Chapter 48

Chapter 48

humsafar 48

Chapter

48







     चित्रा तैयार होकर कमरे से निकली तो निक्षय ने पास जाकर कहा,"कहीं बाहर जा रही हो? मुझे भी अपने साथ ले चलो,मैंने ये शहर नही देखा कभी। घुमा दो न आज मुझे, कल से तो काम मे ही लगना है। मै तुम्हारे सारे बैग्स भी पकड़ सकता हु।" निक्षय की गुजारिस सुन चित्रा ने अपने दोनो बाजू फोल्ड कर बोली, "चलो तुम्हे शहर घुमा दु!"

    निक खुश हो गया और चित्रा के पीछे पीछे चल दिया। निक्षय ने जाकर गाड़ी का दरवाजा खोला लेकिन चित्रा आज कुछ और ही मूड मे थी। उसने बाइक की चाबी ले रखी थी तो वो उसी ओर बढ़ गयी। निक्षय दौड़ कर उसके पास गया और इससे पहले चित्रा बैठ पाती निक्षय ने जाकर बाइक को संभाल लिया ताकि चित्रा पीछे बैठ सके। चित्रा की भौहें टेढ़ी हो गयी लेकिन कुछ सोच पीछे बैठ गयी। 


     अवनि और सारांश होटल से निकल शॉपिंग के लिए गए। वहाँ पहुँच कर सारांश ने अवनि और अपने लिए काफी सारी शॉपिंग कर ली। अवनि को कभी भी शॉपिंग मे दिलचस्पी नही रही। उसको यूँ बोर होता देख सारांश ने पूछा, "क्या हुआ? तुम्हे चीजे पसंद नही आ रही क्या? अगर तुम कहो तो हम कहीं और चले!!!"

    सारांश की बात सुन अवनि ने थोड़ा झेंपते हुए कहा, "नही...! ऐसा नही है..! वो क्या है न की.... मुझे शॉपिंग कुछ खास पसंद नही है।" अवनि की बात सुन सारांश ने कुछ सोचा और उसका हाथ पकड़ मॉल के ही एक फूड कोर्ट मे ले गया। वहाँ एक टेबल लिया और दोनों बैठ गए। कुछ ऑर्डर करने के बाद सारांश ने कहा, "हम दोनों की शादी हो गयी लेकिन हम दोनों ही एक दूसरे की पसंद नापसंद के बारे मे कुछ नही जानते। तो अब तुम मुझे बताओ की तुम्हे क्या क्या पसंद है? लाइक खाने से लेकर कपड़ो की चॉइस, आईस्क्रीम का फ्लेवर, फेवरेट कलर वगैरह वगैरह...!"

    अवनि ने कुछ देर सोचा और बोली, "मुझे ब्लू कलर ज्यादा पसंद है पिंक बिलकुल भी नही, आइसक्रीम मे मुझे बटरस्कॉच पसंद है स्ट्रॉबेरी बिलकुल भी नही। मुझे क्रिकेट अच्छा लगता है शॉपिंग नही।" अवनि की बात सारांश काफी ध्यान से सुन रहा था। अवनि बस अपनी बात बताए जा रही थी। सारांश को इतना तो समझ आ गया था की उसकी सारी पसंद लड़को वाली है, लड़कियों जैसी कोई बात नही उसमे। 

    "जब मै होने वाली थी तब माँ को लड़का चाहिए था लेकिन हो गयी मै। इसीलिए शायद मेरी पसंद ऐसी है।" अवनि ने कहा तो सारांश ने भी उसकी बात को समझते हुए कहा, "मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है। मॉम को लड़की चाहिए थी और हो गया मै। इसीलिए मेरी पसंद भी कुछ कुछ लड़कियों........!" सारांश ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी लेकिन अवनि उसकी बातों का मतलब समझ गयी। वह हौले से मुस्कुरा भर दी। 

    "अब घर चले....!" अवनि ने पूछा। 

   "इतनी जल्दी!!! अभी तो मेरा और मन है शॉपिंग करने का। कैसी बीवी हो तुम यार! लोग डरते है अपनी बीवी की शॉपिंग देख, और एक मै हु जिसकी बीवी बोर हो जाती है शॉपिंग करने मे।" सारांश ने दुःखी होकर कहा। "अच्छा ठीक है, अगर तुम्हे नही करनी तो हम कहीं लॉन्ग ड्राइव पर चले....!" सारांश ने कहा तो अवनि ने भी हामी हर दी। उसे भी सारांश के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था आ यहाँ तो बात लॉन्ग ड्राइव थी। 


     चित्रा जहाँ निक्षय से पीछा छुड़ाने के लिए बाहर जाना चाहती थी वही निक्षय उसके साथ हो लिया था। अब ऐसे मे चित्रा का खून क्यों न जलता। उसपर भी उसकी ड्राइविंग चित्रा के हिसाब से काफी स्लो थी। उसने चिढ़ कर कहा, "पहले बैलगाड़ी चलाते थे क्या...! " चित्रा की बात सुन निक्षय बोला, "नही! बिलकुल भी नही! लेकिन क्या है न, आज से पहले कोई लड़की बाइक पर मेरे पीछे नही बैठी इसीलिए।"

   "गाड़ी रोको......! मैंने कहा गाड़ी रोको.....!" चित्रा ने ऐसे कहा की निक्षय को बाइक रोकनी पड़ी। चित्रा ने उसे बाइक से उतारा और खुद आगे बैठ गयी। "मुझे स्पीड पसंद है। अगर तुमसे नही होता तो मत ही चलाओ। अगर आना है मेरे साथ तो बैठो वरना लौट जाओ।" चित्रा की बात सुन निक्षय जल्दी से उसके पीछे बैठ गया। चित्रा ने भी बिना उसे संभलने का मौका दिये बाइक को इतनी स्पीड मे दौड़ा दी की बेचारा निक्षय एक दो बार गिरते गिरते बचा। उसने कस कर चित्रा की कमर पकड़ ली। 

     चित्रा ने हमेशा बाइक अकेले ही चलाई थी। आज पहली बार कोई उसके पीछे बैठा था और वो भी निक्षय जिसे वो पसंद नही करती थी। या शायद करती तो थी लेकिन उसे  किसी तरह की कोई उम्मीद नही देना चाहती थी। उसके दिल ने हमेशा कार्तिक को ही चाहा था जो उसकी पहुँच से अब बाहर था, जिसे बड़ी आसानी से खुदसे दूर जाने दिया था। 

    दोनों ही शहर के बाहर चक्कर काट रहे थे। चित्रा को समझ नही आरहा था की वो कहाँ जाए। उसने एक मॉल मे गाड़ी पार्क की और अंदर घुस गयी। शॉपिंग तो करना नही था उसे, फिर भी वह किसी न किसी शॉप मे घुस जाती। एक एक कर हर शॉप से कम से कम दो बैग्स लेकर उसे पकड़ा देती। बेचारा निक्षय, उसके दोनों हाथ मे बैग्स लटके हुए थे लेकिन फिर भी वह कुछ नही रहा था। चित्रा बस उसे इतना परेशान कर देना चाहती थी की वह आज ही घर छोड़कर चला जाय। 

    चित्रा ने नज़र बचा कर सारांश को कॉल किया। कुछ देर रिंग जाने के बाद सारांश ने कॉल उठाया तो उसके कुछ कहने से पहले ही चित्रा की दुःखी आवाज़ उसे सुनाई दी, "सारांश मेरे अच्छे दोस्त मेरे प्यारे दोस्त! इस निकी से मेरा पीछा छुड़वा दे यार। इरिटेट् कर रखा है इसने मुझे। आज एक दिन मे ही पागल हो गयी हु। प्लीज बचा ले मुझे.....!"

