Chapter 73
humsafar 73
Chapter
73
सारांश को अवनि की चिंता थी इसीलिए उसने उसे सेल्फ डिफेंस के लिए तैयार करना शुरू किया ताकि श्रेया की तरह ही लक्ष्य उस पर हमला ना कर पाए। लेकिन पहले दिन ही अवनि की हालत खराब हो गयी। एक तो सुबह उठना उस पर भी एक्सरसाइज और सबसे बड़ी बात उस पिस्टल को देख तो और ज्यादा हालत खराब हो गयी थी। तीन घंटे मे ही अवनि इतनी थक गयी की कमरे मे आते ही वापस सो गयी।
अवनि को सोता देख सारांश को हँसी आगयी। वह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया। वहाँ पहुँचते ही उसके असिस्टेंट ने पूरे दिन का शेड्यूल दिया और जाने के लिए मुड़ा, फिर अचानक से रुक कर सारांश से बोला, "सर.....! उस लक्ष्य के बारे मे हमें अभी तक कोई सुराग नही मिला।"
लक्ष्य का नाम सुन सारांश कुछ देर सोच मे पड़ गया फिर बोला, "उसे ढूंढते रहो! जानता हु उसे ढूँढने का कोई फायदा नही है। जब तक हम उसे ढूंढेंगे वो हमें नही मिलेगा। जब उसका मन होगा तभी आयेगा। वो आगे क्या करेगा ये मुझे नही पता लेकिन कब करेगा ये जरूर जानता हु। इसीलिए थोड़ा नाटक करने मे क्या जाता है! उसे भी थोड़ी गलतफहमी मे जीने दो।"
"सर! क्या ऐसा कुछ है जो आप जानते है?" नितिन ने सवाल किया जिसे सुन सारांश एक पल को खामोश हो गया। उसे शांत बैठा देख नितिन समझ गया की सारांश उसे कुछ नही बताने वाला।
काव्या ने जब तरुण का नाम सुना तो एक पल को उसे यकीन ही नही हुआ की ये वही तरुण है। "कोई और भी हो सकता है, इस दुनिया मे तरुण नाम का एक ही इंसान नही है!" सोचकर काव्या आपने काम मे लग गयी। सामने वाला शॉप अभी खुला नही था लेकिन वहाँ कोई था जो शीशे की दूसरी ओर से काव्या को देख रहा था।
कुछ देर बाद ही काव्या जिस वक़्त अपने कस्टमर को देख रही थी उसी वक़्त सामने वाले ऑफिस से तरुण ने काव्या के बुटीक मे इंट्री ली जिसे देख ज्योति और प्रभा की आँखे खुली की खुली रह गयी और दौड़ कर उसे अटेंड करने पहुँची। काव्या ने जब तरुण को वहाँ देखा तो उसे अपने आँखों पर यकीन नही हुआ।
"एक्सक्युज मी! वो मै अभी अभी यहाँ शिफ्ट हुआ हु, तो क्या मुझे थोड़ा पानी मिलेगा?" तरुण ने कहा तो दोनो लड़कियाँ सब छोड़ कर उसके पास आई उसके हाथ से पानी का बोतल ले लिया। तरुण की नज़र काव्या पर ही थी जो उसे अवॉइड करने की कोशिश मे लगी थी। तरुण ने पानी लिया और चला गया। काव्या ने एक बार भी पलट कर उसे नही देखा। इस वक़्त उसके दिमाग मे सिर्फ चित्रा ही घूम रही थी। उससे बात करने का बहाना काव्या को मिल ही नही रहा था।
शाम होने से पहले ही काव्या घर जाने को निकली लेकिन अपने उधेड़ बुन मे वह अपने घर जाने की बजाय चित्रा के घर पहुँची और वहाँ जा कर बिना कुछ सोचे दरवाजे की घंटी बजा दी। वहाँ के केयर टेकर ने जब दरवाजा खोला तो उसने काव्या को पहचाना नही, "हाँजी आप कौन? और किससे मिलना है आपको?"
"वो मै.......! मै वो.........! मै काव्या.... कार्तिक की वाइफ, चित्रा है घर पर?" काव्या ने होश मे आते ही हकलाते हुए कहा।
"चित्रा बिटिया अभी बाहर गयी है। थोड़ी देर लगेगी आने मे, आप कुछ देर बाद आ सकती है या चाहें तो तबतक यही उनका इंतज़ार कर सकती है।" उस आदमी ने कहा। काव्या ने बिना देरी के अंदर दाखिल हुई और जाकर वही हॉल मे सोफे पर बैठ गयी। केयर टेकर ने लाकर पानी दिया और चित्रा को कॉल कर उसे काव्या के आने की बात बता दी।
काव्या ने कुछ देर घर को अच्छे से देखा। वाकई मे घर बहुत खूबसूरत था। वहाँ चित्रा के बचपन की कई सारी तस्वीरे दीवारों पर टँगी हुई थी। काव्या ने ध्यान से देखा, उन कुछ तस्वीरों मे चित्रा के साथ कार्तिक और सारांश भी थे। वो शायद उनके स्कूल के दिनों की तस्वीरे थी जिसमें उन तीनो के बीच की नज़दीकियों को साफ देखा जा सकता था।
सारी तस्वीरे देखते हुए अंजाने मे ही काव्या चित्रा के कमरे तक पहुँच गयी। उस कमरे मे एक दीवार पर तस्वीरों का कोलार्ज बना हुआ था जिस मे सारांश की एक दो तस्वीरे ही होंगी,वो भी कार्तिक और चित्रा के साथ। बाकी की सारी तस्वीरे उन दोनो की ही थी। साइड टेबल पर कुछ किताबे थी जिन्हे देख काव्या को समझ नही आया का सच मे चित्रा पढाई भी करती है!!!
एक किताब उसके बेड के साइड वाली टेबल पर रखी थी जो की एक लव स्टोरी थी। काव्या ने उस किताब को उठा कर देखा तो उसमे कुछ भी खास नही लगा लेकिन पन्ने पलटते हुए उसके अंदर रखी एक तस्वीर नीचे गिर गयी। उस तस्वीर को जब उठा कर देखा तो कार्तिक की स्कूल टाइम की तस्वीर थी। टेबल के नीचे ड्रावर मे से एक चेन बाहर निकली हुई थी। काव्या ने जब उस चेन को बाहर निकाला तो उस मे एक खूबसूरत सा पेंडेंट था जिसपर 'के' अक्षर लिखा था।
उस चेन को देख काव्या को पुरा शक़ हो चला था की चित्रा के मन मे कार्तिक के लिए फीलिंग्स है। उसने बेड के ऊपर चित्रा की एक बड़ी सी फोटो लगी थी जिस मे उसने अपने बालों को समेटने के लिए अपना एक हाथ उठा रखा था। काव्या अभी ये सब देख ही रही थी की तभी चित्रा वापस आ गयी।
अपने घर मे काव्या को अचानक से आया देख वह थोड़ी हैरान तो हुई लेकिन थोड़ी परेशान भी क्योंकि इस घर मे कार्तिक की बहुत सारी चीजें और यादें थी। कही काव्या कुछ गलत ना समझ ले इसीलिए चित्रा थोड़ी घबरा सी गयी। काव्या ने मुस्कुरा कर चित्रा की ओर देखा और उसके गले लग गयी। "तुम यहाँ अचानक...? कुछ काम था क्या?" चित्रा ने पूछा।
"क्यों.....? क्या मै यहाँ नही आ सकती? क्या सिर्फ कार्तिक ही तुम्हारा दोस्त है, मै नही!!! या फिर कुछ ऐसा है जो तुम सब से छुपा रही हो!" काव्या ने मुस्कुरा कर कहा। उसने महसूस किया की चित्रा की सांस फूल रही थी मानो वो भागती हुई आई हो।
"ऐसा नही है काव्या, वो तो मै बस......तुम पहली बार आई और वो भी ऐसे अचानक से तो थोड़ा अजीब लगा" तभी चित्रा की नज़र काव्या के हाथ मे रखे चेन पर गयी जिसे देख वह और ज्यादा घबरा गयी। "ये...... मेरी दोस्त का है। कृति........ कृति नाम है उसका।" चित्रा ने सफाई देनी चाही।
"लेकिन मैंने तो कुछ पूछा ही नही!!" कहते हुए काव्या ने वो चेन चित्रा की ओर बढ़ा दी। चित्रा ने वो चेन ली और आँखे चुरा कर कहा, "तुम अकेले......मतलब किसी काम से आई थी?" काव्या ने एक नज़र उसे देखा और बाहर चलने का इशारा किया। बाहर हॉल मे काव्या को बैठने के लिए बोल चित्रा किचन मे चली गयी और कुछ देर मे जब वापस आई तो उसके दोनो हाथो मे कॉफी का मग था।
काव्या ने एक मग लेते हुए कहा, "चित्रा तुम्हें याद है बड़ी माँ ने तुम्हें कार्तिक के ऑफिस को डिजाइन करने के लिए कहा था। उस वक़्त तुम वापस जाने वाली थी लेकिन अब तो तुम हो यहाँ, तो बड़ी माँ ने मुझे कहा था की मै तुम्हें मनाउ। चित्रा प्लीज! बड़ी मां के सामने मेरी इज़्ज़त का सवाल है, अगर तुम मान जाओ तो। कार्तिक को कुछ नही पता है इस बारे मे। अगर उसे पता चला तो उसे लगेगा की मै उसके काम मे दखल दे रही हू।"
काव्या को कुछ और बहाना नही सूझा तो उसने सिया के नाम का ही सहारा लिया। चित्रा को कार्तिक के करीब लाने का उसे और कोई बहाना नही मिला। काव्या की बाते सुन चित्रा को थोड़ा अजीब लगा लेकिन सिया का नाम सुन चित्रा से भी कुछ कहते नही बना। कार्तिक के साथ काम करते ही अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल करना उसके लिए बहुत मुश्किल था। उसने सीधे सीधे कोई जवाव देने की बजाय कहा, "मै सोच कर बताऊंगी। अभी इतनी जल्दी मै कुछ नही कह सकती।"
काव्या ने भी उसे मुस्कुरा कर देखा और वहाँ से निकल गयी। अपने प्लान के कामयाब होते देख काव्या की खुशी का ठिकाना नही रहा। लेकिन सब कुछ अब कार्तिक पर था की वो कैसे रिएक्ट करता है। उस के लिए सिया से बात करनी जरूरी थी। उसने सिया को फोन लगाया लेकिन फोन बिजी आ रहा था। उसने अवनि से सिया के बारे मे पूछने का सोचा और उसे फोन लगाया। एक लंबे रिंग के बाद अवनि ने फोन उठाया। उसकी अलसाइ आवाज़ सुन काव्या को हैरानी हुई।
"तु सो रही है....? वो भी अभी....? ऐसा क्या हो गया मेरी प्यारी बहना?" काव्या ने मजाक मे पूछा।
"होना क्या है, उस सडू ने ठीक से सोने ही नही दिया मुझे। इस वक़्त भी बहुत ज्यादा थकान लग रही है। दूसरी ओर वो है की...... पता नही इतनी एनर्जी लाते कहा से है!!! ना खुद सोया और ना ही मुझे सोने दिया। " अवनि ने कहा। उसकी डबल मीनिंग वाली बाते सुन काव्या को हँसी आ गयी और थोड़ा छेड़ते हुए बोली,"चुप कर बेशर्म! ऐसी बातें करते शर्म नही आती?"
अवनि को अभी भी समझ नही आया की आखिर उसन गलत क्या बोला। "ये सब छोड़ और बता की बड़ी माँ कब तक आती है ऑफिस से?" काव्या ने पूछा। अवनि को थोड़ा अजीब लगा की आखिर काव्या सिया से क्यो मिलना चाहती है और वो भी अचानक से। उसने सिया के घर आने का टाइम बता दिया।
घर पहुँचते ही काव्या ने रात के खाने के लिए तैयारी करने चली गयी लेकिन तभी कार्तिक का फोन आया और उसने आज बाहर डिनर का प्लान के बारे मे बताया। काव्या समझ गयी की कार्तिक ये सब क्यो न रहा है। "मै जानती हू कार्तिक ये सब तुम हमारे रिश्ते को नॉर्मल बनाने के लिए कर रहे हो लेकिन जो मैने आज देखा उसके बाद अब मैं पीछे नही हट सकती" काव्या ने खुद से कहा और तैयार होने चली गयी।
क्रमश: