Chapter 175

Chapter 175

YHAGK 174

Chapter

 174






 रुद्र और शरण्या को वहां मौजूद देख लावण्या बुरी तरह से चौक गई। उसने सोचा नहीं था कि वह दोनों इतनी जल्दी आ जाएंगे उन्हें अगले दिन आना था और उससे पहले ही लावण्या सारे कागजी कार्यवाही पूरी कर लेना चाहती थी ताकि रूद्र इस बारे में कोई बीच-बचाव ना कर सके। कहां तो उसे लगा था कि रुद्र और शरण्या अपना हनीमून और एक्सटेंड करेंगे। इसके उलट रुद्र एक दिन पहले ही वापस आ गया। 


     लावण्या को हैरान परेशान देख रूद्र ने उसे तीखी नजरों से घूर कर देखा और बोला, "क्या लगा तुम्हें लावण्या! मुझे कुछ पता नहीं चलेगा? यह सब प्लानिंग तुम काफी टाइम से कर रही थी, है ना? जिस आनन-फानन में तुमने मुझे और शरण्या को शादी के तुरंत बाद हनीमून पर भेज दिया उसी वक्त मुझे तुम पर शक हुआ था। मुझे यहां से जाना ही नहीं चाहिए था। शरण्या मुझे बार-बार कहती रही कि तुम उनमें से नहीं हो जो रेहान को माफ कर देगी और मैंने तुमसे बार-बार पूछा था कि तुम क्या करना चाहती हो? तुमने भी मुझे अच्छे से समझाया था तुम रेहान को छोड़कर नहीं जाओगी। झूठ बोला तुमने मुझसे? इतना बड़ा धोखा दिया तुमने मुझे? इतना शातिर दिमाग तुम लाई कहां से लावण्या?"


     रेहान हैरानी से रूद्र को देख रहा था और उसकी बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था। यानी यह बात रूद्र पहले से जानता था। फिर भी उसने किसी से कुछ नहीं कहा। सब कुछ चुपचाप ऐसे ही होने दिया। इस बात से उसे थोड़ी नाराजगी तो हुई लेकिन अब वो खुद रूद्र को किसी बात के लिए ब्लेम नहीं करना चाहता था। 


        बात रूद्र और लावण्या के बीच चल रही थी तो रेहान ने उसके बीच कुछ कहा नहीं और दूसरी तरफ पलट गया जैसे इस तरह को उन दोनों की बातें सुनने से भी बच जाएगा। वह बस कोशिश कर रहा था कि उन दोनों के बीच की कोई भी बात उसे सुनाई ना दे लेकिन वह दोनों तो यहां के पीछे ही खड़े थे।


      लावण्या ने अपना सर झुका रखा था। वो अच्छे से जानती थी कि रुद्र किस बारे में बात कर रहा था। आखिर उसने कहा ही कुछ ऐसा था जिसकी सफाई उसे देनी थी। उसने सर उठाया और रुद्र से नजरें मिलाते हुए कहा, "मैंने तुमसे कहा था रूद्र! मैं रेहान को नहीं छोडूंगी, बिल्कुल भी नहीं छोडूंगी और मैं अपनी बात पर कायम हूं। जो दर्द मैंने झेला है वही दर्द मैंने रेहान को भी दिया है। भले ही एक गलतफहमी के रूप में क्यों ना हो, लेकिन धोखे का जो स्वाद मैंने चखा वही मैंने रेहान को भी दिया। फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने कभी उसे धोखा नहीं किया, ना हीं इस बारे में सोच सकती हूं। लेकिन अब इतना कुछ होने के बाद मैं इस रिश्ते में बंधकर नहीं रह सकती। अब ये रिश्ता घुटन देने लगा है, मुझे भी और रेहान को भी जब कोई रिश्ता घुटन देने लगे तो उस रिश्ते को तोड़ देना चाहिए। माना यह फैसला मेरा था लेकिन इसमें रेहान की भी पूरी रजामंदी है। यह सिर्फ मेरे अकेले का फैसला नहीं है। अगर होता तो तलाक के लिए मैंने रेहान पर केस किया होता। इस तरह हम दोनों म्यूच्यूअली अलग नहीं हो रहे होते। जिस वक्त मुझे सच्चाई पता चली थी, मैं तो उसी वक्त सब कुछ खत्म कर देना चाहती थी। लेकिन फिर खयाल आया अपनी बहन का............., तुम्हारा! क्या करती है मैं? जितना दर्द तुम दोनों ने सहा उसके मुकाबले तो मेरा दर्द कुछ भी नहीं। इसीलिए अब जब सब कुछ ठीक हो रहा है तो यहां भी सब कुछ ठीक हो जाना चाहिए मैंने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला था रूद्र! मैंने कहा था मैं रेहान को नहीं छोडूंगी लेकिन पूरी बात से तुम को अनजान रखा। उस वक्त मैं हमारे रिश्ते की नहीं बल्कि अपने बदले की बात कर रही थी। मैं अपना बदला ले चुकी हूं रूद्र। अब मुझे रेहान से जरा सी भी नफरत नहीं लेकिन अब प्यार भी नहीं रहा। इसलिए बेहतर है इस रिश्ते को खत्म कर दिया जाए।"


     रूद्र ने रेहान की तरफ देखा जो उसकी तरफ पीठ किए खड़ा था फिर लावण्या को दोनों कंधों से पकड़ कर बोला, "लेकिन इस सब में राहुल का क्या? उसके बारे में सोचा तुमने? तुम्हें पता भी है इस वक्त वो कितनी बुरी तरह से रो रहा था। घर से आ रहा हूं मैं, मुझ पर यकीन नहीं तो पूछो अपनी बहन से। रो रो कर आंखें सूज गई है उसकी। किसी और के किए की सजा उस मासूम को क्यों मिले?"


     लावण्या मुस्कुरा कर बोली, "उसके बारे में सोच कर ही तो यह फैसला लिया है। मैं नहीं चाहती हूं कि मेरा बेटा भी उसी माहौल में बड़ा हो जिस माहौल में मैं पली-बढ़ी। मां बाप के बीच दूरियां आ जाए और वह दोनों अलग हो जाए तो बच्चे का बचपन छिन जाता है लेकिन एक ही घर में होते हुए अगर मां-बाप के बीच अनबन हो और उनमें प्यार ना हो तो बचपन घुटता रहता है। कभी-कभी साथ रहने से दूरियां बढ़ती है तो कभी दूर रहने से नज़दीकियों का एहसास होता है। कभी-कभी रिश्तो को बचाने के लिए हमें उनसे दूर होना पड़ता है, तभी उस रिश्ते की अहमियत बनी रहती है। सच कहूं रूद्र तो मुझे रेहान से तलाक नहीं चाहिए था मैं बस उसको छोड़ कर कहीं और रहने को तैयार हूं। लेकिन इस सब में मैं रेहान को अपने साथ बांधकर नहीं रखना चाहती। ना ही उसे कोई उम्मीद देना चाहती थी। इसलिए मैं उसे आजाद कर रही हूं। वह अपनी जिंदगी जैसे जीना चाहे जिसके साथ जीना चाहे, इसके लिए उसे कभी मेरी परमिशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं रेहान से अलग नहीं हो रही रूद्र, बल्कि रेहान को खुद से अलग कर रही हूं ताकि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकें। अब यह उसके ऊपर है कि वह सारी जिंदगी मुझे प्यार करें या फिर मुझे भूलकर आगे बढ़ जाए। देखते हैं ना रूद्र! आजमाते हैं अपनी किस्मत को। देखना है मुझे, क्या मेरा और रेहान का रिश्ता तुम्हारे और शरण्या के रिश्ते की तरह सच्चा और गहरा है या नहीं? जिस तरह तुम दोनों हर मुश्किल पार करके, बरसों अलग होने के बावजूद आखिर फिर से एक हो गए। शायद हमारी किस्मत में भी ऐसा कोई संयोग लिखा हो, कौन जानता है!"


      लावण्या की बातें सुनकर रूद्र खामोश हो गया। उसे समझ नहीं आया कि आगे वह क्या कहें। उसकी नजर बार-बार रेहान पर जा रही थी। उसे सिर्फ अपने भाई के लिए बुरा लग रहा था। उसे तकलीफ हो रही थी। लावण्या ने रूद्र के हाथ से फाइल ली और उसे अपने लॉयर को दे दिया। लॉयर ने सारे पेपर एक बार फिर से चेक किए और उन्हें लेकर चला गया। उनके फैमिली लॉयर, एडवोकेट श्रीवास्तव जी ने कहा, "आप दोनों कुछ देर बाहर इंतजार कीजिए तब तक यह सारा प्रोसेस कंप्लीट हो जाएगा और आप दोनों को ही इससे जुड़े बाकी के पेपर्स मिल जाएंगे।" कहकर श्रीवास्तव जी भी वहां से बाहर चले गए। 


    लावण्या अपने मम्मी पापा के साथ केबिन से बाहर निकल गई। शरण्या भी लावण्या के पीछे चली गई। धनराज जी और शिखा जी को वहां रुकना अच्छा नहीं लग रहा था। शिखा जी आगे की कार्यवाही नहीं देख पा रही थी इसलिए उन्होंने घर जाने की इच्छा जाहिर की तो धनराज जी उन्हें लेकर घर के लिए निकल गए। इस वक्त उस केबिन में सिर्फ रूद्र और रेहान रह गए थे। 


    रूद्र को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने भाई से किस तरह बात करें। वह बार-बार उसे आवाज देने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी आवाज जैसे उसके गले में अटक कर रह गई थी। लाख कोशिशों के बाद भी जब उससे कुछ कहा नहीं गया तो उसने पीछे से आकर रेहान को कसकर गले लगा लिया और रो पड़ा। आज वह अपने भाई के लिए रो रहा था। रेहान भी अपने भाई के इस अपनेपन पर पिघल गया। जो आंसू उसने पिछले कुछ दिनों से संभाल कर रखे थे वह आज सारे बांध तोड़ कर बाहर आ गए। उसने कुछ देर रूद्र की कलाई पकड़ रखी और फिर रूद्र की तरफ पलट कर उसके गले लग गया। 


    रेहान के मन में इस वक्त रूद्र के लिए कोई नाराजगी नहीं थी। ये सारी उसकी गलती थी और जो भी हो रहा था उसके अपने किए का नतीजा था। ऐसे में किसी और को इस बात के लिए ब्लेम करना कहां तक सही होता! उसने एक शब्द नहीं कहा, बिल्कुल भी नहीं और चुपचाप रूद्र के गले लगे रहा। आंसू खामोशी से उसकी आंखों से बहने लगे। ऐसा लगा मानो बरसों बाद उसे अपने भाई का सहारा मिला हो। रूद्र बड़े प्यार से कभी उसकी पीठ सहलाता तो कभी उसका सर। रेहान के आंसुओं से रूद्र का शर्ट भीग रहा था लेकिन रूद्र ने एक बार भी उसे चुप नहीं कराया और रोने दिया। उसे पता था पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ उसके बाद रेहान ने किसी से बात भी नहीं की होगी।