   "चिट्टू...! तुझे तो बचा लूंगा लेकिन मेरा क्या! मेरी बीवी तो मुझे मार ही डालेगी। इस वक़्त मै उसे लॉन्ग ड्राइव पर ले जा रहा हु, उसे छोड़कर तो नही आ सकता। एक काम कर उसको इतना परेशान कर की वो खुद ही चला जाए। वो कहते है न भगवान भी उसी की हेल्प करते है जो खुद की हेल्प करते है।" सारांश ने कहा। 

    "वाह! क्या आईडिया दिया है सारांश बाबा, दिल करता है आपको गोली से उड़ा दु। अबे सडु..! तुझे क्या लगता है मैंने कोशिश नही की, लेकिन वो तो है की उसको कोई फर्क ही नही पड़ता यार। क्या करू...?" चित्रा ने अपना सर पकड़ लिया तो सारांश ने कहा, "फिर तो वो पूरा हसबैंड मटेरियल है। चिट्टू बिलकुल सही लड़का मिला है तुझे, मै तो कहता हु शादी कर ले इससे। जिंदगी भर तु उसका खून पियेगी तब भी कुछ नही कहेगा।" सारांश की बात सुन चित्रा का दिल किया उसको वही फोन फेक कर मारे। 

    निक्षय काफी देर तक उन बैग्स को लेकर चला लेकिन शिकायत नही की। चित्रा से जब रहा नही गया तो उसने अपनी सारी शॉपिंग खुद ही उसके हाथ से छीन लिया आगे आगे चलने लगी। निक्षय ने जब देखा तो उसने उसका रास्ता रोक कर वजह पूछी तो चित्रा ने भी टका सा जवाब दे दिया, "मै कोई अबला नारी नही हु। मेरा सामान मै खुद उठाती हु। मुझे किसी कुली की जरूरत नही। हम सब को अपना काम खुद ही करना चाहिए।"

    निक्षय भी कहाँ कम था, उसने भी कहा, " मुझे अच्छा नही लगता की मेरे सामने मेरा कोई अपना बोझ उठाता चले। अब जैसी भी हो जो भी हो.... हो तो मेरी अपनी ही। इसीलिए तुम्हारे इगो को भी मैं हर्ट नही कर सकता और अपने मैनर्स भी नही भूल सकता तो मेरे पास सिर्फ एक ही ऑपसन बचता है।" निक्षय की बात सुन चित्रा ने अपनी एक भौ ऊपर चढ़ा ली। वो भी जानना चाहती थी की आखिर निक्षय द ग्रेट करने क्या वाला है। निक्षय ने भी उसको किसी भी तरह का रिएक्सन देने से पहले उसकी उसके बैग्स समेत गोद मे उठा लिया और बाहर निकल आया। 


    अवनि ने अब तक सिर्फ सुना था लेकिन आज वो खुद अपने पति के साथ लंबी ड्राइव पर निकली थी। हाइवे से निकलते हुए दोनों तरफ की हरियाली अवनि को बहुत अच्छी लग रही थी। उसने धीरे से झुक कर सारांश के काँधे पर अपना सिर टिका दिया और उसकी बाँह पकड़ ली। ऐसा करते हुए अवनि के मन मे अब कोई झिझक बाकी नही थी। सारांश को अवनि का यू प्यार जताना अच्छा लग रहा था। दोनों एक दूसरे की कंपनी को इंजॉय करते हुए काफी दूर शहर से बाहर तक निकल आये। 

      अवनि को जब तक एहसास हुआ, वो दोनों शहर से दूर एक पहाड़ी पर थे जहाँ से पूरा शहर दिखता था। शाम का वक़्त था और पूरा शहर रौशनी से जगमग हुआ बहुत खूबसूरत लग रहा था। अवनि ने एक भरपूर निगाह चारों ओर डाली। शहर मे भले ही गर्मी हो लेकिन यहाँ पहाड़ी पर हल्की ठंड महसूस किया जा सकता था। अवनि खुद को अपने ही बाहों मे समेट कर बोली, "कितना खूबसूरत है न!" 

   "हाँ...! बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है।" सारांश ने उसे पीछे से थाम कर उसके कानों मे कहा। अवनि को फिर वही सिहरन हुई जो हर बार सारांश के करीब आने से होती थी। एक अजीब सा एहसास जो उसके छूने से होता था। अवनि पलटी और उसके सीने से लग गयी, "हाँ......! बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा खूबसूरत।।" सारांश अवनि की बात सुन मुस्कुरा दिया। दोनों कुछ देर यूँ ही एक दूसरे को थामे हुए खड़े रहे। 





क्रमश: