Chapter 6

Chapter 6

Episode 6

Chapter


 यह कह कर  स्नेहा ने अपने कान अपने हाथों से तेजी से बंद कर लिये और घुटनों के बल झुक कर जमीन पर बैठ गई। सभी उसे ऐसे देख कर थोड़ा परेशान हो गए और एक एक करके कमरे से बाहर निकल गए।

सभी हाॅल में बैठकर स्नेहा की हालत के बारे में बात कर रहे थे।

 गीता जी ने कहा, "यह स्नेह पागल तो नहीं हो गई। अब कौन अपने कमरे का सामान ऐसे पागलों की तरह फेंकता है?"

 इस पर अरुणा जी ने कहा, "जीजी देखा नहीं आपने कैसे किसी ना दिखने वाले वाली औरत को सारा सामान फेंक-फेंक कर मार रही थी। मुझे लगता है... शायद सदमा लगा है पूरे परिवार की मौत का।"

अनुज ने कहा, "मां... ऐसा भी तो हो सकता है कि वह सच बोल रही हो। उसे सच में कोई दिखाई दे रहा हो।"

 अखिलेश जी ने कहा, "ऐसा है तो यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है। क्योंकि अगर सच में ऐसा है... तो जरूर विराज जी ने ही स्नेहा का कोई इलाज करवाया होगा।  आज के बाद हम में से कोई भी स्नेहा को कुछ भी करने की कोशिश नहीं करेगा। यह सब तो विराज जी करवा देंगे। हमें तो बस प्रॉपर्टी से मतलब है... स्नेहा जिए या मरे हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आगे से आप सब लोग भी ध्यान रखना।"

 राहुल ने कहा, "जी पापा मेरे हिसाब से भी स्नेहा को उसी की हाल पर छोड़ देना अच्छा रहेगा। धीरे धीरे खुद ही उसकी हालत बिगड़ जाएगी। हम डॉक्टर से सर्टिफिकेट बनवा लेंगे कि वह पागल हो गई है और प्रॉपर्टी की देखभाल करने में असमर्थ है। कोर्ट से पूरी संपत्ति अपने नाम ट्रांसफर करवा लेंगे।"

 सभी यही सोच कर खुश होने लगे थे।

 अखिलेश जी ने कहा,  "ठीक है... यही करेंगे…! अब सब लोग अपने अपने कमरे में जाकर आराम करो। अभी वैसे भी कोई काम नहीं है तो आराम ही कर लो।"

 वही स्नेहा अपने कमरे के सामान को समेटते हुए बड़बड़ा रही थी,  "ना जाने क्या-क्या और करना पड़ेगा इस पूरे चाचा एंड कंपनी के चक्कर में। कितनी सफाई करनी पड़ रही है।"

  स्नेहा अपना कमरा साफ करके बेड पर लेट गई और जल्दी सो गई।

 स्नेहा की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी  उसे वह औरत लगभग पूरे समय दिखने देखने लगी थी। कभी हाॅल में, कभी किचन में, कभी सीढ़ियों पर स्नेहा उसे देखकर डर जाती थी।  चीजों को फेंकने लगती या फिर कभी खुद के बाल नोचने लगती या कानों पर हाथ रखकर चीख पड़ती थी। 

 जल्दी तेरहवीं का दिन भी आ गया था उस दिन पूजा के लिए बहुत से रिश्तेदार भी आए थे। चाचा  चाची, बुआ, राहुल और अनुज तो थे ही राहुल की पत्नी और बेटी भी आई थी। 

जल्दी ही पूजा होने वाली थी। चाचा एंड कंपनी इसी बात का इंतजार कर रहे थे कि कब स्नेहा का वही पागलों वाला ड्रामा शुरू हो। क्योंकि फायदा इसमें उन लोगों का ही था। स्नेहा सबके सामने वैसे व्यवहार करती और अगर स्नेहा के साथ कुछ भी होता तो  रिश्तेदारों को जवाब नहीं देना पड़ता। स्नेहा खुद सबके सामने अपनी हरकतों से ही पागल  सिद्ध हो जाती। उन लोगों का काम आसान हो जाता।

 जल्दी ही पूजा निर्विघ्न संपन्न हो गई। सभी रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए। इस पूरे प्रकरण से चाचा एंड कंपनी थोड़े से दुखी थे कि सभी रिश्तेदारों के सामने स्नेहा को वह औरत देखने का दौरा क्यों नहीं पड़ा। अगर पड़ जाता तो वह स्नेहा के साथ संपत्ति के लिए कुछ भी करते तो रिश्तेदार इसमें उनका साथ देते।  पर यह सोचकर शांत हो गए कि कोई बात नहीं वह डरावनी औरत अपना काम ठीक से करेगी। उसके परिवार की तरह स्नेहा का भी काम अच्छे से खत्म करेगी।

 स्नेहा अपने कमरे में चली गई। स्नेहा बहुत उदास और भावुक हो रही थी,  उसे अपने परिवार की बहुत ही ज्यादा याद आ रही थी। इसलिए वह रोने लगी जब उसे रोते थोड़ी देर हो गई।

 तब वही रहस्यमय तांत्रिक की आवाज गूंजी, "तुम यहां रो कर अपने आप को कमजोर साबित कर रही हो... और वहां सब लोग तुम्हारी मौत की राह देख रहे हैं। अब समय आ गया है जब तुम्हें मेरे प्रस्ताव पर निर्णय लेना होगा। तुम्हें आज ही यह सोचना होगा... कि तुम्हें आगे करना क्या है…?"

 इस पर स्नेहा बोली, "सोचने विचारने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। मेरा निर्णय पहले से ही आपको ज्ञात है।  मैं आपके प्रस्ताव के अनुसार आपकी भैरवी बनने के लिए तैयार हूं।"

 तब उस तांत्रिक ने कहा, "ठीक है…! तो फिर आज रात हम मेरे स्थान पर मिलेंगे। क्योंकि पिछली बार जिस जगह और जिस रूप में हम मिले थे। वह सब तुम्हारी कल्पना के अनुसार मैंने बनाए थे। पर जब तुमने भैरवी बनने के लिए  सोच ही लिया तो तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि आगे चलकर तुम्हें कहां रहना होगा…?? किन परिस्थितियों में रहना होगा…??? क्योंकि एक बार आगे बढ़कर  बीच साधना से वापस जाना संभव नहीं है।"

 स्नेहा ने कहा, "बीच साधना से मैं भी वापस नहीं जाऊंगी। अगर इस पूरे प्रकरण से मुझे मेरे माता-पिता, भाई भाभी और  राधु की हत्या का बदला लेने का मौका मिलता है तो मैं किसी भी कीमत पर वह बदला लूंगी। चाहे फिर उस बदले की कीमत मेरी जान ही क्यों ना हो। अगर मर भी गई तो भी उनसे बदला तो मैं लेकर ही रहूंगी। और  वो विराज और उसका गुरु अगर यह समझते है कि वो यह सब करके बच जाएंगे तो यह उनकी सबसे बड़ी गलती है।"

 तभी उस रहस्यमई आवाज ने टोका, "चुप करो लड़की…!!! तुम जानती भी हो... जिस तांत्रिक ने तुम्हारे परिवार पर वह तंत्र किया था? वह कितना शक्तिशाली है…! यहां तक की अगर मैं  उनसे लड़ने की कोशिश करूं तो भी उनका कुछ नहीं कर पाऊंगा। क्योंकि उनकी शक्तियां असीम है। मैं उसको तभी काट सकता हूं जब मेरे पास कुछ विशिष्ट साधनाओं के लिए मेरी भैरवी मेरे साथ हो। इसीलिए मैंने तुम्हें इस काम के लिए चुना।" 


तभी स्नेहा के कमरे के दरवाजे पर एक दस्तक हुई। वह रहस्यमय आवाज शांत हो गई और स्नेहा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने राहुल की पत्नी खाने की थाली लेकर सामने खड़ी थी और उसकी बेटी पीहू उसके पीछे से छुप छुपकर झांक रही थी। 

 पीहू को देखकर स्नेहा को राधु की याद आ गई थी। पीहू भी राधु की तरह ही चंचल, मस्त-मौला और गोलू-मोलू थी। पीहू को देखकर स्नेहा की आंखें भर आई और स्नेह रोने लगी।  राहुल की पत्नी कमरे में आई और आकर खाने की थाली वहीं बेड के किनारे टेबल पर रख दी। पीहू राहुल की पत्नी प्रीति के पल्लू को पकड़कर उसके पीछे पीछे अंदर आ गई। 

प्रीति ने स्नेहा को चुप करवाया और खाना खाने के लिए कहा, "स्नेहा आप कुछ खा लो। आपने कल  भी कुछ नहीं खाया था।"

पीहू छुप छुप कर स्नेहा को देख रही थी। तब प्रीति ने पीहू से कहा, "पीहू बेटा ये आपकी बुआ है। स्नेहा बुआ…! आप बुआ से बात करो तब तक मम्मा दादी और दादू को भी खाना परोस कर आती है।" ये बोलकर प्रीति वहां से चली गई।

पीहू स्नेहा को अजीब सी नज़रों से देख रही थी। वो पहली बार स्नेहा से मिल रही थी इसलिए थोड़ा सा शर्मा रही थी।

स्नेहा ने पीहू को अपने पास बुलाया और गोद में बिठाते हुए पूछा,  "पीहू बेटा... मैं बुआ... स्नेहा बुआ…! आप मुझे नहीं जानते ना…! पर पता है... आप बहुत क्यूट हो और मुझे बहुत अच्छी भी लगती हो। मैं आपको अच्छी नहीं लगी क्या??"

 इस पर पीहू ने कहा, "नहीं...नहीं... आप तो बहुत सुंदर हो। मुझसे बहुत प्यार से भी बात कर रही हो फिर आप मुझे अच्छी क्यों नहीं लगोगी। हां पर अगर आप मुझे चॉकलेट दोगी तो हम फ्रेंड्स बन सकते हैं।  पर आपको मुझे बाहर घुमाने भी ले जाना होगा। पापा तो कहीं लेकर ही नहीं जाते। दादा-दादी भी नहीं जाने देते आप मुझे ले चलोगे।"

 स्नेहा ने पीहू के गाल खींचते हुए कहा,  "हां... बिट्टू हम घूमने चलेंगे। ज़ू भी जाएंगे और राइड पर भी।"

पीहू ने खुश होते हुए बहुत ही ज्यादा उत्साहित होकर कहा,  "सच्ची बूई... हम चलेंगे ना... घूमने पक्का लेकर चलोगे ना मुझे…! हम आप... है ना... हम वहां पर ना... आइसक्रीम भी खाएंगे। बड़े वाले राइड में भी…!"

 स्नेहा ने कहा, "हां बिट्टू…! हम चलेंगे।"

 इतने में स्नेहा को वही डरावनी औरत दिखाई दी जो खिड़की में एक पैर अंदर और एक पैर बाहर लटका कर बैठी थी। स्नेहा एकदम से डर गई।


 उसने पीहू को वहां से चले जाने के लिए कहा, "पीहू…! पीहू... !बेटा आप फटाफट मम्मी के पास जाओ। जल्दी…!!!"

 पीहू ने मासूमियत से पूछा,  "क्या हुआ बूई…???आप डर क्यों रहे हो... कौन है??? अगर आपको कोई भूत डरा रहा है ना... तो मैं ना... उसे ना... मार के भगा दूंगी।"

 इतने में स्नेहा को वही राधु वाला खौफनाक मंजर याद आ गया था। उसने पीहू को धक्का देते हुए कहा, "पीहू जल्दी जाओ मम्मी बुला रही है आपको जाऽऽऽओऽऽऽ…!!!"

 पीहू स्नेहा को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहती थी और दूसरी तरफ वो  डरावनी औरत खिड़की से अंदर आ गई। धीरे धीरे स्नेहा की तरफ बढ़ने लगी। स्नेहा डर के कारण कांप रही थी।   पीहू उसे छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। स्नेहा नहीं चाहती थी कि जैसा राधु के साथ हुआ वही पीहू के साथ दोहराया जाए। क्योंकि कुछ ही समय में स्नेहा  पीहू से बहुत ही ज्यादा जुड़ाव महसूस कर रही थी। उसे पीहू में राधु दिखने लगी थी। एक तरफ वो औरत लगातार स्नेहा के पास आए जा रही थी।

 अचानक स्नेहा जोर से चीख पड़ी। उसकी चीख सुनकर पीहू भी डर गई और रोने लगी। स्नेहा की आवाज सुनकर सभी घरवाले दौड़ते हुए कमरे में पहुंचे।  स्नेहा को कान पर हाथ रखे,  घुटने में सर  छुपा कर चिल्लाते देख और पीहू को रोता देख सभी एक बार को तो टेंशन में आ गए थे। 

सभी को वहां पर स्नेहा पर गुस्सा आ रहा था कि वह ऐसा नाटक क्यों कर रही है…?

  कुछ समय पहले अखिलेश जी ने विराज से फोन पर बात की थी। तब  विराज ने उन्हें बताया था... कि गुरु जी ने स्नेहा पर कोई भी तंत्र नहीं किया है।  

 अब सभी लोग इसी बात से परेशान थे कि अगर यह सब विराज के गुरु जी ने नहीं किया है तो आखिर स्नेहा कर क्या रही है। स्नेहा लगातार चीखे जा रही थी और सभी उसे देख रहे थे।

 थोड़ी देर बाद स्नेहा ने गर्दन उठाकर देखा तो सभी लोग उसे देख रहे थे। बुआ, चाची, चाचा, राहुल, अनुज, प्रीति और सबसे ज्यादा डरी हुई और टेंशन में पीहू दिखाई दे रही थी। क्योंकि पीहू भी स्नेहा से  बहुत ज्यादा प्यार करने लगी थी। उसे स्नेहा को ऐसे डरा हुआ देख कर बुरा लग रहा था। स्नेहा ने चारों तरफ देखा तो उसे वह डरावनी औरत अब नहीं दिख रही थी। स्नेहा ने थोड़ी राहत की सांस ली।

 सभी लोग मन में  बड़बड़ाते हुए अपने-अपने कमरों में चले गए।  स्नेहा को अब सच में डर लगने लगा था। 

वह सोच रही थी, "कहीं सच में यह औरत उसी विराज के गुरु जी ने तो मुझे मारने के लिए नहीं भेजी।" ऐसा सोचते हुए उसे याद आया उस रहस्यमय आवाज ने उसे एक काला कपड़ा दिया था। जिसे जलाने पर  रहस्यमय आवाज से संपर्क किया जा सके। 

स्नेहा ने अपने सामान में से वह कपड़ा ढूंढ कर निकाला और उसका एक टुकड़ा काट कर जला दिया। उस टुकड़े के जलते ही वो रहस्यमयी आवाज फिर से गूंजी, "क्या हुआ लड़की…! तुमने इस समय मुझे क्यों याद किया…?? हम तो आज रात वैसे भी मिलने वाले थे।"

 स्नेहा ने कहा, "इतने दिनों से मुझे वही औरत जिसने मेरे परिवार को मारा। वह पूरे दिन, पूरे घर में दिखाई दे रही है…! अभी थोड़ी देर पहले भी वह मेरी तरफ आ रही थी। उसे देख कर मैं डर गई... मुझे लगता है... यह सब उस तांत्रिक का किया धरा है।"

 तब उस रहस्यमय आवाज ने कहा, "ऐसा हो तो नहीं सकता क्योंकि तुम्हारी कोई भी वस्तु तुम्हारे किसी भी घर वाले ने विराज तक या विराज के गुरुजी तक नहीं पहुंचाई है... तो यह सब उनका किया तो नहीं हो सकता। फिर भी तुम जब रात को मुझसे मिलने आओगी। तब हम इस बात पर विस्तार से चर्चा करेंगे।"

 इतना बोल कर वह आवाज शांत हो गई और स्नेह वही टेंशन में बैठी रह गई। सभी अपने अपने कमरे में बैठे स्नेहा की इस हालत पर ही बात कर रहे थे।

 अखिलेश जी ने कहा, "तेरहवीं की पूजा के बाद मेरी विराज जी से बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि उनके गुरु जी ने स्नेहा के ऊपर किसी भी तरह के तंत्र का प्रयोग नहीं किया है। "

 गीता जी ने कहा, "अगर यह सब विराज और उसके गुरु जी ने नहीं किया है। तो किसने किया है…??"

  अरुणा ने कहा, "जीजी मुझे तो ऐसा लगता है कि स्नेहा को सदमा लगा है।  हमें उसे किसी डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।"

 तब राहुल ने कहा, "मम्मी आप बिल्कुल सही बोल रही हैं। अगर स्नेहा को कुछ नहीं भी हुआ है तो हमें सर्टिफिकेट तो मिल ही जाएगा कि उसकी दिमागी  हालत ठीक नहीं है।"

 इतने में प्रीति ने कहा, "मम्मी जी एक काम करते हैं... स्नेहा को वह डरावनी औरत कभी-कभी दिखाई दे रही है। हम किसी डॉक्टर के साथ मिलकर स्नेहा के लिए दवाई  लिखवा दें और वह दवाई स्नेहा को देते रहें।  जिससे स्नेहा को वह औरत दिखना कम ना हो बल्कि पूरे टाइम दिखना  स्टार्ट हो जाए। उससे हमारा फायदा ही होगा और हम किसी बड़े डॉक्टर को दिखा कर उसकी दिमागी हालत के लिए सर्टिफिकेट बनवा लेंगे। उससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।"

 सभी लोग प्रीति की बात से सहमत हो गए।

 जल्दी ही रात हो गई और स्नेहा जल्दी-जल्दी उस रहस्यमय आवाज से मिलने के लिए तैयार होने लगी। वह नहीं चाहती थी कि किसी को भी उसके बाहर जाने का पता चले।  इसलिए उसने जादुई आसन का सहारा लिया और आसन पर बैठकर आंखों पर वही काला कपड़ा बांध लिया पर इस बार आसन ने काम नहीं किया।

 स्नेहा अपने ही कमरे में बैठी थी। स्नेहा ने फिर से उस काले कपड़े को जलाया और उस रहस्यमय आवाज से सवाल पूछा,  "इस बार यह आसन काम क्यों नहीं कर रहा है…???"

 स्नेहा बहुत ही परेशान हो गई थी। रहस्यमय आवाज ने तो कहा था कि ये हमेशा काम करेगा फिर अब क्यूँ नहीं कर रहा क्या रहस्यमय व्यक्ति ने भी मेरा साथ छोड़ दिया…???