Chapter 28

Chapter 28

humsafar 27

Chapter

28  

    अवनि बाथरूम मे गयी और बेसिन के सामने खड़े होकर अपने चेहरे काफी देर तक पानी मारती रही मानो खुद को होश मे लाने की कोशिश कर रही हो। जब जब सामने आईने मे खुद को देखती उसे सारांश का ही चेहरा नज़र आता और फिर से अपने चेहरे पर पानी मारने लगती। काफी देर तक बाथरूम मे रहने के बाद अवनि बाहर निकली तो श्रेया ने उसे घूर कर देखा।

   "क्या हुआ अवनि? परेशान है! कुछ हुआ है क्या?" श्रेया ने पूछा। 

   "पता नही!!! अगर नानु की बात सही है तो आज लक्ष्य अचानक से आकर मेरा हाथ मांगेगा। और नानु की बात कभी गलत नही होती।" कहकर अवनि ने सारी बात श्रेया को बताई की कैसे नानु ने तीन साल पहले उसके जीवनसाथी के बारे बोला था और उसी दिन वह लक्ष्य से मिली थी। 

     "अगर तु इस बात से परेशान है तो या तो तुझे समझ आगया है की वो कमीना कितना बड़ा कमीना है या फिर..... "श्रेया बोलते बोलते रुक गयी। 

     " या फिर क्या श्रेया?" अवनि ने पूछा। 

   "या फिर तुझे किसी और से प्यार हो गया है" श्रेया की बात से अवनि सुन्न पड़ गयी। "नही श्रेया ऐसा नही हो सकता! नानु के कहे मुताबिक मै उस दिन उसी से मिली थी और आज वो मुझे लेने आयेगा। मै किसी और से प्यार नही कर सकती वो मेरी भी जान ले लेगा और उसकी भी जिसे मै प्यार......।"

     "मै नही जानती किस से मगर तुझे किसी से प्यार हो गया अवनि वरना जब भी मै उसको कमीना बुलाती थी या गाली देती थी तु भड़क जाती थी मगर आज मैंने तेरे सामने इतनी बार उसे गाली दी फिर भी तूने कुछ नही कहा। अब तो मुझे लगता है नानु किसी और की बात कर रहे होंगे और तु उस दिन किसी और से भी मिली होगी। ऐसा तो हो नही सकता की कॉलेज के पहले दिन तु सिर्फ लक्ष्य से मिली। वहाँ बहुत से लोग आते जाते है और अगर तेरा पार्टनर कोई और है तो भगवान से प्रार्थना करती हु की वो आज के आज ही तुझे अपना बना ले जाए ताकि तुझे उससे छुटकारा मिले।" कहकर श्रेया कमरे से बाहर निकल गयी। 

     अवनि ठगी सी वही बैठी रह गयी। सच क्या है और झूठ क्या!! सही गलत का पता आज रात को ही पता चलना था। सोच सोच कर अवनि का सर फटा जा रहा था। 


    शाम हो चुकी थी और बारात निकलने का वक़्त हो रहा था। काव्या मेकअप आर्टिस्ट के साथ कमरे मे बंद थी, कार्तिक तैयार हो रहा था ,अवनि अभी तक घर के कपड़ो मे घूम रही थी श्रेया अपना लुक ठीक करने मे लगी थी और चित्रा का कुछ पता नही था। अवनि कलगी देने कार्तिक के कमरे मे गयी लेकिन सामने का नजारा देख उसकी चीख निकल गयी, "आ............!" अवनि ने अपनी आँखों पर हाथ रखा और पलट गयी।

     कार्तिक तैयार हो रहा था और सारांश घुटने के बल बैठा उसकी शेरवानी ठीक करने मे लगा था लेकिन जिस एंगल से अवनि ने देखा उससे किसी को भी गलतफहमी हो सकती थी। "ये क्या कर रहे है आप दोनो? जीजू आज शादी है और आप अभी से दिदु को चीट करने लगे?"

     "चुप हो जा मेरी लाउडस्पीकर!!!! क्यों शादी से पहले मेरा तलाक करवाना चाहती है। इधर देख ऐसा कुछ नही है!!" कार्तिक ने घबरा कर कहा। अवनि पलटी और देखा सारांश मुह पर हाथ रखे हँसते हँसते जमीन पर लोटपोट हुए जा रहा था। उसे ऐसे हँसते हुए देख कार्तिक खिसिया गया, "जल्दी करो"। सारांश ने बमुश्किल अपनी हँसी कंट्रोल की और उसको तैयार किया। 

     अवनि ने कलगी दी और जाने लगी तो कार्तिक ने टोका, " अभी तक तैयार नही हुई?"  " अभी जा रही हु जीजू। आप लोगो की तरह मुझे तैयार कराने वाला कोई नही है न इसीलिए...! सारा काम भी खुद ही निपटाना है और तैयार भी खुद ही होना है।"अवनि ने बुरा सा मुह बनाया और जाने लगी तभी सारांश ने पीछे से आवाज़ लगाई। 

   "सुनिये!!!" सारांश धीरे से चल कर अवनि के करीब आया और दरवाजे से पीठ लगाकर दोनो हाथ बांध कर खड़ा हो गया, "आप को तैयार होने मे हेल्प चाहिए? आप कहे तो मैं........."

     "कमज़र्फ बेगैरत इंसान....... " अवनि गुस्से मे तिलमिलायी मगर उसकी बात काटते हुए सारांश बीच मे बोल पड़ा, " मै तो आपके लिए मेकअप आर्टिस्ट बुलाने की बात कर रहा था। आप को क्या लगा, मै क्या कहने की कोशिश कर रहा?" सारांश ने आँख सिकोड कर अवनि को देखा  फिर सरप्राइज लुक देकर कहा, "हाँह!!!!!  भलाई का तो जमाना ही नही रहा।" 

    अवनि ने खीझ कर उसे देखा और पैर पटकते हुए वहाँ से निकल गयी। कार्तिक ने देखा तो मुस्कुरा कर कहा, "तुझ से सबर नही हो रहा न!" सारांश ने हँस कर एक नज़र कार्तिक को देखा फिर एक नज़र उस ओर देखा जिस ओर अवनि गयी थी। सिया ने सारांश को कपड़े दिये और जल्दी से तैयार होकर दोनो को साथ मे नीचे आने को कहा। 

     अवनि ने जल्दी से कंचन को तैयार होने मे हेल्प की और अपने हाथो से वो हार पहनाया जो उसने प्रवीण जी के पास से छुड़वाया था लेकिन वह ये देख कर हैरान रह गयी की प्रवीण ने पहले ही बाकी के गहने शादी मे पहनने के लिए लौटा दिये थे। अवनि का चौंकना स्वभावीक था क्योंकि प्रवीण  पर्सनल और प्रोफेसनल लाइफ कभी मिक्स नही करता था। वह एक पक्का व्यापारी था, इस तरह की उम्मीद उससे कोई कर ही नही सकता। उसने शांति से बाद मे इस बारे मे प्रवीण से बात करने का सोचा और खुद भी तैयार होने चली गयी। 

      बारात निकलने का वक़्त हो चुका था। धानी कार्तिक को लेकर पूजा घर मे गयी जहाँ उनके कुलदेवता की मूर्ति स्थापित की गयी थी। कुछ रस्मे वहाँ करने के बाद सब दरवाजे की ओर बढे। कुछ और औरते आई और दरवाजे पर पहले से कोई रस्म चल रही थी तो कार्तिक को थोड़ा इंतज़ार करना था। सारांश ने चारों ओर नज़र दौड़ाई  और कार्तिक से पूछा, "यार ये चिट्टू कहाँ है? कब से गायब है, इस वक़्त उसे हमारे साथ होना चाहिए था। तूने देखा क्या उसे?"

      चित्रा का नाम सुनकर कार्तिक को छत वाली बात याद आ गयी। उसकी आँखों में कुछ तो ऐसा था जिन्हे याद करके ही वह थोड़ा असहज हो गया और सारांश से नजरे चुराते हुए बोला, "मुझे क्या पता कहाँ है वो? सुबह तो पूँछ बनी घूम रही थी फिर ऐसे गायब हुई जैसे बिल्ली के सर से सिंग। मै कोई नौकर नही उसका जो उस के हर हरकत पर नज़र रखू।" 

   कार्तिक को यूँ हड़बडाया देख सारांश को थोड़ा शक़ हुआ, "तुम दोनो मे फिर से लडाई हुई? तुम दोनो कब बड़े होओगे। शादी के बाद काव्या कैसे रिएक्ट करेगी सोचा है कभी!!!"

   "मै ही हमेशा क्यों सोचू? उसे भी तो सोचना चाहिए की आज मेरी शादी है फिर मेरे साथ ऐसा मजाक.......... " कहते कहते कार्तिक अचानक ही रुक गया। उसके शब्द उसके मुह मे ही अटक कर रह गए और आँखे एक जगह पर जम गयी। सारांश ने उसे ऐसे देखा थोड़ा हैरान हुआ फिर पलट कर उस ओर देखा जहाँ कार्तिक की पलकों ने झपकने से मना कर दिया था। 

     हल्के आसमानी और सफेद रंग के लहंगे, हाथों मे मैचिंग चूड़ियाँ, हल्की लिपस्टिक, आँखों मे काजल, माथे पर बिंदी, खुले हुए एक तरफ किये बाल, एक कान मे बड़ा सा झुमका और दूसरे मे एक छोटा सा बुंदा जिसे बालों से बड़ी ही खुबसुरती से छुपाया गया था। अपना दुपट्टा संभाले सीढ़ियो से उतरती चित्रा किसी तिलोत्तमा से कम नही लग रही थी जिस की सुंदरता से देवता भी बच नही सकते। सारांश तो एक पल को उसे इस अवतार मे देख हैरान रह गया था। कोई नही जानता था की चित्रा वाकई मे इतनी खूबसूरत है। लेकिन जब सारांश की नज़र कार्तिक पर गयी तो कुछ सोच कर वह काँप गया। 





क्रमश: