Chapter 101
humsafar 101
Chapter
101
श्यामा पहली बार समर्थ से मिली लेकिन उसके मेच्योर बिहेवियर और सोच से उसे काफी हैरानी हुई। उसे लगा ही नहीं कि वह किसी पाँच साल के बच्चे से बात कर रही है। जब उसके कपड़ों पर दूध गिरा पर उसने झुंझलाकर श्यामा को ही इसका जिम्मेदार बता दिया लेकिन श्यामा ने भी उसकी बातों को अनसुना कर उसे गोद में उठाकर ले गई और उसे नहला कर कपड़े बदल दिया।
श्यामा जिस वक्त समर्थ के कमरे में थी उसी वक्त सिया ने सारांश को फोन कर सिद्धार्थ के बारे में पूछा तो सारांश ने बताया, "मॉम वह 10 मिनट पहले ही घर के लिए निकले हैं, थोड़ी देर में पहुंचते ही होंगे लेकिन बात क्या है? मैं आपके दिमाग में कहीं कुछ चल तो नहीं रहा!!! आप ऐसे तो नहीं पूछती!"
सारांश का शक बिल्कुल सही था। सिया का श्यामा और सिद्धार्थ को मिलाने का जो प्लान था उसने सारांश को बता दी। सारांश में सिर पकड़ लिया और बोला, "मॉम.....! आप उन दोनों के फर्स्ट मीटिंग की बात कर रही हैं! वह दोनों एक दूसरे से पहले मिल चुके हैं। भाई अब कुछ देर में घर पहुंचने वाले हैं और श्यामा वही है तो संभाल लेना आप। कहीं वो दोनों एक दूसरे के बाल न नोच डालें" और उसने आज सुबह सिद्धार्थ की श्यामा से हुई मुलाकात के बारे में सब कुछ सिया को बता दिया। सिया भी सोच में पड़ गई कि आखिर इन दोनों के साथ होना क्या है! उसने सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया, जो होगा देखा जाएगा लेकिन सावधान रहने में ही भलाई है।
रज्जो एक छोटा सा बैग उठा लाई और अवनि को पकड़ा दिया। अवनि ने देखा उसमे उसके लिए नया चश्मा और नया फोन था जो सारांश ने उसके लिए भेजा था। अवनि को ध्यान ही नही रहा की उसका चश्मा और फोन दोनों ही गायब है लेकिन सारांश उसकी हर छोटी छोटी बातों पर ध्यान देता था। अवनि उठी और कमरे मे चली गयी।
श्यामा जैसे समर्थ को गोद में लेकर गई थी उसी तरह गोद में ही उठाकर उसे नीचे ले आई और सिया के पास सोफे पर बैठा दिया। समर्थ को ये सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, "आपको मेरे कपड़े नहीं बदलना चाहिए थे। यह गलत बात होती है। एक लड़की कभी किसी लड़के के कपड़े नहीं बदलती और ना ही चेंज करते हुए देखती है। पापा कहते हैं अब मैं बड़ा हो चुका हूं।"
श्याम जिस सिद्धार्थ से अब तक इंप्रेस्ड थी, उसे अब उससे झुंझलाहट होने लगी थी। उसने समर्थ से कहा, "तुम स्कूल जाते हो?" समर्थ ने हां में जवाब दिया तो वह बोली, "स्कूल क्यों!!! तुम्हारे पापा कहते हैं कि अब तुम बड़े हो चुके हो तो स्कूल की बजाय सीधे कॉलेज में तुम्हारा एडमिशन क्यों नहीं करवा देते। बच्चों को अपनी उम्र के हिसाब से ही बड़े होना चाहिए वरना यह बचपन कभी वापस लौट कर नहीं आता है। अपने बचपन को इंजॉय करना सीखो और हो सके तो अपने हिटलर पापा से ना थोड़ी दूरी बना कर रखो।"
श्यामा की बात सुना सिया मुस्कुराये बिना ना रह सकी। सिद्धार्थ दरवाजे पर खड़ा श्यामा की सारी बातें सुन रहा था। समर्थ को भी कुछ कहते नहीं बना। उसने चुपचाप से अपना सर झुका लिया क्योंकि श्यामा कि कहीं हर बात सही थी। श्यामा ने अपना बैग उठाया और सिया से विदा लेकर वहां से जाने को मुड़ी लेकिन दरवाजे पर उसने सिद्धार्थ को देखा तो वह हैरान हो गई। "मेरी स्कूटी इतनी जल्दी ठीक हो गई? मुझे लगा था जैसे उसकी हालत है उसे ठीक होने में तो एक हफ्ता लग जाएगा। लेकिन मैंने तो एनजीओ का एड्रेस दिया था फिर यहां क्यों और है कहां मेरी स्कूटी!!! आपने मेरे स्कूटी के साथ कुछ किया नहीं होगा अगर कुछ किया तो मैं आपको छोडूंगी नहीं।"
"मुझे भी कोई शौक नहीं है आपकी स्कूटी के साथ छेड़खानी करने का और ना ही किसी की पर्सनल लाइफ में नाक घुसाने का। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरे बेटे को मेरे खिलाफ भड़काए, वह भी मेरे ही घर में आकर", सिद्धार्थ ने कहा।
श्यामा को लगा शायद उसने कुछ गलत सुन लिया है। यह उसका घर कैसे हो सकता है यह घर तो......!
"1 मिनट.............कहीं आप मिस्टर सिद्धार्थ मित्तल.........", श्यामा ने सवालिया नजरों से सिया की ओर देखा जो सर पकड़े बैठी थी। उसने हां में सर हिलाया तो श्यामा को समझ में आया कि सुबह जिससे लड़ गई थी वह उसका बॉस ही है।
श्यामा को वहां रुकना सही नहीं लगा। उसने सिद्धार्थ का वॉलेट वही टेबल पर रखा और सिद्धार्थ से नजर चुराते हुए वहां से बाहर निकल गई। कुछ दूर चलने के बाद रोड किनारे खड़े होकर उसने ऑटो का इंतजार करना शुरू किया लेकिन काफी देर बीत जाने के बावजूद वहां एक भी ऑटो नजर नहीं आई और ना ही वहां कोई बस दिखाई दी। हार मान कर उसने पैदल ही चलने का इरादा किया और निकल पड़ी। अभी वह सौ मीटर ही करीब चली होगी कि उसे रास्ता काफी लंबा दिखाई देने लगा लेकिन इसके बावजूद वह जल्दी से जल्दी ऑटो के लिए उस जगह पहुंचना चाहती थी जहां उसे आसानी से कोई सवारी मिल सके। तभी उसे अपने पीछे से एक गाड़ी के होर्न सुनाई दिया।
"पूरा सड़क खाली है, अब क्या मेरे सिर पर चढ़ाना है!!! आओ और ठोक दो मुझे यहीं पर। निकलो यहाँ से वरना अभी तुम्हारा हैप्पी बर्थडे कर देना मैंने", श्यामा गुस्से से भरी हुई थी। उसने एक बार देखा तक नहीं की ड्राइविंग सीट पर कौन बैठा है। श्यामा अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिली और गाड़ी के सामने जस के तस खड़ी थी। तभी गाड़ी का दरवाजा खुला और उसमें से सिद्धार्थ बाहर निकला।
"इस इलाके में ऑटो टैक्सी या बस नहीं आती है। आप कहे तो मैं आपको छोड़ दूं! आप शायद एनजीओ जा रही है ना मुझे भी वही जाना है तो साथ में चलते हैं। आपकी स्कूटी मेरी वजह से टूटी थी तो यह मेरा फर्ज बनता है कि मैं आपको लिफ्ट दूं। आपका वक्त भी बच जाएगा और पैसे भी", सिद्धार्थ ने कहा।
श्यामा ने कुछ देर सोचा और फिर बिना किसी सवाल जवाब के वह गाड़ी में जाकर बैठ गई। सिद्धार्थ ने भी गाड़ी आगे बढ़ा दी। पूरे रास्ते दोनों एक दूसरे से नज़र चुराए बैठे थे। आज सुबह जो कुछ भी उन दोनों के बीच हुआ उसके बाद उन दोनों की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि एक दूसरे से बात करे या माफी मांगे। सुबह उन दोनों ने ही एक दूसरे को बहुत कुछ सुना दिया था। एक ओर जहां श्यामा चुप बैठी थी वहीं दूसरी तरफ सिद्धार्थ नर्वस हुए जा रहा था। आखिर हिम्मत कर सिद्धार्थ ने ही चुप्पी तोड़ी।
"सॉरी मैंने आपको सुबह काफी कुछ बोल दिया था। आई नो मुझे वह सब नहीं कहना चाहिए था", सिद्धार्थ ने माफी मांगते हुए कहा।
श्यामा बोली ,"इस सब की शुरुआत मै ने हीं की थी। गलती मेरी भी है, आई एम सॉरी। मुझे आप को इतना कुछ नहीं सुनाना चाहिए था। वैसे सच कहूं तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि आपसे इस तरह मिलना होगा। एनजीओ में सब आपके बारे में बहुत बातें करते हैं। हमारी पहली मुलाकात काफी यादगार रही",श्यामा ने मुस्कुरा कर कहा।
"वैसे आपको इतने नरमी से बात करते देख लग नहीं रहा कि सुबह मैं आपसे ही मिला था", सिद्धार्थ ने कहा तो श्यामा ने उसे घूर कर देखा लेकिन जैसे ही उसकी मुस्कान पर श्यामा की नजर गई वह चुप हो गई और दूसरी तरफ नजर घुमा लिया। इस वक्त सिद्धार्थ उसे बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रहा था। श्यामा की नजर उस से हटना नहीं चाह रही थी। उसने अपनी आंखें बंद की और सीट पर सिर टिका दिया।
सिद्धार्थ ने श्यामा को एनजीओ के बाहर उतारा और खुद भी बाहर निकल गया। श्यामा से बिना कुछ कहे सिद्धार्थ एनजीओ के अंदर जाने लगा तो श्यामा ने उसे पीछे से टोकते हुए कहा ," आप अंदर क्यों जा रहे हैं? आपको कुछ काम था?" सिद्धार्थ ने उसे घूरते हुए देखा। श्यामा भूल गई थी कि एनजीओ सिद्धार्थ का भी है और सारांश से भी पहले वही इसे संभाला करता था। श्यामा ने अपने सिर पर जोर से एक हाथ मारा।
सिद्धार्थ उसे इग्नोर कर अंदर चला गया। श्यामा भी उसके पीछे पीछे भागती हुई अंदर गई और अपना बैग एक तरफ रख दिया। सिद्धार्थ ने घूम घूम कर पूरा एनजीओ देखा और वहां हुए बदलावों को भी नोटिस किया। एनजीओ अब पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा था। वहां आए बदलाव को देख सिद्धार्थ भी उसकी प्रशंसा किए बिना ना रह पाया।
"काफी अच्छी तरह से संभाला है आपने। मानना पड़ेगा! लेकिन एक बात समझ नहीं आई, हम ने वृद्धआश्रम से कोलैबोरेशन क्यों किया है? मतलब हम लोग एनजीओ चलाते हैं कोई आश्रम नहीं तो फिर यह सब क्यों? "सिद्धार्थ ने पूछा।
श्यामा बोली,"हमारे एनजीओ में बहुत सी ऐसी औरतें हैं जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं और बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनका कोई नहीं है। शाम के बाद हर कोई अपने घर चला जाता है और बस कुछ लोग ही रह जाते हैं यहां जिनकी अपनी भी कुछ जरूरत है होती है और खुद के लिए वक्त भी चाहिए होता है। इतने से देखा जाए तो हम लोग एनजीओ के साथ-साथ एक अनाथ आश्रम भी चलाते हैं और ऐसे में उनकी देखभाल के लिए वृद्धाश्रम से कोलैबोरेट किया गया ताकि उन बुजुर्गों को भी खुद को व्यस्त रखने का मौका मिले जिन्हें अपनों ने छोड़ दिया। इन बच्चों और बुजुर्गों, दोनों को किसी सहारे की जरूरत है। ऐसे में इससे बेहतर कुछ और हो ही नहीं सकता। वैसे भी बुजुर्ग लोग वृद्धाश्रम में अपने बच्चों से ज्यादा अपने बच्चों के बच्चों को याद करते हैं।"
"यह आइडिया कभी हमारे दिमाग में नहीं आया। वेल थैंक्यू! सारांश ने बताया था आप ने बहुत जल्दी सब कुछ संभाल लिया।" सिद्धार्थ ने कहा तभी एक बच्ची दौड़ती हुई आई और श्यामा से लिपट गई।
श्यामा ने उसे प्यार से गोद में उठाया और बाहर निकल गई। सिद्धार्थ ने देखा तो वह भी उसके पीछे-पीछे चला गया। श्यामा उस बच्ची को कुछ समझा रही थी और अपनी मां की हर बात मानने को कह रही थी। उस बच्ची ने भी हां में सिर हिलाया और कान पकड़कर माफी मांगी।
"अपनी बेटी को तो अच्छे बच्चे की तरह पेश आने की सीख देने वाली माँ, मेरे बेटे को मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही थी?",सिद्धार्थ ने दोनों हाथ फोल्ड करके उसे ताना मारने के अंदाज में बोला।
श्यामा ने उसे अजीब नजरों से देखा। उसे समझ नहीं आया कि आखिर वह सिद्धार्थ से कहे तो क्या। तभी वह लड़की जोर से मम्मी मम्मी चिल्लाते हुए किसी और के गले जा लगी और वह औरत भी अपनी बेटी को लेकर वहां से चली गई। सिद्धार्थ झेंप गया कि वह जिसे श्यामा की बेटी समझ रहा था उसकी नहीं किसी और की बेटी थी। उसने श्यामा से माफी मांगनी चाहि तो श्यामा ने कहा,"माना हर बच्चे को अपने मां-बाप की बात सुननी चाहिए लेकिन जब मां-बाप बच्चों को बच्चा ना रहने दे तो ऐसे मां-बाप से दूरी बना ही लेनी चाहिए। आपका बेटा अपनी उम्र से कहीं ज्यादा मैच्योर है। उस मे बचपना बिल्कुल भी नहीं है। अभी से बड़ों के जैसे बाते करता है। यह बचपन अगर एक बार चला जाए तो जिंदगी में कभी दोबारा लौटकर नहीं आता। उसे जीना सिखाइए, मुस्कुराना सिखाइए जो उसके चेहरे पर जरा सी भी नजर नहीं आती", कह कर श्यामा जाने लगी। फिर रुक कर वह सिद्धार्थ की ओर पलटी और बोली, "वह मेरी बेटी नहीं है! इनफैक्ट मेरा कोई बच्चा नहीं क्योंकि.........मै मां नहीं बन सकती हूं। बाँझ हु ना, इसलिए तलाक हो गया", श्यामा मुस्कुराती लेकिन उसकी आंखों में नमी सिद्धार्थ साफ देख सकता था।
श्यामा तो चली गई लेकिन सिद्धार्थ वही खड़ा सोचता रह गया "इतनी बड़ी बात कितनी आसानी से कह गई वह" आंखों में नमी और होठों पर हंसी। श्यामा का यह चेहरा सिद्धार्थ के जेहन में छप सा गया। अचानक ही उसे अपनी मां की याद आ गई। वह भी तो ऐसी ही है, कितनी ही तकलीफों को झेलने के बावजूद आज भी उनकी मुस्कान वैसे ही बरकरार है। "ये तुबें क्या सोच रहा है सिद्धार्थ! अगर मॉम को पता चला तो इसी देवी माँ से तेरी शादी करवा देंगी!" सिद्धार्थ ने अपना सिर झटका और वहाँ से बाहर निकल गया।
सिद्धार्थ जब घर पहुँचा तब तक सारांश भी वापस आ चुका था और वह कार्तिक के साथ अपने अड्डे यानी छत पर बैठा बाते कर रहा था। सिद्धार्थ भी वही आ गया और उन दोनो के साथ हो लिया। कुछ देर बाद ही अवनि हवा के जैसे लहराते हुए सब के लिए कॉफी ले आई और उनके सामने रख दिया। वह जैसे ही जाने को मुड़ी सिद्धार्थ ने उसे रोक लिया। अवनि थोड़ी कंफ्यूज हो गयी। उसे लगा सभी काम के सिलसिले मे बात कर रहे है और ऐसे मे उसका क्या काम?
अवनि को सोचता देख सिद्धार्थ ने एक कुर्सी अवनि की ओर बढ़ा दिया ताकि वह भी बैठ सके। अवनि के बैठते ही सिद्धार्थ ने अपना सवाल शुरू किया, "हाँ तो अवनि........! अब मुझे सबसे पहले ये बताओ की तुम इस भोंदू से कब और कैसे मिली?"
सारांश एक बार फिर अपने लिए भोंदू सुन चिढ़ गया लेकिन अवनि खुश हो गयी और उसने कार्तिक के ऑफिस मे हुई सारी बाते बात दी। लेकिन वह इतने पर ही नही रुकी, सारांश के उसे तीन सालों तक छुप कर प्यार करने से लेकर जॉब कॉंट्रैट, अचानक शादी और उसके बाद की सारी कहानी सुना डाली। सारांश बेचारा हैरानी से अवनि को देखे जा रहा था और याद करने की कोशिश कर रहा था की आखिर उसने कब कब कौन कौन सी बदतमीज़ी की है!
सिद्धार्थ भी बड़े मजे से अवनि की सारी बाते सुन रहा था। उसने कुछ सोच कर कहा, "अभी तक जितना तुम्हे परेशान किया है उतने दिनों तक इसे बालकनी मे सुलाना। रोमांस के कीड़े ने काटा है न इसे, तो अब करने दो रोमांस........ मच्छरों के साथ। अवनि! मेरा तुम्हे पूरा सपोर्ट है।"
सारांश जो कि अवनि की शिकायतों से हैरान था अब सिद्धार्थ की पनिशमेंट सुन कर हकलाने लगा, " भाई! आ........ आ....... आप ऐसा नही कर सकते। आप की लाइफ मे रोमांस नही है इसका मतलब ये तो नही कि आप मेरी वाट लगाएंगे। अवनि प्लीज समझाओ इन्हें....!!!"
सारांश को देख कर लगा जैसे वह अभी रो पड़ेगा क्योंकि चाहें दोनों एक दूसरे को कितना भी परेशान करे लेकिन सारांश अपने बड़े भाई का कहा कभी नही टालता था। अवनि को उसकी हालत देख हँसी आ गयी। उसने सिद्धार्थ से कहा, "अब छोड़िये भैया! जाने दीजिए वरना यही रो पड़ेंगे।" कार्तिक ने भी अवनि का समर्थन किया तो सिद्धार्थ ने कहा, "तु तो चुप ही हो जा जोरू के गुलाम। देख रहा हु किस तरह लगा हुआ है सेवा करने मे।"
कार्तिक चुप हो गया लेकिन अवनि ने सिद्धार्थ को मानते हुए कहा, "भैया मै तो मजाक कर रही थी, आप तो सीरियस हो गए।" सिद्धार्थ का गंभीर चेहरा देख अब अवनि को भी घबराहट होने लगी थी। अवनि और सारांश का बेचारों वाला चेहरा देखकर भी सिद्धार्थ के चेहरे पर कोई भाव नहीं आए। उसने कहा, "तो मैं कौन सा सीरियस हूं! मैं भी तो मजाक ही कर रहा था!"
"क्या भाई! कभी स्माइल भी कर दिया करो", सारांश भन्ना गया और उठकर अपने कमरे में चला गया। अवनि भी उसके पीछे-पीछे चली गई । सारांश के मुस्कुराने वाली बात सुनकर उसे श्यामा की याद आ गई कि कैसे आज वह दो बार मुस्कुराया वह भी सिर्फ श्यामा की वजह से। "फिर से श्यामा!!!" सिद्धार्थ झुंझला गया और अपना सिर झटकते हुए वहां से निकल कर अपने कमरे में चला गया।
क्रमश: