Chapter 58
YHAGK 57
Chapter
57
अपने सपनों की दुनिया से रूद्र बाहर तो आ गया था लेकिन शरण्या से जुड़ी यादें उसके जेहन में कुछ यूं बसी थी मानो तो कल की ही बातें हो। अपनी शरण्या से दूर होकर भी तो कभी दूर नहीं हुआ। जिसके बिना जीने की कभी सोच भी नहीं सकता था उससे दूर होकर वह पिछले 8 सालों से जी रहा था, जो उसके लिए सबसे बड़ी सजा थी और यह सजा उसने खुद चुनी थी। लेकिन इस सब में शरण्या की क्या गलती थी जो उसे इतने दर्द से गुजरना पड़ा। जो वादे उसने किए थे वो सब तोड़ने पड़े सपनों के वह महल जो रूद्र ने खुद संजोए थे उन्हें बिखेरने में एक पल भी नहीं लगाया उसने। आखिर इस सब से क्या हासिल हुआ उसे?
जिस शरण्या की आंखों में कभी आंसू नहीं देख सकता था वह उसे रोता हुआ छोड़ कर हमेशा के लिए चला गया था। कुछ इस तरह उसका दिल तोड़ आया था कि वह फिर कभी जुड़ ही ना पाए। हर रिश्ते हर नाते को भूलाकर चला गया था वह यहां से हमेशा के लिए। कभी वापस नहीं आना था उसे। पिछले आठ सालों में वह कहां था किस हाल में था यह बात कोई नहीं जानता था, यहां तक कि उसके घरवाले भी नहीं, उसकी मां भी नहीं जिन्हें वह अपनी हर बात बताता था। पिछले आठ सालों में हर एक से उसने खुद को दूर कर लिया था या फिर हर किसी ने उसे अकेला छोड़ दिया था।
जिस वक्त उसे अपने परिवार की जरूरत थी उस वक्त दुनिया की भीड़ में अकेला एक अनजान शहर में एक अनजान देश में अजनबी लोगों के बीच खड़ा था जो ना ही उसका दर्द समझ सकते थे और ना ही उसके दर्द को बांट सकते थे। उसने शरण्या को जो तकलीफ पहुंचाई थी उसके लिए खुद को माफ करना उसके बस में नहीं था। पिछले आठ सालों में उसने खुद को हर वह चोट पहुंचाई हर वो दर्द दिया जिससे उसके मन को थोड़ा सुकून मिले और उस दर्द की बराबरी कर सके जो उसने अपनी शरण्या को पहुँचाई थी। अपने अकेलेपन को बांटने के लिए उसने मौली का भी सहारा नहीं लिया, ना ही उसे अपने बारे में कुछ भी बताया।
मौली ने भी जब से होश संभाला तबसे अपने पिता के चेहरे पर उदासी और दर्द के अलावा और कुछ देखा ही नहीं। चाहे लाख मुस्कुराने की कोशिश करें लेकिन रूद्र कभी चाह कर भी मुस्कुरा नहीं पाता था। जिंदगी से रिश्ता तो बहुत पहले तोड़ चुका था, बस एक मौली थी जिसके लिए वह जिंदा था। मौली ने शरण्या को लेकर जो से सवाल किए उसका जवाब वह दे नहीं पाया या शायद उसके पास कोई जवाब ही नहीं था। इतने सालों के बाद जब वह लौटा था वह भी किन हालातों में, इसके बारे में वह सोचना भी नहीं चाहता था। इस वक्त जहां पूरा परिवार नैनीताल के आश्रम में इकट्ठा है, ऐसे में वहाँ किसी को जरा सी भी उम्मीद होगी उसके आने की? शायद नहीं......! तो फिर ऐसे में अचानक उसे देखकर सब लोग किस तरह से रिएक्ट करेंगे, रूद्र बस यही सोचकर घबरा रहा था। उस के मन में कई तरह के ख्याल आ जा रहे थे। बात सिर्फ उसकी होती तो फिर भी ठीक था, लेकिन ना जाने सारे घरवाले मौली को देखकर किस तरह से रिएक्ट करेंगे यह तो वह सोचना भी नहीं चाहता था।
मौली रूद्र के पीछे पीछे गाड़ी से उतरी और रूद्र के पास खड़े होकर बोली, "डैड.......! हम लोग कहां है अभी और ये ट्रैफ़िक कब तक साफ होगा? इंडिया में ट्रैफिक ऐसे ही होता है क्या?" रूद्र बोला, "आप आराम से बैठो और चाय पी लो, थोड़ा बैटर फील होगा, उसके बाद हम बात करते हैं।" मौली रूद्र की बातों से समझ गई कि वह इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहता। उसने देखा तो मिट्टी के बर्तन में चाय रखी थी। उसने कप उठाई और पी कर देखा। मिट्टी के बर्तन में चाय का स्वाद और भी ज्यादा निखर कर आता है यह बात वह अपने डैड से हमेशा सुनते आई थी और आज वह इसे महसूस भी कर रही थी। "सच में डैड ये चाय तो बहुत टेस्टी लग रही है!" रूद्र ने उसकी बात सुनी और हां में सिर हिला दिया।
मौली ने अब तक तो रूद्र को अच्छे से पहचानना सीख लिया था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं होते थे, ना ही उसकी आंखों में, लेकिन उसकी छोटी छोटी हरकतें यह बता देती थी कि वह कब खुश है कब नाराज। यह समझने में मौली को काफी वक्त लगा लेकिन सच यह भी था कि इतने सालों में रूद्र में जो बदलाव आए थे उसके बाद उसे कोई पहचान नहीं सकता था। मौली तो फिर भी काफी छोटी थी। ड्राइवर ने आकर बताया कि अगले आधे घंटे में रास्ता साफ हो जाएगा। मौली को यूं तो अपने पिता से बहुत सारे सवाल करने थे लेकिन उन सवालों के जवाब के लिए उसे रूद्र के मूड का इंतजार करना था, वरना अगर उसके किसी सवाल पर रूद्र खामोश रह गया इसका मतलब यह कि वो इसका जवाब देना नहीं चाहता।
मौली ने फिर भी थोड़ी कोशिश की और पूछा, "डैड...! आपकी फैमिली में और कौन कौन है? मेरा मतलब हमारी फैमिली में....! इतने टाइम से तो मैंने सिर्फ आपको देखा है और आपको ही अपनी फैमिली माना है। कभी कुछ नहीं पूछा सिवाय मॉम के बारे में। अब जब अचानक से मुझे पता चल रहा है कि मेरी एक पूरी फैमिली है तो मेरा भी जानने का दिल कर रहा है कि मेरी फैमिली में कौन कौन है, और वह लोग मुझे प्यार करते भी है या नहीं? जब मैं उनके सामने जाऊंगी तो सब किस तरह से रिएक्ट करेंगे मुझे तो यह भी नहीं पता। मुझे तो उनके नाम भी नहीं पता। कहीं ऐसा ना हो कि मैं अपनी फैमिली के बीच में लॉस्ट फील करू।"
रूद्र ने कहा, "अभी सारी बातें जान लोगी या फिर हम गाड़ी में चल कर इस बारे में बात करें? सफर के लिए भी तो कुछ होना चाहिए ना! फिलहाल यहां की खूबसूरती देखो!" मौली ने पूछा, "लेकिन आज हम लोग इस वक्त है कहां और यह कौन सी जगह है? और हम लोग जा कहां रहे हैं?"
रूद्र ने कहा, "इस वक्त हम लोग हल्द्वानी में है। यहां से बड़ी गाड़ियां आगे नहीं जाती इसलिए इस वक्त रोड पर इतना जाम है। यहां से निकले तो बस कुछ ही देर में हम लोग नैनीताल पहुंच जाएंगे। वहां मेरे दादाजी का यानी आपके परदादाजी का एक आश्रम है और आपकी परदादी वही रहती हैं आश्रम में। मेरे दादाजी ने जाने से पहले उस आश्रम को पूरी तरह से मेरी दादी को सौंपा था। क्योंकि मेरी दादी बहुत ज्यादा खूंखार है और उतनी ही प्यारी भी। तुम उन्हें मेरी गर्लफ्रेंड कह सकती हो। हम उन्हीं के पास जा रहे हैं। आपकी पूरी फैमिली वहीं आपको मिलेगी, ठीक है! बाकी की बातें हम यहां से निकलते हुए करेंगे।"
रूद्र की बातें सुन मौली ने हाँ में सिर हिला दिया और अपना चाय खत्म करने लगी। रूद्र हाथ में कुल्हड़ था। वो वहां के खूबसूरत नजारे देखने लगा। उन आंखों ने इस खूबसूरती को कई बार देखा था लेकिन इस बार उसे कुछ भी वैसा महसूस नहीं हो रहा था जैसा हर बार होता था। इन कुछ सालों में ज्यादा कुछ तो नहीं बदला था वहां, बस थोड़ा कंस्ट्रक्शन का काम हुआ था बाकी सब कुछ वैसा ही था। वहीं नजारे वहीं खूबसूरती! अगर कुछ नहीं था तो वह उसके दिल में खुशी। उसकी शरण्या, जिसे लेकर वह पिछली बार इन्हीं रास्तों से गुजरा था और यही ठहरा था। कुछ पल को ही सही लेकिन इस जगह से उसकी और शरण्या की कुछ यादें थी।
रुद्र ने एक गहरी सांस ली और खुद से बोला, "यह जगह भी वही है, ये खूबसूरती भी वही है, और मैं भी! बस एक तुम्हारे ना होने से इसकी खूबसूरती कहीं खो सी गई है। तुमसे दूर होना मेरा सबसे बड़ा गुनाह था, तुम्हें तकलीफ देना मेरी सबसे बड़ी गलती। जानता हूं तुम मुझे कभी माफ नहीं कर पाओगी और मैं उम्मीद भी नहीं करता। लेकिन क्या तुम्हारे हाथों की सजा पाने का हक मुझे है? अगर है तो फिर कहीं से आ जाओ और खुद सजा दो मुझे। तुमसे दूर होकर भी सांसे ले रहा हूं! ये आंखें तुम्हें देखे बिना भी सब कुछ देख रही है! ना जाने और कितने वक्त तक यह सब कुछ सहना होगा...... जानता हूं तुम पर हक नहीं है मेरा फिर भी क्यों यह दिल तुम्हारा इंतजार करता है? फिर भी क्यों तुम्हारे आने का उम्मीद करता है? क्यो तुम्हारे नाम से सांसे चलती है, क्यों सीने में अब भी यह दिल धड़कता है?"
मौली की नजर जब अपने पिता के चेहरे पर गई तो वह समझ गई कि इस वक्त रूद्र के मन में क्या चल रहा है। उसकी चाय खत्म हो चुकी थी, उसने कुल्हड़ को साइड में रखा, हाथ धोये और सड़क के उस पार पेड़ के नीचे बनी एक छोटी सी मंदिर की तरफ वह चल पड़ी, नंगे पांव। बिना सड़क की परवाह किए। उस मंदिर के आगे हाथ जोड़कर मौली घुटने के बल बैठ गई और कहा, "भगवान जी! आप तो सब कुछ जानते हैं ना! और सब कुछ कर सकते हैं! आपके लिए तो कुछ भी इंपॉसिबल नहीं है तो फिर मेरे डैड की लाइफ में इतनी प्रॉब्लम क्यों है? क्यों वह कभी मुस्कुराते नहीं? सभी कहते हैं कि आप बच्चों की बात सुनते हो, मुझे भी मेरी लाइफ में मेरी मॉम चाहिए, मेरी शरण्या मॉम! डैड कहते हैं कि वो उनसे बहुत प्यार करती हैं और डैड भी उनसे कितना प्यार करते हैं यह किसी को भी मुझे बताने की जरूरत नहीं। और यह बात तो आप भी जानते हैं ना! जब दो लोग एक दूसरे से इतना प्यार करते हैं तो फिर उन्हें साथ रहना चाहिए ना? आप क्यों उन दोनों को अलग किए हुए हैं? प्लीज भगवान जी मेरी आपसे यह पहली और आखरी रिक्वेस्ट है, इसके बाद मैं कभी आपसे कुछ नहीं कहूंगी। मुझे कभी आपसे कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि डैड ने कभी मुझे कुछ मांगने का मौका ही नहीं दिया। मेरी हर जरूरत मेरे बिना कहे पूरी की है उन्होंने। मैं बस अपने डैड के लिए अपनी शरण्या मॉम को मांगती हूं। आपसे उनका प्यार मांग रही हूं। कुछ ऐसा गेम प्लान करो भगवान जी, जिससे कि शरण्या मॉम खुद उनकी लाइफ में आ जाए और कोई भी उन दोनों को अलग ना कर पाए। डैड ने हमेशा सिखाया कि आपको कैसे खुश रखना है और मैंने भी उनकी हर बात मानी है। क्या आप मेरे डैड को थोड़ी सी खुशी नहीं दे सकते? प्लीज भगवान! आपसे बस यही एक रिक्वेस्ट है, मेरी लाइफ में और मेरे पापा की लाइफ में सिर्फ मेरी शरण्या मॉम चाहिए, कोई और नहीं। अगर मेरी लाइफ में मां का प्यार लिखा है तो मुझे किसी और से नहीं चाहिए, यह बात मैं आपको साफ-साफ बता दे रही हूं वरना मैं आपसे बहुत नाराज हो जाऊंगी।"
मौली भगवान के सामने अपनी शर्त और मन की बात रख रही थी। रूद्र सड़क के दूसरी तरफ आंखें मूंदे खड़ा था। ड्राइवर ने उसे बताया की रास्ता साफ हो चुका है और उन दोनों को निकलना होगा। सुबह के 7:00 बज रहे थे और उन्हें अभी भी एक से डेढ़ घंटे लगने थे। उसने बेंच की तरफ देखा, मौली वहाँ नहीं थी। उसके सिर्फ जूते वहां रखे हुए थे। रूद्र ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो पाया मौली पेड़ के नीचे बने उस छोटे से मंदिर के आगे हाथ जोड़कर बैठी है। उसने उसके जूते उठाए और आगे बढ़ गया।
मौली अभी भी धीमी आवाज में बड़बड़ाये जा रही थी। रूद्र ने उसे आवाज दी, "अगर भगवान से सारी बातें हो गई हो तो चले! हमें पहुंचने में देर हो जाएगी।" मौली ने देखा, रूद्र उसके जूते लिए खड़ा है तो उसने जल्दी से अपने जूते लिए और पहन लिए। उसने महसूस किया, रूद्र के हाथ काँप रहे थे और चेहरे पर घबराहट भी थी। वह समझ गयी कि इतने सालों बाद अपने घरवालों से मिलने की घबराहट में रूद्र के हाथ कांप रहे है। तो क्या ऐसे में जब सभी खुद उससे मिलेंगे तो वो सब किस तरह से रिएक्ट करेंगे, मौली यह तय नहीं कर पा रही थी।
क्रमश: