Chapter 92
YHAGK 91
Chapter
91
लावण्या ने भी रेहान के लिए उसके जन्मदिन पर कुछ सरप्राइज प्लान कर रखा था। उसने फोन पर किसी को कुछ समझाया और अपने कमरे में जाने को हुई। जैसे ही वह रूद्र के कमरे के सामने से गुजरी उसकी नजर एकदम से अंदर की तरफ गई तो उसने देखा रूद्र तैयार होकर आईने के सामने खड़ा अपने काफ्लिंग को ठीक कर था और किसी सोच में गुम था। लावण्या ने देखा तो उसने पीछे से आवाज लगाई, "आज तो एकदम जहर लग रहे हो। किस पर बिजली गिराने का इरादा है?"
रूद्र अचानक से होश में आया और बोला, "फिर तो तुम्हारी बहन मुझ पर तलवार लेकर टूट पड़ेगी।"
लावण्या की हंसी छूट गई। उसने कहा, "तुम अभी भी उससे इतना डरते हो?"
रूद्र अपने बाल आईने में ठीक करता हुआ बोला, "तुम्हारी बहन कितनी खतरनाक है यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता और वैसे भी, मुझे अच्छा लगता है जब वो मुझे लेकर इतनी पोजेसीव होती है लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों एक अजीब सा डर लग रहा है मुझे......!"
लावण्या उसके सामने खड़ी होते हुए बोली, "क्या हुआ? तुम्हें किस बात का डर लग रहा है जो आज की रात तुम्हारे चेहरे पर सीकन के रूप में नजर आ रहा है? क्या हुआ कुछ बात हुई है क्या? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है?"
रूद्र आराम से अपने बिस्तर पर बैठते हुए बोला, "वही तो समझ नहीं आ रहा! मेरे और शरण्या के बीच अब तक सब कुछ ठीक है। एटलिस्ट अभी तक तो सब कुछ ठीक ही जा रहा है। कभी कभी वो हाइपर हो जाती है लेकिन मैं उसे संभाल लेता हूं आज की रात उसने स्पेशली हम दोनों के लिए कुछ प्लान किया है और उसी ने कहा था कि मैं क्या पहन कर आउँ। मेरी लाइफ का हर स्पेशल मोमेंट वो ही डिसाइड करती है और इस बात से मुझे कोई ऐतराज भी नहीं है। वह मेरे पास है मेरे साथ है मुझे इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए लेकिन फिर भी आज सुबह सुबह जो सपना देखा मैंने........! उसके बाद से एक अजीब सा डर लग रहा है मुझे। उससे दूर जाने का मैं सोच भी नहीं सकता। मैं जानता हूं वह मुझे छोड़कर कभी नहीं जाएगी लेकिन फिर भी खुद को मैं समझा नहीं पा रहा! पता नहीं.........! शरण्या अगर मुझे ऐसे देखेगी तो पता नहीं कैसे रिएक्ट करेगी? मुस्कुराने की कोशिश कर रहा हूं बस!"
लावण्या बोली, "तुम बेवजह परेशान हो रहे हो रूद्र! शरण्या तुम से कभी दूर नहीं जाएगी और ना कभी किसी और को अपनी जिंदगी में आने देगी। इतना तो मैं जानती हूं अपनी बहन को कि वह तुम्हारे पीछे पागल है। तुम दोनों ही पागल हो। तुम दोनों को कोई और झेल ही नहीं सकता। भगवान ने तुम दोनों को एक दूसरे के लिए बनाया है इसलिए इस बारे में ज्यादा कुछ सोचो मत और आज रात को इंजॉय करो। शरण्या ने कुछ प्लान किया है तो जरूर कुछ खास ही होगा। कहीं तुम दोनों आज की रात..........!"
रूद्र के दिमाग की घंटी बजी। उसने लावण्या को देखा, उसकी आंखों में शरारत साफ नजर आ रही थी। वह हड़बड़ा कर उठा और बोला, "ऐसा वैसा कुछ नहीं है तुम कुछ ज्यादा ही सोच रही हो। अपने दिमाग के घोड़े को थोड़ा लगाम दो। तुम्हारे पापा से अभी तक परमिशन नहीं ली है मैंने जो उसके करीब जाऊं। एक बार घर वालों को इस बारे में हम लोग बता दे, घरवालों से हमारे रिश्ते को मंजूरी मिल जाए उसके बाद ही देखेंगे।"
लावण्या बुरी तरह से चौक पड़ी और बोली, "क्या सच में तुम दोनों अभी तक एक बार भी करीब नहीं आए हो? मेरा मतलब, तुम दोनों इतने टाइम से एक दूसरे को डेट कर रहे हो और अब तक जैसी तुम्हारी इमेज रही है, हर रोज नई लड़कियोँ के साथ तुम देखे जाते थे तो क्या कभी तुमने.........!"
रूद्र उसे बीच में रोकते हुए बोला, "कभी नहीं, मतलब कभी नहीं!!! मेरे अपने कुछ उसूल है, मेरे अपने कुछ आदर्श है। अपनी मां और दादी का लाडला हूं तो उनके संस्कारों को भी अपने सर आंखों पर रखा है। दोस्ती करना, डेट करना और किसी के करीब आना यह अलग-अलग बातें हैं। मैंने शरण्या के अलावा कभी किसी लड़की को डेट नहीं किया। दोस्ती जरूर की है लेकिन उससे ज्यादा कभी नहीं और यह सारी चीजें शादी के बाद ही ठीक रहती है, शादी से पहले नहीं। शायद इस मामले में मैं और रेहान बिल्कुल एक जैसे हैं। वरना तो कुछ नहीं मिलता हम दोनों में।"
रूद्र ने कहा और वापस आईने की तरफ् खड़ा हो गया। लावण्या ने जो सुना यह उसके लिए भी एक झटका जैसा ही था। उसके मुंह से अचानक निकला, "नहीं रूद्र! इस मामले में भी तुम दोनों बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत ही हो। यहां भी तुम दोनों भाइयों के विचार बिल्कुल भी मेल नहीं खाते।" कहकर लावण्या वहां से चली गई।
रूद्र ने जब सुना तो उसे काफी अजीब लगा। "लावण्या कहना क्या चाहती थी? क्या शादी से पहले रेहान ने उसे फोर्स किया था? लेकिन अब तो उन दोनों की शादी हो चुकी है तो इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं! वह दोनों ही अब पति पत्नी है और यह उन दोनों के बीच की बात है, मुझे इसमें नहीं पधना चाहिए" सोचते हुए उसने शरण्या को फोन लगाया।
पूरी रिंग जाने के बावजूद शरण्या ने फोन नहीं उठाया। रुद्र को लगा शायद वह तैयार होने गई हो यह सोचकर उसने अपना फोन जेब में रखा और घर से निकल गया। जाने से पहले उसने लावण्या को ऑल द बेस्ट कहा तो बदले में लावण्या बस मुस्कुरा कर रह गई। रूद्र अच्छे से जानता था कल कुछ ना कुछ हंगामा जरूर होगा इसलिए आज की रात इन दोनों बहनों ने कुछ खास प्लान किया है।
रूद्र भी खुश था। एक अरसे बाद वह और शरण्या एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने वाले थे। शरण्या का साथ रूद्र के लिए हमेशा ही सबसे खूबसूरत रहा। अपने ख्यालों में खोया हुआ रूद्र बिल्डिंग से नीचे पहुंचा और वापस से उसने शरण्या को फोन लगाया। इस बार एक घंटी बजते ही शरण्या ने फोन उठा लिया जैसे शरण्या को रूद्र के ही कॉल का इंतजार था। इससे पहले कि रूद्र उससे कुछ कहता शरण्या बोली, "मैं तेरा इंतजार कर रही हूं, जल्दी आजा!"
रूद्र बोला, "बस 2 मिनट में पहुंचा! यही नीचे ही हूं!" कहकर उसने फोन रख दिया। लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि शरण्या की आवाज में वह खनक नहीं थी जो उससे बात करते हुए उसकी आवाज में होती थी। शरण्या चाहे कितना भी गुस्से में हो या उससे नाराज हो लेकिन जब भी बात करती थी उसकी आवाज में एक अलग ही एहसास होता था जो आज गायब था। रूद्र समझ नहीं पाया अचानक से ऐसा क्या हो गया जो उसकी आवाज में इतनी उदासी उसने महसूस की या फिर यह सब उसका कोई वहम है?
"यह सब तो ऊपर जाकर ही पता चलेगा रूद्र! पहले तु ऊपर तो जा, उससे मिल! पता नहीं क्या हुआ है उसे? कुछ देर पहले तक तो वो एकदम खुश थी। शायद वह तुझे कोई बहुत बड़ा सरप्राइज देने वाली हो। सरप्राइज कहीं शौक ना बन जाए! उसका कोई भरोसा नहीं होता है!" सोचते हुए उसने लिफ्ट का बटन दबा दिया।
अपने रूम के बाहर पहुंचकर रूद्र ने दरवाजे की बेल बजाई लेकिन शरण्या ने दरवाजा नहीं खोला। रूद्र ने दो तीन बार बेल बजाई लेकिन तब भी शरण्या ने कोई जवाब नहीं दिया। जब उसने शरण्या को फोन किया तब उसके फोन की घंटी उसे अंदर बजती हुई सुनाई दी। रूद्र ने उसे बाहर से आवाज लगाई, "शरु......! शरु.......!" लेकिन फिर भी शरण्या ने कोई जवाब नहीं दिया।
रूद्र ने अपनी जेब से चाबी निकाली और दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुआ। पूरे घर में सन्नाटा और अंधेरा था। हॉल के बीचो बीच शरण्या चादर ओढ़े बैठी थी और उसके सामने केक रखा हुआ था जिस पर एक बड़ी सी कैंडल जल रही थी। रूद्र ने देखा तो उसके होश उड़ गए। उस जलती हुई कैंडल के ठीक ऊपर शरण्या का हाथ था और उस कैंडल कि आग शरण्या की हथेली को जला रहा था।
शरण्या के चेहरे पर दर्द की एक लकीर तक नहीं थी। रूद्र ने देखा तो वह भागते हुए आया और शरण्या का हाथ खींचते हुए बोला, "पागल हो गई है? क्या है ये सब? तेरा हाथ जल गया और तुझे एहसास भी नहीं है? आखिर तु कर क्या रही है? हुआ क्या है तुझे?"
शरण्या की आंखें कैंडल के उस लौ पर टिकी हुई थी। वही आग उसकी आंखों में भी नजर आ रही थी। रूद्र एक पल को उन्हें देख सहम सा गया। उसे इतना तो एहसास हो गया था कि जरूर कुछ बुरा हुआ है लेकिन क्या? यह शरण्या ही बता सकती थी। शरण्या जो अब तक खामोश थी वह बोली, "अपने घर में मुझे पापा का प्यार तो मिला लेकिन कभी अपनापन नहीं मिला। क्या उनके प्यार पर, उनके अपनेपन पर मेरा हक नहीं था?"
रूद्र बोला, "बिल्कुल हक था! हक है तुम्हारा! लेकिन तुम ने कभी मांगा नहीं! किसी से भी नहीं!"
शरण्या बोली, "स्कूल में थी मैं, जब मुझे एहसास हुआ कि तू मेरे लिए क्या है! मैं चाहती तो उस वक्त तेरे सामने अपने प्यार का इजहार करके तुझसे अपने प्यार का हक मांग सकती थी। क्या तेरे प्यार पर मेरा कभी हक नहीं था?"
रूद्र उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरते हुए बोला, "बिल्कुल हक था! तब भी और आज भी तेरा ही हक है! मैं तो हमेशा से तेरा था। बस समझ नहीं पाया मैं। वह बेवकूफ सी लड़की रिद्धिमा, वह तक समझ गई लेकिन मैं उससे भी बड़ा बेवकूफ जो मैं नहीं समझ पाया और इतना वक्त लगा दिया। तुझे इतना इंतजार करवाया।"
शरण्या बोली, "तो फिर तुम मानता है ना कि तेरे प्यार पर सिर्फ मेरा हक है!"
