Chapter 100
YHAGK 99
Chapter
99
रात के खाने के वक्त डाइनिंग टेबल पर सब लोग मौजूद थे। रेहान जब से घर आया था तब से उसने रूद्र को नहीं देखा था। वह अभी भी अपने कमरे में बैठा हुआ काम कर रहा था। मौली अपनी दादी के कहने पर उसे खाने के लिए बुलाने गई। रेहान खाने की टेबल पर बैठा खाना सर्व होने का वेट कर रहा था। उसे लग रहा था कि अब इस घर में उसकी कोई अहमियत नहीं रह गई है। पहले वह रूद्र से सिर्फ चिढा रहता था लेकिन अब उसे रूद्र पर गुस्सा आने लगा था। एक वक्त था जब दोनों भाइयों में बहुत ज्यादा प्यार हुआ करता था लेकिन अब जहां रूद्र ने अपनी पूरी जिंदगी रेहान के लिए बर्बाद कर दी, वही रेहान को सिर्फ अपनी फिक्र थी।
रेहान ने अपनी मां से खाना लगाने को कहा तो शिखा जी बोली, "थोड़ी देर रुक जाओ, रूद्र अभी आता ही होगा।"
रेहान बोला, "मां......! वो पूरा दिन घर में बैठकर काम कर रहा था और हम लोग बाहर से आ रहे हैं......, ऑफिस से। हमारी अपनी कंपनी है जो की परेशानी में है। उसकी तरह हम किसी दूसरे की नौकरी नहीं करते, किसी और की कंपनी में काम नहीं करते हैं हम लोग जो 9 से 5 की नौकरी करके घर चले जाते हैं।"
"किसी को कोई परेशानी है इस बात से?"
रेहान चौक गया। उसने नजर उठाकर देखा तो सामने सीढ़ियों से रूद्र नीचे चला रहा था। रूद्र बोला,"9:00 से 5:00 की नौकरी करने वाले दूसरों के लिए भी नौकरी करते हैं और अपने घर की भी फिक्र करते हैं। उनके काम को कम नहीं आंका जा सकता। वह मेहनत करते हैं तभी कंपनी के मालिक को सहूलियत मिलती है और मुनाफे में बड़ा हिस्सा भी। काम काम होता है फिर चाहे कंपनी का मालिक करें या फिर कंपनी का साधारण मुलाजिम। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है।" कहते हुए रुद्र ने कुर्सी संभाल ली और बैठ गया।
धनराज जी को रेहान का बर्ताव अब अच्छा नहीं लग रहा था। अब तक उन्होंने अपने दोनों बच्चों को गलत समझा था। अब जब सारी सच्चाई उनकी आंखों के सामने थी तब उन्हें एहसास हो रहा था कि रेहान को पूरे कंपनी की बागडोर देकर उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी थी। रूद्र को भी बराबर का हिस्सेदार बनाना चाहिए था, उसे भी जिम्मेदारी देनी चाहिए थी। लेकिन अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई थी। उन्होंने कहा, "रूद्र......! कुछ बात करनी है तुमसे बेटा!"
रूद्र बोला, "हां कहिए ना पापा! मैं सुन रहा हूं।"
धनराज जी बोले, "बेटा तुमनआराम से खाना खा लो उसके बाद हम लोग बात करते हैं।"
मौली बीच में बोली, "दादू.....! अभी पापा फ्री है तो आप बात कर सकते हैं, वरना अभी यहां से उठकर वह सीधे काम करने बैठ जाएंगे। वह कब फ्री होते हैं कब नहीं यह किसी को पता नहीं चलता, खुद उनको भी नहीं। अभी मौका है, अभी बात कर लीजिए।"
रेहान बीच में बोला, "जब दो बड़े बात कर रहे हो तो बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए। इसे मैनर्स कहते हैं।"
मौली ने रेहान को घूर कर देखा और चुप हो गई। रूद्र बोला, "पापा....! मौली सही कह रही है। आपको जो बात करना है आप अभी कह सकते हैं वरना बाद में मुझे कब टाइम मिले कह नहीं सकता।"
धनराज जी बोले, "बेटा मैं चाहता हूं कि तुम भी हमारे साथ कंपनी ज्वाइन करो। इस वक्त हमारी कंपनी को अपनों की जरूरत है। मैं जानता हूं तुममें छोटी-छोटी गलतियों और बारीकियों को पकड़ने की काफी अच्छी काबिलियत है। अगर तुम हमारी कंपनी में हमारा साथ दोगे तो हम शायद इस बुरे दौर से बाहर निकल सके।"
रूद्र कुछ कहना चाहता था लेकिन बीच में लावण्या बोल पड़ी, "पापा हम लोग वैसे ही एंप्लॉय की छटनी करने की सोच रहे हैं। ऐसे में एक और हम इतना अफोर्ड नहीं कर सकते।" खाना खाते हुए रूद्र के हाथ एकदम से रुक गए। लावण्या ने जो कहा उसमें रूद्र के लिए उसकी नफरत साफ झलक रही थी। रेहान ने भी लावण्या के इस बात का समर्थन किया। वह नहीं चाहता था कि रूद्र कंपनी में उसका काम बांटे। वह नहीं चाहता था कि उस कंपनी में रुद्र का भी हिस्सा हो। वह अपने दम पर उस कंपनी को ऊपर उठाना चाहता था। अगर इस सब में रूद्र शामिल हुआ तो सारा क्रेडिट रूद्र ले जाएगा जो रेहान नहीं चाहता था।
शिखा जी को बुरा लगा। वह बोली,"रूद्र कोई इम्प्लॉयी नहीं है लावण्या! उसका भी उस कंपनी पर उतना ही हक है जितना रेहान का है।"
वही धनराज जी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। रूद्र ने कहा, "पापा! यह मेरे लिए पॉसिबल नहीं हो पाएगा। मैं ऑलरेडी एक कंपनी संभाल रहा हूं जिसे मैं छोड़ नहीं सकता। उस कंपनी से मेरा लाइफ टाइम का कॉट्रैक्ट् है और आपका का कहा भी मैं टाल नहीं सकता। मैं जानता हूं रेहान कंपनी को काफी अच्छे से संभाल सकता है और लावण्या भी तो है उसके साथ, वह दोनों मिलकर कंपनी को उबार ही लेंगे। रही बात मेरी कंपनी ज्वाइन करने की तो मैं बाहर रहकर भी यह काम कर सकता हूं। आप लोगों को जब भी किसी भी तरह की कोई भी जरूरत होगी मैं उसके लिए हमेशा तैयार हूं। मुझसे जितना हो सकेगा मैं वह सब करने को तैयार हूं, आखिर वह कंपनी मेरे लिए तो अपनी ही है।"
धनराज जी बस मुस्कुरा कर रह गए। वह अच्छे से जानते थे कि रूद्र ने सीधे सीधे मना करने की बजाए बात को घुमा दिया ताकि रेहान और लावण्या को बुरा ना लगे। रुद्र का खाना अभी खत्म हुआ भी नहीं था कि उसका फोन बज गया। रूद्र ने फोन उठाना चाहा लेकिन मौली ने स्क्रीन पर नाम देख लिया और रूद्र के हाथ से फोन छीनते हुए कहां, "हेलो सिंथिया! डैड अभी खाना खा रहे हैं, उन्हें थोड़ी देर चैन से खा लेने दो। उसके बाद जितना हो सके उतना बात कर लेना, ठीक है!" कह कर उसने फोन काट दिया।
रूद्र ने तिरछी नजर से मौली को देखा तो मौली ने मुस्कुराकर फोन उसे वापस कर दिया। रूद्र ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और फोन लेकर अपने कमरे में जाने के बजाय बाहर निकल गया। मौली पीछे से चिल्लाते हुए भागी, "डैड....! ठंड लग जाएगी आपको! अपना जैकेट तो लेते जाइए!" लेकिन रूद्र कहां सुनने वाला था। वह इतनी तेजी में निकला कि पल भर में सबकी नजरों से ओझल हो गया। आखिर इतनी तेजी में वो कहां जा रहा था?
वहां मौजूद सभी लोग दो पल को सोचते रह गए। मौली ने कहा, "देखा दादू! मैंने कहा था ना डैड कभी फ्री नहीं होते है। उन्हें कब कौन सा काम आ जाए, कब कौन सी बात उनके दिमाग में घूम जाए पता ही नहीं चलता। ना दिन देखेंगे ना रात! काम करना है तो करना है। खुद को बिजी रखने के लिए वह तो खुद को भूल गए हैं।"
शिखा जी परेशान थी कि रूद्र ने ठीक से खाना नहीं खाया। डाइनिंग टेबल पर जो हुआ वह किसी को भी बुरा लग सकता था लेकिन रूद्र ने इस बात पर किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं दिया और चला गया। धनराज जी ने अपना खाना खत्म किया और उठते हुए बोले, "रेहान! मेरे स्टडी रूम में आओ कुछ जरूरी बात करनी है।"
उनकी आवाज में जो सख्ती थी उससे रेहान को इतना तो अंदाजा हो गया कि वह बहुत गुस्से में है। लावण्या को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि उसे रूद्र को नीचा दिखाना था सो उसने दिखा दिया। रूद्र के लिए उसके मन में जो गुस्सा था वह कम नहीं होने वाला था। आखिर अब जाकर उसे अपने मन की भड़ास निकालने का मौका मिला था, इतने सालों के बाद।
रेहान डाइनिंग टेबल से सीधे अपने पिता के स्टडी रूम में गया जहां वह दरवाजे की तरफ पीठ करके खड़े थे। रेहान ने उन्हें पीछे से आवाज लगाई, "पापा! आप ने बुलाया, कुछ जरूरी बात थी क्या?"
धनराज जी उसकी तरफ पलटे और बोले, "आज जो हुआ वह आइंदा नहीं होना चाहिए। रूद्र ने बुरा नहीं माना इसका मतलब यह नहीं कि उसे बुरा नहीं लगा होगा और उसे बुरा लगे या ना लगे वह मेरा बेटा है और इस घर और उस कंपनी पर उसका बराबर का हक है, तुम अकेले के हकदार नहीं हो। तुम्हारे किए की सजा वह भुगत रहा है। खुद को बर्बाद कर दिया उसने तुम्हारे लिए। इसके बावजूद अगर उसे यह सब कुछ सुनने को मिले तो मैं खुद ही लावण्या को सारी सच्चाई बता दूंगा। तुम्हारी वजह से जो कुछ भी उसने खोया है वह अब चाह कर भी वापस नहीं मिल सकता उसे लेकिन फिर भी एक जिद ठाने बैठा है कि उसे शरण्या को ढूंढना है। अगर इसमें उसे खुशी मिलती है तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन यह सब कुछ मेरे बर्दाश्त से बाहर है। रूद्र यहां आना नहीं चाहता था। उसे अभी तुम्हारी फिक्र है। तुम्हारी वजह से वह हम सब को छोड़ कर गया, सिर्फ इसलिए ताकि तुम खुश रह सको, तुम्हारा और लावण्या का रिश्ता बरकरार रह सके। लेकिन सच्चाई ज्यादा वक्त तक छुपी नहीं रह सकती, इतना जान लो तुम। उसे इस घर में मैं लेकर आया हूं इसीलिए कम से कम मेरी बात का मान रखो तुम दोनों।"
रेहान सर झुका कर अपने पापा की सारी बातें सुन रहा था और वह इस सब का विरोध भी नहीं कर सकता था। रूद्र ने कंपनी ज्वाइन करने से मना कर तो दिया था लेकिन आगे वह क्या करने वाला था यह रेहान नहीं जानता था। वो वहां से जाने को हुआ तो उसे रोकते हुए धनराज जी ने कहा, "एक मिनट रेहान! कल ऑफिस जाने के लिए तुम खुद रूद्र से कहोगे। तुम उससे कहोगे कि वह भी तुम्हारे साथ ऑफिस जाए और वहां का काम एक बार खुद देख ले। ईशान से वह कभी नहीं मिला है, हो सके तो ईशान से भी उसकी मुलाकात हो जाए तो बेहतर होगा। आखिर उसे भी पता होना चाहिए हमारी कंपनी में क्या है क्या नहीं। हमारे पार्टनर कैसे हैं। समझ रहे हो तुम?"
रेहान ने बस हाँ में गर्दन हिला दी और वहां से चला गया। उसके लिए रूद्र को ऑफिस चलने के लिए कंवेंस करना किसी इंसल्ट से कम नहीं लग रहा था। अब तक का उसका किया, उसकी सारी मेहनत सब एक पल में छोटा लगने लगा। रूद्र क्या काम करता है, कैसे करता है और किसके लिए काम करता है? यह कोई नहीं जानता था। इसके बावजूद उसके पापा उसे इंपॉर्टेंस् देने में लगे थे। धीरे धीरे रेहान में अब जलन की भावना भी होने लगी थी। वह अपने ही भाई से अब जलने लगा था।
आधी रात से भी ज्यादा का वक्त हो चुका था और रुद्र अभी तक घर नहीं लौटा था। मौली की आंख खुली तो देखा उसके कमरे में पानी नहीं था। वह पानी लेने के लिए नीचे उतरी और किचन की तरफ जाने को हुई तो हॉल में उसने किसी को बैठे हुए देखा। मौली उसके करीब गयी तो देखा वहाँ उसके दादाजी बैठे हुए थे। उसने प्यार से पूछा, "दादू आप यहां क्या कर रहे हैं? बहुत रात हो गई है आपको सो जाना चाहिए था! इतनी देर तक जागना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता।"
धनराज जी बोले, "तेरा बाप अभी तक घर नहीं आया है। मेरा बेटा इस वक्त घर से बाहर है। पहले भी वह अक्सर देर रात घर से गायब ही रहता था और सुबह आता था लेकिन उस वक्त वह अपने दोस्तों के साथ होता था। लेकिन इस वक्त वो कहां है मुझे नहीं पता। मेरे पास उसका नया नंबर नहीं है जो मैं उसे कॉल करूं।"
मौली उनका हाथ पकड़ते हुए बोली, "दादू आप चिंता मत कीजिए। डैड को कुछ जरूरी काम होगा इसलिए वह घर से बाहर है वरना वो देर रात घर से बाहर नहीं रहते। हा! जब
कुछ जरूरी होता है तो निकल जाते हैं। वक़्त के पाबंद है लेकिन वक्त का ख्याल नहीं रहता उन्हे। वो आ जायेंगे आप चिंता मत कीजिये।"
धनराज जी झिझकते हुए बोले, "तुम से एक बात पूछू बेटा!"
"हाँ पुछिये ना दादू!" मौली ने कहा।
धनराज जी बोले, "क्या इतने सालों मे रूद्र की लाइफ मे कोई लड़की........!" धनराज जी अपनी ही बात पूरी करते हुए हिचकिचा गए। मौली समझ गयी और कहा, "दादू......! डैड को मैंने सिर्फ शरण्या मॉम से प्यार करते देखा है। कभी किसी और का नाम उन्होंने अपने नाम के साथ जुड़ने नही दिया और न कभी ऐसा होगा।"
धनराज जी उसके सर पर हाथ फेर कर बोले, "रात बहुत हो गई है, आप सोने जाओ मैं भी अब सोने ही जाता हु। रूद्र से कल सुबह बात कर लूंगा।" मौली उठी और अपने कमरे मे चली गयी।