Chapter 7
Episode 7
Chapter
स्नेहा अपने ही कमरे में बैठी थी। स्नेहा ने फिर से उस काले कपड़े को जलाया और उस रहस्यमय आवाज से सवाल पूछा, "इस बार यह आसन काम क्यों नहीं कर रहा है…???"
रहस्यमय आवाज ने कहा, "कोई बात नहीं तुम उसी श्मशान में पहुंचो जहां तुम्हारे परिवार का अंतिम संस्कार किया गया था। मैं वहीं तुमसे मिलूंगा। फिर हम हमारे स्थान पर साथ में चलेंगे।
स्नेहा ने जल्दी से नीचे जाकर सबसे कहा, "आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है... तो दवाई लेकर सोने जा रही हूं। प्लीज कोई भी मुझे जगाने मत आना।"
इतना कहकर स्नेहा वापस अपने कमरे में चली गई क्योंकि अब स्नेहा को समझ आ गया था कि इस समय कोई भी जादुई आसन या कुछ भी उसकी सहायता नहीं करने वाला है। उसे आज तांत्रिक से मिलने जाने के लिए बहुत टाइम चाहिए होगा। इसलिए उसने सबसे झूठ बोलकर यह टाइम लिया। स्नेहा ने अपने कमरे की खिड़की से होते हुए पेड़ पर चढ़कर घर से बाहर निकल गई।
बाहर से एक ऑटो में बैठ कर श्मशान के लिए चली गई कुछ ही देर में स्नेहा श्मशान में पहुंच गई। स्नेहा वहीं बैठ कर उस आवाज वाले व्यक्ति का इंतजार कर रही थी।
सामने से एक 35 साल के आसपास का आदमी चल कर आ रहा था। उस आदमी ने लाल रंग की धोती पहनी हुई थी, बाएं पैर में एक कड़ा पहना था। सांवले रंग का वह आदमी कसरती शरीर का मालिक था, ऐसा लग रहा था जैसे उसने घंटों कसरत करके वह शरीर बनाया था। बालों के पीछे की तरफ ले जाकर छोटा सा जुड़ा बनाया हुआ था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और मूंछ थी। वह व्यक्ति अगर इस वेशभूषा में नहीं होता तो निश्चित ही कोई भी स्त्री उस पर मोहित हो सकती थी। वह व्यक्ति धीरे-धीरे स्नेहा के पास आ रहा था। जब वह स्नेहा से 20 मीटर दूरी पर रह गया तो अचानक वहीं पर खड़ा हो गया। उसकी आंखों का रंग गहरा लाल होने लगा। वह कुछ मंत्र पढ़ने लगा। स्नेहा को उसके मंत्र नहीं सुनाई दे रहे थे पर आभास हो रहा था कि कुछ गड़बड़ जरूर थी।
तांत्रिक वहीं से स्नेहा को घूर कर देखा और अपने मंत्रों से अपने हाथों में थोड़ी सी राख मंगवा कर स्नेहा के चारों तरफ वहीं से एक गोल घेरा बना दिया।
उसने स्नेहा से कहा, "मेरे घेरा पूरा करने से 1 मिनट पहले ही इस घेरे से बाहर निकल जाना।"
स्नेहा ने नासमझी के भाव से उसे देखा पर तांत्रिक के चेहरे पर कुछ विचित्र भाव देखकर उस समय कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा। बस तांत्रिक के कहे अनुसार स्नेहा बाहर निकल गई। स्नेहा के निकलते ही तांत्रिक ने वह घेरा पूरा बना दिया।
बाहर निकलते ही तांत्रिक स्नेहा पर जोर से चिल्लाया, "पता है क्या साथ लेकर घूम रही हो…?? अगर जरा भी चूक हो जाती तुमसे तो आज तुम्हारे घरवालों के साथ-साथ तुम्हारी भी तेरहवीं होती…!"
स्नेहा अभी भी आंखों में नासमझी के साथ तांत्रिक को देख रही थी। उसे तांत्रिक की बातें कम ही समझ आती थी।
तांत्रिक ने कहा, "यह जगह यह सब बात करने के लिए ठीक नहीं है। फिलहाल तुम जितनी जल्दी हो सके मेरे साथ चलो।"
स्नेहा और तांत्रिक वहां से चल दिए। थोड़ी दूर जाने पर वहां एक नदी बह रही थी। वह तांत्रिक नदी के पानी पर चलकर नदी पार कर गया। स्नेहा वही खड़ी रह गई... उसे समझ नहीं आ रहा था कि पानी पर से कैसे चल कर जाए…?
तांत्रिक ने कड़ी आवाज में स्नेहा से कहा, "वहां खड़े रहने के लिए साथ नहीं लाया था। जल्दी से चलकर इस पार पहुंचो। मेरी तंत्र शक्ति उसे वहां ज्यादा देर नहीं रोक पाएगी।"
स्नेहा ने जैसे ही नदी में पैर रखा उसने देखा वह भी नदी पर चल पा रही थी। स्नेहा जल्दी ही नदी पार कर गई।
दूसरी पार जाकर स्नेहा ने तांत्रिक से पूछा, "आप किसकी बात कर रहे थे…? अगर वह जो कोई भी थी वो उस घेरे को पार कर सकती है... तो इस नदी को पार नहीं कर सकती…???"
तब तांत्रिक बोला, "नहीं…! यह नदी बहुत ही पवित्र नदी है। कोई भी दुष्ट शक्ति इस नदी को पार नहीं कर सकती। वैसे भी मेरा आश्रम और मेरी तंत्र स्थली यहीं है तो हमें यहीं आना था।"
"शायद तुम जानना चाहती होगी कि मैं उस तांत्रिक को इतना कैसे जानता हूं? वह इसलिए क्योंकि उस तांत्रिक ने धोखे से मेरे गुरु जी की हत्या करके उनकी सारी सिद्धियों को छीन लिया। और वह जो कृत्या थी वह भी मेरे गुरु जी ने सिद्ध की थी। जब तक वह मेरे गुरुजी के पास थी तब तक वो शुभ शक्ति थी। उस तांत्रिक ने अपनी कुटिल बुद्धि से उस शुभ शक्ति को अशुभ और दुष्ट शक्ति में बदल दिया।" तांत्रिक ने दुखी होते हुए कहा।
फिर तांत्रिक ने आगे कहा, "सोचने वाली बात यह है... कि उस तांत्रिक ने तुम पर अपने किसी भी तंत्र का प्रयोग नहीं किया है। फिर भी वह औरत तुम्हें दिखाई दे रही है... तुम्हारे आसपास है... ऐसा कैसे हो सकता है।"
यह सुनकर स्नेहा भी थोड़ी टेंशन में आ गई। वहीं तांत्रिक भी गंभीर मुद्रा में कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर वहां पर बिल्कुल सन्नाटा था मरघट जैसी शांति फैली थी। झींगुरों और कीड़े मकोड़ों की आवाजें आ रही थी।
थोड़ी ही देर में तांत्रिक ने घबराकर पूछा, "स्नेहा…!!! तुमने किसी ऐसी चीज को छुआ था जो कुछ संदिग्ध हो…!!!"
स्नेहा ने मना कर दिया, "नहीं… मैंने किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाया है।"
स्नेहा के पैर में एक पायल पड़ी थी... जो उसी पल जोर से चमकने लगी थी। उसी समय उस चमक पर तांत्रिक की नजर पड़ गई। तांत्रिक ने स्नेहा से पूछा, "यह पायल… यह पायल कैसी है…? तुम्हारे पैर में…???"
स्नेहा ने कहा, "यह मेरी मां की पायल है…!!"
तांत्रिक ने पूछा, "यह तो एक ही है... दूसरी कहां है…?"
स्नेहा ने कहा, "दूसरी मुझे नहीं पता... यह मेरी मम्मी की पसंदीदा पायल है। मेरी नानी ने उन्हें गिफ्ट की थी। मैं बहुत दुखी थी तो यह पायल मुझे मिली... और मैंने पहन ली। इसे पहनने से मुझे मेरी मां के आसपास ही होने का आभास हो रहा है... बहुत ही ज्यादा सुरक्षित महसूस हो रहा है।"
तांत्रिक ने फिर ध्यान लगाकर उस पायल की जोड़ी ढूंढने की कोशिश की तो उसे पता चला कि उस पायल की जोड़ी की दूसरी पायल स्नेहा के चाचा और बुआ ने विराज को दी थी। उससे वह पायल विराज के गुरुजी के पास पहुंच गई थी। उस पायल के जरिए तंत्र प्रहार स्नेहा की मां पर किया था। उसकी जोड़ी की दूसरी पायल स्नेहा के पैर में थी। इसलिए स्नेहा को वह डरावनी औरत दिखाई दे रही थी। पर कुछ ऐसी बात थी जो तांत्रिक को भी पता नहीं चल पा रही थी। पर कुछ तो कारण था जिस के कारण से अभी तक उस डरावनी औरत ने स्नेहा को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाया था। वह बात केवल अब वही डरावनी औरत बता सकती थी।
तांत्रिक ने कहा, "स्नेहा जिस पायल के जरिए तुम्हारी मां पर वह तंत्र प्रहार किया गया था। वह पायल इसी पायल की जोड़ी की ही दूसरी पायल थी। इसलिए वह प्रहार शायद तुम पर भी असर दिखा रहा है। पर सोचने वाली बात ये है कि उस औरत ने अभी तक तुम्हें कोई भी नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया…? अब यह तो वही औरत बता पाएगी। क्योंकि जो तंत्र प्रहार हुआ है और जो औरत तुम्हें दिखाई दे रही है। उसके बारे में विराज के गुरु को भी कोई जानकारी नहीं है।"
स्नेहा ने परेशान होकर तांत्रिक से पूछा, "क्या मतलब है... इस पायल के कारण वो औरत मुझे दिखाई दे रही है…! यह कैसे... और यह कैसे पता चलेगा... कि उसने अभी तक मुझे कोई नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया??"
तब तांत्रिक ने कहा, "यह बात तो तुम्हें खुद उस औरत से पूछनी पड़ेगी। जो हर समय तुम्हारे आसपास ही रहती है और समय-समय पर तुम्हें दिखाई देती है। शायद वह तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती पर तुम से संपर्क करके कुछ बताना जरूर चाहती है।"
तब से स्नेहा ने कहा, "मैं… मैं उससे कोई बात नहीं करने वाली…!! मेरे परिवार को मारा है उसने... और क्या पता उन्हीं के कहने पर मुझे भी मारना चाहती हो और उसे मौका नहीं मिल रहा हो।"
तांत्रिक ने हंसते हुए कहा, "वह कोई मामूली औरत नहीं है... जिसे तुम्हें मारने के लिए मौका ढूंढना पड़ेगा। अगर वह तुम्हें मारना चाहती तो जिस दिन तुम्हें पहली बार दिखाई दी थी उसी दिन मार देती। उस दिन भी तो वह तुम्हारे सिरहाने बैठकर तुम्हें स्पर्श कर रही थी। तभी वह तुम्हें मार सकती थी पर नहीं मारा... कारण तो वही बता सकती है। तुम यह बात मानो या ना मानो।"
स्नेहा ने कहा, "उस औरत को छोड़ो आप मुझे अपनी भैरवी बनाने की बात कह रहे थे। मैं उस बात के लिए तैयार हूं। आप बस बताइए कि मुझे करना क्या है…!"
तांत्रिक ने कहा, "जब तक उस औरत का सत्य सामने नहीं आ जाता है तब तक यह विचार भूल ही जाओ। क्योंकि जहां पर तुम जाओगी वह औरत तुम्हारे साथ ही रहेगी और तुम्हारे साथ ही मेरी साधना स्थली पर भी जाएगी। कोई भी बंधन उसे एक पहर से ज्यादा नहीं रोक सकता। इसलिए जब तक हमें उस औरत का उद्देश्य पता नहीं चलता है। तब तक... तुम्हें भैरवी बनने के लिए इंतजार करना ही होगा।"
स्नेहा ने कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है…???"
तब तांत्रिक ने समझाते हुए कहा, "स्नेहा संसार में होने वाले प्रत्येक घटना के पीछे कोई ना कोई ठोस कारण अवश्य होता है। इसके पीछे भी कोई ठोस कारण अवश्य होगा। जो हमें भी शीघ्र ही पता करना होगा।"
स्नेहा ने कहा, "ठीक है... मैं उस औरत से बात करने के लिए तैयार हूं... पर आपको इस बात की गारंटी देनी पड़ेगी कि वो औरत मुझे किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। और आपको मेरी उस औरत से रक्षा करनी होगी।"
तांत्रिक ने कहा, "यह करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।"
ऐसा कहकर तांत्रिक ने आंख बंद करके मंत्र जाप करते हुए हाथ आगे बढ़ाया। उसके हाथ में एक लाल रंग का चमकदार धागा प्रकट हुआ। तांत्रिक ने स्नेहा वह धागा उसकी बायीं बांह पर बांध दिया और कहा, "यह रक्षा सूत्र तुम्हारी उस औरत से रक्षा करेगा... अब तुम शीघ्र अति शीघ्र वापस उसी श्मशान में चले जाओ... वरना वह औरत इस जगह आ जाएगी। उस औरत का यहां आना उचित नहीं है। किसी भी तांत्रिक की साधना स्थली पर ऐसे किसी और का आना...या इस प्रकार की शक्ति का आना उचित नहीं।"
स्नेहा ने हां में सिर हिलाया और वापस श्मशान में पहुंच गई। स्नेहा ने वहां पहुंचकर देखा तो उसे वह डरावनी औरत वहीं दिखाई दी। स्नेहा ने उसे अनदेखा करते हुए ऑटो पकड़ा और वापस घर आ गई। उसी तरह पेड़ से चढ़कर वापस अपने कमरे में आ गई।
सुबह जब स्नेहा उठी तो पीहू पूरे घर में धमाचौकड़ी मचाती दिखाई दी। उसे देख कर स्नेहा का मन बहुत खुश हो गया। स्नेहा पीहू को सब कुछ भूल कर देख रही थी। तब पीहू स्नेहा के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके आंखों के सामने हाथ हिला कर बोलने लगी,
"बूईऽऽऽऽ बूईऽऽऽ बूईऽऽऽऽऽऽऽ….!!!"
पीहू की आवाज से स्नेहा का ध्यान टूटा। फिर स्नेहा उसे कहने लगी, "हां बिट्टू... मेरी गुड़िया... पीहू तुम कुछ बोल रही थी…?"
पीहू ने उत्साहित होते हुए पूछा, "बूई... आप मुझे ज़ू ले जाने वाली थी और राइड पर भी जाने वाले थे हम... नहीं जाएंगे क्या…???"
स्नेहा ने देखा सभी घरवाले उसकी तरफ अजीब सी नजरों से देख रहे थे।
स्नेहा ने कहा, "मैंने कल पीहू को जू और राइड पर ले जाने का प्रॉमिस किया था। तो मैं और पीहू आज हम दोनों घूमने जाने वाले हैं।"
पीहू ने अपने दादा दादी और पापा की तरफ सवालिया नजरों से देखा… मानो आंखों से ही जाने के लिए परमिशन मांग रही हो। पीहू वैसे भी उन सबको कुछ खास पसंद नहीं थी। क्योंकि वह लोग बेटा चाहते थे और उनके घर में पीहू आ गई। केवल प्रीति ही पीहू को चाहती थी।
स्नेहा के पूछने पर सभी लोग बिना जवाब दिए अपने अपने कमरे में चले गए।
तब स्नेहा ने प्रीति से पूछा, "प्रीति…! क्या मैं पीहू को बाहर ले जा सकती हूं…??"
प्रीति नहीं चाहती थी कि स्नेहा पीहू को लेकर जाए पर पीहू को इतना उत्साहित देखकर उसने मना नहीं किया। सभी घरवाले यह सोच कर थोड़े निश्चिंत थे कि अगर स्नेहा को कुछ हुआ तो साथ ही में पीहू भी से भी छुटकारा मिल जाएगा। प्रीति को भी यह नहीं लगेगा कि हम पीहू से छुटकारा पाना चाहते थे।
थोड़ी देर में स्नेहा और पीहू दोनों तैयार होकर स्नेहा की कार फेवरेट कार जो रेड कलर की माज़ेराती थी। उसमें बैठ कर घूमने निकल पड़े।
सबसे पहले स्नेहा और पीहू ने वहीं पास के रेस्टोरेंट से नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद दोनों जू घूमने चले गए। वहां उन्होंने बहुत से जानवर देखें। वहां पर बाघ, शेर, चीते, हाथी, लोमड़ी, भालू, सियार और बहुत सारे पक्षी और सांपों की बहुत सी प्रजातियां भी देखी थी।
स्नेहा तो पीहू को खुश देखकर ही खुश हो रही थी। पीहू को सबसे ज्यादा बाघ को उसके छोटे शावकों के साथ खेलते देखकर बहुत मजा आ रहा था। वह कभी उन्हें देखकर उछलती तो कभी उन छोटे बाघ शावकों को गोद में लेने के लिए मचल उठती थी।
एक बाघ के पिंजरे के सामने खड़े होकर पीहू ने स्नेहा से कहा, "बूईऽऽऽ वह छोटू टाइगर बहुत क्यूट है ना... वह मुझे वो टाइगर चाहिए... मुझे छोटू के साथ खेलना है।" और ऐसा कहते हुए स्नेहा का हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे बाघ के पिंजरे के पास लेकर जाने लगी।
स्नेहा ने कहा, "पीहू बेटा... वह छोटू टाइगर बहुत छोटू है ना... वो उसकी मम्मी के बिना कैसे रहेगा... आप अपनी मम्मी के बिना रह सकते हो क्या…?"
इस पर पीहू ने सिर झुकाकर कहा, "मैं बिना अपनी मम्मी के कैसे रह सकती हूं... मैं बहुत छोटी हूं ना…!"
तो स्नेहा ने समझाया, "बेटा यह छोटू भी तो बहुत छोटा है ना और वैसे भी टाइगर वाइल्ड एनिमल होता है। उसे घर पर नहीं रख सकते ना।"
स्नेहा के प्यार से समझाने पर पीहू मान गई। स्नेहा की नजर बाघ के पिंजरे के पीछे खड़ी उसी डरावनी औरत पर गई। स्नेहा ने पीहू का हाथ जोर से कस कर पकड़ लिया और पीहू से कहा, "पीहू बेटा... पीहू बेटा चलो जल्दी बहुत देर हो रही है ना।"
स्नेहा फटाफट पीहू को लेकर वहां से बाहर निकल गई। उस समय दोपहर हो चली थी।
पीहू ने कहा, "बूई... मुझे बहुत भूख लगी है चलो ना चलकर कुछ खाते हैं।"
स्नेहा ने पीहू से पूछा, "पीहू बेटा क्या खाना है... आपको???"
पीहू ने कहा, "बूई... मुझे ना… म्म्म्म्म….. पिज़्ज़ा खाना है। पता है... मुझे कोई भी पिज़्ज़ा खाने नहीं लेकर जाता।"
स्नेहा ने प्यार से पीहू के सिर को सहलाते हुए कहा, "ठीक है बिट्टू…! हम पिज्जा खाने चलते हैं।"
पीहू और स्नेहा दोनों पिज़्ज़ा हट पर पिज़्ज़ा खाने चले गए उन दोनों ने दो मीडियम साइज चीज बस्ट पिज़्ज़ा ऑर्डर किया।
पिज़्ज़ा आने से पहले एक वेटर ने स्नेहा को एक चिट लाकर दी। स्नेहा ने कन्फ्यूज होते हुए वो चिट खोल कर देखा तो उसमें लिखा था…
"आज रात 12:00 बजे अपने घर की छत पर मिलो"
क्रमशः……..