रूद्र उसे समझाते हुए बोला, "मेरे नाम के साथ सिर्फ और सिर्फ तेरा नाम जुड़ सकता है ना कि किसी और के साथ। मेरे प्यार पर तेरे अलावा ना कभी किसी का हक था और ना कभी होगा।"
शरण्या उसके दोनों हाथों को अपने हाथों से थामते हुए बोली, "तो फिर मुझे वह हक चाहिए! मुझे तेरा प्यार चाहिए! सिर्फ नाम की पत्नी नहीं बनना चाहती मैं तेरी! अगर तू सच में मुझे प्यार करता है, अगर सच में तूने दिल से मुझसे शादी की है तो मुझे अपनी पत्नी होने का हक दे। आज् सही मायनों में मैं तेरी सुहागन बनना चाहती हूं। तेरे जन्मदिन पर मैं तुझसे एक तोहफा चाहती हूं, दे सकता है मुझे?"
रूद्र ने अपने हाथ खींच लिए और उठते हुए बोला, "तु फिर शुरू हो गई? मैंने कहा था ना तुझ! समझाया था तुझे लेकिन तुझे मेरी कोई बात समझ में नहीं आती? यह सब प्लान कर रखा था तूने? यह था तेरा सरप्राइज? यहां इस तरह......! शरण्या हमने मंदिर में शादी की है। इसके बारे में किसी को नहीं पता। बस थोड़ा सा वक्त और दे दे मुझे। थोड़ा सा क्यों? मैं कल ही मां से हमारे बारे में बात करने वाला हूं। बस कल तक की मोहलत दे दे, उसके बाद मैं खुद आऊंगा तुझे लेने तेरे घर। अब मैं इस काबिल हो चुका हूं कि हक से तेरा हाथ मांग सकता हूं।"
लेकिन शरण्या पर तो जैसे रूद्र के किसी बात का कोई असर ही नहीं हो रहा था। ना जाने कैसी जिद थी उसकी जिस पर रूद्र के समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था। इससे पहले शरण्या ने कभी इस तरह का जिद नहीं किया था। रूद्र वैसे ही शरण्या को लेकर थोड़ा परेशान था। उस पर से भी शरण्या की ऐसी हालत! उसकी ऐसे जिद!!! रूद्र खुद नहीं समझ पा रहा था वह करे तो क्या करें? उसने बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी कि शरण्या ऐसी कोई जिद लेकर बैठेगी। जब शरण्या ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तब रूद्र को वहां रुकना सही नहीं लगा और वह वहां से जाने के लिए मुड़ा।
शरण्या ने पीछे से आवाज लगाई, "अगर तू यहां से गया तो मैं समझ लूंगी कि तेरे दिल में मेरे लिए प्यार नाम की कोई चीज नहीं! कोई एहसास नहीं तेरे दिल में मेरे लिए! अब तक जो था वह सब सिर्फ एक दिखावा था। जब तूने मुझसे दिल से प्यार किया ही नहीं तो फिर तु मुझे क्यों अपनाएगा? चला जाएगा तु मुझे छोड़कर, जानती हूं मैं! तू जाता है तो जा........! यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी। इसके बाद तु कभी मुझे देख नहीं पायेगा।" कहकर शरण्या ने एक कैंडल उठाई और अपने ऊपर पड़े हुए चादर पर गिरा दिया जिससे चादर में आग पकड़नी शुरू कर दी थी।
रूद्र ने जब शरण्या की बातें सुनी तो उसके कदम वही ठीठक से गए। उसकी बातें जब रूद्र की बर्दाश्त से बाहर हो गए तब उसने पलट कर शरण्या की तरफ देखा। शरण्या की जिद उसे ऐसा कुछ करने पर मजबूर कर देगी ये उसने नहीं सोचा था। चादर ने अभी अभी आग पकड़ना शुरू ही किया था। इससे पहले कि कुछ नुकसान होता, रूद्र ने शरण्या के शरीर से उस चादर खींच कर दूर फेंक दिया और उसे अपने सीने से लगा लिया। जब उसके हाथों ने शरण्या की खुली पीठ को छुआ, उस वक्त उसे महसूस हुआ शरण्या यह सब कुछ पहले से सोच कर बैठी थी। शरण्या के सामने सरेंडर करने के सिवाय उसके पास और कोई चारा नहीं था।