार रही थी।

 आत्मानंद ने गरज कर पूछा, "कौन है…? कौन... हो तुम... और यहां क्या कर रही हो?"

 स्नेहा ने भी उसी स्वर में गरज कर कहा, "वही हूं…!!! जिसके परिवार को अपनी कृृत्या के प्रहार से समाप्त किया था। पर एक जीवन के सबसे बड़ी भूल कर बैठे…!!!"

 आत्मानंद के चेहरे पर प्रश्नवाचक भाव आ गए थे। फिर स्नेहा ने उसकी हंसी उड़ाते हुए कहा, 

"मुझे जिंदा छोड़ने की…!!"

फिर एक तीव्र अट्टहास किया।

    "हाऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ" 

 

"अब अपने जीवन की उल्टी गिनती शुरू कर दे... नहीं…!! नहीं…!!! अब तो उल्टी गिनती भी खत्म ही हो गई। अब बस केवल तेरे अंत का समय है।"

उस आवाज को सुनकर एक बार को आत्मानंद भी हिल गया। पर जल्दी ही उसने अपने आप को संयत करके कहा, "तुम तांत्रिक आत्मानंद को बहुत ही कमजोर समझने की भूल कर रही हो बच्ची। अभी तुम ना तो मेरी सिद्धियों को ना ही मुझे ठीक से जानती हो।"

 स्नेहा ने भी गरज कर कहा, "ठीक है... यह सही समय है, अपनी अपनी सिद्धियों के प्रदर्शन का। जो जीता, वही जीवित रहेगा…! स्वीकार है…!!!" 

आत्मानंद ने भी कहा, "स्वीकार है…!! पर तुम अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर रही हो बच्ची…!! मेरे ही गढ़ में आकर मुझे ही ललकार रही हो। यहां की वायु भी मुझे ही सहयोग करती है और तुम वायु  विपरीत दिशा में दौड़ना चाहती हो।"

 स्नेहा ने कहा, "आत्मानंद... वायु के वेग के साथ बच्चे दौड़ते हैं। और यह बच्ची कुछ ही देर में तुम्हें यह बता देगी कि जिस वायु के सहयोग की तुम बात कर रहे हो, वह वायु स्वयं मेरी इच्छा कैसे चलना स्वीकार करती है।  अब तुम तुम्हारे अस्त्र शस्त्र सज्ज कर लो... क्योंकि मैं निहत्थे पर वार नहीं करती। तुम्हारे ही अस्त्रों से तुम्हें ही परास्त नहीं किया तो फिर मेरे इतनी मेहनत का क्या फायदा।

 आत्मानंद ने भी कहा, "ठीक है... तुम ऐसा चाहती हो... तो ऐसा ही सही। आज हो ही जाए द्वंद।"